Monday, April 8

'"मान/अपमान" 08अप्रैल 2019

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                                           ब्लॉग संख्या :-352
विधा- कविता
****************
मान, अपमान की परवाह नहीं, 
हम तो चुनते हैं अपनी राह सही, 
जबरदस्ती माँग कर मान मिलें, 
इससे बड़ा कोई अपमान नहीं |

अपमान के घावों को हमने देखा, 
मान के भावों को भी समझा है, 
कौन हमें क्या देगा?मान या धोखा, 
समझते हैं, इतने भी नादान नहीं |

मान, अपमान के चक्कर में पड़, 
मत खोना जी अपना स्वाभिमान,
ये तो आपकी निष्ठा,आपका काम,
तय करेगा किसके हैं आप हकदार |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*





"मान/अपमान"
1
अहं नादान
मन से अस्वीकार
मान-सम्मान
2
स्वार्थ निजता
अपमान परता
है निराधार
3
अपना हाथ
मान सम्मान साथ
है जगन्नाथ
4
स्वार्थ का त्याग
न कर अहंकार
मिले सम्मान
5
जग का अहं
मान व अपमान
घायल मन

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल





विषय - मान /अपमान

🌹🌹🌹🌹🌹💐💐💐💐

मान /अपमान

आशाओं के पंख खोलूँ , 
मीठे-मीठे दो बोल बोलूँ,
मान-अपमान से उपर हो,
सब रिश्तों में मिठास घोलूँ ।

जहान संकुचित हो अपना, 
मन में ऐसा भाव कब था !

काम कुछ ऐसा करूँ,
भाव कुछ ऐसा धरूँ ,
उन भटके हुए राही के,
मन में नव संचार भरूँ।

स्वहित की ही बात करूँ, 
मन में ऐसा भाव कब था!

छोटी सी पहचान अपनी,
छोटी सी मुस्कान अपनी,
हो आसमान मुट्ठी भर,
छोटी सी उड़ान अपनी।

अपनी धरती बिसराने की, 
मन में ऐसा भाव कब था!

डॉ उषा किरण





नेता हमें कई गुणों में अच्छे लगते 
पमानित होकर भी बेचारे हंसते ।।
यह भी उनका त्याग है , संतई है
हम सदा उनके सदगुणों को निरखते ।।

दुकान के लाला जी भी सर खुजाते देखे 
मान अपमान के चक्कर में न आते देखे ।।
कह गया गर गुस्से में दो अपशब्द कोई
दूसरे दिन ही उससे हाथ मिलाते देखे ।।

देख दुनिया के हाल हम खुद से पूछे 
हम क्यों रहे आखिर ''शिवम" छूछे ।।
काश हमने भी पाये होते ये दिल 
आज बक्सा तिजोरी धन से होते ठूँसे ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 08/04/2019






तन्हा तन्हा -सी है अब
यह ज़िंदगी तुम बिन
कुछ यादें कुछ बातें
कुछ लम्हे तेरे वादे
कैसे भूल जाऊं ज़िंदगी
जो ज़ख्म तूने दिए थे
यह दर्द और बेकरारी
छाई जीवन में उदासी
है दामिनी तड़कती
घटाएं शोर करती
हवाओं ने रुख़ है बदला
आई यह रात काली
जो फासले हमारे दरमियान
वजह थी तेरी बेरुखी
मन में मेरे हरपल
यादें तेरी है बसी हुई
मैंने हर अपमान सहा
हर रिश्ते का मान रखा
जब चोट लगी दिल को
बिखर गए सपने सभी
बह गए इन आँसुओं में
इस दिल के सारे भरम
गलतियां तुम्हारी नहीं
विचार हमारे मिले नहीं 
चाह थी सात जन्मों की
संग जीने-मरने की
पर कुछ कदम भी हम
एक-दूजे के साथ न चल सके
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित





मान करोगे मान मिलेगा
अपमानों से अपयश होगा
स्नेह दया और करुणा से
पूरा विश्व नित वश में होगा
कर्मप्रधान होते जीवन में
मान अपमान कर्म से पाते
सदमार्ग पर जो चलते नित
गीत खुशी के मिलकर गाते
जीवन जीना बड़ी कला
छल कपट भरा जीवन
खरपतवार दूर हटाओ
खुशी महकती है उपवन
सकारात्मक सोच मान है
नक्कारा सोच अपमान
श्रम पसीना सदा बहाता 
वह पाता जीवन सम्मान
मानव जीवन है हितकारी
यह मेरा वह तेरा बर्बादी
क्या लाये थे क्या ले जावे
अहम प्रवर्ती है दुखदायी
स्व सोच कल्याण धरा हो
विश्वकुटुंबमय भावना हो
स्वस्थ स्वच्छ सब बने अपने
मङ्गलमय मन कामना हो
कर्म बढ़ाते मान अपयश
कुकर्म अपमानित करते
शुद्ध कर्म पर अड़े रहो बस
जगजीवन में वे नर हँसते।।
गोविन्द प्रसाद गौतम्
कोटा,राजस्थान।



जियो जिन्दगी ऐसी 
कि हर जगह मान हो
निकलो घर से तो
चेहरे पर मुस्कान हो

कमाई है 
जिन्दगी की, 
मान-सम्मान
बदनामी में तो
जी लेते हैं लोग
लिए जिन्दगी 
अपमान

पैसों से तोलो मत 
हैसियत इन्सान की
ईमान तो होता है 
दोस्तों , फकीर का 

मांगना है 
मौला से तो
ईमान मांगो
गुमनाम जिन्दगी 
तो अपमान की
कमानी है

मान - अपमान 
के फेरे में
मत पड़ इन्सान
नेक-नियत ही हो 
तेरा ईमान

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव 
भोपाल



विधा:सिंहावलोकन रूप घनाक्षरी

द्रौपदी चीर हरण के दृश्य को प्रस्तुत करती सिंहावलोकन रूप घनाक्षरी

वार जब हुआ कोई,
अस्मिता है तब रोई,
हुई है आज देखिये
मर्यादा यूँ तार तार।।

तार तार हुआ चीर,
कहे किससे ये पीर,
अपमान भरा तीर
हृद के हुआ है पार।

पार न पीड़ा का कोई,
देख दृश्य लज्जा रोई,
रखा हो किसी ने जैसे
हिय जलता अंगार।।

अंगार सा जले मन,
वेदना से हुआ सन्न,
जैसे कोई हथौड़े से
दिल पे करे है वार।।

स्वरचित
शकुन अग्रवाल!!
राऊरकेला





Mani Aggarwal नमन मंच-भावों के मोती
8/04/2019


विषय-मान/अपमान

कुछ दोहे ....

सत्कर्मों से मान है,बिना कर्म चाटूक्ति।
करनी के आधीन है,भव बंधन औ मुक्ति।।

भला न कर सकते सुनो,बुरा भी मन न होय।
पीर पराई निज लगे,नेक विचारै कोय।।

चाहत निज सम्मान की, पल में पूरी होय।
मान और को दीजिये,खुद पाओगे सोय।।

अच्छे को अच्छा मिले, भले परीक्षा होय।
बुरे कर्म का फल बुरा,भले देर ही होय।।

भाव न “मैं” का मन धरो,”मैं”दारिद्रय मीत।
सरल भाव जग श्रेष्ठ है,हर दिल लेता जीत।।

बनो वजह नहि अश्रु की,खुशी लुटाओ खूब।
आह!दुखे मन की न लो,खुशी जायगी डूब।।

जो बाँटे सो पाइये, मान और अपमान।
प्रेम बाँटते जाइये,अनुपम सुख की खान।।

मणि अग्रवाल©
देहरादून



सम्मान सद्व्यवहार से मिलता।
मान सदैव सदाचार से मिलता।
बहुत बात निहित रहती हैं इसमें
मान अपमान संस्कार से मिलता।

जैसा बोऐंगे हम वैसा ही काटेंगे।
बोंऐं बबूल तो आम नहीं खाऐंगे।
विश्वास करें लेन देन होता है ये,
देकर मान अपमान नहीं पाऐंगे।

मान अपमान की बात करूं क्या
यह सब कर्मों पर निर्भर करता है।
जैसे कर्म इस करेंगे दुनियां में हम,
सचमुच सम्मान इन्हीं पर रहता है।

कर कुकर्म क्या कभी मान पाऐंगे।
अभिमान करें सभी जान जाऐंगे।
मान अपमान नहीं समझें गर कुछ,
करें सुकाम सच स्वाभिमान पाऐंगे।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.




