Wednesday, April 24

"आँचल"24अप्रैल 2019

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                                           ब्लॉग संख्या :-366

मंच को नमन

दिनांक -24/4/2019
विषय -आँचल

सच कहना चाहती
ज़िंदगी बेरहम लगती
नित परीक्षा लेती
जिम्मेदारियाँ देती
सुकून लूट लेती
दिन रात समान
फिर भी घमासान
माँ !
मुझे बाँहों में भरकर
ममत्व लुटा दो
वहीं स्वच्छंद
बचपन लौटा दो
अपने आँचल के तले
 एक बार मुझे छिपा लो

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
संतोष कुमारी ‘संप्रीति ‘
स्वरचित
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नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक     आँचल
विधा       लघुकविता
24  अप्रैल,2019  बुधवार

ममता का आँचल है माता
सुख दुःख में है वही सहारा
गर्मी सर्दी पीड़ा सहती नित
वह शिशु की होती आधारा
        माँ वसुधा के अंचल पर
        खेले कूदे मस्ती करते
        जन्म मृत्यु पाते भू पर
        जैसा करते वैसा भरते
शस्यश्यामल माँ का आँचल
जीवन के वह हर सुख देती
पालनपोषण वह करती है
हर विपदा को माँ हर लेती
        आँचल होता है सुखकारी
        नित पावन छैया में सोते
        स्नेह वात्सल्य माँ देती है
        कभी हँसते तो कभी रोते
माँ शारदे कृपा आँचल से
गीत गजल काव्य को लिखते
सत्साहित्य सद प्रेरणा से
नए नए रंगों को नित भरते
         माँ का अंचल है अवलम्बन
         संस्कारित वह नित करती
         पुत्र प्रगति हित क्या न करती
         वह जीवन में हर दुःख हरती।।
स्व0रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

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सुप्रभात"भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन,🌹
24/04/2018
    "आँचल"
1
छुपा शैशव
डर भी छूमंतर
माता आँचल
2
मन की शांति
आँचल में मिलता
गर्व मातृत्व
3
आँचल में है
शैशव की दुनिया
सर्वस्व सुख
4
माँ का आँचल
दुनिया भूलाकर
चैन से सोया
5
पृथ्वी आँचल
जीवन को सँवारा
ये हरियाली

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल

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।। आँचल ।।

घाव घाव ही मिले जीवन के हर मोड़ पर
जब से आया हूँ माँ का आँचल छोड़ कर ।।
एक माँ का आँचल जो बचाये हर बला से
माँ को मानो सदा ईश्वर सम जोड़ कर ।।

पूछो उस बच्चे से जो इस सुख से बंचित है
स्नेहमयी माँ की ममता से जो नही सिंचित है।।
एक आह एक टीस मिलेगी उसके हृदय में
क्यों न हमें उस आँचल की फिक्र किंचित है ।।

माँ का आँचल ईश्वर का हम पर वरदान है
माँ का आँचल दुनिया में हरदम महान है ।।
माँ के आँचल को समझो जानो ''शिवम"
जन्नत से भी ऊँची इस आँचल की शान है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 24/04/2019
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नमन मंच
दिनांक .. 24/42019
विषय .. आँचल
विधा .. लघु कविता
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......
जब याद करोगे तुम मुझको, तब ही मै वापस आऊगाँ।
इल्जामो से तप कर तेरे, कुन्दन बन कर दिखलाऊँगा ।
....
मन कितना भी बेचैन करे, मै दर्द नही दिखलाऊँगा।
तेरी चाहत को सीने से , बाहर ना मै ले आऊगाँ ।
....
कोशिश करता हूँ बार कई, पर अब की ना पछताऊँगा।
चाहत और मर्यादा के बीच, सम्मान की लाज बचाऊँगा।
....
अपनी नजरों मे गिर कर के, मै कैसे प्रीत निभाऊँगा।
गर शेर गिरा नजरो से तो, फिर कैसे मै जी पाऊँगा ।
.....
तुम पढो मेरे भावों के मोती, आचँल मे छलकाऊँगा।
कुछ अपनी बात बताऊँगा, मै तुमको याद दिलाऊँगा।
.....
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
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सुप्रभात
भावों के मोती!
24/4/2019
 विषय-"आँचल"

मेरी कलम से...

मां का आँचल गगन समान-
इसमें प्रेम,शांति,सम्मान,
पावन, विस्तृत फलक सजीला-
संतति पर सज्जित  वितान.

इसकी महिमा अपरम्पार -
तन-मन से जुड़ते हैं तार,
कष्टनिवारक,नेह से भरा-
सारी खुशियों का आगार.

दुग्धपान शैशव की घटना
ढांक इसे दे मीठा सपना
मां ने सबको गले लगाया
ऐसा दिल देने ना दुःखना

'आँचल' का चंदोवा तान-
मां रखती बच्चे  का ध्यान
यह जग की बेमोल धरोहर
सचमुच है अतुल्य महान.

