Monday, November 5

"अतीत "02नवम्बर 2018

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ये अतीत क्या है? 
गुजरा हुआ कल, 
आज कुछ पन्ने मैंने
अतीत के पलट डाले |

क्या दिखा मुझे उनमें? 
कुछ सुन्दर हँसी और, 
कुछ थे गम के पल,
मन में उठी एक हलचल |

हरपल पीछे छूट जाता है, 
आने वाला है जो सवेरा,
वही जिन्दगी कहलाता है, 
यही तो जीना सिखाता है |

इसलिए जो वक्त बीत गया, 
उसे जीवन आधार बना लो, 
अच्छा था तो उसे अपना लो, 
बुरा था तो उसे सुधार लो |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*
एक कमरा मेरे अंतर्मन का ,
जिसमे है बन्द मेरा अतीत,
कुछ कही,
कुछ अनकही,
कुछ मोह,
कुछ प्रेम,
और बहुत सारा दर्द......

वर्षों से बन्द कर किवाड़,
सांकल डाल छोड़ दी थी,
तब से देखा नही,
कि क्या हुआ उनका,

आज जब व्यथित हुआ,
मेरा मन,
तब याद आया वो कमरा,
जो है मेरा अंतर्मन,
न चाहते हुये भी,
खोल दी साँकल...

एक हींक सी उठी अंदर से,
सीलन सी जो जमी थी,
कमरे में,दीवारों में,

कुछ आकृतियां पहचानी सी,
देखती मेरी तरफ,
"तुम आ गयी, हमे पता था की आओगी"
पर देर बहुत कर दी,
मैंने डरते हुए पूछा,
इतनी दुर्गन्ध क्यों?,

उन्होंने कहा वजह तुम हो,
जबसे बन्द किया,
देखा कभी कि,
कितना अंधेरा है,
कभी डाला अपनी,
स्मृतियों का प्रकाश हमपर,

इन सब से दूर,
खड़ा एक साया,
बंधा जंजीरों से,
आभा उसकी खींचती,
मुझे उसकी ओर,
ऐसा लगा कि...
देखा है कहीं,
ये सलोना सा चेहरा,
मैंने कहा कौन हो तुम?
क्या तुम मुझे नही जानती?
उसने कहा कातर स्वर में,
पर बंधे क्यों हो?
वो मुस्कुराया अरे,
ये बेड़ी तेरे प्रेम की ही तो है,
फिर उसने अपने हाथ,
बढ़ा किया संकेत आलिंगन का,

.....मैं डर कर भागी,
ये नही हो सकता,
मेरा अतीत मेरा आज कैसे हो?
अपना सर्वनाश स्वं कर लुँ,
आह ये नही हो सकता,
लगा दी फिर से दरवाजा,
चढ़ा दी साँकल त्याग का,
और लौट आयी वर्तमान में...

.....राकेश पांडेय स्वरचित,
तन्हाई में जब कभी मैं
अतीत को याद करती हूं
स्मृतियां बालपन की
मन पर छाने लगती हैं
मां बाप के घर बिताए
जो लम्हे उन्हें याद कर
नमी आंखों की पोंछती हूं
तन्हाई में जब भी मैं
अतीत को याद करती हूं
स्मृतियां भाई-बहनों की
मन पर छाने लगती हैं
मीठी तकरार रुठना मनाना
उन साथ खुबसूरत लम्हों की याद
मन में एक तड़प सी पैदा करते हैं
तन्हाई में जब भी मैं
अतीत को याद करती हूं
स्मृतियां उन रिश्तों की
जो असमय साथ छोड़ गए
मन को तड़पाने लगती हैं
उनके साथ बीता हुआ
बचपन का हर लम्हा याद कर
नमी आंखों की पोंछती हूं
तन्हाई में जब भी मैं
अतीत को याद करती हूं
वैसे तो रिश्तों से घिरीं हूं
उन में ही मेरी जान बसी है
फिर भी खाली-खाली लगता
मां बाप बिना मेरा जीवन
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित कविता

नम हुई क्यों तेरी आँखे?