हे प्रभु जग छोड़कर
हम तुम्हारे हो गए
करना क्षमा जो भूल हो
हम तुम्हारे हो गए।

हर"मान"अब तुमसे है
हर साँस भी तुमसे सदा
कर लो स्वीकार रुकमणी
हम तुम्हारे हो गए।।

आस भी तुमसे सदा
विश्वास भी तुमसे सदा
स्वीकार लो श्रद्धा सुमन
हम तुम्हारे हो गए।।

जो भूल हो हमसे कभी
प्राणप्रिय करना क्षमा
है राखना चरणों में नित
हम तुम्हारे हो गए।।

पितृ घर'अपमान"को
प्रसाद फिर समझ लिया
मिले जो तुम पुण्य से
हम तुम्हारे हो गए।।
🌸🌸स्वरचित🌸🌸
सीमा आचार्य(म.प्र.)



कुछ तो लोक लाज शर्म कर लो 
ऐ देश की गद्दी पर बैठे विपक्ष के सत्ताधारी 
जो सैनिक राष्ट्र के लिये हुये कुर्बान 
उनकी कुर्बानी का मत करो ऐसे अपमान.

मत करो उन वीरों को अपमानित 
जिनके कतरे कतरे पर सम्पर्ण हैं निहित 
समस्त राष्ट्र जिन पर करता हैं अभिमान 
मत करो उन पर गलत शब्द बोलकर अपमान .

सेना और सैनिक का कर अपमान 
नेता अपने आप को समझते हैं बहुत महान 
उनकी वीरता को सरेआम करते हैं नीलाम 
भूल जाते हैं उनकी निःस्वार्थ देशभक्ति को देना मान .

छोड़ देते शब्दों के तीखे बाण 
करते हैं गली मोहल्ले तरीके की घटिया राजनीति 
भूल जाते मर्यादा और भाषा 
भूल जाते हैं सेना के परिवार का मान और सम्मान.

इस कुरीति को हमें रोकना होगा 
सेना और सैनिक के मान के लिये लड़ना होगा 
ऐसे लोगों को देशद्रोह के लिये जेल में भरना होगा 
इनको हमें फांसी के फंदे पर लटकाना होगा .
स्वरचित:- रीता बिष्ट




विधा- कविता

चाहे मिले मान ,
चाहे अपमान हो।
समता में हमको ,
सदा ही रहना चाहिए।।
हो अज्ञानी या कि
ज्ञानवान हो,
ईश्वर के ध्यान में
सदा रहना चाहिए।।
दुख सुख हो,
या हो धूप छाँव।
शहर में रहें या,
छोटा सा गांव हो।
मन की मौज में
सदा ही रहना चाहिए।।
चाहे मिले मान
चाहे अपमान हो
समता में हमको
सदा ही रहना चाहिए।।

जयंती सिंह



न मान से अंहकार हो
न अपमान में निराश हो
सुंदर सबके विचार हों
दुनिया में विश्वास हो
निःस्वार्थ भाव का कर्म हो
प्यार से सतकर्म हो
मान और अपमान
मन की भिन्न अवस्थाएँ
जब मन अंकुश में हो
मान मिले और प्यार मिले
जब मन पर अंकुश न हो
अपमान और तिरस्कार मिले
मन पर करो नियंत्रण
पाओ प्यार का आमन्त्रण
प्यार दो सद्भाव दो
इस हाथ दो उस हाथ लो
सत्य पर अडिग रहो
जीवन को नव राह दो
मान और अपमान से दूर होकर
कर्म कर कर्तव्य पथ पर

मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित




नहीं हसी ठिठोली जीवन अपना , होता है ये तो एक संग्राम |

रैन दिवस बस यही मन में चलता , हो न जाये कहीं अपमान |

यहाँ रोज दिखावा चला ही करता , मिलता मन को नहीं आराम |

हर कोई यहाँ पर इतना ही चाहता , कभी भी घटे न उसका मान |

जब काम क्रोध मद लोभ न छूटता , तब होना ही है गलत काम |

स्वाभिमान से जो जीता रहता , वही वस रख पाता अपना मान |

जो मौका मतलब मक्कारी जपता , उसका कभी रह न पाता मान |

सम्मान उसी का है जग में रहता , जो खुद औरों का रखता मान |

अब आया नया जमाना नयी सोच का , रहता दिखावे में ही ध्यान |

काम निकालकर आगे बढ़ने का , अब इसी मंत्र की है पहचान |

अब भला बुरा कुछ भी नहीं होता , बस काम चलाना ही है शान |

मानव तो नेता या अभिनेता होता , रहा मान का भला क्या काम |

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश .




"मान/अपमान"
कविता
🌹🌹🏵️🌹🌹
मान सम्मान की चाहत:---
चाहने से क्या यह मिल पाता है,
आपके लिए हो प्यार किसी का
वो मान के रुप में मिल जाता है।

हम जो बाँटें प्रेम सभी को
सद्भभाव से जीत ले मन को
वही आइना बन जाता है,
स्वयं का व्यवहार ही ,
प्रतिबिम्ब के रुप में..
आपको मिल जाता है।

स्वयं को श्रेष्ठ प्रमाणित 
करने की दौड़ में.....
अपना मान स्वयं खो देता है
दबदबा अपना दिखाने कि खातिर,
अपना ही आपा खो देता है
निज तिरस्कार को ही ....
आमंत्रण दे जाता है।

मान मिले चाहे अपमान मिले
संतुलन न खो देना मन का..
स्वभाव स्वयं का झलक जाता है,
संयम और सदाचार के पथ में
चलकर ही ......
मनुष्य मान का हकदार हो जाता है।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल





मान-अपमान अहं सवाल
किसकी हार किसको माल?
दोनों ही साथ-साथ चलते हैं, घर आँगन में पलते बढ़ते हैं ।
बडे़ की अनुज्ञा का पालन मान,
छोटे की अवज्ञा बडो का अपमान।
छोटे-बड़े दुनियाँ वालो से सावधान,
ऊँचे चढा़ना मान गिराना अपमान ।
ये हर चौराहे -गलियारे खडे़ हुए हैं
अपनी बातें मनवाने अडे हुए हैं।
पीढी़ बदल गयी कोई नहीं सुनते हैं।
क्या नेता तो जनता दोनों तनते हैं।
रिश्तों में हर जगह मान -अपमान,
झूठी मान मर्यादा से महल विरान।
संत बन चले दुनियाँ में समभाव,
उनका सब तरफ होता मान-सम्मान ।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा
'निश्छल'

विषय - मान /अपमान
विधा - विधाता छंद ...(1222 1222 1222 1222)....
***********************************

करोगे मान औरों का हमेशा मान पाओगे.
किया अपमान ग़र सच मान लो अपमान पाओगे.

करो माँ-बाप की सेवा तो ये जीवन सुखद होगा.
न दोगे मान जो इनको सुनो पल पल दुखद होगा.

बड़े छोटे सभी को आप नित सम्मान ही देना.
सराहे आप जाओगे सदा ही जान ये लेना.

शराफत से बड़ा कुछ भी नहीं है काम दुनिया में.
जहालत से बड़ा कुछ भी नहीं इल्ज़ाम दुनिया में.

गुमाँ किस बात का प्यारे न कुछ भी साथ जाता है.
रहा बर्ताव कैसा आपका बस याद आता है.

अगर सम्मान की है चाह तो सम्मान कर लेना.
नहीं अपमान करना तुम सभी का मान कर लेना.

*********************************
#स्वरचित 
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.




विधा-हाइकु

1.
राष्ट्रीय गान
तिरंगा बना शान
देश का मान
2.
करें सम्मान
न करो अपमान
माता पिता का
3.
गुरु का ज्ञान
मिटाता अंधकार
बढ़ाता मान
4.
मान सम्मान
सभा बीच विद्वान
बढाता शान
**********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा




विषय मान/अपमान
1
प्यारा तिरंगा
हवा में लहराये
स्वदेश मान
2
नये उद्दोग
बढ़ी अर्थव्यवस्था
मान हमारा
3
मिशन शक्ति
समृद्धिशाली देश
बढ़ाता मान
4
क्रूर आदतें
मिलता अपमान
जीवन व्यर्थ

