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बनी तू मेरी नैया है,
लहरों से तू बचाती,
ममता बनी खिवैया है,
तेरे आँचल से होती,
वात्सल्य की बरसात,
ममता की तू मूरत माँ,
समझे अनकही बात,
तेरी ममता की छाँव में,
उम्मीदें लेती रूप,
धरती पर है माँ तू,
ईश्वर का प्रारूप।
स्वरचित-रेखा रविदत्त
माँ ममता की खान है,भावों का संसार।
चाहें जो भी हाल हो,सदा लुटाती प्यार।।(०१)
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मात ह्रदय रहता सदा,बसा हुआ बस नेह।
माँ की ममता पर कभी,करना मत संदेह।।(०२)
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माँ ममता का रूप है, सबसे करें ममत्व।
बैर किसी से है नहीं,सबसे हैं अपनत्व।।
******************************(०३)
माँ की ममता का यहाँ,दिखें न कोई तोड़।
रखती है परिवार को, हर मुश्किल में जोड़।।(०४)
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माँ की ममता से बड़ा,यहाँ न कोई भाव।
ममता मरहम-सी लगे,भरती सारे घाव।।(०५)
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स्वरचित
रामप्रसाद मीना 'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट(म.प्र.)
विधा .. लघु कविता
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निर्दयता को पार कर,
देते वो अन्जाम।
माँ के सामने बच्चो को,
करते रहे हलाल॥
🍁
जीवन जीव दूरूह हुआ,
ममता थी लाचार।
माँ बच्चो को मार कर,
जिव्हा का ले रहे स्वाद॥
🍁
मानव पर मै ना लिखूँगा,
इक पशु है लाचार।
लोग काटते खाते उसको,
बकरी मे भी जान ॥
🍁
तुम ही बोलो कविवर मित्रो,
क्या उसमे है जीव नही।
ममता, आसू संतति सुख का,
क्या उसमे है भाव नही॥
🍁
ये कविता मेरी रचना है,
इसमे सोच मेरा दर्पण।
ममता का तो भाव सदा ही,
मानव पशु का एक सा है॥
🍁
शेर हृदय मे तीव्र वेदना,
मन को बहुत दुखाता है।
सडक किनारे खुलेआम जब,
कोई पशु काटा जाता है॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
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माँ तेरी जैसी निश्छल ममता,
जहाँ में कहीं मिलती नहीं,
तेरे बगैर माँ जिन्दगी की,
तस्वीर कभी बनती नहीं |
तेरी ममता की छाँव में ही,
माँ मेरे हैं दोनों जहां,
धरती पर ईश्वर का है तू वरदान,
मेरे लिए तो माँ तू ही भगवान |
किस्मत वाले होते हैं वो लोग,
जिन्हें माँ की ममता मिलती है,
बगैर माँ के जिन्दगी क्या होती?
माँ नहीं जिनकी, उनसे मैंने पूछी थी |
खाली पन था जीवन में उनके,
सपने नहीं होते थे उनके पूरे,
आशीर्वाद वाला हाथ न था,
लगता उन्हें जैसे कोई उनके साथ न था |
हे प्रभु विनती तुमसे करती हूँ ,
माँ की ममता सबको मिले,
खुशियों के सबके जीवन में फूल खिलें,
हर माँ को संतान, व संतान को माँ मिले|
