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ब्लॉग संख्या :-356विषय ,सुख, दुख
वार_ शुक्रवार_12अप्रैल2019
~~~~`
दुखी कौन
और सुखी कौन
बे मतलब हमनें
मन से खेला है।
अपनी ,अपनी
व्याख्या मन की
मन तो
नितांत अकेला है।
सुख को परिभाषित करते
,आडम्बर से तो ,
दुख नजर नहीं आते हैं ।
मन जहाँ भटक गया
तनिक भी
दुख के बादल
गिर आते हैं ।
सम भाव नहीं
स्थिर प्रग्य नहीं
साथ में चलता
झमेला है।
अपनी अपनी
व्याख्या मन की
मन तो
सिर्फ अकेला हैं ।
दुख
और सुख के बीच ,
सम भाव नहीं बना पाते
बिना ज्ञान मूरख हम ,
अंतर्मन ध्यान
कहाँ लगाते ?
घोर अंधकार का
बोझा पड़ा
मनोदशा पर तो ,
मन ने हर
बोझ को झेला हैं ।
अपनी अपनी
व्याख्या मन की
मन तो
नितांत अकेला है
कभी ह्रदय
विदारक होते
तो कभी बन जाते '
अति उत्साही
मनों भावों ने ही
मन की ये "
दुर्दशा बनाई ।
बिना ज्ञान "
निज जीवन ,का मोल
फूटी कौड़ी
भर धेला हैं ।
अपनी अपनी
व्यांख्या मन की
मन तो
नितांत अकेला हैं ।
परिकल्पनाओं में
चले ढूँढने
सुख के स्वर्गो कों ,
पाला खुद ने ,
खुद के
रोते, दर्दों कों ।
कितने ही
सिकन्दर हार गये
पोरस से ,
जीवन की बाजी ।
खाली हाथ गया
सिकंदर
हार के
जीवन की बाजी ।
असंख्य कामनाओं में
मन अभिलाषा का
नम्बर पहला हैं।
अपनी अपनी
व्याख्या मन की
मन तो
नितांत अकेला हैं।
🙏
पी राय राठी
भीलवाड़ा, राजस्थान
कितने पुतले रचे गये, कोई वापस न आया।
प्रभु कैसी तेरी माया, खेल समझ न आया।
मेले में यूं मिले चिले, सब करें राग की बातें।
काटे दिन भूल सत्य , झूठे स्वप्नो की रातें।
कैसा बाग खिलाया , खेल समझ न आया।
प्रभु कैसी तेरी माया, खेल समझ न आया।
पृथ्वी और आकाश , मन हर्ष कभी निराश।
दिन और जैसे रात, जग सुख दुख की बात।
किस ने क्या न पाया, खेल समझ न आया।
प्रभु कैसी तेरी माया, खेल समझ न आया।
जी का रिश्ता न देखें , जीते जी के सौ सपने।
भेद हजार मन मे पनपे, लालच जानें कितने।
है अपना कौन पराया, खेल समझ न आया।
प्रभु कैसी तेरी माया, खेल समझ न आया।
विपिन सोहल
धूप छाँव से होते सुख दुःख
जीवन में तुम मत घबराओ
करते चलो सद्कर्म जग में
श्रम बिंदु तन सदा बहाओ
विपदाओं को गले लगा लो
हित मीत गरल जग पिलो
चढ़ जाओ ऊंचे शिखर पर
मीठे फल झोली में भरलो
दैहिक दैविक भौतिक दुःख
जीवन कालचक्र नित चलता
पहले पतझड़ आता जग में
ऋतुराज फिर खुशियां लाता
दुःख सुख आते जाते रहते
दुःख होते मानव प्रिय साथी
बिना दुःखों के क्या सुख होते
दुःख से जलती सुख की बाती
चिलचिलाती धूप गगन से
धरती पर अंगारे बरसे
ठंडा सा झौखा मिल जावे
काया मानव मन ये तरसे
बिन दुःख क्या जीवन होता
सुख दुःख होती मात्र सोच है
सही सोच तो सुख ही सुख हैं
फिर जीवन मे कँहा खरोच है
दुःख जीवन सबक सिखाते
कभी रुलाते कभी हँसाते
कभी पोंछते आँख के आँसू
कभी गीत खुशी के गाते।।
स्व0 रचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
**********************
विजयरथी बन कर निकला वो,
सुख-दुख के भावों को त्याग।
मौनव्रती वो श्रेष्ठ पुरूष है,
शान्त मगर मन मे है आग।
....