अतीत में चली गयी थी...
क्या देखा अतीत में ?
बताती हूँ.....
अतीत में देखा कि 
एक नन्ही कलि
घूम रही है आंगन में
माँ पीछे-पीछे और
वो आगे-आगे...
बड़ी शरारती है,
बहुत सताती है
अपनी माँ को...
कभी माँ को घोड़ा बनाती
तो कभी हाथी,
नन्ही कलि बड़ी हुई
सताना फिर भी नहीं छोड़ा,
माँ के गाल खेंच 
स्कूल दौड़ जाती..
माँ को माँ नहीं दोस्त बताती।
फिर उसके बाद
माँ की सूरत कभी न देखी..
क्यों..?
माँ की तस्वीर 
घिर गई थी फूलों से..
बाबू, भाई...ने दिलासा दिया।
और मुझे खूब पढ़ाया,
हर खुशी पूरी की। 
फिर इक दिन 
पराया कर दिया..
फिर....???
तेरे संग प्रीत लागी
और अब तुम्हारे साथ बिताया 
हर पल अतीत बन रहा है..
लो कुछ पल पहले 
की बातें भी अतीत बन गयी।
सिर्फ अपना ही नहीं.बल्कि 
सभी का हर पल,
हर लम्हां अतीत बन रहा है...
(अपने प्रिय के कंधे पर सर् रखते हुए कहा)

स्वरचित
सुखचैन मेहरा




एक भूली याद फिर से आज ताज़ा हो गई।
पीछे छूटे अतीत से आज मुलाकात हो गई।
जानूं कुछ न , ऐसी भी अनजान नहीं।
लेकिन फिर भी मैं अनजानी सी हो गई।
सूखी पत्ती, मुरझाई कलियां
ज़र्रा ज़र्रा बिखर गयी।
यादों वाली वही किताब
जब खुली सी हो गई।
एक भूली याद फिर से 
आज ताज़ा हो गई।
पीछे छूटे अतीत से 
फिर मुलाकात हो गई।
उघडी उघड़ी सी लाश हो गई।
वक़्त की आंधी से
धूलजो सारी साफ़ हो गई।
एक भूली याद फिर से
आज ताज़ा हो गई।
पीछे छूटे अतीतसे
फिर मुलाकात हो गई।
अलकों में पलकों में
वो तस्वीरें हो गई
जो सोई थी यादों में
होठों की बातें हो गई।
एक भूली याद फिर से 
आज ताज़ा हो गई।
पीछे छूटे अतीत से
आज मुलाकात हो गई।
स्वरचित
सुषमा गुप्ता





अतीत ने हंसाया 
अतीत ने रूलाया ।।
अतीत को समझिये
जो समझा वो पाया ।।

अतीत एक उस्ताद है
इसमें अनुभव खास है ।।
अनुभव ही सिद्धान्त में
कभी बढ़ाता विश्वास है ।।

सुखद लम्हे हँसाये हैं
दुखद दिल दुखाये हैं ।।
दुख के पल बिताने को
सुखद हमसफ़र कहाये हैं ।।

अतीत से सीखो कितना सिखाये 
अच्छे बुरे का यह फैसला कराये ।।
अतीत से सीखना समझदारी ''शिवम"
अतीत ही सच्चा मार्गदर्शक कहाये ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"




 क्या दिन थे वे सुहाने। थे गुज़रे जो दिन पुराने। 
मुहब्बत का वो जहाँ था। हर आदमी भला था। 


पडोसी सभी थे भाई। मुश्किल घड़ी जो आई। 
हर आदमी खडा था। अहसान क्या बडा था। 

बाहर न घर में डर था। हरेक को फिकर था। 
हर आदमी सिपाही। हर शख्स पासबां था। 

मेहनतो की थी कमाई। स्वादों सुकूं से खाई। 
चैन की नीदं सोकर। हर कोई बादशाह था। 

रातों को घर अंधेरे थे। पर उजले बडे सवेरे थे। 
चेहरे थे खिलखिलाते। कोई नहीं खफा था।

मगर अब

क्यों घर वो सब पुराने। यूं अब तोडे जा रहे हैं। 
प्यार और मुहब्बत। सब क्यूँ छोडे जा रहे है।

कोई नहीं यकीं हैं। और कोई नहीं अकीदा। 
हर आदमी है समझे। खुद ही को बस खुदा है। 

ये कैसी तरक्की है। और ये कैसा जमाना है। 
हर चेहरा अजनबी है। हर शख्स बेगाना है। 

कहने को भीड़ है। पर कोई मेरा यहाँ नहीं है। 
हर आदमी है तन्हा। के हर शख्स अलहदा है। 

