Monday, April 1

'''पराग/मकरंद " 01अप्रैल 2019

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             ब्लॉग संख्या :-345
बागों में भौंरे आने लगे 
धुर गीत गुनगुनाने लगे ।।

मकरंद आ ही गया होगा
देखो फूल मुस्कुराने लगे ।।

पैगाम देकर हवाओं से 
फूल भौंरों को रिझाने लगे ।।

क़ासिद हवा के अन्दाज
भौंरों का दिल बहकाने लगे ।।

मकरंद के दीवाने भौंरे 
जान 'शिवम' लुटाने लगे ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 01/03/2019

पराग /मकरंद 
1
पुष्प पराग 
नव जीव संचार 
प्रकृति राग 
2
है मकरंद 
महकता तन मन 
भाव सुगंध 
3
नव पराग 
खिलती है प्रकृति 
भवरें खुश 
4
नन्हे पराग 
जीवन अनुराग 
बाँटे खुशियाँ 
5
वसंत ऋतू 
जन्मे नन्हे पराग 
भू गाये राग 
कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित 

देहरादून

प्रेपुष्प अर्पित हैं भगवन
हम आप श्री के चरणों में।
यही वरदान देंय हमें प्रभु जी,
मकरंद मिले इन चरणों में।

प्रफुल्लित रहे हर मनमानस
प्रेमपराग विकसित हों मन में।
वैरभाव नहीं दिखे कहीं भी,
मकरंद घुले हर जनमन में।

पुलकित रहें हृदय सभी के
बासंती रंग बिखरें दुनिया में।
खुशबू परागकणों की आऐ,
हों खुशियां जीवन बगिया में।

श्रद्धा भाव रहें एकदूजे के प्रति,
नहीं गिले शिकवे हों आपस में।
रंगबिरंगे फूल खिलें उर आंगन,
पुष्प गुच्छ मिल जाऐं वापस में।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अ
जेय
मगराना गुना म.प्र.

उल्लसित प्रकृति है
हरियाली धरती है
चमन में आई बहार 
पहने फूलों के हार
सुमन रंगीले नाचे झूमें
भँवरे आकर उनको चूमें
कली कली पर जा मंडलायें
गुन गुन करते उन्हें लुभाये
भंवरा देख कली खिल जाये
अलि पर सब मकरन्द लुटाये
पंखुड़ी पर भँवरे जा बैठें
अधर पान कर झूमें नाचें
मोह पाश में बंधे हुए वो
पुष्प पराग सारा पी जायें
अलि कली का नाता गहरा
प्रेम समर्पण शिक्षा पायें
पुष्प पराग में जो मिठास है
आत्मसात उसे कर पायें

सरिता गर्ग
स्व रचित

सुगंधित पराग

नंदन कानन महका आज मन में 
श्वेत पारिजात बिखरे तन मन में
फूल कुसमित, महकी चहुँ दिशाएँ 
द्रुम दल शोभित वन उर मन में
मलय सुगंधित, उड़ा पराग पवन संग 
देख घटा पादप विहंसे निज मन में
कमल कुमुदिनी हर्षित हो सरसे 
हरित धरा मुदित हो मन में
जल प्रागंण निज रूप संवारे लतिका
निरखी निरखी लजावे मन में।
कंचन जैसो नीर सर सरसत
आज सखी नव राग है मन में।

स्वरचित

कुसुम कोठारी।

विधा .. लघु कविता 
*********************
🍁
पुष्प का मकरंद वो,
महका रहा अब देश को।
डेहरी को छोड कर,
सरहद से देखे देश को।
🍁
हर हवा मे गाँव की,
मिट्टी की खूँशबू आ रही।
माँ के आँसू बहन के,
यादों की बादली छा रही।
🍁
देश की रक्षा मे अर्पित,
फिर हुआ इक प्राण है।
चूडियो के टूटने से,
रो रहा आकाश है।
🍁
आँसू अब मकरंद से है,
अधर पंखुडी पुष्प के।
एक सैनिक शेर निकला,
है तिरंगा ओढ के।
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf

विषय-पराग/मकरंद
खिली कलियाँ,उपवन की झलक,बहारें
मुदित भ्रमर मन,छटा अपलक निहारें
पराग-पुंज,रस-राग गूंज,निश्छल यौवन
अलंकृत प्रिय,झंकृत-हिय,बेताब स्पंदन

मचले कटि डाली,लवंग-लता सी कंपन
विकल आली,है सवाली, कहाँ अवलंबन
उत्ताल रसाल महक मदिर अमिय बौर
कोकिल-गान भरे प्राण पत्र हरित ठौर 