कर्म योगी वो मन से जोगी ,
राष्ट्र पुरूष बन आया।
भारत की धूमिल गरिमा को,
पुनः दिव्य चमकाया।
....
सुख-दुख की है क्या परिभाषा,
योगी क्या जानेगा।
त्याग दिया सारे बन्धन जो,
मोह वही जानेगा।
.....
उसे जान लो मन से भाव दो,
उसका क्या जायेगा।
शेर के संग वो झोला लेकर,
कही चला जायेगा।
.....
स्वरचित एवं मौलिक...
शेर सिंह सर्राफ
''सुख/दु:ख"
औरों के दुख जो समझें वो फ़रिश्ते
वैसे तो सबके ही हैं दुखों से रिश्ते ।।
औरों के आँसू पोंछो आके जग में
खुशी खुद आयेगी सुख होंगें सस्ते ।।
बारिश तो तपकर ही आये सबने देखी
सुख दुख की घड़ी सबको रब ने लेखी ।।
धैर्य से जो काम लेता यहाँ है ''शिवम"
वही कहाये जग में ज्ञानी और विवेकी ।।
अपने दुख की परवाह कब करते बडे़
बृक्षों से पूछो जो मुरझाकर भी खड़े ।।
खुद मेहरबां होता है वो ऊपर वाला
उनके त्याग भाव से ही वो बारिश करे ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/04/2019
नमन मन्च,गुरूजनों
तथा साथियों।
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
सुख-दुःख तो जीवन के हैं साथी,
सदा साथ में रहता है।
गर दुःख आया है,
तो सुख भी आयेगा,
मानव तू क्यूँ घबड़ाता है।
चिन्ता, फ़िक्र तू छोड़ दे,
केवल भजन किया कर।
ऊपर बाला सब ठीक करेगा,
तू अपना कर्म किया कर।
दुःख के बिना सुख की,
कोई अहमियत नहीं।
एकरस जीवन नीरस होता है,
सबरंग जीवन के देखो तो सही।
सुख में भजा ना राम को,
पर दुःख में तो भजो।
दुःख दूर करेगा वही तुम्हारा,
तुम केवल भक्ति में रहो।
🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
1
जीवन गाड़ी
सुख-दु:ख पहिया
दुनियादारी
2
छलिया जग
सुख-दु:ख का चक्र
चलता रहा
3
धूप सा ताप
पहाड़ सा ये दु:ख
मिला न सुख
4
सुख व दु:ख
परस्पर पूरक
दोनों पहलू
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
बुद्धि प्रदायिनी माँ वाग्वादिनी
"दुःख" हर लो इस बार
कष्ट हरो माँ जय जगदम्बे
संबल दो इस बार।।
ताप हरो माँ जय चण्डिके
हम पायें दुखों से पार
सुखी बने हम"सुख" ही बाँटें
"सुख' ही हो आधार।।
जुड़े रहें हम सदा मंच से
न भूलें गुरूवर प्यार
हंसी खुशी जीवन कट जाये
हर दिन हो त्यौहार।।
🌹🌹स्वरचित🌹🌹
सीमा आचार्य(म.प्र.