अरमां की न कीमत। हर दिल तो बेवफा है। 
कहने की मौज है। लेकिन हर चीज़ बेमज़ा है। 

क्या सोच घर से निकले। और क्या मिला है। 
ये वक्त काटना है या कि जीना कोई सजा है। 

क्या दिन थे वे सुहाने। थे गुज़रे जो दिन पुराने। 
मुहब्बत का वो जहाँ था। हर आदमी भला था। 

विपिन सोहल 






अतीत पन्ने 
कलम की आवाज 
रोते है शब्द 
2
प्रथम प्रेम 
अतीत राजदार 
लेखनी साक्षी 
3
भाव हैं लुप्त 
लेखनी हुई सुप्त 
अतीत गुप्त 
4
अतीत सोया 
डायरी के पृष्ठ में 
शब्द रो रहा 
5
प्रेम कहानी 
अतीत में समाई 
यादे सुहानी 
कुसुम पंत उत्साही 





"अतीत"
अतीत में जीना
यादों में खोना
कभी-कभी 
अच्छा लगता है 

अतीत में खोना 
बचपन को जीना
हरपल पल पल
अच्छा लगता है 

अतीत में बहना
यादों का गुदगुदाना
आज भी 
अच्छा लगता है 

अतीत की लहरें 
कुछ बातें अभी भी
हैं दिल में ठहरे
सपना लगता है

कुछ मासूमियत 
भरे सवाल 
मिलते नहीं जवाब 
अनोखा लगता है

अतीत में जाकर
गलतियों को सुधारकर
जीवन पथ में 
चलना होता है

स्वरचित पूर्णिमा साह






अतीत 
कैसा विचित्र 
बना नित कर्म से 
देखा पुन: तो विचित्र 

कितना कुछ समेटे हुए 
अहसास सुख दुख भरे 
यादों की चित्रशाला जैसे 
चित्र खुलते लगते जैसे नये

कितना सीखा जीवन ने 
कितना कुछ संचय किया 
अतीत कोष अनुभव का 
जीवन पथ प्रदर्शित किया 

जो कर्म कभी गलत हुए 
साक्षी बना है अतीत वहां 
आईना जो देखा कभी तो 
सब सच कह दिया है वहां

हो सुंदर अतीत औ भविष्य 
नित कर्म सुंदर करना होगा 
अर्जित कौशल को निखार 
समय अनुकुल करना होगा 

कमलेश जोशी 




क्यों कबतक ढोऊँ अपने अतीत को।
बांध पोटली में ढोऊँ अपने अतीत को।
क्या कुछ मिल सकता है याद करने से,
दुख भोगा याद करूं अपने अतीत को।

क्यों दुखद अतीत को हम सब भुलाऐं।
बर्तमान में जिऐं औरों को जीना सिखाऐं।
भूली बिसरी यादों को समेटने में कुछ नहीं,
बर्तमान में शुभकरें औरों को पथ दिखाऐं।

काल के गरभ में सब समाते समा जाऐंगें।
अतीत को याद कर हम क्या बता पाऐंगे।
बर्तमान को ही अगर सुसंस्कार हमने दिऐ,
सचमुच अपना सुखद भविष्य बना पाऐंगे।

अतीत में झांकने से हमें कुछ नहीं मिलेगा।
बर्तमान कसौटी पर तुलें सुख तभी मिलेगा।
जीवनोपयोगी हमें बर्तमान से भविष्य होगा,
करें श्री राम भक्ति सद् सुख यहीं मिलेगा।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय






आँगन के पेड़ भी 
अब कराहने लगे है
देख बुजुर्गों की हालात फड़कने लगे है
इन्होंने देखें है 
खुशियों के सावन कई अतीत में
देख व्यवहार बच्चों का अब आह भरने लगे है

सोच कर देखो अतीत में
करते थे ये हर चाह पूरी तुम्हारी
क्यूं अब ये अखरने लगे है
ऐसे भी दिन आयेगा कभी
ये सोच सोच रोने लगे है
खूब किए मजे जब तक 
तुम आश्रित थे इन पर अतीत में
फिर अब इस मोड़ पर क्यूं नजरों में ये खटकने लगे है