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
दूर जाकर याद, तुम आए बहुत ।
दिल लगाकर हम, तो पछताए बहुत ।।
-1-
जब मिलन नैनों का नैनों से हुआ ,
जाँदुवी आँखों मे, भरमाए बहुत ।
-2-
बैठकर काली घटा की छाँव मे ,
भाग्य अपने आप इतराए बहुत ।
-3-
हुश्न की दौलत तुम्हारी जब मिली ,
इस जहाँ को छोड, मसताए बहुत ।
-4-
क्या पता था ये जुदाई आयेगी ,
बिन तुम्हारे सच मे, घबडाए बहुत ।
-5-
बस दुवाँ है रब से मेरी एक ही ,
उम्र जुदाई की न, बढ जाये बहुत ।
राकेश तिवारी " राही " स्वरचित
जब जब मैं रोया तूँ लोरी सुनायी ।
मैं जो न सोया तुझे नींद न आयी ।
कैसी यह ममता प्रभु तूने बनायी ।
चिड़िया भी चुन चुन कर दाना जो लायी ।
अपने शिशु को दाना चोंच से खिलायी ।
खुद की न भूख कभी उसको सुहायी ।
कैसी ये ममता आखिर माँ की कहायी ।
माँ की ममता ''शिवम" किसने न पायी ।
चाहे हो कृष्ण कन्हाई चाहे हो रघुराई ।
देवकी ने जन्मा माँ यशोदा बन आई ।
धन्य माँ यशोदा ममता में कमी न दिखाई ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
8लघु 20गुरु
1
माँ शारदे को समर्पित
माता मेरी शारदे,
देदो थोड़ा ज्ञान l
ममता तेरी जो मिले,
मिटता है अज्ञान ll
2
ममता तेरी शारदे,
करती है कल्याणl
तेरी छाया के तले,
तेरी छाया के तले,
पा जाऊँ संसार ll
3
माँ को समर्पित
मंडूक दोहा
12लघु 18गुरु
माँ की ममता के बिना,
मिथ्या है संसार l
तेरे आँचल के तले,
लिए राम अवतार ll
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरादून
उत्तराखंड
मैं खुशनसीब इतना
दो मांओं का प्यार मिला
एक जननी एक जन्मभूमि
दोनों से ममत्व अपार मिला
जब जब लगी ठोकर
माँ धरा आँचल मिला
जब जब हारी हिम्मत
जननी का संबल मिला
मिला ज्ञान प्रारंभिक
माँ की ही ममता से
मिला आशीष शौर्य का
जन्मभूमि की गरीमा से
सदा रहूँगा इनका ऋणी
रहे भावना ऐसी मेरी
कभी ना इन पर आँच आये
रहे कामना ऐसी मेरी
डंटकर सरहद पर
जन्मभूमि का मान बनूं
कर न्योछावर जान अपनी
जननी का सम्मान बनूं
बहे अनवरत प्रेम की धारा
रहे अमर ममता इनकी
निश्छल प्रेम का प्रतिरुप ये
गाता "मुकेश" महिमा इनकी
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
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(1)बेटा विदेश
बिलख रही ममता
अपने देश
(2)कैसी ममता
माता बनी कुमाता
गुढ़े पे शिशु
(3) ममता गोद
अधिक सुरक्षित
शिशु के लिए
(4) चाहे जनता
रुपयों से ममता
आज का युग
(5)स्वार्थ निगले
ममता का घराना
सुख बेगाना
स्वरचित
मुकेश भद्रावले हरदा
1. माँ
ममता भरी
अंत तक दिखती
हाथ पसारे
बच्चे
2.कोई
भेद नहीं
लड़का या लड़की
माँ की
ममता
3.बच्चे
नहीं रखते
आदर सत्कार प्यार
ममता भारी
माँ
स्वरचित:- 1-11-2018डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी,गुना (म.प्र.)