        ___
#स्वरचित कविता
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
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नमन मंच 🙏
सुप्रभात मित्रों व गुरूजनों 🙏😊
दिनांक- 24/4/2019
शीर्षक-"आँचल"
विधा- कविता
***************

ये हरा-भरा आँचल,
जब धरती में लहरायें,
जन-जन को सुख देता,
मन को खूब हर्षाये |

प्रकृति की गोद हरी रहे,
संकल्प ये हमें लेना होगा,
वृक्षारोपण सभी को कर,
माँ का आँचल भरना होगा |

धरती माँ का ये आँचल,
हमें सुरक्षित करता है,
हर माँ के आँचल तले,
सुख का सागर बहता है |

इस आँचल की छैया तले,
जीवन सुख से गुजर जाये,
धरती माँ के सीने से लग,
प्रकृति का सुख पा जायें |

   स्वरचित *संगीता कुकरेती*

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🙏मंच को नमन🙏
आदरणीय गुरूजन को नमन🙏🙏🌹🙏🙏
विषय-आँचल(२४-४-१९)

माँ बहुत याद आता है
तुम्हारा #आँचल
आँचल जो अपने
अधरों पर
मधुर मुस्कान लिए
आता था
ढंक कर अँखियों को जो
परियों के देश
 ले जाता था
जिंदगी के बोझ से
झुक जाते हैं
जब मेरे काँधे
तब बरबस ही
 याद आता है
तुम्हारा आँचल
माँ बहुत याद आता है
तुम्हारा आँचल ।

आँचल जो उमङकर बदरी की तरह आता था
ममत्व का अहसास कराता था
चूमकर मुझे
राह नयी किरण की
तकना सिखाता था
उसूलों पर अपने अडिग रहना पाठ पढाता था
चकाचौंध से दुनिया की
बोझल हो जाती हैं जब मेरी आँखें
तब बरबस ही
 याद आता है
तुम्हारा आँचल
माँ बहुत याद आता है
तुम्हारा आँचल ।

    स्वरचित
  -सीमा आचार्य-(म.प्र.)
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24/4/2019
नमन मंच, गुरूजनों, मित्रों।
           आंचल
जब कभी भी कड़ी धूप से हम आते,
प्यास से कंठ सूखता होता।

मां तब हमको अपने आंचल से,
पसीना पोछकर पानी पिलाती।

मां के आंचल के छांव तले,
पले, बढ़े हम बड़े हुए।

मां के आंचल का,
 कोई कर्ज चुका नहीं सकता।
मां के जैसा कोई दूसरा,
और हो नहीं सकता।।

स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
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दिनांक-24/04/2019
दिन-बुधवार
शीर्षक-आँचल
विधा-छंदमुक्त

माँ का आँचल
सुख की छाँव
गहन निद्रा
न दुख न चिंता
रक्षा कवच
लहराता आँचल
बादलों का रूप
प्रेमिका का स्वरूप
झूमता इठलाता
कभी छुप जाता
कभी प्रकट हो जाता
नये नये रूप दिखाता
पत्नी का आँचल
प्यार भरे पल
कभी पंखा बन जाता
कभी तौलिया
कभी आँसू पोछता
कभी पसीना
कैसा अंगवस्त्र
ममता का रूप
एक आँचल
कितने रूप

~प्रभात

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नमन मंच,भावों के मोती
24/04/19 बुधवार
विषय-आँचल
विधा-हाइकु
☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️
घर न घाट
नन्हीं सी छुटकी का
आँचल मैला👌
*********************
कौन करता
धरती का आँचल
मैला-कुचैला👌
👍👍👍👍👍👍👍
माँ का आँचल
सदैव सुरक्षित
रक्षा कवच👌
💐💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
   बसना 36गढ़
💐💐💐💐💐💐💐
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तिथि - 24/4/29
विधा - कविता
विषय - आँचल

           माँ का आँचल

माँ तेरा आँचल भुला  न पाऊँ
जिस  छाया  में जीवन  बीता
तुझ बिन  मेरा अस्तित्व  नहीं
तू  मेरी  रामायण  और  गीता
तेरे  आँचल ने जो काम किये
तुझको   कैसे   बतलाऊँ   माँ
मुझे प्यार  भरी थपकी  देकर
गोदी   अपनी   दुलराया   माँ
कभी  आँसू  मेरे   पोंछ  दिए
उस   भीने  भीने  आँचल  से
कभी  परी  कथा  सुनाती थीं
पंखा झलकर उस आँचल से
कभी खेल खेल में  जब तेरी
गोदी  में  मैं  छिप  जाती  थी
झट आँचल से  ढक लेती थी
नजरों   से  मुझे  बचाती  थी
जब  चली  पराये  घर मैं  माँ
अपने  दामन   में  थामा  था
रखना  वो  घर  आबाद सदा
तेरी  ममता ने  समझाया था
अब  आंसू  जब भी आते हैं
तेरा आँचल कहीं न पाती हूँ
इन नयनों की  बरसात सदा
नयनों  में  ही  पी  जाती  हूँ
तू  चली  गई  है  छोड़  मुझे
अब तुझसे इतना ही कहना
तू   देव  लोक  से  ही अपने
आँचल की  माँ खुशबू  देना

सरिता गर्ग
स्व रचित
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सुप्रभात
भावों के मोती
'आँचल'
24/4/19
प्रकृति सरीखी मां
दूसरी कहाँ?
जरा जो आँचल लहराया
गुलमोहर से दामन भर आया।
बासंती पुरवाई क्या छाई
मदमस्त बौरों ने समा महकाया।
प्रकृति के आंचल में छुपे
फल, फूलों ने
सारे जग को हर्षाया।
जरा सी तपन क्या हुई
माँ ने आँचल से
रिमझिम बूँदो को बरसाया।
दिनकर ने जब अपनी गर्माहट से
मन को बेकल किया
मां के आंचल से शीतलता
बिखेरता झिलमिल चाँद
नज़र आया।
प्रकृति से परे जब
अपने घर आया
राह ताकती अपनी मां
के आँचल में आ सुकून पाया।
💐💐💐💐💐
स्मृति श्रीवास्तव
सूरत
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नमन मंच
"भावों के मोती"
दिनाँक -24/4/2019
विषय-आँचल