सोच कर देखो अतीत में
क्या खोया इन्होंने तुम्हारी खातिर
सहा होगा दुख भी कभी 
इन्होंने सिर्फ तुम्हारी खातिर
याद करो वो अतीत के दिन
जब तुम रहे होंगे छोटे बहुत
कितने रात दिन एक किये होंगे सिर्फ तुम्हारी खातिर

क्यों छोड़ रहा है इस उमर मे साथ इनका
है तेरे जीवन में बहुत एहसान इनका
जाकर देखो फिर अतीत में

स्वरचित :- मुकेश राठौड़






अतीत और वर्तमान,
सहोदर सम सदा साथ, संवारते भविष्य को।

अतीत देता है प्रेरणा,
गलतियों को न दोहराने की,
सिखाता है सबक।
लेकिन..............!

मैंने लोगों को अतीत में डूबे देखा है,
अतीत को लेकर वर्तमान को,
बिगाड़ते देखा है।

चलती हैं पुश्तैनी लड़ाइयाँ,
होते हैं वाक-युद्ध,
उखड़ते हैं गढ़े मुर्दे,
यही तो देखते हैं प्रतिदिन।

वर्तमान राजनीति,
रोना रोती अतीत का,
भूल वर्तमान को,
करती दोषारोपण।

अतीत तो भारत का,
बड़ा सुनहरा था।
ज्ञान-विज्ञान अनुसंधान से,
भारत का रिश्ता गहरा था।

वीरता-विनय सत्य - अहिंसा,
आभूषण थे।
वीरों की गाथाओं से सजा
अतीत हमारा।
पौराणिक गाथाओं से,
समृद्ध संसार ये सारा।

केवल कल्पनाएं रह गई ,
ये अनुपम सौगातें।
अब तो बना अतीत को मोहरा,
हो रही हैं घातें। 

अभिलाषा चौहान






आया फिर यादों का मौसम 
मन चंदन- चंदन 
मन चंदन -चंदन

उमर बचपन उड़ती तितलियाँ
ज्यों बादर संग चमके बिजुरिया 

लौट ना आए उड़ते पखेरू 
किया लाख जतन- जतन
मन-----
बीता बचपन आई जवानी 
गढ़ गढ़ कहती नई कहानी 
सपन सलोने नयनों में पलते 
पर काँटों में जीवन- जीवन 
मन------
नेह का बंधन ममता की डोरी 
सखी सहेली और हमजोती 
जाने किन गलियों में खो गए 
मिले ना वो गुलशन- गुलशन 
मन--------

होती है जब भी तन्हाई 
काटती अतीत की परछाई 
बीता वक्त जो लौट ना आए
करता है मन वंदन- वंदन 
मन-------
स्वरचित 
सुधा शर्मा 






जो हो गया पहले व्यतीत
वही कहलाता अतीत
उसी में लोग पड़े रहते
यही अज़ब सी रीत। 

हम इतने वर्ष परतंत्र रहे
दूसरों के लिए जैसे यंत्र रहे 
आपस में ही लड़े मरे
औरों की सफलता के मंत्र रहे। 

अतीत यानि कुछ लें बोध
मिटायें हमारे व्यर्थ अवरोध
आपस में ही उलझें क्यों 
क्यों करें अपनों पर क्रोध। 

हम शुरु से ही बॅटे रहे
आपस में ही कटे रहे
हमारे आक्रान्ताओं से ही
जाकर बिल्कुल सटे रहे। 

आज भी जयचन्द ज़िन्दा है
पर ऊपर ऊपर निन्दा है
हर वक्त चौंक मारता रहता
यह कैसा दुष्ट परिन्दा है।

स्वरचित 

सुमित्रा नन्दन पन्त 







अतीत
बीते बसंत का 
भूला हुआ गीत हूँ
कैसे कहूँ, मैं 
तेरा मनमीत हूँ
प्राप्य पहर प्रणय के
पलभर में व्यतीत हुए
मृदुल भाव अनुनय के
साँसों में घुल संगीत हुए
तान वो अब एक विस्मृति
बन्धित हृदय के कोलाहल में
होगी धृष्टता वो स्मृति
संचित पुलक कौतूहल में
वर्तमान होता यथार्थ
लक्षित गति जीवन में
अनगढ़ भूत-विवेचन व्यर्थ
भरता विषाद तन मन में
लय छिन्न-भिन्न छितराई
अगेय संगीत हूँ
पिछले पहर की परछाई
मैं अतीत हूँ।
-©नवल किशोर सिंह