विषय-सुख/दुख
विधा - तुकान्त कविता
🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁
नमन 🙏
मित्रो
सुख दुःख जैसे दिया और बाती
तुम संग मैं हूँ ऐसे प्रेम प्रिया सी
..........तुम हो ठंडी छाँव सजन जी
..........मैं बहती मंद बियार सी लगती
....लग कर कंठ मिले मधुशाला सी
.....चलती बहकी चाल सजन जी
तुम आते सुख की बरसात सी आती
भीगे तन मन बिन बरसे बादल सी
........कोमल कली खिली अधरों की
.........बैठूँ जब मैं संग पिया मुस्काती
दुख का बादल घोर घटा सी
तू छिपाले मुझको मैं घबराती
🌹🌺स्वरचित🌺🌹
नीलम शर्मा#नीलू।
विषय- सुख-दुख
सादर मंच को समर्पित -
🌹🍒🌻 गीत 🌻🍒🌹
*****************************
☀️ सुख-दुख ☀️
🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
जीवन यह अनमोल मिला है ,
इसको सफल बनाना सीखें ।
सुख-दुख तो प्रभु का प्रसाद है ,
हँसके गले लगाना सीखें ।।
बाह्य जगत में क्यों हम खोजें ,
वह तो प्रकटे स्वतः मन में ,
जीने का आनन्द सदा ही
जीने वाले की दृष्टि में ।
दृष्टिकोण का भेद बनाता ,
काँटे फूल , फूल को काँटे ,
चुनलें पल-पल की खुशियों को ,
बिखरी हैं जो इस सृष्टि में ।।
सबसे पहले स्वयं को जीतें ,
मन को सबल बनाना सीखें ।
त्याग और विश्वास के बल पर ,
मंजिल पर बढ़ जाना सीखें ।।
दुख को सहज मान कर बन्धु ,
खुश रहने की आदत डालें ,
संकट से घबराना कैसा ,
संघर्षों को कर्म बनालें ।
पीडा़ से बढ़ती है क्षमता ,
तप के और निखरता कुन्दन ,
नहीं छोड कर धैर्य बल को ,
लक्ष्य पे अपनी दृष्टि जमा लें ।।
बाधा आयें, प्रयत्न न रोकें ,
अनथक पुरूषार्थ से जीतें ,
ज्ञान मंत्र और कर्म तंत्र से ,
लक्ष्य बिन्दु को पाना सीखें ।।
सुख का नाता नहीं है धन से ,
निर्मल तन-मन सच्चा सुख है ,
जो भी होता , अच्छा होता ,
प्रभु की इच्छा सदा अटल है ।
प्यार बाँटते रहें हमेशा ,
सुमन सा जीवन सदा खिलेगा ,
है संतोष परम धन भाई ,
शान्ति , प्रेम ही जीवन बल है ।।
बन्धन मुक्त कहाँ है प्राणी ,
ज्ञान चक्षु से जीना सीखें ।
देख रहा ईश्वर सब मीता ,
तन-मन अर्पण करना सीखें ।।
🍇🌱🌻🌹🍍🍑
🌻🌱***... रवीन्द्र वर्मा , आगरा
नमन मंच को
विषय : सुख दुख
दिनांक : 12/04/2019
विधा : कविता
चल उठ ए दिल
चल उठ ए दिल,
अब गम न कर।
पलकें आंसूओं से
यूं नम न कर।
काले घने बादलों से भी,
सूर्य निकल आता है।
स्याह काला अंधेरा भी
दिन में बदल जाता है।
चल, उठ रोज सुबह,
एक नयी आस में ।
सुख दुख तो छिपे हैं,
मन के विश्वास में ।
ऐसा नहीं कोई जिसका,
आखरी छोर न हो।
मिलेगा न कोई जिसके,
गम चारों ओर न हो।
कभी खुशी कभी गम,
कभी दिन कभी रात।
हर शै बदलती यहां,
समय के साथ ।
पतझड़, बसंत कभी,
आती बरसात है।
एक से न रहते कभी,
मन के जजबात हैं।
हौसलों के रास्ते तो,
कभी भी न बंद हों।
जाते हार बुरे दिन,
जो हौसले बुलंद हों।
गमों को यूं दिल पर,
भारी न होने दे।
आत्मविश्वास अपना,
कभी न खोने दे।
गम देख खुद को,
क्यों देता सजा है।
मान ले तू यह सब,
रब्ब की रजा है।
हलका होगा मन ,
गर समर्पण तू कर दे।
गम सारे भगवन को,
अर्पित तू कर दे।
छोड़ सारे गम जरा
देख तेरी मंजिल।
दूर न ज्यादा अब,
खुशीओं की महफिल ।
जल्दी ही आएंगे यारा
हंसने के पल वो।
हौसला तो रख जरा,
फिर से संभल तो।
हौसला तो रख जरा,
फिर से संभल तो।
जय मां शारदे 🙏🙏
स्वरचित : राम किशोर, पंजाब ।
विधा-मुक्तक
=====================
(01)
इस दौर में सच बोलने वाला नहीं रहा ।
बढ़ते गए अँधियार उजाला नहीं रहा रहा ।
दुनिया की रंगतों पर पागल हुआ था जब,
दुःख दर्द फिर भी पूछने वाला नहीं रहा ।।
(02)
अफ़्सोस उनका प्यार मेरे साथ चल नहीं पाया
मुज़्तर रहा हर बार मेरे साथ चल नहीं पाया।
यह ज़िन्दगी मेरी दुःखों के दायरे में आ गई,
खुशियों भरा संसार मेरे साथ चल नहीं पाया ।।
=======================
"अ़क्स " दौनेरिया
विधा: दोहे....