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली



"शीर्षक-मान/अपमान"
मान रखे अपने कुल का
कभी न होने दे अपमान
नारी का अपमान ना करना
सदा करना उनका सम्मान।

पति पत्नी है एक समान
कभी न करें एक दूजे का अपमान
मान रखे हम दूसरे का
तो हमें मिले स्वयं सम्मान।

अनुपम है यह जीवन हमारा
कभी न भूले हम सदाचार
स्पर्द्धा नही है जिंदगी हमारी
मान अपमान को करें किनारा।

सहज सरल हो जीवन हमारा
श्रेष्ठता, लघुता का न रखे ध्यान
मान अपमान तो आनी जानी है
इसका न हो जीवन पर प्रभाव।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।



विषय :- मान/अपमान

बहुत हुआ अपमान सेना का,
बहिष्कार करो ऐसे नेता का।
जिसने दिया बयान अनर्गल,
मुकदमा उस पर देशद्रोह का।
कोई भी आए मुंह उठाकर,
कर जाए अपमान सेना का।
ऐसा संविधान किस काम का,
ना बचा पाए सम्मान सेना का।

जय हिंद की सेना 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

विषय - मान/ सम्मान

मान करोगे सबका गर
सम्मान मिलेगा सबका
मात पिता का मान करोगे
सुख पाओगे मन का
गुरु की सेवा से बढ़ कर
कोई काम नही है दूजा
ज्यों मन्दिर में करने जायें
आरत वंदन पूजा
देश की खातिर मर मिटने की
ज्योत जलायें मन में
स्वाभिमान से जी लें
चाहे फिर मर जाये पल में
ईश्वर के आराधन में
बस जीवन अपना बीते
वरना अंत समय आएगा
हाथ रहेंगे रीते
बच्चों को हम सबक सिखायें
मान करें वो सबका
इज्जत देने से मिलती है
मिलता प्यार सभी का

सरिता गर्ग
स्व रचित



मान सम्मान

अब सम्मान,
कहां रिश्तों में ।
गरिमा टूटती अब,
किश्तों में ।
बदल रही,
है अब सोच।
मान सम्मान,
अब न लोच।
कौन करे अब
किसी का मान।
बदला पूरा,
सकल जहान।
कहां है वो,
अब संस्कार ।
पल में भूलें,
किये उपकार।
देखे इंसान,
अक्सर मरते,
बच्चे जब,
मां बाप पे बरसें।
मान सम्मान की
हदें तोड़ रहे।
मां बाप को
वृद्धाश्रम छोड़ रहे।
शिक्षकों का,
सम्मान खो गया।
गुरु भी अब,
आम हो गया।
अखबार में नित्य,
मान भंग हो।
यूं मानव दैत्य के,
बीच जंग हो।
औरत का भी
मान खो गया।
अब नंगापन
आम हो गया।
है आंखों में,
न शर्मो हया।
जमाने को यह
क्या हो गया।
कौन सी शिक्षा,
कैसी आजादी।
संस्कारों की,
धज्जियां उड़ाती।
कल क्या होगा,
सोच घबराउं।
बच्चिओं को आखिर,
कहां ले जाऊं।
कौन है आखिर,
इसके जिम्मेदार।
क्यों मानवता,
अब दागदार।
दया भाव नहीं,
फ़रिश्तों में।
गरिमा टूटती अब,
किश्तों में ।
गरिमा टूटती अब,
किश्तों में ।

जय हिंद
स्वरचित. : राम किशोर, पंजाब ।




घर -आँगन में जब ,
बिटिया जन्में,
खुशी और गम के,
विचार हों मन में,
सर्वगुणों की ओढ़ चुनरी,
कुल का वो मान बढ़ाती,
पिया का घर अपनाकर,
उस घर का वंश बढ़ाती,
वही बेटी जब भूले राह,
माँ-बाप की निगाहें झुकाती,
पीकर घूँट अपमान का,
माँ जीते जी मर जाती,
मार्ड़न युग की नारी सुन,
बढ़ा कदम चाँद की ओर,
संस्कारों को बना हथियार,
बढ़ती जा प्रगती की ओर।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
8/4/19
सोमवार

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