अतीत का हाथ पकड़कर वर्तमान यहाँ पहुंचा हैं 
अतीत की गहराई में कहीं वर्तमान छुपा हैं 
चुपचाप जिंदगी तलाशती हैं अतीत के आवरण को 

दूर बहुत चली जाती हैं फिर अपने आप से .

हर इन्सान अपने अतीत में उलझा हैं 
कोई साथ लेकर चल रहा हैं कोई आगे पीछे जा रहा हैं 
अतीत की कुछ यादें दिल का मरहम बनती हैं कुछ घाव 
जिंदगी में जब भी कुछ नया हुआ अतीत ने कई रंग बिखरे हैं .

जब भी देखती हूँ अतीत के वो पल बहुत प्यारे थे 
ऐसे ही बस अतीत की यादों में खो जाती हूँ 
अतीत की लहरों में फिर गुम हो जाती हूँ 
और फिर अपने आप से दूर हो जाती हूँ .

वर्तमान भविष्य की राहें कुछ अलग ही रंग दिखाती हैं 
जब अतीत अपनी एक कसक दिखाता हैं 
कुछ राज ऐसे खुल जाते हैं अतीत के 
वक्त भी थम जाता हैं अतीत के साये में .

अतीत भूले भुलाये नहीं भूला जाता हैं 
कभी यादों की डायरी में दर्द बनकर उभरता हैं 
कभी ख़ुशी बनकर उभरता हैं 
जब भी आता हैं जिंदगी की एक कहानी कह जाता हैं .
स्वरचित:- रीता बिष्ट





मन
कभी कभी
विचलित हो कर
विचरण करता है
अतीत के आँगन में
यादों की सौंधी सी सुगंध
झकझोर देती है
मन मस्तिष्क को
विह्वल मन
और तड़प उठता है
असंख्य टीसें
एक साथ सूईयाँ चुभोती हैं
स्मृति किरणें
अंधकवन में भटकाते हुए
शून्य में ले जाती हैं
जहां से लौट पाना
असंभव हो जाता है
अतीत
मेरे हृदयपटल पर
चिपका है जाले की तरह
जिसमें
अनगिनत दर्दों ने
अपना अधिकार जमा रखा है।
अतीत की स्मृतियां
विस्मृत नहीं होती मन से।
अतीत के हर पन्ने पर
मेरे जीवन की
कई कहानियां मुद्रित हैं
जिनमें सुखद कम
दुखद अधिक हैं।
"पिनाकी"




मन अँधेरा 
अतीत परछाई 
भोर ठिठकी

२. 
अतीत गुफा 
कर्मठ बींधे अंध 
फूटी किरणें 

३.
आज जीवित 
भविष्य है अजन्मा 
इति अतीत 

४.
कर निर्माण 
अतीत कार्यशाला 
साध संधान 

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 
०२.११.२०१८





अतीत के नींव पर
वर्तमान में हम खड़े
भूल न सके हम उन्हें
नींव वे गहरे गड़े

कुछ खट्टी, कुछ मिठी
यादें हम समेटे हुए
इन दोनों के अद्भुत मेल से
वर्तमान के तार जुड़े

कुछ भूल सुधार ले हम
कुछ दे प्रेरणा हमें
जो आज है वह कल अतीत होगा
हम जानते है सदा

कर्म हम ले सुधार
भविष्य न बिगाड़े हम
अतीत चलते साथ साथ
दामन छूड़ा सकते नही

अतीत न हावी हो आज पर
ब्यक्तित्व न प्रभावित हो
याद आये अतीत तो
याद करें भविष्य को

पर अतीत हो सुनहरा
भविष्य भी सुनहरा करें
सोने की चिड़िया भारत को
फिर से सोने की चिड़िया बनाये।
स्वरचित -आरती-श्रीवास्तव।






