Wednesday, November 7

"रूप/सौन्दर्य"06नवम्बर 2018

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खुशी है धन
प्रेम है धन 
भगवान धन्वंतरी दे 
आपको ये अनमोल रतन
तन है रूप 
मन है रूप 
स्वस्थ रहें मस्त रहें
ऐसा हो चौदस का रूप 
ज्ञान है दीप
जीवन है दीप
इस दिपावली आपको 
सौगात में मिले अनंत दीप
स्वरचित 
मनोज नन्दवाना


सौन्दर्य देखने वाले की आँखों में होती 

सौन्दर्यता  समझिये क्या क्या न पिरोती ।।
सोच का ही दुख और सुख होता है
सकारात्मक बनो सफलता ये सँजोती ।।

श्रष्टि की हर एक शै खूबसूरत है
देखने के नजरिये की जरूरत है ।।
जैसी भावना मन में उमड़ घुमड़ होती
लगती दुनिया की वैसी ही मूरत है ।।

दुनिया तो यह दुनिया ही रहती 
क्या क्या न यह किस्से कहती ।।
कोई मोती चुनकर जाता है तो
किसी के जिह्न शिकायत बहती ।।

सुन्दर तस्वीरों से घर सजाते हैं 
सुन्दर विचारों को मन में लाते हैं ।।
यही सोच ऊर्जा बनती है ''शिवम"
करने वाले क्या क्या न कर जाते हैं ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"


सिर्फ त्वचा और चेहरे के रूप/ सौंदर्य काफी नहीं होते

आपके आचार व्यवहार भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका में होते

साफ़ सफाई आँखों दाँतों और शरीर की बालों की भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका में होते

आपकी चाल ढाल बात व्यवहार हास् परिहास और दुनियादारी की समझ

आपके रूप /सौंदर्य को निखारने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते

अतः हर व्यक्ति को यदि बनना/बने रहना है प्रसिध्द और महत्वपूर्ण व्यक्तित्व

अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व शरीर और मन को परिष्कृत करना भी समय की ज़रूरत होते

(स्वरचित)

अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव

 कुछ हाइकु


दृग सौन्दर्य
आकर्षक प्राचुर्य
श्रृंगार शौर्य
*************

वास्तविकता
भीतरी सौन्दर्यता
सर्व मान्यता
*************

सौन्दर्य बोध
गूढ़ गहन शोध
त्यागिये क्रोध
************

स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट मध्य प्रदेश

सबका अपने हाथ में , जन-जन हो या भूप |
उर सुन्दर होगा अगर , होगा सुन्दर रूप ||
- - - - - - - - - - - - - - -- - - - - - - - - - - - 
सर पर हो फिर वक्त की , चाहे कितनी धूप |
चमक कभी कम हो नहीं , एेसा पाए रूप ||
एेसा पाए रूप , रहे जग में उजियारा |
चलती जब तक साँस , मिटे सबका अँधियारा ||
करते रहना दान , चले. आए सब दर पर |
कह कोष्टी कविराय , नहीं ले जाना सर पर ||

एल एन कोष्टी गुना म प्र 
स्वरचित एवं मौलिक


रूप निखार
मन को संवारिए
है दरकार 

सिर्फ बढ़ाते
चेहरे का सौन्दर्य 
ब्यूटी पार्लर 

धार्मिक ग्रंथ
पढ़कर बढ़ता
मन सौन्दर्य 

रूप चौदस 
प्रकृति को बनाओं 
खूब सुन्दर 

खूब चमकें
चेहरे पे आपके
ज्ञान सौंदर्य 

स्वरचित 
मुकेश भद्रावले हरदा 



बहृ---- 221-221-221-221
----------------------------------------

देख कर दिल उन्हें युँ, मचलने लगा ।
प्यार का ज्वार-भाटा, उछलने लगा ।।

-1-
देख महफिल मे उनको लगा ये मुझे ,
ख्वाब मेरा उदय हो, निखरने लगा ।

-2-
उनके आने से महफिल जवाँ हो गई ,
दिल अनायास मेरा , धडकने लगा ।

-3-
पास आके नजर से नजर जब मिली ,
मन युँ पागल मिरा क्यों, बहकने लगा ।

-4-
मदभरी आँखों के जाम ज्यो ही दिखे ,
पग नशे मे मिरा फिर, थिरकने लगा ।

-5-
होठों के जादू से दूर " राही "रहा ,
रुसवाँ होने के डर से , सँभलने लगा ।

राकेश तिवारी " राही "