माँ की ममता और पिता की छाया।
इससे बडा नहीं और कोई वरदान,
सबसे बडी सौगात प्रभु की माया।
माँ जननी अपनी ममता की मूरत।
इससे बडी नहीं समता की सूरत।
प्रकृति माता है सबकी सुखदाता,
क्या इसमें नहीं समता की मूरत।
माँ ने अपना अमृत हमें पिलाया।
इसने अपना सर्वस्व हमें लुटाया।
माता की महिमा निपट निराली,
माँ ने हमें सारा ममत्व लुटाया।
माँ का मन सदा निर्मल होता है।
हर माता का मन निश्छल होता है।
दिखें कहीं इसे भूखे प्यासे बच्चे,
देखें कितना मन निर्बल होता है।
स्वरचितःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
अपनी गोद में मुझ को सुला दे आज माँ,
हाथों के झूले में झुला दे आज माँ,
कदमो की आहट मेरे ढूंढे है तुझे,
है तू कहाँ कोई सदा दे आज माँ,
है हर तरफ घर में उदासी सी अब,
तू बात कोई सी चला दे आज माँ,,
नज़रे सभी की आज है मुझ को घूरती
हर एक नज़र को तू जला दे आज माँ,,
कोई नहीं मुझ को उठाता है सुबह,
आ के मुझे फिर से हिला दे आज माँ,,
है भूख मुझ को तेरे हाथो से खाने की,
रोटी मुझे आ के खिला दे आज माँ,,
ममता तेरी को आज तरसे है "मनी" |
ढूंढे कहाँ तुझको बता दे आज माँ ||
मनिंदर सिंह "मनी"
माँ हूँ मैं नित,अपना धर्म निभाती हूँ
ममता की खातिर ,
हर कर्म कर जाती हूँ
कोख की पीड़ा सहती मैं
तब धरती बन जाती हूँ
अपना रक्त, साँसें देकर
वजूद नया बनाती हूँ
अस्तित्व का कण-कण मैं उसके लिए लुटाती हूँ
माँ हूँ मैं-------------
संग चलती हूँ सदा मैं
उसके उठने गिरने पर
ब्याकुल हो जाती हूँ
उसके जरा सा रोने पर
देकर ममता की बाँहें
झूला उसे झूलाती हूँ
माँ हूँ मैं-----------
सुख-दुख का ख्याल नहीं होता
जब लाल मेरा रोता है
तड़प -तड़प जाती हूँ मैं
जब कष्ट उसे होता है
उसकी एक पीड़ा पर
हर खुशी कुर्बान कर जाती हूँ
माँ हूँ मैं------------
अपनी तोतली आवाज में
जब माँ कह पुकारता है
मत पूछो सीने में मेरे,
दूध कैसे लहराता है
ममता की झर-झर निर्झरणी
छुपा आँचल में पिलाती हूँ
माँ हूँ मैं ----------
कर्म पथ की परिभाषा मैं
गोद में उसे सिखाती हूँ
कुंदन उसे बनाने में
खुद को मैं तपाती हूँ
तब राम, कृष्ण और शिवाजी ,
जैसे उन्हें बनाती हूँ
माँ हूँ मैं ---------
विधी जब अपना कोई ,
नया खेल रचाता है
तब देवकी का कृष्ण ,
आँचल में मेरे आता है
बनकर तब ममता सिंधु
मैं यशोदा बन जाती हूँ
माँ हूँ मैं --------'
बेटे मेरे जब फँस जाते हैं
दुराचरण के दलदल में
व्यथित हृदय से छुपा लेती हूँ
अपने ममता के आँचल में
पीकर उनके दुर्गुणों को
मैं गंगाजल बन जाती हूँ
माँ हूँ मैं ----------
दुवा करती हूँ सदा मैं
वो कृष्ण बनें वो राम बने
ना बन सके कोई बात नहीं
उनके सत्य पथ गामी बने
यहीं दुवा जगत जननी से
हर पल मैं मनाती हूँ
माँ हूँ मैं ----------
पहाड़ों का सीना चीर दे
वही सपूत कहलाता है
माँ का आशीष सिर पर हो
कंटक भी फूल बन जाता है
सारे काँटे पथ के उसके
मैं पलकों पर उठाती हूँ
माँ हूँ मैं----------