जब जब ये आँचल
लहराया दुनिया का हर सुंदर भाव
उतर आया ।

ममत्व वात्सल्य से भरपूर ये माँ का आँचल है
छुपकर इसमें इंसा
हर गम भूल जाता ।

प्यार की छलकती  ये गागर बहन का
स्नेह लुटाता आँचल है ।

तेरा हाथ थाम लेता
साहस ,धारण कर
धैर्य हर परिस्थिति में हर वक़्त तेरे साथ बन दोस्त देता साथ ये आँचल।

जब हो अन्याय ,सहन शक्ति दे जबाब हो
असहाय बन दुर्गा
काली नर मुङो की पहन माला लहू से लाल
कर लेती वो अपना
आँचल ।

बन जीवन संगिनी
तेरी हर खुशी हर गम को गले लगती
कदम ताल से तेरे
साथ चलती जाती
अपने आँचल की हर खुशी वारती जाती ।

नारी का आँचल हर हाल में प्यार
लुटाती बन माता,
भगिनी,भार्या,
सखी हर किरदार में  तेरे गमो को अपनाती, तेरे जीवन मे भरती
कोमलता,तेरे हर अहसास को गले लगाती ।

भर तुझमे नई ऊर्जा शक्ति तुझे
जीना सिखलाती
फिर क्यों उसके आँचल को नोंचता, क्यों उसे
मसलता दाग लगाने से भी पीछे न हटता क्यों क्यों
 क्यों ????

स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर

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नमन मंच  भावों के मोती
24/04/19
आँचल
***
प्रभु!आज स्वार्थी होकर
दोनों कर  जोड़  कर
माँगती वरदान तुमसे
मेरी अरज सुन लो
इतनी शक्ति ,इतनी भक्ति
मेरे आँचल में भर दो ,
भूखे के  निवाले का कारण बनूँ
धन अभाव मे  कोई न मरे
गरीब के बेटी के हाथ पीले कर सकूँ
प्रत्येक  बच्चे को
शिक्षा का अधिकार दे सकूँ ।
अपने आँचल में समेट  लूँ
सारे जमाने के गमों को
जीवन की दुश्वारियाँ हो गर सामने
प्रेम का आँचल  की छाँव कर सकूँ।
प्रभु इतनी शक्ति से
मेरा आँचल भर दो ।

स्वरचित
अनिता सुधीर
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ज़रा सा आंचल गिरा के तुमने।
अजब कयामत है हम पे ढायी।

नज़र पड़ी जब  तुम्हारे रुख पे।
कसम खुदा की  न नींद आयी।

हंसी लबों  की  ना  जान ले ले।
मुश्किल से जां मे जां है आयी।

आंखें बिजली, बनीं है  बादल।
तुम्हारे  काजल की  रोशनायी।

खुशबुओं में  नहा के  निकली।
हवाएं  जैसे  ही  तुम हो आयी।

ये नर्मो - नाज़ुक  बवाल  ऐसा।
गई  है , हैरत  में  पड़  ख़ुदायी।

लगा कदम जो रखा मेरे घर मे।
हूर कोई आंगन  उतर है आयी।

                     विपिन सोहल

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1भा.24/4/2019/बुधवार
बिषयःःः #आंचल#
विधाःःःकाव्यःःः

माँ शारदा आश्रय मिल जाऐ
बस तेरे आंचल की छांवों में।
हो बुद्धिदेवी की क्षत्रछाया तो,
मै पडा रहूँ माँ के ही पांवो में।

मातृभूमि का आंचल हो सोने।
मुझे क्या कुछ जीवन में खोने।
है प्रकृति के आंचल की छाया,
 नहीं पडे जरूरत हमको रोने।

ममता मिलती माँ के आंचल में।
समता दिखती माँ के आंचल में।
माँ तो सबकी ही मां जी होती है,
क्षमता दिखती माँ के आंचल में।

है  आंचल बहुत  बडा वसुधा का
नहीं कमियां सारी दुनिया समाई।
ध्यान रखें मैला न होने दें आंचल,
पर्यावरण प्रदूषित न होने दें भाई।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
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1भा.24/4/2019/बुधवार
#आंचल# काव्यः ः

नमन मंच को
दिन :- बुधवार
दिनांक :- 24/04/2019
विषय :- आँचल

नवजात कली
खिलने से पहले है मुरझाई..
उस आँचल को..
जरा भी दया रहम न आई..
फेंक दिया कूड़ेदान में..
मरने को...पर मौत निगोड़ी न आई..
तड़फ रही कली मासूम..
करे रूदन चित्कार..
कैसा ये जमाना आया..
कहाँ गया वो आँचल का दुलार..
संवेदनहीनता का परिचय..
देती मानवता आज..
स्व अंश को नष्ट करे वह..
कहाँ बची है अब लाज..
क्या गुनाह उस मासूम का..
क्यों मिलता सिर्फ बेटों को ताज..
कहाँ गया वह..
करूणामयी ममता का आँचल..
तार-तार हुआ अब...
बेटे की चाहत में वह आँचल...

