लीला तुम्हारी जगत से न्यारी,
गोकुल में टूटा वर्षा का कहर भारी,
इन्द्र चाहे सब मुझे ही पूजे नर-नारी |
घमंड़ इन्द्र का तुमने ऐसे तोड़ा,
गोवर्धन पर्वत छोटी उंगली मे उठाया,
जो था पर्वतों में सबसे भारी,
गोकुल वासियों की जान बचाई,
धन्य हो गई वहाँ की प्रजा सारी,
तभी से गोवर्धन को सब पूजते,
सिर झुकाते सब नर-नारी,
जय गोविंद श्रीकृष्ण मुरारी |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
हे गोवर्धन
इंद्र हुए कुपित
कृष्ण उठाये
2
वर्षा थी भारी
उठाये गोवेर्धन
इंद्र हुए सुन्न
3
गोवर धन
गोकुल जलमग्न
क्रोधित कृष्ण
4
है गोवर्धन
इंद्र देवता रुष्ट
कृष्ण प्रसंन्न
5
ग्वाले उदास
गोवर्धन का त्रास
कृष्ण उठाये
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरादून
(2)
विधा -भजन
हे गोवर्धन गिरिधारी रे,
तूने गोकुल विपदा टारी रे,
तूने गिरधर को उठाये लियो,
जब वर्षा हो रही भारी रे ll
हे........
जब इंद्र देव जी कुपित हुए,
ग्वाल- बाल सब दुखी हुए,
तूने विपदा को यूँ भाँप लिया,
तब इंद्र देव पर कुपित हुए l
तू इंद्र पे पड़ गया भारी रे l
हे गोवर्धन.......
नन्द बाबा ने यज्ञ करवाया,
उसमे इंद्र को नहीं बुलाया,
तुम बोले.... गोवर्धन पूजो,
जिस कारण गोकुल हरसाया ll
इंद्र क्रोधित हो गए भारी रे l
हे गोवर्धन.......
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरादून
आ
गया
त्यौहार
गोवर्धन
कृष्ण कन्हैया
उठाये पर्वत
गिरधारी कहाऐ |
गौ
रक्षा
के लिऐ
हम जियें
कोशिश करें
गोवर्धन करें
होता रहे विकास |
है
यह
अमृत
हम सब
कब समझे
जीने के लिऐ
गोवर्धन जरूरी |
ये
गाय
माता है
सदियों से
है पूज्यनीय
हमारी संस्कृति
गोवर्धन प्रथा है।
दें
हम
इसको
हमेशा ही
प्यार दुलार
उचित आहार
पूजते गोवर्धन |
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
सबके लिये विधि विधान है ।।
धन्य हमारी संस्कृति मगर
हमको ही न इसका भान है ।।
गाय कितना हितकर प्रानी
कीमत दुनिया में हमने जानी ।।
क्यों न वह पूजी जावेगी
सभ्य समाज की यही निशानी ।।
मान्यता कुछ जोड़ो पर पर्व ये खरा है
वैज्ञानिक तथ्य से हर एक पर्व भरा है ।।
प्रकृति ईश्वर गाय उसकी अभिन्न अंग
जो दूध पिलाये उसने माँ रूप धरा है ।।
जिसका जितना योगदान न्यायसंगत हो मान
आज वही पूजा है गऊओं का हो सम्मान ।।
मलमूत्र भी जिसका पवित्र है वो पशु कहाँ
वह है ''शिवम" साक्षात दैव के समान ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 08/11/2018
द्वितीय प्रस्तुति
************************
🍁
श्रीकृष्ण के धाम मे गोवर्धन,
गिरिराज गिरी इक नाम ।
माधव ने उसे उठाया था,
बालक थे जब घनश्याम ॥
🍁
सात कोश मे फैला है ये,
पर्वत बडा महान ।
कनिष्ठका पे श्रीनाथ के,
तिनके सा सम भान॥
🍁
जीवन मे इक बार तो आकर,
देखो कृष्ण का धाम।
दान घाट से शुरू करो,
अरू गोविन्द घाट आराम॥
🍁
राधा कुंड का निर्मल जल,
इक कुसुम सरोवर नाम।