सुंदर रूप
देखकर सबका
हर्षित मन

महक उठे
उपवन में गुल
खुशबू फैली

रात अंधेरी
चमकती चाँदनी
फैला उजाला

संगमरमर
है बदन तुम्हारा
ताजमहल



हार -दुखों का पहनाना आ गया,
रोते दिल को हंसाना आ गया।।१।।
सच की ताकत सभी पहचान ते,
झूठे रिश्तों को तोड़ ना आ गया
।।२।।

प्यार का पैगाम मिल ते उनको ,
।।रुप को संवरना आ गया ।।

अकेले खुद से बतियाते है,
जग की भीड़ में जीना आ गया।।
क्यों मांगें सहारा जीने का,
अपना बोझ उठाना आ गया।।५।।
नेह के दीप जलते जब रात में,
रुठे पिया को मनाना आ गया।।६।।
देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।


आज रुप चतुर्दशी में तुम्हारा नव श्रंगार कर दूॅ 
मन में उभरते हुए मधुर मधुर उदगार भर दूॅ 
घटाओं से काजल चुरा नयनों की साज सॅवार कर दूॅ 
सिन्दूर और बिन्दिया लगा उम्र भर का प्यार भर दूॅ। 

जीवन का है क्या ठिकाना 
कब हो जाय यहाॅ से जाना
नहीं होगा फिर मिलना मिलाना
है असम्भव फिर से आना। 

आज नैराश्य भाव त्याग दें 
आयु को नई चलो राग दें
श्रंगार के इस उपवन में 
अलंकृत शब्दों के पराग दें। 

तुम्हारे हाथों में मेहन्दी लगाऊॅ
युवा सपनों को फिर से बुलाऊॅ
थकान कोई भी आने न पाये
मधुर भावों में तुमको सुलाऊॅ।

स्वरचित 
सुमित्रा नन्दन पन्त 
जयपुर


विधा :- लघु कविता

रूप सौंदर्य प्रदायिनि
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी
पावन तिथि बरस की
निखारे रूप जैसे उर्वशी

दान निखारे सौंदर्य
करो दान दीनन को
पर्व है उल्लास का
खुशियां बांट निर्धन को

सौंदर्य मिले कल्पवृक्ष सम
ऐसा वरदान मिले सबको
पूजन करो रूप चतुर्दशी
उर आनंद मिले सबको

स्वरचित मुकेश राठौड़


मधुरस पावक अमृत प्याला।
अधर अंगारकृत जस ज्वाला।।

नकबेसर जस जीवन जाली।
मकराकृत कुण्डल मतवाली।।

केष घटा छाई करियारी।
नेत्र धनुह में काजर कारी।।

ग्रीवा सुन्दर समत सराहु।
जस के पुष्प पुंकेशर पाहु।।

वक्ष उठान पर्वत सम तोरे।
जस रजत थाल दो स्वर्ण कटोरे।।

कटि प्रदेश बहु उत्तम पसरा।
ढांक सके ना हरित अंचरा।।

अन्य प्रदेश पैरन सुघराई।
मरम कोयु बरन ना पाई।।

पायल-नूपुर उ ध्वनि गुंजारत।
जस मंदिर घड़ियाल है बाजत।।

अस मूरत जाकर होय जाई।
ताके धरा पर स्वर्ग हो जाई।।

जिनके नेह इनसे टुट जाई।
कह राकेश होई जोगी भाई।।

......राकेश पांडेय,, स्वरचित


चन्द्रमुखी छवि अति ललित
भंगिम भाव,कपोल कलित
खंजन सा अंजन अनुरंजन
तिसपर चितवन तीखी चित्तभंजन
बिंदिया चंदन,विविध व्यंजन
अमिय अधर सरस रस रंजन
नासिका सुतवा मलयवासिनी
कोकिलकंठी, मृदु, सुभाषिनी
अलक घटा घनघोर घन सा
अलंकृत ग्रीवा पुष्पित उपवन सा
अपलक दरस,सम्पुष्ट कलश यौवन के
अभिरामी स्पंदन मादक उद्दीपन के
सुगठित अवयव लयमय, अल्हड़ अँगड़ाई
सुरम्य नाभ्या भंवरावृत,भव्य छटा छिटकाई
तन्य, सुनम्य,कृश कटिदेश
रम्य रुचिर अति मोहक परिवेश
प्रीत का गीत रुनझुन पायल की झंकार
रक्त-महावर,बिछुआ डंक अलंकार
लावण्य पूरित सौन्दर्य अनुपम अथोर
लक्षित कर हर्षित हृदय प्रिय मन अति विभोर

-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित


हे प्रभु सुंन्दर हो मेरा अंतर्मन।
भले नहीं मिले मुझे सुंन्दर तन।
इस रूप रंग में क्या रक्खा है,
मुझे हो जाऐं परमेश्वर के दर्शनः

रूप चौदहवीं आज दिवस है।
कोई कहता इसे दान दिवस है।
छोटी दीवाली भी कहते इसको,
जो भी हो हमें शुभपर्व दिवस है।

मन अपना प्रफुल्लित हो जाऐ।
हर मनमयूर पुलकित हो जाऐ।
सुगठित हों ललनाओं के तन,
सबके मन आनंन्दित हो जाऐं।

सबसे बडी खुशी भगवन देना।
उर सबके आलोकित कर देना।
हर जन मन में उजियारा आऐ,
हे अखिलेश्वर प्रमुदित कर देना।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.