कुसुमित कलित क्यारी प्रिय बहार भरे
अनुनय-विनय के वंद-छंद मनुहार भरे 
करपाश किंचित,ललित छवि निरख लें
मकरंद मधु मृदु-भावों के जरा चख लें
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
मन पराग हिचकोले लिऐ हजार
जब तेरी याद आई रोएं बार बार

जिस्म से रुह निकली हजार बार
तडप न मिटी फिर भी एक बार

लाखों गुनाह कर लिए बार बार
जिनके लिए ख्वाब सजाएंबेहिसाब

काटी उम्र मुफलिसी की खराब
मुस्कराने के पल न मिले जनाब

वादों के हिसाब रख न सके माहताब 
ख़िली चाँदनी तन जलाने लगी नायाब

स्वरचित
दिनांक-1/4/2019
दिन-सोमवार

नीलम शर्मा#नीलू
विधा=हाइकु 
🌹🌹🌹
उड़े पराग
धरा पर पुष्पित 
बही सुगंध 
🌹🌹🌹
मन उल्लास
गुरू करे पुष्पित 
शिक्षा पराग 
🌹🌹🌹
प्यासे है सब 
धन का मकरंद
पाते है चंद
🌹🌹🌹
कर्म पराग
जलाते है चिराग
ये लोगबाग
🌹🌹🌹
प्रत्येक क्षण 
भंवरा चाहे पिना
पराग कण
🌹🌹🌹
परागकण
भंवरा भी रखता
पास अपने 
🌹🌹🌹
स्वरचित 
मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश

बसंत में #मकरंद 
**********
दुर्मिल सवैया छंद में,,,, अभिव्यक्ति 
112 112 112 112,112112 112112( 8 सगण 112 )अंत तुकांत गुरू 
**************************
🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻
पियरी-पियरी चुनरी पहिने,
सगरी सखि आजु लुभाय रहीं/
मधुमास सुवास करै नित ही,
वनिता,तन आजु सजाय रहीं/
सरसों महकै,महुआ टपकै,
रसगंध धरा महि छाय रहीं/
चहुँ ओर बसंत रिझाय रहो,
बगिया ,#मकरंद लुटाय रहीं/
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**************************
कलियाँ-कलियाँ सब फूल गईं
मधुगंध पराग लुटावत हैं/
मधुमास सुवास करै नित ही,
कलियों महि प्रीत जगावत हैं /
वन-बागन पुष्प -पराग झरैं, 
कलि -प्रेम,अलिंद बुलावत हैं/
कहुं कूकति डारन कोयलिया,
मधुराग-सुतान सुनावत हैं/

🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार

भीष्म पितामह बोले, उपदेश में यह युधिष्ठिर से
जीवन के दो पहलू हैं, उजले और तिमिर से
मधुमक्खी लेती है जैसे ,पुष्प कण पराग के
वही मानती बस इसे ,अपनी नियति और भाग के
इसी तरह राजा भी लेता, शासन से अपना वेतन
राज्य के प्रति समर्पित रहता ,किन्तु उसका मन और तन
तुम भी इसका अनुसरण करना, पराग जितना संचय ही करना
लोभ मोह प्रमाद आदि में, इसको व्यर्थ न व्यय करना
ये जनता की गाढ़ी कमाई है, जो उन्होंने श्रम से कमाई है
यह जितना खर्च करोगे उन पर, तुम्हारी इसमें भलाई है
राष्ट्र का ध्यान सर्व प्रथम है, यही कर्म भी उत्तम है
इसमें ही सबके विकास की, बजती रहती सरगम है।
पुष्प से पराग जितना जाता, तब ही तो वह मुस्कराता है
सब ओर अपनी प्यारी गन्ध, 
आनन्द में लुटाता है।

लगती जीवन की बगिया सूनी सूनी ,

रहती गर रिश्तों में घुली मिठास नहीं |

सुदंरता तब तक मन को नहीं भा पाती ,

जब तक कि नेह की उड़ती पराग नहीं |

मन के पुष्पों में रहती है जो पावनता ,

वह स्नेह मकरंद से ही सुवासित होती |

बना ये दिल भँवर रहता उन्मत्त सदा ,

जीवन ऑगन को वही महकाया करती |

मन कहता फूलों सा जीवन हो अपना ,

अपने लिऐ जीना भी क्या होता जीना |

हमको उत्सर्ग जीवन पराग करते रहना ,

सुगंधित देश समाज घर को करके जीना |

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
विषय पराग/मकरन्द
विधा हाइकु
1
खिले कुसुम
मधुमक्खी गुंजित
मधु पराग
2
बही पवन
मकरन्द सुगंध
जीवन धन्य
3
पराग कण
बिखरे धरा पर
प्रकीर्णन में
4
प्रेमी प्रेमिका
मकरन्द अधर
प्यार की छाँव
5
मधु बसन्त
मकरन्द समीर
बाग के बाग

मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित

"शीषर्क-पराग/मकरंद"
उड़ चले तितलियों के झुंड
लेने अपने हिस्से का मकरंद
दूर दूर से वे उड़ के आये
पुष्प देख उन्हें, मन मुस्काये।

लाल ,पीली, नीले पुष्प
बिखेर रहे पराग कण
फूलों के बाग सुहाने
तितलियों के संग छटा निराले।

प्रकृति बस खिल उठी
अपनी छटा पर मुग्ध हूई
मधुमक्खी ले फूलों की पराग
मधु बनावे वे सुन्दर लाजवाब।

मधु लाभदायक हमारे लिए
इनके सेवन से भागे रोग
गुलकंद भी है स्वास्थ्यवर्धक
है इसमें गुलाब के मकरंद।

स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।

" मकरंद/पराग "

मकरंद यदि फ़ूलों में न होता कीट भौरें क्यूँ चक्कर लगाते

कैसे होता परागण कैसे फूलों के वंश आगे बढ़ पाते

सिर्फ फूलों की खूबसूरती ही काफ़ी नहीं होती

अहसान मानों मकरंद/पराग का जो कीट पतंग आके उनका वंश बढ़ाते

उसी मकरंद/पराग को संचित करती कठिन श्रम से मधुमक्खियाँ

अपने कठिन अनवरत श्रम से छत्ता के रूप में अपना घर बनाते

स्वार्थी हुआ इंसान इन बेचारियों को मार भगा उनके छत्ते को तोड़ शहद/मधु निचोड़ कर लाते

न जाने कितनी मधुमक्खियाँ
मरती पसतीं उनके अंडे भी निचुड़ जाते

ऐसे शहद/मधु को हम चाव से खाते पूजा चरणामृत में काम लाते

सोंचिये यदि मकरंद/पराग न होता ...क्या हम फ़ूल के वंश और शहद /मधु कहीं पाते

(स्वरचित)

अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव

र्ण पिरामिड 
विषय:-"पराग/मकरंद " 
(1)
ये 
रज 
पराग 
फाग राग 
बहार बाग 
पतझड़ भाग 
नवयौवन जाग 
(2)
है 
फाग 
चहका 
पुष्प मुस्का 
अलि बहका 
बगीचा महका 
मकरंद छलका

स्वरचित 
ऋतुराज दवे

*
घनाक्षरी(अवधी):
चंदन ते चर्चित सुगंधित श्रीकृस्न बाहु,
कोऊ धरि काँधे निज,धन्य भई गोपिका।
कोऊ कान्ह चर्बित ताम्बूल निज मुख धारि,
कोऊ पद कंज उर ,धारि लई गोपिका।
भृकुटी चढ़ाइ ,ओठ दाँतन्ह,दबाइ कोऊ,
तीछन कटाच्छ बान ,साधि लई गोपिका।
कोऊ अनिमेष नैन ,छबि मकरंद पियै,
मानौ ब्रजचंद की चकोरि भई गोपिका।।
-डा.'शितिकंठ'
(स्वरचित) प्रबंध कृति'भागवत कथामृत'पृ.254.से उद्धृत

महज़ प्रेयसी नहीं है तू ,
तुम मेरे लिए हो प्राण-पुष्प।
देख तुझे तन-मन आनंदित।
तू सुख-दुःख का शीतल वृक्ष।
************************
तू मेरे जीवन की अनुपम शान।
तू मेरे जीवन का अभिमान।
तू प्रेम-पुष्प का सुगंधित मकरंद।
बन भ्रमर मैं रसपान करूँ मन्द-मन्द।।
(स्वरचित) ***"दीप"***

पराग
विधा - पिरामिड

1
ये
राग
पराग
समाए हैं
फूल पुष्पों में
भौंरे मंडराते
यहाँ तो कभी वहाँ

2
है
तब
बगिया
सुंदर सी 
फूल खिले हो
भौंरे उड़े यहाँ
पराग गंध वहाँ

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

विषय-पराग /मकरंद

आया वसंत
खिल उठे पुष्प
उड़ा पराग
ज्यों फागुन में फाग
प्रकृति का सौभाग्य।

उड़े भ्रमर
मकरंद की आस
पुष्प के पास
सौंदर्य में अटका
भ्रम में है भटका।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित, मौलिक