मानसी गंगा, आन्यौर अरू,
पूंछरी लोटा धाम ॥
🍁
दीपावली को दीपो की माला,
से चमके है गिरिराज।
सुरभि गाय ऐरावत हाथी के,
जिस पर पद चिन्ह भी आज।
🍁
श्याम सलोने की ब्रजभूमि,
निर्मल है संसार।
शेर कहे यदि समय मिले तो,
तुम भी आओ ब्रजधाम॥
🍁
स्वSher Singh Sarraf Sarraf
जय जय कृष्ण कन्हैया हे बंशीधर।
जय मुरलीवाले बृजविहारी कान्हा,
जय जय वृंदावनवासी हे नटनागर।
कोप इंन्द्र ने किया बृजवासिन पर,
तब बरसा हुई अनवरत मूसलाधार।
रखा कनिष्का उंगली पर गोवर्धन,
उपकार किया भक्तों पर उठा पहार।
सप्त कोसी परिक्रमा भक्त करते हैं।
पैदल चल कुछ पेंड भरकर करते हैं।
अटूट श्रद्धा है सबकी मनमोहन पर
दानघाट से मानसीगंगा तक करते हैं।
गोविंद घाट मानसरोवर पूंछरी लोटा,
राधाकुंड कुसुमसरोवर दर्शन करते हैं।
कभी नहीं थकें नटवर की लीलाओं से
सुंन्दरसुखद अनुभव से दर्शन करते हैं।
लीलाओं का बखान नहीं कर सकते,
अनंत अगोचर लीलापति बांकेविहारी।
दर्शन दो तुम एक बार तो हमें कृष्णा,
हे राधेपति मोहन हम जाऐं वलिहारी।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
विषय - गोवर्धन
(2)
गोप गोपिका और गोवर्धन।
गाय गायों का हो संम्वर्धन।
कान्हा कृष्ण कन्हैया सबका,
गऊ गरीबों का करते संरक्षण।
गिरधर गोपालक गिरधारी।
बंशीधर बंशीवाले बंशीधारी।
जो चाहे जिस नाम से पुकारे,
मोहन मनमोहन मुरलीधारी।
घनश्याम घुंघराले बालों वाले।
मधुर मनोहर तुम मुरलीवाले।
गोबर से हम गोवर्धन बनाकर,
पूजन करते हैं कुछ यहां ग्वाले।
नमन करते हैं तुम्हें कन्हैया
बृजमंडल तुम वृंदावनवासी।
जयजय हे गोवर्धन गिरधारी
दर्शन दें अब तो हमें बृजवासी।
(3)
1)इंन्द्र कुपित
गोवर्धन प्रसन्न
मुरलीधारी
कनिष्का मनमोही
कन्हैया राधेरानी
2)
तू गोवर्धन
सजा मनमोहन
नटनागर
कनिष्का मोही
बांकेविहारी राज
3)
दंण्डित दंम्भ
गोवर्धन चकित
जनभावना
मनोकामना पूर्ण
बृजमंडल भाव
4)
रहस्यमय
गोवर्धन भूमिका
श्रीकृष्ण राज
परिक्रमा पर्वत
बृज रक्षाबंधन
5)
कोप भंजन
हे देवकीनंदन
सुंन्दर वन
प्रदक्षिणापथ सा
गोवर्धन पूजन
स्वरचितः ः
विधाःःः पिरामिड ः
1)
हो
क्षय
देवता
अरिहंत
मनमोहन
गोवर्धन संत
बृजमंथन शुभ
2)
ये
कोप
कायर
बृजधाम
इंन्द्र नायक
कृष्ण सुखदायी
वासुदेवाय नमः
हे गोवर्धन गिरधारी,
तेरी महिमा है अति न्यारी।
सांवली - सूरत मोहिनी मूरत,
नैनों की छवि अति प्यारी।
मोर-मुकुट माथे पर शोभत,
कर में बांसुरी है अति प्यारी।
बलिहारी ब्रज के नर-नारी,
करें तेरी पूजा बांके बिहारी ।
देख-देख इंद्र कुपित हुए,
ले आए विपदा अति भारी ।
अति वर्षा ब्रज डूबन लागों,
त्रस्त हुए जीव था संकट भारी।
त्राहि - त्राहि मच गई ब्रजमंडल,
करो रक्षा हे माधव मोहन मुरारि
ब्रजवासियों की रक्षा में आतुर,
जब गोवर्धन उठाए गिरधारी।
इंद्र अहंकार हुआ चूर-चूर,
महिमा देख तेरी हे रास बिहारी।
अभिलाषा चौहान
(2)
करिए नित गोधन की पूजा,
उस सम कोई और न दूजा।
गो साक्षात लक्ष्मी स्वरूपा,