अब भी अतीत में धँसे हुये हैं मेरे पाँव.
आगे बढ़ने का कोई योग नहीं नजर में आता 
इनमें ही फँस कर रह जाता है मेरा अंतर्मन
मर जाता है अगला पग धरने का मेरा चाव
जब कोई मुझसे पूछ लेता है क्या हुआ था
उन अतीत के पन्नों को फिर से खोल देता है
जो दबी हुई थी अतीत की कहानियां
उनको बड़े प्रेम से कुरेद देता है
मेरे उन घावों को वो बड़े प्रेम से हरा कर जाता है
उसमे मरहम लगाने की जगह ,नमक मिर्च छिड़क जाता है , 

करहा उठती हूँ मै दर्द से फिर भी मुख पर मुस्कान होती है,
भावी सुखद कल्पनाओं के बीच सुख से सारा विष पीना होता है
ये तो समाज है इसके सामने हमें बस मुस्कुराना होता है 
🙏स्वरचित हेमा उत्सुक🙏






अतीत में था सुंदर इतिहास
खुशियों की आबादी, दुःखोंका ह्रास
पग पग मखमल की चादर
मिट्टी भी ना घुसे अंदर
कितना सुहाना था बचपन
फिर खिलता हुआ यौवन
पढ़ाई भी जारी
जगत सुंदरी की भी तैयारी
आज डूबी हुई सोच में
क्या खोया क्या पाया
ख़िताब की चाहत ने
कितने बिस्तर रंगे
कितने अरमान यूंही बिखरे
काश!कहना मानती अपनों का
तो ये दिन नही आना था
सब ने पल्ले झाड़ दिए
उसके पल्ले पिलपिलाता आज देकर
पर उसने नही मानी हार
हो गयी कसके वो तैयार
गुमनाम जिंदगी काटकर
खुद को संवारा, निखारा
आज खेल जगत में है
वो चमचमाता तारा

स्वरचित
डॉ नीलिमा तिग्गा (नीलांबरी)







कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें, होतीं हैं अपने अतीत की 

जागृत संवेदनाओं को करतीं, ये यादें अपने अतीत की 

क्या छूट गया क्या नहीं मिला, ये याद दिलातीं भूल की 

कभी-कभी गहन वेदना से मिलवातीं हैं बातें अतीत की 

क्षण भंगुर है जीवन अपना, करें बातें सुखी एहसास की

मनोरंजक मोहक प्रेरक बातें, पास रखें हम अतीत की 

समय नहीं गंवायें अब हम,बातें कर के अपने अतीत की 

शुरूआत करें आओ हम सब, इक स्वर्णिम इतिहास की। 

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,




अतीत के पांव 
आते है चोरी छिपे
यदा-कदा ही सही
कोमल हृदय को
कभी खुशी कभी गम
दे जाते हैं।
अतीत झूलता है
कभी मधुबन के हिंडौले में
कभी हिंडौला
तार-तार नज़र आता है।
हाँ, अतीत के पांव 
ऐसे ही आते है
और हम
अतीत विवश कर देता है
अमृत या विष ग्रहण करने के लिए।
भविष्य की अंधेरी, अनसुलझी 
राहों में
अतीत बन जाता है कभी
चौकीदार
और चेता देता है
राह में आते
आड़े-तिरछे घुमावों को।
अतीत ,निधि है
भविष्य को संवारती निधि।।

वीणा शर्मा 'वशिष्ठ'






पल मात्र विगत द्रुतगति काल का,
जीवन यात्रा में विगत अतीत शुचि,
सुखद दुखद घटनाऐं प्रघटित,
होता परिपूर्ण विगत अतीत।

मानवीय मानस-पट पर संचित,
रह जातीं स्मृति-शेष अति,
मुस्कान बिखेरतीं सुखद स्मृतियाँ,
नयन अश्रु भर जातीं दुखद।

विगत अतीत यदि नकारात्मक,
श्रेयस्कर अति विस्मृति उसकी,
स्थिति अन्यथा होगी कुछ ऐसी,
जीवन मृत्यु सम कष्ट सदृश।

स्मरण अतीत का सकारात्मक,
दिशा प्रदायक वर्तमान का,
विश्वास आत्म पूरित मानव का,
लिखता भविष्य की नियति स्वयं।
--स्वरचित--
(अरुण)










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