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धड़कन में कहीं दिल की मेरी आवाज़ सुन लेना
अंधेरे बंद कमरे में तुम अपने ख्वाब बुन लेना
नजर आए कमी तुमको कभी जो प्यार में मेरे
तुम्हें पूरा ये हक है फिर कोई तुम और चुन लेना
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दिल के तुम सभी अपने कभी जो राज दे दोगे
हमारे वास्ते प्रियवर तुम अपना आज दे दोगे
ये वादा है मेरा तुमसे मेरे साथी ये तुम सुन लो
चली आऊंगी मैं दौड़ी जो तुम आवाज दे दोगे
इति शिवहरे
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न चटकने की आवाज़ हुई,
न टूटने की ही आवाज़ हुई,
इस दिल के हजार टुकड़े हुए,
फिर भी खनकने की आवाज़ न हुई |
यूँ तुम खामोशी से चल दिये,
कईं सवाल जहन में भर दिये,
एक आवाज़ तो लगाई होती,
रुसवाई की कौन सी बात हो गई |
सवाल सिर्फ एक आवाज़ का था,
जिसमें सारे सवाल का जवाब था,
ये खामोशी सब तबाह कर गई,
जिन्दगी हमारी यूँ बर्बाद कर गई |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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उसके दिल तक मेरे दिल की,
बात कोई पहुचा दो।
यादों मे मन भटक रहा है,
उसको ये बतला दो॥
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कंम्पित होने लगता है,
आवाज शून्य हो जाता है।
चाह के भी मन क्यो मेरा,
आवाज नही दे पाता है॥
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क्या अपना वो प्रीत पुराना,
सुप्त हो गया है सच मे।
या दुनियादारी मे प्रिय तुम,
भूल गये मुझको सच मे॥
🍁
ना तुमने आवाज लगायी,
ना मैने तुमको ढूँढा ।
प्रेम नही था शायद हम में,
शेर के मन का था धोखा॥
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स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
सच में कोई है , उसको जानिये ।।
अंतस की गहराई में उसका वास
उससे मिलने की कभी ठानिये ।।
बुराई की ओर बढ़ते कदम रोकती है
कोई आवाज़ है जो हमें टोकती है ।।
बुरा करने के बाद कौन है दुनिया में
जिसकी आत्मा नही कचोटती है ।।
बार बार अच्छे बुरे का ज्ञान कराती है
एकान्त होते ही वह आभास दिलाती है ।।
बुरा करके हमें एकान्त डराता है ''शिवम"
वो ही आवाज़ तब तेज हो जाती है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 10/11/2018
२२१२ १२२२ २१२२
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क्या चल रहा ज़माने में आज देखो
बदला हुआ है सबका अंदाज देखो।
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पाश्चात्य की नकल कपड़े है फटे अब
आती नहीं किसी को भी लाज देखो।
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काबीलियत को कोई पूछें नहीं है
गदहों के सिर सजे हैं अब ताज देखो।
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बंदिश लगा रखी हैं अब आसमां पर
भरना नहीं जयादा परवाज़ देखो।
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होता नहीं कभी धन जग में किसी का
मत कीजिए रईसी पर नाज़ देखो।
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कोई नहीं सुने बातें अब किसी की
बिखरे हुए यहाँ हर अल्फ़ाज देखो।
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सरकार जो कहें मानो'राम'उसको
सबकी दबी हुई है #आवाज़ देखो।
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स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट(म.प्र.)
पहुंच जाती गर आवाज उन तक
तो वो हमें याद तो जरूर करते।
मेरा होने की जिद्द तो ना सही
मुझसे मिलने की फरियाद तो करते।।
शायद 'रीति' की दीवार से टकराकर
वर्णों में बिखर गई होगी मेरी आवाज।
या फिर किसी नई आवाज का जन्म,
आवाज मेरी लगी होगी बीच कतार।।
कोई दूसरी वजह भी ही सकती है
मैं अभी से ये भ्रम क्यों पालूं ?