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

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भावों के मोती
24/04/19
विषय आंचल

नीरव निशा का आंचल थामे देखो मंयक
धरा को छूने आया अपनी रश्मियों से ।

मचल मचल लहरें  सागर के दिल से
दौडती है किनारों से मिलने कसक लिए
छोड कुछ हलचल फिर समाती सागर में
हवाओं में फिर से कुछ नई रवानी है
दूर क्षितिज तक फैली निहारिकाऐं
मानो कुछ कह रही है पुकार के हमें
यूं ही बिखरा निशब्द मेला बहारो का
गर्म मौसम अब समझाने लगा नये अर्थ ।

नीरव निशा का आंचल थाम देखो मंयक
धरा को छूने आया अपनी किरणों  से ।
स्वरचित

                  कुसुम कोठारी ।
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नमन भावों के मोती
दिनांक : - २४.४.०१९
विषय  : - आँचल
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आँचल

मरीचिका है जिंदगी
हर पल छलती रहती है,
खुशी - गम की लहरों पर
हमें चलाती रहती है।

माँ तेरे आँचल के छाव में
मैंने कितना कुछ  सीखा था,
नहीं थी वहाँ कोई शिकन
चारों तरफ ममत्व का पेहरा था।

तुम्हारी सिखाई हर सीख
मुझे याद है,
घबराते मेरे मन पर
तेरा विश्वास भरे
हाथ के छाँव याद है।

फिर से ले ले माँ मुझे तुम
अपने आगोश में,
थक गई हूँ दौड़ - दौड़कर
लगा कर सीने से मुझे
छुपा ले अपने आँचल में।

स्वरचित : - मुन्नी कामत।
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नमन सम्मानित मंच
       (आँचल)
        ******
आँचल का प्रश्रय अचला पर,
  प्राकृतिक    उपहार   अनूठा,
    किन्तु उसी आँचल से पौरुष,
      पल   प्रतिपल  रहता  रूठा।

नील गगन के आँचल में नित,
  करते  उन्मुक्त  विहार  विहग,
    बसुधा के  हरिताँचल में चारु,
      विचरण करते विविध चराचर।

रात्रि  के   आँचल   में  संध्या,
  नित   विलीन  होती,  हो मौन,
    गतिमयता   चंदा    में    होती,
      नहीं   जानता   भू   पर  कौन।

जीवन  के  अवसान  उपरान्त,
  दुख-दर्द  निवारक मृत्यु आँचल,
    भौतिक  नश्वर   गात  से  मुक्ति,
      जीवन   नवल   प्रदायक  चारु।
                             --स्वरचित--
                                (अरुण)

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नमन मंच ""भावों के मोती "
24- 4-2019
शीर्षक-आँचल

मानव छंद में,,,,( 14 + 14 मात्रा
माँ की ममता
***********
माँ तुम कितनी न्यारी हो /
मुझको सबसे प्यारी हो //

ममता - #आँचल लहराए,
 तुम दयामयी नारी हो//

कितने दुख के झंझावत,
 हिम्मत, तुम ना हारी हो//

तुम दया क्षमा करुणा की,
पुष्पित सुन्दर क्यारी हो //

तुम देव वंदिता  जग में,
शिशु की प्राण पियारी हो //

तुम गर्भधारणी ,,,माते,!
जग सृष्टा की आधारी हो //

ब्रजराज नमन करते है,
 यशुदा मातु, दुलारी हो //
**********************
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
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नमन मंच
आज के विषय पर मेरी प्रविष्ठि
- -- ------- ----- ----- ------ ------
         *आँचल*
-;--------------------------------;-
भावो का आँचल है ये
गीत गजल मुक्तक से
चाँद सितारे टंके हुए
छंद-अलंकारों के जेवर
इस आँचल में सजे हुए

कभी लहराता गीतों में
कभी इठलाता मुक्तक से
कभी कभी तो गूढ़े रंग में
डूब गजल बन जाता है

छोर हाइकु का है तो
है उठाव पिरामिड का
कभी कभी दो दोहों की
बांधनी बंध जाता है

कितने कितने अलंकार से
सजे कलम के शिल्पकार
नाना भावों के मोती में
लगाते हैं जो चार चाँद

भावों का ये सुंदर आँचल
सदा यूंही रंगीन रहे
नग्मो, गीतों,गजलो ,भजनो
की लहरों से आलोड़ित रहे।

          डा.नीलम.अजमेर
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नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹
24-4-2019
विषय :-आँचल
विधा :-पद्य

रजनी  बाला ने आँचल छिटका ,
बिखर गए  मोती माणिक सारे ।
पगली  नहीं  संभालती आँचल ,
लूटे    गगन   ने  सारे    सितारे ।

शांत   झील   के दर्पण  में देखी ,
बिखरे     तारों     की   सुंदरताई ।
आँचल असित ले  निशा बावरी ,
उतर व्योम   से  धरती पर आई ।

देख   गगन   से खद्योत   सितारे ,
ढूँढ  रही   है   उपवन  प्रांतर  में ।
पकड़े   बाँधे   पल्लू   में   उनको ,
आँचल खुल  जाता सीमांतर  में ।