सुख दुख के इस खेल पर, कर्म करे अधिकार....
बीजा जो है कर्म ने, मिले वही आहार...
मात पिता बंधू सखा, रिश्तों का संसार.....
सींचों इन को प्यार से, तभी सुखी संसार...
पाप पुण्य सुख दुःख हैं, जीवन के ही अंग....
मन साधे ही आएंगे, जीने के सब ढंग....
पाप मूल है दुःख का, सब सुख पुण्य दिलाय....
मात पिता की वंदना, हर पीड़ा हर जाय...
मात पिता आशीष ले, रोज़ सुबह हर शाम....
हर बाधा मिट जाएगी, कभी न बिगड़े काम....
मात पिता के चरण हैं, मोक्ष द्वार सब धाम....
पाप पुण्य सुख दुःख से, मुक्त करें ये धाम....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१२.०४.२०१९
शीर्षक- "सुख/दु:ख"
विधा- कविता
**************
सुख-दु:ख गहरे साथी है,
बारी-बारी से जीवन में आते है,
अभिन्न अंग कहलाते हैं,
अपनी अहमियत बताते हैं |
जब सुख जीवन में आता है,
इंसान खुशियाँ मनाता है,
जब दु:ख जीवन में आता है,
कितना वो सहम जाता है |
दु:ख बिना सुख का एहसास नहीं,
फिर भी दु:ख में लगे कमी ही कमी,
आसमां को छूने की ख़ातिर,
कभी न भूलो तुम अपनी जमीं |
मन हो स्वच्छ, दिमाग दुरूस्त,
ऐसे तुम इंसान बनना,
खुद काँटों में चलना पड़े गर,
दूसरों के लिए फूल ही चुनना |
दूसरों के दु:ख को जो समझे,
उससे बड़ा कोई ओर नहीं,
अपनी खुशियाँ दूसरों संग बाँटे,
सुख इससे बड़ा कोई ओर नहीं |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
शीर्षक-सुख/ दुख
विधा- गीतिका
गीतिका
******
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
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मन-"वीणा" के सात सुरों में,,नव गीत- काव्य संचार हुआ /
मीरा तुलसी के सरस भाव से,नवल छंद रसधार हुआ //
-
हुई स्रजनशील अनवरत ,, कोमल कविता की निर्झरणी ,
मैं रीझ गयी हूँ भावों पर ,,मुझको कविता से प्यार हुआ //
नित खिलते यौवन सी दमकी ,ललित कामिनी सी कविता
सौंदर्य शब्द ,कला चमकी ,प्रिय गीति-,प्रीत अभिसार हुआ /
-
प्रकृति धरा के आँचल में, जीवन ज्योति मिली कविता को ,
#सुख -/#दुख की माया छोड़,प्रभो,,अदभुत हृदयोदगार हुआ //
--
सत्य,आस्था, विश्वास न्याय ,जीवन के आधार बन गए ,
माँ "वीणा -पाणि के वरद हस्त से ,कवि जीवन का उद्धार हुआ //
*********************************
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
रचनाकार = #ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित (गाजियाबाद)
विधा -- मुक्तक
1.
दुख के पांव नहीं होते, पर दुख पीछा करता है।
डर के सींग नहीं होते, पर हर इंसा डरता है।
कष्टों का जोर जगत में ,जब कब बढ़ता जाता--
सारा कष्ट 'हितैषी' को,दुख का पोता लगता है ।
2.