नयनों की भाती सुंदरता,
देख उर आनंदित होता।

सुंदर-सुंदर ये सृष्टि सारी,
नयन उस पर हों बलिहारी।

हृदय भाव, गुण हो यदि सुंदर,
जीवन सरल सहज अति सुंदर।

सद्गुण आचरित जीवन सारा,
उत्तम चरित्र जगत विस्तारा । 

सुंदर रूप हो असुंदर सीरत, 
दुष्कर जीवन हो प्रेम रहित। 

सुंदर सीरत भाव हो अनुपम,
कोई न हो जग में उसके सम। 

रूप उम्र संग ढलता जाता, 
सीरत उम्र संग चार चाँद लगाता। 

करो सुंदर भावों का अवगुंठन, 
कलुष मिटे सुंदर जग-जीवन। 

अभिलाषा चौहान 
स्वरचित



तन का सौन्दर्य भाये सबको, हर कोई रूप निहार रहा, 
जग में रुप सौन्दर्य पाने को, कोशिशें कितनी कर रहा, 
कोई नहीं देखता मन दर्पण को, खुद को ही छल रहा, 
तरह तरह के प्रलोभनों को,अंर्तमन में अपने जोड़ रहा, 

आयी चतुर्दशी कहने को, व्यर्थ समय क्यों गवा रहा, 
प्रेम दीप प्रज्वलित करने को, हमें पर्व इशारा कर रहा, 
सेवा सहयोग त्याग करने को, जीवन का मकसद बता रहा, 
परिवार मित्र और रिश्तों को, सम्हालना हमें सिखा रहा, 
मन निर्मल रखना है हमको ,बस सीख यही तो दे रहा, 
खुशियां बाँटे हम सबको, भगवान यही तो चाह रहा, 
निर्बल दीन दुखी अबला को, सम्मान मिले ये चाह रहा,

 दीपावली पर्व दीपों का, चहुँ ओर उजाला फैल रहा 

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश, 6,11,2018



पाँच दिवसीय त्योहार मे
रूप चतुदर्शी है आज
माँ लक्ष्मी लेकर आई
धन और सौंदर्य साथ साथ

विधि विधान से करे हम पूजा
निरोगी, सुखी और संतुष्ट हमसे नही दूजा
करे हम फूलों का अर्पण
दीपों की माला करे हम अर्पण

धन और सौंदर्य के साथ
माँ, दो मेरा अन्तरःमन संवार
रूप तो है दैवीय वरदान
अन्तरःमन सुन्दर हो तो

रूप निखरे अपने आप।
दीप जगाते है यह एहसास
जितनी भी हो काली रात
सब साथ मिल जाये तो

अंधेरा भागे अपने आप
कृष्ण ने की थी आज 
नरकासुर का वध
इसे नरक चतुर्दशी भी कहते आज

श्री कृष्ण की जो पूजा करते आज
सौंदर्य के भागी वे होते अपने आप।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।


मेरे अंतर्मन में एक हलचल सी मच गई है प्रिय
जब से तेरे रूप की मादकता सिर चढ़ी है प्रिय।

बताओ तेरी आंखों के नूर को मैं क्या उपमा दूँ 
क्या तेरी तेरी जुल्फों को मैं नाग विषयर बता दूँ।

तेरी ऊंची लम्बी गर्दन को, सुराही सी कह दूं क्या
तेरी पतली कमर, चाल मस्तानी को क्या दूं उपमा।

साक्षात रूपमती लग रही हो, मुश्किल है व्यख्यान
सिर से पांव तक एक हूर सी,रूप माता का वरदान।

स्वरचित
सुखचैन मेहरा

रूप चतुर्दशी या सौंदर्य बहार, 
नरक को करेंगें आज घर से बाहर, 
दीप जलाकर रोशन करेंगें संसार, 
यमराज को मिलेगा खूब सम्मान |

शीत रितु की है शुऱूवात, 
तेल लगाकर करें स्नान, 
आयुर्वेद का महत्व को जाने, 
रूप रंग को खूब निखारें |