स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम(छत्तीसगढ़)
1-11-2018
हाइकु
1
माँ की मूरत
नेह है जरुरत
ममता रोती
2
माँ की ममता
पाँवो तले जन्नत
माँगूं मन्नत
3
ममता लोरी
बुलाती है निंदिया
प्रीत की डोरी
4
ममता छाँव
चूमते नन्हें पाँव
प्रीत के गाँव
5
खुशी के लम्हे
ममता छाँव तले
मासूम पले
6
ममता फूल
जीवन में महका
चरण धूल
7
धरती माता
किरणों का आँचल
छाँव ममता
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत) पश्चिम बंगाल
(1)
माँ की ममता
जग में नहीं सानी
सबने मानी।
(2)
माँ छाँव तले
ममता अनमोल
खुशियाँ पले।
(3)
सरस मूर्ति
ममता की है कीर्ति
गृह विभूति।
(4)
दिल को भाए
शिशु गोद समाए
ममता छाए।
(5)
हंसी जग का
ममता आंचल से
जीव सरसे।
(6)
है खुशहाली
हरियाली आँचल
ममता भरी।
(7)
नैन सजल
ममता करे त्याग
तीर्थ प्रयाग।
(8)
आँखों की ज्योति
माँ दिल में संजोती
ममता सोती ।
--रेणु रंजन
(स्वरचित )
01/11/2018
हारी है दुनिया सारी
धन-दौलत ,सोहरत पर भी
भारी है ममता तुम्हारी
ता0 बदले, बदल गये कलेंडर
बदले सारे रीति रिवाज
पर नही बदला कभी भी
माँ तेरी ममता की पहचान
जाने कितने रंग भरे हैं
माँ तेरी ममता ,जीवन में
अँगुली पकड़ कर चलना सिखाया
इंसान को इंसान बनाया
ममता के आगे देवगण भी हारे
भरते माँ की गोद मे किलकारी
घोर अंधेरा हो जीवन में
बस माँ की ममता हो साथ में
सारी खुशियाँ करूँ न्योछावर
माँ तेरी ममता पर
इस मिथ्या जगत में
बस एक सत्य है माँ की ममता।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
ममता का नहीं कोई मापक।
ममता की प्रतिमूर्ति है माँ,
मानव की या किसी जीव की माँ।
ममता न देखे गोरा-काला,
ममता ने सृजन भार संभाला।
ममता जीव का पोषण करती,
ममता ही संस्कार है देती।
ममता न देखे अपना-पराया ,
ममता में संसार समाया।
ममता हृदय का सुंदर भाव,
ममता भर देती है घाव।
माँ ईश्वर की अनुपम रचना,
ममता उसका होता गहना।
ममता जीवन की अनुपम विभूति,
महिमा वर्णन वेद पुराण श्रुति।
ममता माँ की अद्भुत प्यारी,
देवता भी हैं इसके पुजारी।
ऐसा निर्मल भाव है मन का
शब्दों में महिमा न जाए उतारी।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
चारु धरा के सुतल परिधि में,
अपनत्व प्रेम का मिश्रण ममता,
जीवन पुष्पित तनिक पल्लवित,
होता ममता की छाँव में।
मादा प्रजाति का आभूषण,
भाव गहनतम चारु हृदय का,
भावी जीवन का मार्ग निदेशक,
ममता दिव्य गुणों का सार।
सुरम्य बसुन्धरा के तल पर,
ममता का सागर मातृहदय,
अकथनीय माँ श्री की महिमा,
स्वयं ईश अनुभव प्रत्यक्ष।
ममतामयी मातृ भूतल पर,
परमशक्ति की शुचि प्रतिमूर्ति,
असहनीय कष्टों को सहती नित,
संतति को पर रखती संरक्षित।
--स्वरचित--
(अरुण)
माँ की ममता इस धरा पर सबसे महान
माँ ही तीर्थ माँ ही चारों में धाम
माँ की ममता ही सुबह और शाम .
माँ की भक्ति जैसे अमृत का प्याला
माँ की ममता जैसे काशी और शिवाला
माँ की ममता उगते सूरज की किरण
माँ की ममता जग में दूर करती तम .