गो संवर्धन संस्कृति अनुरूपा।
पंचगव्य अति पावन अमृत,
गोबर, मूत्र, दूध, दही और घृत।
कान्हा को गऊएं अति प्यारी,
गो रक्षण करें गो हितकारी।
गोवर्धन का अर्थ यह दूजा,
गोमाता की करिए सदा पूजा।
गोमाता सहें कष्ट अपारा,
गोरक्षण हो संकल्प हमारा।
गोसंवर्धन करो जीवन के हेतु,
कान्हा भक्ति में है गोमाता सेतु।
गोवर्धन भी गोबर से ही बनते,
नवान्नों के फिर भोग हैं लगते।
बिन गो के गोवर्धन न होंगे,
बिन गो सेवा कान्हा प्रसन्न न होंगे।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
गोवर्धन
हे कृष्ण, अंतर्धान कहाँ, किन गलियों में
गोवर्धन पुनः धारण करो निज उंगलियों में
दम्भ इंद्र-सा, दरप रहा सत्ता के गलियारों में
करुण राग उत्पन्न मन में बेबस बनिहारों के
अंध्दृष्टि जग में,लोलुपबहुल वृष्टि अति गर्जन
दिव्य रुप दर्शन प्रभु,हो विविध विकार वर्जन
मान मर्दन,सर्व-सम्वर्द्धन, हे गिरिधर गोपाल
आओ दीनजनों की सुध लो,प्रभु दीनदयाल
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
गोवर्धन मे गौ की पूजा
करते है हम आज
आज विशेष दिवस पर
करते हम उनका श्रृंगार।
पूजा कर हम अर्पण करें
हम उनको अपना प्यार
गौ है हमारे धन समान
इससे हम कहते है गो -धन(गोवर्धन)पूजा आज
आज ही के दिन श्री कृष्ण ने
उठाई,गोवर्धन पर्वत और
बचा लिए ब्रजधाम को
इन्द्र कोप से आज।
गौ के हर अंग आते हमारे काम
अतः इसके माध्यम से हमे मिलता
गौ संरक्षण का पैगाम
हमें रखना होगा गौ माता का ध्यान
गौ मे बसते है हर एक भगवान
गौ की पूजा करने से
सभी भगवान प्रसन्न हो जाते
आज वे अपने आप।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
प्रस्तुति-2
श्री कृष्ण को था गौवों से प्यार
बाल सखा संग गौ चराते घनश्याम
ब्रजधाम मे श्री कृष्ण को
लोग मानते भगवान
इससे इन्द्र कुपित हो गये
अंह हुआ उनका घायल
इन्द्रकोप बादल बन फूटा
डूबने लगा ब्रजधाम
कानी उँगली पर श्री कृष्ण ने
उठाया गोवर्धन पर्वत आज
हो गई ब्रजधाम की सुरक्षा
और सबने माना उन्हें बिष्णु अवतार
हम भी अपना जीवन सौंप
करें भगवान पर भरोसा
निश्चित ही ईश हमें बचायेंगे
जैसे बचायें गोकूल धाम।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
गऊ
सम्मान
गोवर्धन
उत्तम-धन
करते पूजन
भारतवासी-जन (१)
है
गाय
श्री-कृष्ण
गोवर्धन
पूजा-विधान
फल व मिष्ठान
यह पर्व महान(२)
की
रक्षा
धारण
गोवर्धन
मुरारी-कृष्ण
बलिहारी जन
इंद्र क्षमा याचन (३)
स्वरचित 'पथिक रचना'
दोहे "गोवर्धन"
गोवर्धन का छत्र किया,
कृष्ण बड़े बलवान ।
क्रोधित राजा इंद्र का,
चूर किया अभिमान।।(१)
गोवर्धन त्योहार है,
आता कार्तिक मास।
पूजित गौ माता सदा,
ऐसा होता काश।।(२)
हे मुरलीधर हे गिरधारी
तेरी महिमा बड़ी निराली
गोकुल में लीला रचाई
रोक अहंकारी इंद्र की पूजा
गोवर्धन की पूजा करवाई
देख कुपित हुए इंद्र अतिभारी
बरसा की फिर झड़ी लगा दी
लगी डूबने गोकुल नगरी
बहने लगे सबके घर द्वार