हा, थोड़ा इंतजार ऒर करता हूँ
खुद को उसका गुनहगार न बनालूं।।
वजह चाहे जो भी हो, विश्वास है
भूलना होता तो वो हमें हां, न करते।
यकीनन बेखबर है दिली आवाज से
वरना वो हमे इश्क बेपनाह न करते।।
पहुंच जाती गर आवाज उन तक
तो वो हमें याद तो जरूर करते।
मेरा होने की जिद्द तो ना सही
मुझसे मिलने की फरियाद तो करते।।
स्वरचित
सुखचैन मेहरा # 9460914014
हर भाव की हर घाव की
आवाज़ से ही पहचान है
हर किसी के जज़्बात की
सुनाई दे जाती है हर आवाज़
जब कुछ टूट कर बिखरे
नहीं सुनाई देती है तो
जब दिल टूट कर बिखरे
तब दिल की आवाज़
दिल ही सुनता है
अपने घावों पर
खुद मरहम रखता है
कुछ अनकहे से दर्द
जब दे जातें हैं अपने
रोता है दिल जार जार
पर आवाज़ नहीं होती
बिखर जाते हैं मन के जज़्बात
पर आवाज़ नहीं होती
मृगमरीचका से रिश्तों के
पीछे हम जीवनभर भागते हैं
वोही छलावा निकल
दिल तोड़ जातें हैं
टूटा हो दिल भले मगर
पर आवाज़ नहीं होती
इशारों में होती हैं अलगाव की बातें
पर आवाज़ नहीं होती
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित कविता
विषय-आवाज
अनसुनी मेरे दिल की आवाज
पिजरबद्ध पखेरु,बिन परवाज
विलम जरा तुम देते जो ध्यान
खंडित न होता प्रिय मेरा मान
घुटकर जख्म और गहरा हुआ
व्यर्थ चीखना,बलम बहरा हुआ
बरसता मेघ मन में ठहरा हुआ
तिरष्कृत-ताप कबसे भरा हुआ
ढुल ढुल मोती रहे बिखर यहाँ
तुझको इसकी पर फिकर कहाँ?
काश इन मोतियों को तुम चुनते
नेह के धागों में पिरो रिश्ते गुनते
आओ,मिल सपने सतरंगी बुन ले
निर्मोही,दिल की आवाज सुन ले
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
आवाज अंतर्मन की सुना देना।
नहीं कोई पर नहीं निंदा सुनूँ ,
आवाज अंतरतम की सुना देना।
सैकडों आवाज आती जगत में,
आवाज मुझ दीन की सुन लेना।
नहीं सुन पाऊँ कोई क्रंन्दन कभी,
हृदय स्पंन्दित हो पीर सुन लेना।
भावभक्ति जगें आवाज मुझे देना।
गर गाऊँ भजन आवाज मुझे देना।
कोई दुखाऊँ दिल प्रभु मूक हो जाऊँ,
घोलूँ मधुरता स्वर आवाज मुझे देना।
तान वीणा, वीणावादिनी मुझे देना।
मधुरस घोल पाऊँ वानगी मुझे देना।
वैसे ही मै बहुत वकवास करता हूँ,
श्रीकृष्ण ये बांसुरी मानवी मुझे देना।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र।
शीर्षक :- आवाज
विधा :- लघु कविता
तेरी पहली आवाज ने
कितना असीम सुख दिया होगा
उस माँ की आँचल में
स्वतः दुग्ध छलका दिया होगा
तेरी आवाज सुन सुनकर
कितने अरमान सजाए होंगे
कितने तेरे नाज नखरे
उस माँ ने उठाए होंगे
क्यूं भुला दी तुमने
वो मधुर लोरी की आवाज
किसकी खातिर तुमने
बुलंद की अपनी आवाज
क्यूं आज तेरी ऊंची आवाज
उस माँ का कलेजा फाड़ती है
क्यूं आज तेरे सक्षम होते हुए
वो माँ गैरों के जूठे बर्तन माँझती है
सुनो मुकेश हृदय की आवाज
भले मत करो कोई उपकार
जिसने तुम्हें जनम दिया
मत करो उस पर अत्याचार
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
ग़ज़ल
दिल से दिल तक आवाज़ लगा कर देखो |
क़ादर है दिल में आप बुलाकर देखो ||
शीश झुका कर दर दर पर रब न मिलेगा |
सज़दे में मन को आज झुका कर देखो ||
सोच बशर तू कौन, कहाँ से आया है |
खुद में खुद को ही आज गवाकर देखो ||
क्या किसने ले जाना इस दुनिया से सोचों |
क्या लाये खुद को आज गिना कर देखो ||
रोज दिखे आग उगलते हर्फ़ मकां में |
प्रेम से हर घर को महका कर देखो ||
मनिंदर सिंह "मनी"
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कौन सुनता है आवाज
अंतर्मन की
बढ़ते कदम
पतन के रास्ते
दब जाती है
चकाचौंध में।।
कहाँ सुनाई देती आवाज
उस पीड़ित अबला की
सिसकती, आंसू पोंछती
घुटता दम, सहती अत्याचार
कुचल जाती आवाज
निरंकुशता के समक्ष।।
बूढ़े मांँ-बाप
अपनापन पाने की तड़प
दिखते निस्सहाय
अकेलापन खाता
कौन सुनता आवाज??
ये व्यवस्था
दबा देती है आवाज
वंचितों - शोषितों की
गरीब-बेरोजगार
भटकते दर-दर
नहीं सुनता कोई
उनकी आवाज??