माँ की ममता प्रेम का सागर
माँ वेद पुराण और कुरान
माँ की ममता देती गीता ज्ञान
माँ संतान के लिये ईश्वर समान .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
असली सौन्दर्य वहीं रमता है
सब कोणों से जमता है
इसका तेज नहीं थमता है।
ममता से ही माॅ ईश्वर हुई
पूजा के ऊंचे स्वर हुई
मन के आंगन में बैठी
मृदु भावों से तर हुई।
ममता माॅ को है ईश्वर प्रदत्त
हर प्राणी की माॅ इसमें विभक्त
कोई भी माॅ को ले लो चाहे
बच्चे की खुशी में होती व्यस्त।
ममता मानवता का सुन्दर गहना है
और जिसने भी इसको पहना है
वह दमकता आभूषण की तरह
उसका तो फिर क्या कहना है।
अधिकारी में इसके बिना दुर्भाव होता
डाक्टर में संवेदना का भाव सोता
भावों की शैय्या बिल्कुल शून्य रहती
ऋणात्मक भावों का ही प्रभाव होता।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
रक्त अपने से पोषित करती
प्रसव - पीड़ा में पुनर्जन्म लेती
पहला रुदन कर्णप्रिय लगता
सुखद अहसास मातृत्व का होता
माँ होने का सौभाग्य पाती
अमृतदूध रसपान कराती
ख़ुद भूखी रह उसे खिलाती
सूखे बिस्तर पर उसे सुलाती
ख़ुद गीले में ख़ुश हो जाती
संतान की ख़ुशियों की ख़ातिर
अपनी ख़ुशियाँ दाँव पर लगाती
जीवन में उसको आगे बढ़ाकर
ख़ुद को पीछे ही रखना चाहती
दिन पंख लगाकर उड़ते गए
आँचल को पकड़कर चलने वाला
यौवन की दहलीज पर
सज धजकर मुस्करा रहा
आएगी घर बहू इक बेटी बनकर
ऐसा सपना माँ आँखो में संजोती
बेटा घोड़ी पर बैठा बाँधकर सेहरा
माँ का जीवन बनेगा सुखद बहुतेरा
दिन महीने फिर साल बदले
वह माँ अब बूढ़ी हो चली है
चेहरे पर झुर्रियाँ , कमर झुक चली है
माँ आज भी अपनी ममता ख़ूब लुटा रहीअपने कलेजे के
टुकड़े की ख़ैर मना रही
माँ तो आख़िर माँ होती है
पोते पोती पर भी ममता अपनी लुटा रही।
स्वरचित
संतोष कुमारी
माँ इंसान नहीं वो तो स्वयं भगवान होती है
माँ के तो चरणों में चारों धाम होते हैं
माँ की ममता में परमात्मा का हर स्वरूप होता है
माँ तो हर बच्चे की चाहत होती है
मुसीबत पड़ने पर वो हमे राह दिखाती
ममता के आंचल में वो हमें रखती है
प्रेम से वो हमको मधुर लोरी सुनाती है
सुकून की नींद मे हमको सुलाती है
दूर रहते भी वो हमारे पास होती है
मेरे ख्वाबों में आती है दर्द पर मरहम लगाती
माँ की तो ममता ऐसी ही होती है
माँ की एहमियत उनसे पूछो
जिनकी माँ नहीं होती,
जो हर बच्चे की जान होती है हर बच्चे की पहचान होती है
सभी का अरमान होती है जो हर रिश्ते का मान होती है , हर बच्चे को ममता मिले अपनी माँ से
कभी कोई ना बिछड़े अपनी माँ से
यही दुआ हर बार करती हूँ ,हे ईश्वर मैं तो ये तुझसे अरदास करती हूँ
माँ की ममता तो ईश्वर का वरदान होती है
माँ इंसान नहीं वो तो स्वयं भगवान होती है
🙏 स्वरचित हेमा उत्सुक🙏
है सत्य का वास ,मिले सदा
आशीर्वाद हर जीवन की आस
रिश्ता इससे ,तपती रेत पर
ठंडी फुहार प्रेम लुटाती
निश्छल निर्मल
त्याग तपस्या की मूरत
बच्चे रोते भीगे माँ का मन
हर उलझन की सुलझन
सुझाती है माँ।
हैं माता-पिता भारी
ममता हारी
पक्षी ममता
अद्भुत है क्षमता
नीड़-निर्माण
स्वार्थ-लीन
हुई ममताहीन
युवा-पीढ़ियाँ
नौ माह तक
ममता की परीक्षा
करती रक्षा
ममतामयी
अनन्त उपकार
माँ का दुलार
स्वरचित'पथिक रचना'
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