त्राहि-त्राहि मची गोकुल में
व्यथित हुए सब नर-नारी
देख इंद्र का कोप कृष्ण ने
फिर से एक लीला रचाई
उठा लिया छोटी उंगली पर
गोवर्धन पर्वत विशाल
आन बसा पर्वत के नीचे
पूरा गोकुल धाम
टूटा अंहकार इंद्र का
कर ली अपनी भूल स्वीकार
फैली हर और खुशी की लहर
नाच उठी गोकुल नगरी
हे गोवर्धनधारी तेरी महिमा बड़ी निराली
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित कविता
गोबर गिरि
आँगन सुशोभित
कृष्ण राधा श्री
पुष्प पेड़ डालियाँ
सजा रहीं आलियाँ
२
मदनोद्यान
गिरिराज शिखर
कृष्ण वितान
द्रुम बेलि निर्झर
ब्रज के मनहर
३
गंगा मानसी
गिर्राज परिक्रमा
हरे तामसी
पथ का राधा कुंड
फलार्थी स्नान झुंड
स्वरचित:-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
कुप्रथा ,कुरीति के
तभी व्यक्ति पूजा का
विरोध कर दिये
क्यों इंद्र श्रेष्ठ हुए
अचल अटलता से
तभी तो पर्वत गोवर्धन
की कर बैठे पैरवी
क्रुद्ध हुए इंदर राजा
तो नीति से काम लिया
गोकुल के सब जीवन को
गोवर्द्धन में शरण दिया
था क्रोधित इंद्र इधर,
उधर कृष्ण ने धैर्य से काम लिया
गोप ,ग्वाल-बाल,गोपी-ग्वालन
संग गोमाता सब को शरण में लिया
जिस त्वरित गति से कर्म, कृष्ण ने किया ,देख सबने
यही कहा लो देखो फिर लीला
कन्हाई कर गया,तर्जनी पर
अपनी गोवर्धन धर लिया ।।
डा.नीलम.अजमेर
स्वरचित
गोबर्धन गिरिधारी कान्हा का,
महत्त्वपूर्ण संदेश मनुज को,
किसी भाँति भी सह्य न किंचित,
दम्भ विकार शुचि परमशक्ति को।
गौमाता के भौतिक तन में,
तेतीस कोटि सुरगण निवास,
प्रत्येक दृष्टि से पूज्य धरा पर,
गौ संवर्धन भी अत्यावश्यक।
संदेश कृष्ण का द्वापर युग में,
सर्वभूत कल्याण हितार्थ,
जड़-चेतन हो जीव कोई भी,
संरक्षक यदि, महापूजनीय।
माह कार्तिक दीपोत्सव मध्य,
अन्नकूट गोबर्धन पूजा,
तिथि प्रतिपदा को प्रतीक शुचि,
ईशभक्ति, उरतल उल्लास।
--स्वरचित--
(अरुण)
कोप धरा ने फिर धारा है,
अवतारी बनकर आओ
त्राही-त्राही मच गया शोर
बनवारी बनकर आओ
1
आना हो तो ऐसे आना
दुःख हर्ता बन कर जाना
खुले कंस अब घूम रहे है
सदगति फिर देकर जाना
इंद्र देव नाराज हुए है
साथ मनाकर ले आओ।।
2
गो पालक वाहन चालक है
गोवर्धन की बात कहाँ
इंद्र देव फिर कुपित हुए है
जल की वो बरसात कहाँ
जलधन,गोधन,दधि माखन का
फिर वो स्वाद दिला जाओ।।
कोप धरा ने फिर धारा है
अवतारी बनकर आओ।
त्राही त्राही मच गया शोर
बनवारी बनकर आओ।।
कुसुम शर्मा नीमच म प्र
हर दिन होली हर रात दीवाली है।।
यहां अनमोल है हर जीव, प्राणी।
गज गनपत है, गो है माता रानी।।
एक गोपालक है भगवान अवतार।
जहां गोवर्धन एक पूजनीय पठार।।
गिरधर ने कनिका पर टिकाया था।
जब इंद्र देव ने कहर बरपाया था।
तब से है ये पठार भी देव समान।
ऐसा है मेरा देश है, मेरा देश महान।
भारत देश की हर बात निराली है।
हर दिन होली हर रात दीवाली है।।
स्वरचित
सुखचैन मेहरा
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