चाँद   को   सूझी  एक  ठिठोली ,
छुप  गया  पीछे  गगन के जाकर ।
रूप   अपने  पर लज्जित  हो गई ,
सूर्य  रश्मियाँ   का  देखा आकर ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
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नमन भावों के मोती ,
आज का विषय , आँचल,
दिन , बुधवार ,
दिनांक, 24, 4,  2019 ,

आँचल जब  लहराता  है  वसुधा  का ,
आसरा  मिला  करता जड़  चेतन को |
आँचल हरा भरा सा जब हो खेतों का ,
खुशी का खजाना मिलता कृषकों को |

आँचल  होता  मन  भावन  ममता का ,
ये  आश्रय  दिया करता  हर  सुख  को ,
दुनियाँ  इक  सागर  है  मरूस्थल  का ,
जल बरसाया करती ममता प्यासे को |

आँचल  लक्ष्मी   वाणी  माँ  काली   का ,
आतुर  रहता  है  जगत  के  पालन  को ,
अवतार  ये   माँ  के  विभिन्न  रूपों  का ,
होता  असहायों  का  सहारा  बनने को |

नहीं  मैला  हो  पाये आँचल  नारी  का ,
दायित्व  मिला  है  हर  मानव धारी को ,
पावन  रूप  है  भारतीय   सभ्यता  का ,
इज्जत  देते   हैं   हम   हर  औरत  को |

जिस आँचल ने निर्माण  किया तन  का ,
कभी  ठेस नहीं लगायें  उसके  मन  को ,
एहसान बड़ा है  हम  पर   वसुन्धरा का ,
न्योछावर हों इसका अस्तित्व बचाने को |

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
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24/4/2019::बुधवर
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विषय ---आँचल
****************************
सुनो!!!!
जिंदगी के
हर मोड़ पर
देंगे इक दूजे का साथ.....
हर ख़ुशी हर ग़म
हरपल साथ होंगें हम
लेकर हाथों में हाथ......
उम्र के इस पड़ाव पर
अधूरे सपनों के बिखराव पर
चलता है अपना सफर......
हो रौशनी या अँधेरे
ऊँचाइयाँ या गहरे घेरे
सिर्फ साथ तेरा हो हमसफ़र.....
आओ चलें उस सफर पर
जहाँ आकाश
झुक जाता धरती पर.......
रवि की सुनहरी किरणें
सजा देती हैं
सिंधु का भीना आँचल....
मचल जाते जहाँ
रुई के फाहों से
श्वेत श्याम बादल....
पार हो जायेगी
 जिंदगी की
ये अंतहीन डगर......
तूफानों से लड़कर भी
मिलेगा साहिल
सुन ऐ!!समन्दर......
            रजनी रामदेव
               न्यू दिल्ली
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भावों कूमोती मंच को नमन ।
दिन बुधवार:-24/4/2019
विषय :-आंचल ।विधा :-कविता
माँ के आंचल का छोर नही
ममता की कोई को र नही।
जब भी संकट कोईआता है
मां दौड़ी झटपट आती है ।
सारे दुःख संकट झेल स्वयं
सबको सीने से लगाती.है ।
बारिश में आंचल छाता बन
संतानों पर तन कर छाताहै
आतप मे  भी धूप बचाने को
वह ठंडी छांव बन जाती है ।
आंचल तो मां किया छाया है
प्रतिबिम्ब जहां ममता होती
उसकी समता कर सके कौन
दूजा न कोई उसके सम.है ।
स्वरचित :-उषासक्सेना
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आंचल आज का विषय,
ग़ज़ल पेश है साथियों नमस्कार।

नंद लहराओं रात हंसेगी,
पत्थरों गांओं रात हंसेगी।।१।

दूधिया आंचल रात के सीने,
सपने जगाओं रात हंसेगी।।२।।
सागर की बांहों में चांद हैं,
ऐ हवा गाओं रात हंसेगी।।३।।
आंखों में बिजली के शरारें,
पलकें उठाओं रात हंसेगी।।४।।
कैसी खुशबू हवा लाई है,
फूल तुम महको रात हंसेगी।।५।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।
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II  आँचल II
विधा: हाइकु

१.
माँ का आँचल
पी कर हलाहल
दे सुधा जल

२.
माँ का आँचल
भाग्य अरुणाचल
बदले खल

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२४.०४.२०१९

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दि- 24-4-19
विषय--  आँचल
सादर मंच को समर्पित -

  🍑🌱🌸    गीतिका     🌸🌱🍑
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         ☀️    आँचल  माँ का   ☀️
         🍎🍀🐥     🐥🍀🍎
          आधार छंद--हरि  गीतिका
 मापनी - 2212 , 2212 , 2212 , 2212
         समान्त -  आन  , पदान्त -  से
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🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒

माँ तो सदा पालन करे हम को गहन पयपान से ,
है फर्ज अपना भी रखें उसको सुखी  संज्ञान से ।

नित खून से सींचे हमें , आँचल भरा  है प्यार  का ,
है त्याग की मूरति मही , गम सह जुटे जी,जान से।

अपना न रखती ध्यान वो,परिवार की खातिर महज ,
सब को खिलाती है प्रथम , खाये बचे  सन्तान से ।

खटती रहे अनथक सभी की सोचती घर द्वार में ,
वात्सल्य से परिपूर्ण कर चिन्ता करे अनुमान से ।