लघु कविता 
जीव -जीव सभी समान
फल-फूल नस्ले असमान ।
पुष्प देता मधु खुशबू भंडार
जीवन भर हर रस्मों में उपहार।
कोई खुद भागी बनता हैं 
तो कोई मददगार चाहता हैं ।
एक जनन मकरंद बनाता हैं
हवा किट संग परागण लाता हैं ।
फूल से फूल अन्य पौधे संग 
भांति-भांति नस्ल बहुतेरे रंग ।
प्रकृति की बडी़ विचित्र माया
यह पुष्प सुंगधित, मलिन काया।
आज कल मनमकरंद बहुतेरे हैं 
कलियों को अधखिली मसलते हैं।
कलियों का एक अलि दोस्त हैं
रात सह जाता उसकी गिरफ्त हैं।
पुष्प सुगंधी कोई पुष्पी होता हैं।
कोई फल भी देता बीजी होता हैं।
अगर मकरंद परागण नहीं होते , 
शायद मानव फल-फूल नहीं होते !
बहकते फूलों में लगता मकरंद नहीं 
परागणअसमय छिछला आनंद नहीं ! 
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 
'निश्छल',

पुष्प का हृदय पटल...
मधु का है भंडार वो..
भ्रमरों का सम्मोहन..
मधुरिम सी रसधार वो..
बीजकोष धारित गंध..
कहलाए वो मकरंद..
तितलियों का आनंद..
महकाए हर उपवन..
वीणा की तान मकरंद..
साहित्य साज मकरंद..
चौबीस वर्ण सुसज्जित..
वाम नामक सवैया छंद..
सात जगण एक यगण..
आदि में लघु मत्तगयगंद..
चार चरण वृत्त संरचना..
तब होता ये छंद मकरंद..

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

"पराग/मकरंद"
हाइकु
1
वायु प्रवाह
परागों का मिलन
हो निषेचन
2
रस फुहार
शहद मकरंद
मन के द्वार
3
नव विहान
विह्वल है पराग
मिलन आस
4
नव आनंद
महक मकरंद
दिक दिगन्त
5
भ्रमित मन
मकरंद फूहार
उन्मुक्त नभ

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल

विधा-हाइकु

1.
दिल है प्यासा
भँवरे ने तलाशा
प्रेम पराग
2.
उड़े पराग
सुगंधित धरती
बौराए बाग
3.
कर्म का फल
जीवन मकरंद
बने सफल
4.
पी के पराग
मदमस्त भँवरे
गाते हैं राग
5.
मधुर मधु
मकरंद फूलों का
पीते भँवरे
6.
पुष्प पराग 
भँवरे गाए राग
उपवन में
********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा

1 अप्रैल 2019
विषय -
पराग/मकरन्द
पुष्प कुछ ज्यादा 
मुस्कुरा रहे थे
देखो भरी हुई डालियों पर इठला
रहे थे
कितना चटकीले
रंग,कितना आकर्षक रूप 
उनका
है कहीं लाल गुलाब सर उठाये
अपनी सुंदरता पर
इतरा रहा तो कहीं
पीला झबरीला
गेंदा अकड़ से गर्दन उठा रहा
ज्यों नज़र पड़ी
भोरें पर शर्मा के
झुक जा रहा
तितली रानी आ
रही ,फ़ूलो से बतियां रहीं ।
भोरें भी करते भून
भून फूलों को प्रेम
में लुभा रहे
पूछा मधुमक्खी ने
फूलों से तुम्हारी
मुस्कुराहट का सबब क्या ,
ये चमक कैसी ,इन
पलकों पर हया कैसी
कुछ शरमाये तो
कुछ लजाये फिर
बोले मधुमास आया ,आया पिया
मिलन का मौसम
हम भी धरती के
कुछ काम आएंगे
मकरन्द से बन मधु मानव
का मुख करें मीठा
वे गुलकंद भी खायेंगें
लेकर जाओ तुम 
पराग कणों को
फूलों की बढ़ती
जनसंख्या से
हो जाएगीअवनि
और भी सुंदर अपनी
खुशबू से सारे जग को
हम महकाएँगे ।।।
अंजना सक्सेना

मकरंद....मनहर घनाक्षरी

पल मिलन का आये
फाग भी शोर मचाये
पी मंद मंद मुस्काए 
कोयलिया चहके

भावों से बनते गीत 
मिले जब मन मीत
नैनो से प्रेम छलके
ज्यूँ पलाश दहके 

बौराये महुआ फूल 
विरह हिय चुभे शूल 
रात को चांद दहके 
सागर भी बहके

नैनों में भर के प्रीत 
चली सजनिया मीत 
मन गागर भर के 
मकरंद महके

मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित

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