आंसू और आह
तड़पते दिल
पी जाते आवाज
कौन सुनता
मौन की आवाज।।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
**
दीप त्योहार
पटाखों की आवाज़
बुढ़ापा त्रस्त
**
ये कब्रिस्तान
है जनाजा नमाज़
आवाज़ थमी
**
रुंधी आवाज
कफ़न में बिटवा
कलेजा फटा
**
फोन संदेश
बिटवा परदेश
रुंधी आवाज
*"*
रंजना प्रमोद सैराहा..
ना हम हाल-ए-दिल सुना पाए
बस दिल ही
दिलों की तासीर जानता
ना तुम अपने जज़्बात लिख पाए
ना हम अपने जज़्बात लिख पाए
बस कोरा काग़ज़ ही
अनगढ़े शब्दों का मर्म जानता
ना तुम लफ़्ज़ों को कह पाए
ना हम उनको सुन पाए
बस मूक भाव ही
अंतर्मन के भावों को समझता
ना तुम हमें समझा पाए
ना हम तुम्हें समझा पाए
बस समझ ही
समझौतों की समझ जानती
ना तुम ख़ुद को जता पाए
ना हम ख़ुद को जता पाए
बस जताना ही
जताने का जतन जानता
ना तुम वादा निभा पाए
ना हम वादा निभा पाए
बस निभाना ही
निभाने का सबब जानता
ना तुम कभी पास आए
ना हम कभी दूरी छोड़ पाए
बस दूरी ही
दूरियों का माप जानती
ना थी तेरी कोई ख़ता
ना थी मैं बेवफ़ा
आज तुम भी चुप
आज मैं भी चुप
तुम भी तन्हा
मैं भी तन्हा
तू मेरा मौन
मैं तेरा मौन
बस मौन ही
इक दूजे के मौन की आवाज़ बन गया ।
स्वरचित
संतोष कुमारी
नई दिल्ली
आवाज़
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प्रदूषित होती जा रही आवाज़
अब नहीं रहा इस पर वो नाज़
साफगोई न रही पहले सी अब
बात बात में छिपे हैं राज़।
हर आवाज़ अब बरगलाती है
दिलों में खाई खोद जाती है
सल्तनत धीमी आवाज़ देती है
फिर भी दिल रौंद जाती है।
मुॅह में राम है बगल में छुरी है
यही बात है जो बहुत बुरी है
सवा सौ करोड़ असमंजस में हैं
कौन सी आवाज़ में रोटी या पूरी है।
आवाज़ दो कि सबको काम मिले
आवाज़ दो बूढ़े को आराम मिले
आवाज़ दो कृषक को दाम मिले
आवाज़ दो बेटी को हॅसती शाम मिले।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
प्रस्तुति 2
आवाजे गम सुनाने चली हूँ,
फिर से आज मुस्कुराने चली हूँ,
नहीं हताश होना है जीवन से,
बस यही आज बताने चली हूँl
हारना नहीं है जीवन का नाम,
बस आज गम को भुलाने चली हूँ l
सताये ज़माना जी भर के हमे,
फिर भी उनको हंसाने चली हूँ l
बेवजह छोड़ गए जो मेरी गली,
मै फिर से उन्हें बुलाने चली हूँl
उदास नहीं होती है उत्साही,
उत्साह फिर से फ़ैलाने चली हूँ l
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरादून
आवाज ही हैं हमारी पहचान
हमशक्ल तो होते कभी कभी
आवाज ही कराती अलग पहचान
कभी नही मिलती हमारी आवाज
जब न थे डोरबेल पहले जमाने में
आवाज दे घर मे प्रवेश करते बुजुर्ग
बहुयें भाग जाये रसोई के भीतर
बच्चे डरकर निकालते नही आवाज
रात मे जब आते अजीब आवाज
भयाक्रांत हो जाते लोग बाग
सुबह सुबह जब भजन की आती
सुरीली आवाज, भक्ति जाग जाये
अपने आप
जब हम दिल से पुकारते भगवान को
जरूर पहुंच जाती हमारी आवाज
भगवान के पास।
बाहरी आवाज को भले कर दे हम अनसुना
भीतर की आवाज को हम नही कर सकते, अनसुना
कर ले हम खिडक़ी दरवाजा बंद
भीतर की आवाज फिर भी
मचाती शोर
वे जरूर करती हमें अगाह।
भीतर की आवाज ही हैं
हमारी आत्मा की आवाज
और ईश्वर के आवाज को
ही कहते है आत्मा की आवाज
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
मन की आवाज अरे रुक तो कहाँ जा रही है ना जा ना जा