जो जन्म से ही है पराई फिर रहे आश्रित  सदा ,
बेटे पढा़ परिवार सुख दे , खुद पराश्रित जान से ।

पीती रहे अपमान को , उफ़ तक नहीं करती कभी ,
जिन्दा रहे परिवार को , मर  कर उठे दल्लान  से ।

जननी सदा पर्याय है जप,त्याग औ ' बलिदान की ,
गाथा यही माँ की  अमर  जीवन लुटे ईमान  से ।।

         🍎🍀🐥🍑🌴🌸🍒🌹

🍑🍀 ** ....  रवीन्द्र वर्मा, आगरा
         मो0-- 08532852618
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सादर नमन

     " आँचल"
माँ तेरे प्यार की जरूरत,
आज भी है मुझे,
तन्हा हूँ बहुत,
गोद का सहारा दे दे मुझे,
तेरे आँचल की छाया की,
आज भी हकदार हूँ,
अपनों की भीड़ में भी,
तन्हाई के द्वार हूँ,
हर सुख पाया मैंनें,
 तेरे आँचल के तले,
दिल में है अहसास,
दूर चाहे तू हो भले,
समझी अहसास पूर्ण नारी का,
मेरी गोद में नन्ही परी जब आई,
देख प्यारी सूरत उसकी,
आँचल में खुशियाँ समाई,
बचपन से उसके यौवन तक का सफर,
यादें सारी मन में बसाई,
उढ़ा चुनरी सुहाग की,
करी उसकी विदाई,
माँ आज फिर मुझे,
तेरेआँचल की याद आई,
याद करके बचपन अपना,
आँख मेरी भर आई।
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
24/4/19
बुधवार
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नमन भावों के मोती
दिनाँक-24/04/2019
शीर्षक-आँचल
विधा-हाइकु

1.
माँ का आँचल
क्रीड़ा बचपन की
सुखानुभूति
2.
वन आँचल
सुखद संरक्षण
वन्य जीवों का
3.
उत्तरांचल
पहाड़ों की गोद में
रम्य प्रदेश
4.
माँ का आँचल
है सुरक्षा कवच
वात्सल्य भरा
5.
उग्रवाद से
मैला हुआ आँचल
भारत माँ का
6.
सुंदर दृश्य
सुनहरा आँचल
अरुणाचल
***********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
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आज का शीर्षक-----आँचल सादर नमन भावों का  मोती मंच
आज का कार्य
विषय-----आँचल
विधा---कविता

माँ का आँचल--

अम्बर जैसा माँ का #आँचल कितना निश्छल प्यार लुटाये!
जैसे सींचे बग़िया को माली माँ घर की बग़िया महकाये!
अपने प्यारे  बच्चों पर माँ कष्ट कभी न आने देती!
ढँक लेती माँ झट #आँचल में बनके दुआ माँ सर लहराए!!
 ********
माँ तेरा #आँचल बहुत याद आये
फूलों की सेजिया भी कांटो सा लगता
वो ##आँचल की छैयाँ बहुत याद आये।
रोती थी जब मैं  तूँ लोरी सुनाती
ममता की #आँचल में मुझको सुलाती
बहुत तुझको मैंने सताया  है मैया।
मगर तूँ कभी भी न मुझको सताती।
है आज भी मुझको एहसास तेरा
बड़े धैर्य  से  तूँ खज़ाना लुटाती!
करती न्योछावर तूँ अनमोल मोती!
मेरी एक हंसी पर तूँ खुद वारी जाती।
 बारीश  की  बुँदे मुझे जब भिंगाती,
तूँ झट अपने आँचल से मुझको सुखाती
लगने  न देती किसी की नज़र भी
तूँ आँचल में झट से मुझे झाँप लेती।
****
माँ तेरे आँचल का कैसे  क़र्ज़ मैं चुकाऊँगा?
ग़र पड़ा देना लहू तो  निज फ़र्ज़ मैं निभाऊंगा।
माँ तेरे आँचल पर कभी दाग़ ना  लगने दूँगा
ज़रूरत आ पड़ी तो निज अस्तित्व भी मिटाऊंगा!!
 @ मणि बेन -------(स्वरचित एवं अप्रकाशित)

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नमन "भावों के मोती "
विषय- आँचल
24/04/19
बुधवार
दोहे

माँ  के  आँचल से बड़ी,नहीं  सुखों  की  छाँव।
उसके  ही आशीष  से ,बढ़ें  लक्ष्य-हित  पाँव।।

माँ  का आँचल ही सदा  , देता   यह    संदेश ।
वत्सलता की छाँव  का , वही  पुण्य परिवेश।।

निजआँचल की ओट में,रखती शिशु का ध्यान।
उसके पालन मे न  हो , माँ  को कभी थकान ।।

माँ के आँचल से विलग ,  रहती   जो  संतान ।
उसको हो जाता कठिन , पाना  उच्च  मुकाम।।

वीर  पुत्र  जब  देश पर ,   होता   है   कुर्बान ।
माँ  के आँचल को तभी ,मिलता  है सम्मान।।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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भावों के मोती--सादर वंदन मंच को
दिनांक --24/4/2019
विधा-------कविता
हरा आँचल माँ वसुंधरा का
देता जग को हरियाली है
लाल आँचल माँ दुर्गा का
देता जग को खुशहाली है
काल रुपी आँचल को
माँ काली ने अपनाया है
असुरों का दमन किया
भक्तों को हर्षाया है
सप्त स्वर, नवरस,ज्ञान का
आँचल माँ शारदे ने पाया है
कर्मानुसार हर प्राणी ने
उसका अंश पाया है
वंदन करे सदा हम
ना कोई लाल अभागा हो
पाये सदा माँ का आँचल
जीवन में उजियारा हो ।
स्वरचित-------- 🙏🌺🙏