छोटी दीवाली का त्यौहार, 
बजरंग लिये इस दिन अवतार, 
संकट से हम सबको बचाते, 
कलयुग के देवता कहलाते |

श्री कृष्ण सौंदर्य के भगवान, 
नरकासुर का किया जिन्होंने नाश, 
बंदी रानियों को मुक्त कराया, 
सोलह हजार एक सौ रानियों का हुआ श्रृंगार |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*



सौंदर्य बाह्य भौतिक तन का,
समयान्तर से शुचि नश्वर,
स्थायित्व निहित नहीं किंचित,
रूपाकार परिवर्तन निश्चित।

दीपोत्सव के कालखण्ड में,
रूप चतुर्दशी के पलछिन,
रूप और सौंदर्य प्रदायक,
मानव को आत्मिक स्तर पर।

मानव प्रजाति आत्मिक सौंदर्य,
शाश्वत अदभुत बसुधातल पर,
सत्यं शिवम सुन्दरम को,
करता चरितार्थ अक्षरसः सत्य।

महत्वहीन जीवन समरसता,
सौंदर्य आत्मिक के अभाव में,
सुख आत्मिक का स्त्रोत सशक्त,
आत्मा सौंदर्य प्रबल।
--स्वरचित--
(अरुण)




कार्तिक कृष्ण चौदस ,
सुंदरता प्रदायिनी ,
उबटन तेल मल ,
रूप को निखारिए ।

नरकासुर संहारा 
भार धरती उतारा 
श्री कृष्ण सत्यभामा के 
चरण पखारिए ।

दान सौंदर्य निखारे
दान दीनों को उबारे
एक दीप यम नाम 
द्वार पे उजारिए ।

ले वामन अवतार ,
किया बलि का संहार ।
सुर किए भयहीन ,
आरती उतारिए ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055 ( हरियाणा )

👊हाइकु पंच👊
छोटी दिवाली।
भोजन से भरी हो।।
सबकी थाली।

करो श्रंगार।
रूप रंग से ज्यादा।।
मन निखार।

नर्क चौदस।
सत्कर्मों का सबको।।
मिले बोनस।

रूप चौदस।
तन,मन,धन से।।
सब हो खुश।

है नमस्कार।
"ऐश"की बधाइयां।।
करें स्वीकार।

©ऐश...🙏🏼
👊अश्वनी कुमार चावला,अनूपगढ़,श्री गंगानगर👊
👍काव्य गोष्ठी मंच,कांकरोली,राजसमन्द👌



🍁
कालजयी इक कविता की, रचना मे करने बैठा हूँ।
नायक खुद बनकर के प्रिय, नायिका मै तुमको कहता हूँ।
🍁
तुम्हे हाव-भाव अरू रूप- रंग का,अदभुद मिश्रण कहता है।
तुम प्रेम यामिनी सौन्दर्य श्री, मै बरबस विष सा दिखता हूँ।
🍁
हे मृगनयनी ये अंत नही, पर भाव अनन्त प्रकाशित है।
इस भाव का केन्द्रित मन बरबस तुम पर ही आकर अंकित है।
🍁
अदभुद है रूप समन्वित तेरा, तुम इस कविता की देवी हो।
है प्रिय-प्रवास अभ्यारण तेरा, जिसमे तुम निच्छल रहती हो।
🍁
स्वरचित... Sher Singh Sarraf



उसे भूल पाना न है मेरे बस में
आबाद रहता वो हर एक नस में
सामने जाता हूँ मैं जब बिन बताए
खिल जाए चेहरा,आहिस्ता शर्माए
जैसे हँस दे कोई गुल बहार का
है ये शायद असर मेरे प्यार का
हाँ रूप ऐसा गज़ब मेरे यार का

मिलने उससे चला,देर सहना है मुश्किल
ख़्वाब में भी अजी दूर रहना है मुश्किल
नूर उसका जो मेरी आँखों में बसा है
वही ख़्वाबों का मेरे हसीं कारवाँ है
मूंदी आंखे,जाना तय है करार का
है ये शायद असर मेरे प्यार का
हाँ रूप ऐसा गज़ब मेरे यार का

कुछ तो है जिसकी तारीफ़ ऐसे करूँगा
बस चले तो मैं उसको न वो करने दूँगा
रोना उसका मेरी याद में है गलत ही
खूब लगता हसीं, रूप है वो अलग ही
माफ़ कर ये गुनाह गुनाहगार का
है ये शायद असर मेरे प्यार का
हाँ रूप ऐसा गज़ब मेरे यार का

स्वरचित-राकेश ललित

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