चुभन,दिल में लगी किसी की, मिटा कर तो देखो।
बढ़ती हुई दर्द घटाएं, हटा कर तो देखो।
आशीष की बौछार स्वतः,
आएंगी ' हितैषी ' --
दुखों के संसार से दुःख, बटा कर तो देखो।
*******स्वरचित******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी'
बड़वानी(म.प्र)451-551
नमन भावों के मोती
विषय - सुख-दुख
12/04/19
शुक्रवार
कविता
दुख की परछाई सुख का पीछा करती ही रहती है,
इसीलिए मानव के मन की चिंता कभी न मिटतीहै।
हर पल वह दुख की पीड़ा का अनुभव करता रहता है ,
और सुखों के क्षण में भी वह दुविधा में ही रहता है।
यदि वह सुख-दुख को समान दृष्टि से किंचित देख सके,
तो जीवन में प्रतिपल का आनंद हृदय से उठा सके।
सुख व दुख का चक्र निरंतर भू पर चलता रहता है,
फिर क्यों मानव दुख आते ही व्याकुल होने लगता है।
उसे चाहिए दुख की परछाई से वह न दूर हटे ,
जैसे सुख भोगा है वैसे दुख का भी सामना करे।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
शीर्षक - सुख दुख
यूं तो जिंदगी कोई सुमनो की सेज नही
पर सिर्फ बियाबान कांटो का जंगल भी नही,
अपने हिस्से के सुख दुख सभी को सहने होते हैं
हम जितना उन्हे अहमियत देते हैं
वो उतना हमे सताते हैं
और जिस दिन उन विपरीत आपदाओं को
ठेंगा दिखाकर जीवन की जंग मे शामिल हो जाते हैं
वो भी हार कर मुह छिपाने लगती हैं
इसलिये इसे चुनौती समझ मुकाबला करो
और पहेली समझ सुलझाते चलो ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
नमन भावों केमोती
12/4/19
विषय सुख दुःख
विधा पिरामिड
ये
सुख
सम्मान
मेहमान
जीव अज्ञान
प्रसन्न जीवन
मेहनत लगन
ये
दुःख
मनुष्य
विपरीत
जीवन नृत्य
ईश्वर अमृत
परिवर्तन सत्य
मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित
12/04/19
सुख दुख
***
सुख दुख विस्तृत अर्थ लिये
कैसे इसे परिभाषित करें!
शब्द न कर पा रहे बखान
कलम बेबस ,बुद्धि अज्ञान ।
सुख का क्या है मापदण्ड
क्या एक सा हर काल खण्ड,
ये सबके लिए क्यों अलग
कोई प्रसन्न ,कोई भोग रहा दण्ड।
फुटपाथ पर भी सुख चैन
की नींद कोई सो जाता है
नरम बिस्तर भी दुख दे कर
किसी को रात भर जगाता है।
सुख दुख जीवन की डगर,
है मन की स्थिति पर निर्भर
सुख दुख तो आने जाने हैं
सम भाव रहना हर पल ।
वर्तमान में जो जी लेते हैं
वो ही जग में सुख पाते है
भूत और भविष्य मे उलझे
दुख उनमें घर कर जाते हैं ।
सुख का गड़ा न खजाना
मेहनत से कमा कर लाना
किसी के दुख दर्द दूर कर
अपने दुख को दफना आना ।
स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
"नमन-मंच"
"दिंनाक-१२/४/२०१९
"शीर्षक-सुख-दुख"
जैसे नभ मे चाँद सितारे
वैसे सुख दुःख साथ हमारे
दोनों आते बारी बारी
दोनों हमारे संगी साथी।
पूर्ण चाँद जब हमें लुभाते
अंधेरी रात से हम क्यों घबराते?
सुख दुःख तो जीवन के अंग
दोनों चलते जीवन भर संग।
दुख मे हम क्यों हो अधिर?
ईश है जब संग हमारे
सुख के दिन वे फिर लावेंगे
फिर जीवन मे खुशियाँ लावेगें।
प्रभु ने हमें यह बतलाया
दूसरों के सुख से न हो दुखी
दूसरों के दुःख मे तुम हो दुखी
तभी बनेगा जीवन सुखी।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
आज का विषय , सुख , दुख ,
विधा , चोका ,
दिन , शुक्रवार ,
दिनांक ,12 , 4 , 2019 ,
मानव मन
होती एक पहेली
प्रश्न एक है
जबाब अनेक हैं
विवेक पर
सब कुछ निर्भर
धन का सुख
कल्पना अमर है
मन का सुख
संतोष और प्यार
नहीं स्वीकार
वर्तमान समय
स्वप्न का युग
कोई नहीं अपना
मेरा सपना
अपनों से कटाव
दिलों में दूरी
रिश्तों में बनावट
बनी दीवार
घर की सजावट
रंग रोगन
महंगा सा सामान
बिखरा प्यार
सुख की परिभाषा
या फिर खार
हम करें विचार
सुख व दुख
सिर्फ मन का भाव
वक्त के साथ
जीवन बिताना है
फूल व काटें
सबसे निभाना है
हस के जियें
जिंदगी तराना है
प्यार से बिताना है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
12-4-2019
विषय:-सुख -दुख
विधा:-दोहा
सुख दुख में ही है छिपा , जीवन का आनंद ।
नर इनकी अनुभूति से , खोजे परमानंद ।।१।।
जीवन के उद्यान में , सुख दुख जैसे फूल ।
संग गुलाबों के लगे , चुभ जाते ज्यों शूल ।।२।।
किंकर्तव्य विमूढ हो , दुख समझें अभिशाप ।
गुरु सच्चा दुख ही बने , गूढ़ ज्ञान दे आप ।।३।।
सुख शीतल हैं ओस सम , खिल जाती मुस्कान ।
दुख की बने कठोरता ,जीवन की पहचान ।।४।।
दुख पीछे सुख है खड़ा , निशि पीछे परभात ।
सुख दुख की अनुभूति से ,किस को मिली निजात ।।५।।
सुख दुख दोनों की बनें , इच्छाएँ आधार ।
इच्छाओं की पूर्ति से , मिलती खुशी अपार ।।६।।
इच्छाओं को डालता , मन जैसी भी खाद ।
सुख दुख उसके फूल हैं , कहते हर्ष विषाद ।।७।।
दीर्घ श्वास भरिए सदा , करिए प्राणायाम ।
सुख दुख से ऊपर उठो , जपिए प्रभु का नाम ।।८।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
वक्त का पहिया बदलता हैं
कभी दुःख तो कभी सुख जीवन में आता हैं
हर इन्सान लड़ रहा हैं अपने दुखों से
तकलीफें बहुत हैं जीवन में
वक्त नहीं हैं किसी के पास किसी का दुःख सुनने का .