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नमन मंच को
विषय : आंचल
दिनांक : 24/04/2019

 आंचल

वो मां तेरी ममता का
आंचल जो छूटा।
फिर सभंला न मैं,
था इस कदर टूटा।
वो दिन तेरे साये में,
क्या खूब थे।
तेरी गोदी में लगते,
हम महिफूज थे।
तेरे जैसा नहीं इस,
दुनिया में कोई ।
अब तलक फैली,
मां तेरी खुशबोई।
मुझे खुश ही दिखी,
मां तू तो हर पल।
क्यों देख न पाया,
वो भीगा सा आंचल।
क्यों न देखे वो छाले,
मां तेरे पैरों में।
खुशी ढूँढता रहा मैं,
क्यों गैरों में ।
मन बोझिल है मां,
अपने देख कर्म ।
दर्द तेरा न जाना,
आई न शर्म ।
तूने की न शिकायत,
कभी मुझसे मां।
दिल‌ अब ढूँढता है,
वो ममता की छांव ।

कोटि कोटि नमन मां ओर मां की ममता को 🙏🙏🌹🌹

स्वरचित : राम किशोर, पंजाब ।

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नमन"भावो के मोती"
24/04/2019
   "आँचल"
लघु कविता
################
आँचल तले जो छुपा संतान
कहता......
सुनों जगवालों मेरी पुकार
कोई डर नहीं अब मुझको
""""माँ का आँचल है"""""
मेरा सुरक्षित स्थान....।
आए चाहे ज्वार या भाटा
या फिर आ जाए तूफान
माँ के आँचल में हूँ मैं तो
नहीं है मुझे किसी का डर।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
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"नमन-मंच""
२४/४/२०१९
"शीर्षक-आँचल"
माँ,तेरी आँचल से बढ़कर
और नही कुछ इस धरा पर
देख लिया जग सारा घूमकर
तुम्हारे जैसा न निर्मल मन।

तेरे आँचल के तले
नही डर किसी झंझावात का
दुनिया के थपेड़ों से अन्जान
जब तक रहे माँ का आँचल।

हर एक शिशु को मिले
माँ का आँचल का छाँव
माँ के आँचल बिना
हो जाये शिशु का हाल बेहाल।

जिनको मिला है माँ का आँचल
उनका बड़ा ही भाग
जो रह गये इनसे वंचित
इससे बड़ा नही कोई संताप।
  स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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नमन मंच
🌹🌹🙏🙏
विषय -आंचल

अम्माँ का आंचल ,
जीवन की तपती दोपहरी में
बन जाता शीतल छांव ।
स्वयं चाहे जितना हो घायल
चाहे रिसते हों मन के गहरे घाव
माँ की ममता
देती हमको शांति भरी ठांव ।
महक उठी जूही ,चंपा, चमेली
रात रानी अलबेली ने
 पसार लिए हैं पांव ,
याद आ गया गांव ।
धूप से बिलखता शहर ,
गूलर के फूल सी
ओझल हो गई
पेड़ो की ठंडी छाँव ।

(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई  (दुर्ग )
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नमन मंच भावों के मोती

दिनांक 24/04/2019
विषय -आँचल
विधा -स्वानुभव

माँ के दिल में ही आँचल छुपा होता है
कुछ दिन पहले की बात है मैं मेट्रो द्वारा द्वारका से वैशाली की यात्रा कर रही थी | पास में ही एक माँ और एक दो तीन वर्षीय बच्चा बैठा था | थोड़ी देर तो माँ और बेटे बातें करते रहे | तोतली भाषा में बच्चा अपने विचार व्यक्त करने मे लगा रहा, थोड़ी ही देर में बच्चा सो जाता है | ए. सी. की ठंडक तेज होती है, लिहाजा बच्चा थोड़ा -थोड़ा सिकुड़ने लग जाता है | माँ जींस कुर्ता पहने होती है पास में उसके एक स्कार्फ होता है | बच्चे को वह अपनी गोद में उठाए उस स्कार्फ से उसको पूरा ढकने की बराबर कोशिश कर रही थी, साथ ही बच्चे के खुले हुए शरीर को अपने सीने चिपकाए हुए थी | बच्चा आराम से सो रहा था | थोड़े दिन पहले एक हास्य कवि सम्मेलन में सुना था कि आज के बच्चों को माँ का आँचल नहीं नसीब नहीं होगा क्योंकि वे जींस पहनती हैं | यह बात मुझे पूरी तरह झूठ और मजाक लगी और यह बात मेरे मन मे आई कि आँचल तो माँ के दिल में ही छुपा होता है |जिसकी छाया वे हमेशा बनाये रखती हैं |

स्वलिखित
मोहिनी पांडेय

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🙏🌹..जय माँ शारदा ...
       ....सादर नमन भावों के मोती...
       दि.- 24.04.19
     विषय - "आँचल"
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माँ के  आँचल से बढ़कर  इस जग में  पावन क्या होगा |
माँ की  ममता के  जैसा  जग में  मनभावन  क्या  होगा ||