मैं फिर दोहराता हूँ तु ना जा
वहाँ गहरी खायी है तु गिर जायेगी
वहाँ ना जा मेरी बात मान जा
अपने मन की आवाज को सुन
अपने बढ़ते हुए कदम को यहीं रोक ले नहीं तो बाद में पछतायेगी
क्यों? आखिर तु चाहता क्या है ऐ
मन ,हर बार तु मुझे रोक लेता है
मेरे कदमों में बेड़ियां डाल देता है
आखिर क्यों ना जाँऊ
मैं भी तो उड़ना चाहती हूँ
उस अम्बर को छूना चाहती हूँ
मैं भी प्रेम चाहती हूँ इस दुनिया
को देखना चाहती हूँ
इस समाज को समझना चाहती हूँ
मैं भी कुछ बनना चाहती हूँ
आखिर कब तक मैं छुपती छुपाती रहुँगी, मुझे भी जानना है मुझे भी पहचानना है
अब ना मैं रुक पाऊँगी
उस अम्बर को छू जाऊँगी
मन , बस सही गलत पर ही रोका मैंने तुझे ,
ना दोष दे मुझे मैं तो तुझे बचाता हूँ
इस घिनौने समाज में हो रहा जो नारी पर अत्याचार, बस उसका
हर पल आभास कराता हूँ मैं
तो बता क्या मैं गलत करता हूँ
जहाँ सही वहाँ तुझे
फिर आवाज दे जाता हूँ में
जा ये सही है यह आभास भी तुझे मैं दिलाता हूँ
तू मन की आवाज को सुन और सही गलत की पहचान कर
तु मुझे दोष ना दें तू मुझे दोष ना दें
हर गलत कदम पर तुझे रोकूँगा मैं
बार बार तुझे टोकुँगा मैं
सही दिशा पर तुझे ले जाऊँगा में
बार-बार आवाज लगाऊँगा में
मैं तो तेरा मन हूं सही रास्ता दिखाऊँगा मैं
हर पल तेरा साथ निभाऊँगा मैं
इस दुनिया से हर बार तुझे बचाऊँगा में
मैं तो तेरा अंतर्मन हूँ तेरा चेतन हूँ तुझसे दूर नहीं हमेशा तेरे पास हूँ
मैं तेरे मन की वही धीमी सी आवाज़ हूँ
जिसे सुनकर अनसुना कर जाती है तू
स्वरचित हेमा उत्सुक
आवाज की दुनियाँ निराली है बड़ा वाणीं में होता दम,
अगर सुर में मधुरता हो तो भुला दे जग के सब वो गम।
जब जब वीरों को पुकारा है लहरा गए कितने परचम,
सजे इतिहास के पन्ने दिखाया अपना वीरों ने दमखम |
सुरों की महफिल में आवाजें भी तडपतीं मुस्करातीं हैं,
नशे मन पर कभी ये दिलों पर बिजलियाँ भी गिरातीं हैं |
लगाकर लौ हरी से जब आवाजें लगन में डूब जातीं हैं,
मन में लहरें भक्ति की उठतीं हैं ज्ञान की गंगा बहातीं है |
स्वरचित, मीना शर्मा , मध्यप्रदेश,
कोई जादू सा छा जाता है...
चाहे कोई भी मौसम हो,
पास ऋतुराज मुस्कुराता है...
कि सर्द धूप में आ जाती है थोड़ी सी तपिश,
ठूंठ में पल्लव सा
पनप जाता है...
हवाओं में घुली जाती है
फिर से खुशबू,
मन का अनुराग
छलक जाता है...
लौट आते है वो दिन
रंग के श्रृंगार के फिर,
मान-मनुहार के दिन
फिर से लौट आते है...
था प्रतीक्षित कभी जो
दिन तेरे अभिसार का,
लौट आता है वो दिन
फिर खिले बहार का...
स्वरचित"पथिक रचना"
घटती है
ऐसी घटनाएं
जो मन को आहत करती है।
होता है मन
छुब्ध
भाव असहाय के
उद्वेलित कर जाती है।
मैं चीखना चाहता हूं
और
मेरे ही प्रयास से
मेरी आवाज
कहीं फंस कर
रह जाती है।
हां!!!
जब भी
कोई ऐसी आवाज आती है
चुप्पी साध लेता हूँ
सिसकती आवाजें
सुन कर अनसुना करता हूँ।
मेरी भी आत्मा मर गयी है
संवेदनविहीन समाज मे जीते जीते
मैं भी मर गया हूँ।
करुण पुकार की आवाज
बड़ी खामोशी से
सुनता हूँ
होंठ बन्द रखता हूँ
समाज के नए रवैये से
भीतर ही भीतर
मैं भी डर गया हूँ।
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स्वरचित:शैलेन्द्र दुबे 10।11।18
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