जिंदगी भी क्या गजब करती हैं
दुःख देकर हमें आजमाती हैं
फिर हमें वक्त के भरोसे छोड देती हैं
फिर हर दिन एक नया इम्तिहान लेकर कुछ सबक नया सिखाती हैं .
सुख दुःख हैं बहती नदिया
जो कभी रूकती नहीं हैं
दुःख कभी आता हैं कभी सुख आता हैं
यही तो हैं वक्त का एक काल चक्र .
जिंदगी को कभी दुःख से मिलने दीजिये
मुश्किलों में जीना आ जायेगा
दुःख दर्द के सागर में तैरना सीख जाओगे
जिंदगी की इस कड़ी धूप में छाँव की मंजिल पर पहुँच जाओगे .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
भावों के मोती
विषय- सुख/दुःख
➖➖➖➖➖➖
रात की चौखट पर
ठिठक कर रुक जाते हैं
मेरी किस्मत के उजाले
दुःख की रात ढलती नहीं
सुख का सूरज आता नहीं
यह कैसी परीक्षा ज़िंदगी की
जब भी उजाले की ओर
बढ़ने लगते हैं मेरे कदम
कहीं से तेरी यादों का झोंका
आकर मुझसे लिपट जाता
बीत जाती है हर रात
तेरी यादों की चारपाई पर
मेरा वक़्त रुका है वहीं
अभी भी तेरे इंतज़ार में
रात की चौखट पर बैठा
अंधेरे की काली चादर ओढ़
मैं दर्द के लहरों संग मचलता
आँसुओं के समंदर में डूबता
तुम्हें तलाशती आँखें हरपल
मुझे भरोसा आज़ भी है
तू आएगी एक दिन लौटकर
रात की चौखट पर
आज भी बैठकर करता हूँ
मैं तेरा इंतज़ार अक्सर
काश मेरा चाँद आए
चाँदनी के उजाले साथ लेकर
रात की चौखट पर आकर
तारे आस के टिमटिमा दे
भरोसा है मुझे भरोसे पर
मेरी ज़िंदगी में तेरा प्यार
रात की चौखट पार कर
ले जाएगा उजालों की ओर
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित
दिनाँक-12/04/2019
शीर्षक-सुख , दुःख
विधा-हाइकु
1.
सुख व दुःख
किये हुए का फल
आता सम्मुख
2.
सुख व दुःख
जीवन के पहलू
चलते साथ
3.
सुख दुःख में
हिमाती भगवान
भूखे प्यासे का
4.
सन्तान सुख
परमेश्वर देन
मन सुहाय
5.
दुःख में राम
सदा सुख में राम
जय श्री राम
**********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
विषय -सुख दुख
जीवन के ये इंद्रधनुषी रंग ,
सुख दुख दोनों चलते संग ।
जैसे हो रही हो ,
धूप छाँव में कोई जंग ।
दुख की कंदरा से ही होता
सुख का सुर्य उदय
जी निर्भय !
हे मनु तू जी निर्भय ।
सुख खेले दुख संग होली
दुख लगाता सुख के माथे
चंदन, कुमकुम, रोली ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
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