              माँ के  जैसा  कोई  नहीं है |
              माँ  जैसी तो बस माँ  ही है |
              ईश्वर  कितने  रूप  बनाता -
              इसीलिए  उसने  माँ दी  है |
माँ के चरणों की रज से बढ़कर कोइ चंदन क्या होगा |
माँ के आँचल से बढ़कर इस जग में पावन क्या होगा ||

              त्याग और तप की ये मूरत |
              सबसे  सुंदर  है  ये  सूरत  |
              बिन इसके जीवन है अधूरा -
              सबको इसकी बहुत ज़रूरत |
माँ के बिन सोचो तो जरा कि अपना जीवन क्या होगा |
माँ के आँचल से  बढ़कर इस जग में पावन क्या होगा ||

                माँ है तो  हर घर  जन्नत है |
                माँ की दुआ से हर नेमत है |
                माँ के बिन जग सूना  सूना -
                माँ से  ही चलती कुदरत  है |
माँ  की  ममता के  जैसा सच्चा  अपनापन  क्या होगा |
माँ के  आँचल से बढ़कर  इस जग में पावन क्या होगा ||

               माँ पर ध्यान सदा ही देना |
               गौरव  गान  सदा ही देना |
               रब को पूजो न  पूजो  पर-
              माँ को  मान सदा  ही देना |
माँ  के  चरणों  से  बढ़कर  काशी  वृंदावन  क्या होगा |
माँ के  आँचल से बढ़कर  इस जग में पावन क्या होगा ||

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                  #स्वरचित
                  प्रमोद गोल्हानी सरस
                   कहानी - सिवनी म.प्र.
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सादर नमन
विधा-हाईकु
विषय- आँचल

प्रेम की छाँव
आँचल वसुंधरा
काँटों रहित

ओस के मोती
हरितीमा आँचल
दुल्हन धरा

बने रक्षक
मजबूत दीवार
माँ का आँचल
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
24/4/19
बुधवार
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भावों के मोती
24/4/19
विषय-आँचल
______________
रात के आँचल तले
तारों के दीप जले
चाँद की बिंदिया से
आसमां का भाल सजे

चाँदनी निखर-निखर
धरती पर पड़ी उतर
हवाओं संग सज-संवर
जहान में गई बिखर

चल उठी सर्द हवाएं
तन को रहीं सहलाएं
पेड़ों से लिपटी लताएं
प्रीत का अहसास कराएं

चाँदनी चाँद से मुस्कुरा के मिल रही
मिलन की रात बीते न हँस के यह कह रही
आ जाओ यह घड़ी बीत न जाए कहीं
चलो मिलकर आज बसाए अपनी दुनिया यहीं
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित ✍

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नमन "भावों के मोती"🙏
24/04/2019
छंदमुक्त कविता 
विषय:-"आँचल"
वो आँचल याद आता है...
जिस में समाया था
खुशियों का संसार
चवन्नी-अठन्नी का
कीमती उपहार
पिता से छुपाकर
जब खुलती थी गांठ
ममता बरसती थी
पल्लू के साथ
जिसे मर्जी आए
बनाते थे निशाना
दुनियां का सबसे
महफूज था  ठिकाना
आँचल से गर्म
कढ़ाई उतरती थी
माँ हौले से...
पसीने को चूमती थी
और.. जब कभी
आंखों में नमी गहराती
आँचल से हँस के
उसे समेटती थी
आँचल में मुंह छुपा
 वो बचपन  खिलाना
हर दर्द को छुपा के
माँ का मुस्कुराना
वो आँचल याद आता है...

स्वरचित
ऋतुराज दवे
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सादर नमन भावों के मोती
24/04/2019
शीर्षक  -  आँचल

1-
माँ का आँचल,
सिमटी हैं खुशियाँ,
जमीं पे स्वर्ग ।

2-
तन घायल,
अजन्मी है विकल,
कहाँ आँचल ?

3-
दीन भिक्षुणी,
फैला रही आँचल,
कहाँ विधाता ?

4-
धरा आँचल,
रंगा स्वर्णिम रंग,
मेहमां रवि ।

     --  नीता अग्रवाल
           #स्वरचित
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नमन मंच
24-4-2019

आँचल
1
नैनों में नमी
भीगा भीगा आँचल
एक कहानी यूँ कहता
कुछ खुशियों के पल
भिगा गये थे नैना
2
नैनो के आंसू सूखे थे
हृदय वीराना बसता था
तार तार कहता आँचल
कितना पाया हलाहल
3
भर भर आँचल पाया था
फिर भी सुरसा सा मुख फैलाया
मानव मन के लालच से
हृदय धरा का टूटा था

मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित
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नमन  भावों  के  मोती
24/4/2019
बुधवार
विषय -आँचल
कहने  को  नाम  है
आँचल  किन्तु  रखा
जाता  इसे  सदा  परे
आँच  से ,
आँच बदनामी  की
आँच  गंदी  निगाहों की
आँच  बेबुनियाद  गुनाहों की
क्योंकि इन  आँच की
एक चिंगारी  भी
आँचल  को  मैला
कर  देगी फिर चाहे
आँचल  को  धारण
करने  वाली कितनी
भी सफाई  दे  दे ....
स्वरचित
शिल्पी  पचौरी
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