ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें |
ब्लॉग संख्या :-364नमन मंच - भावों के मोती🙏
जय माँ शारदे🌹🌹
सुप्रभात- समस्त मित्रगण
दिनांक-20.04.2019
आज का शीर्षक- मंच/रंग मंच
विधा-मुक्तक
=======================
(01) मंच
बातें जो विरोध की करते उनको देखा एक मंच पर ।
घातें प्रतिघातों में भरते उनको देखा एक मंच पर।
देश भक्त कितने हैं सच्चे सब कुछ जनता समझ रही है,
रौल जो अपना जुदा लहरते उनको देखा एक मंच पर।।
(02) रंग मंच
देखा तुमको रंग मंच पर मेरा सब्र मुझे ले डूबा ।
मैंने सुन्दर चाँद कह दिया मेरा फ़ख़्र मुझे ले डूबा ।
बे हद उम्दा दीद तुम्हारा इसे मैं पहले समझ न पाया ,
टूटा बाँध सब्र का आखिर दिल का अब्र मुझे ले डूबा ।।
=======================
" अ़क्स "दौनेरिया
(आदरणीय मंच का नैरन्तर साथी )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सुप्रभात"भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन,🌹
20/04/2019
"रंगमंच"
1
अभिनंदन,
"भावो के मोती" मंच
उल्लास संग
2
हँसना,रोना
रंगमंच दुनिया
सबने खेला
3
संसार मंच
सबका किरदार
ईश प्रदत्त
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती ,
आज का विषय , मंच , रंगमंच ,
दिन , शनिवार ,
दिनांक , 20, 4, 2019,
रंगमंच है ये एक दुनियाँ ,
हम अभिनय करने वाले हैं |
नाच नचाये हमें ऊपरवाला ,
इशारों पै थिरकने वाले हैं |
हालत अपनी ऐसी जैसे नैया ,
हम बिन पतवार ही खेते हैं |
फंसे मंझधार खायें हिचकोले ,
यूँ ही जीवन धारा में बहते हैं |
नहीं कोई साथी ना ही सहारा ,
अपनी ही धुन में सब रहते हैं |
डगमग डगमग डोले है नैया ,
लोग हमेशा घबराये रहते हैं |
बेबस और लाचार यहाँ पर ,
याचना प्रभु से यही करते हैं |
कृपा करो हे परमेश्वर हम पर ,
दया बिना नहीं जी सकते हैं |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
रँगमंच यह दुनिया यार
कठपुतली सा किरदार ।।
समझना जल्दी खुद को
लाना है जल्दी निखार ।।
जो स्वयं को समझे हैं
वो व्यर्थ नही उलझे हैं ।।
चमक उनके चेहरे पर
काबिल वह दिखे हैं ।।
खुद पर ये है अहसान
जब करें खुद का मान ।।
बदला कौन यहाँ किरदार
क्यों न करे 'शिवम' भान ।।
मन पसंद कुछ ही पाते
भूमिका वो खास निभाते ।।
उसकी पसंद जो जाने
घाटे में वो भी न आते ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 20/4/2019
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
शीर्षक मंच,रंगमंच
विधा लघुकविता
20 अप्रैल 2019 ,शनिवार
माँ वसुधा के महामंच पर
जीवन का हम मंचन करते
जैसा कर्म करें मंच पर
वैसा फल जीवन में भरते
अति विशाल मंच भावों का
जीवन मे नव सीख सिखाते
भावों के उज्ज्वल मोती से
पाप द्वेष नित सदा भगाते
बहु रूप ले अभिनय करते
प्रतिभा से जीवन दुःख हरते
कब नायक खल नायक बनते
सद चरित्र नित आगे ही बढ़ते
लोकतन्त्र के महामंच पर
दुश्मन को भी गले लगाते
सिंहासन की दौड़ धूप में
अच्छा बुरा सब कुछ करते
मंच अर्थ है स्वच्छ प्रदर्शन
पुनः पुनः जीवन नहीं मिलता
अभिनय हो ऐसा जीवन मे
नित नव पुण्य परहित करता
त्रेता द्वापर अवतारित हो
राम कृष्ण ने सीख सिखाई
मर्यादित अद्भुत जीवन से
कर्म राह श्री कृष्ण दिखाई
जीवन प्रस्तुत एक कला है
अदाकार बन जीवन जीते
साधक का साधन मंच है
कर्मो से जीवन नित सींते।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
**********************
.....
रंगमहल सा सजा हुआ है, अपना ये परिवार।
एक वर्ष होने को है बस बचा है दो ही वार।
.....
उत्सव की हो गयी तैयारी सज गये तोरण द्वार।
आओ मंगल गीत सुनाये सजधज कर हम यार।
.....
सरस्वती की करे वन्दना वो ही तारणहार ।
भावों के मोती सा उपवन उनका आशीर्वाद ।
....
मिलजुल कर सब एक रहे हम ऐसा दो वरदान।
शेर भावना निर्मल है ना इसमे कलुषित तान।
.....
स्वरचित एवं मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
मन्च/रँगमञ्च
नमन बावों के मोती,
गुरुजनों,मित्रों।
ये दुनियाँ है एक रँगमञ्च,
हम सब हैं नाटककार।
जबतक जीते है,
करतब दिखाते हैं।
जब खेल खत्म होता,
इस जहाँ से चले जाते हैं।
अपना,अपना कर्तव्य,
करते हैं सभी पूरा।
तबतक जाते नहीं,
जबतक कोई काम हो अधूरा।
लेकिन पूरा करते हीं कर्म,
आ जाता है बुलावा जाने का ऊपर।
फिर सब चले जाते हैं।
इस रँगमञ्च को छोड़कर।
भावों का मोती है सुंदर मञ्च,
यहाँ से मिलती है कुछ सीख।
कुछ सम्मान,कुछ नाम,
आगे बढ़ते रहने का पैगाम।
तो चलो हमसब मिलकर,
इस मञ्च को आगे बढ़ाएं।
कुछ सीखते हैं नया,
प्रबुद्ध कवि की सीख को अपनायें
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
रंगमंच
क्षणिका लेखन का प्रयास....
चेहरे पर चेहरे...
अनगिनत किरदार...
कभी आँसू
कभी आहे...
प्रयासों को मिलता
पारितोषक
जीवन रंगमंच ही तो है!!!!
चमकते चेहरे...
अनुपम हाव भाव
तीक्ष्ण संवाद...
जीवंत अभिनय
पर्दे के सामने
पीछे की कहानी....
बेरंग,स्याह,दर्द
यही है ...
रंगमंच
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन
भावों के मोती
२०/४/२०१९
विषय-मंच/रंगमंच
भावों के इस मंच पर,
भांति-भांति के किरदार।
निभा रहे हैं भूमिका,
भूलकर जीत या हार।
भावों के मोती चुन-चुन,
सुंदर बनाया हार।
मात सरस्वती की कृपा,
सदा रहे बरकरार।
मंच की शोभा नित बढ़े,
बना रहे सबमें प्यार।
साहित्य की सेवा करें,
समृद्ध हो उसका भंडार।
न मन में कटुता रखे,
न रखें किसी से बैर।
दुनिया के रंगमंच पर
नहीं किसी की खैर।
नाच नचाता है कोई,
सुख-दुख उसके हाथ।
नहीं रहता है सदा,
यहां किसी का साथ।
प्रेम बड़ा कमजोर है,
देता है हिम्मत हार।
प्रेम बिना संसार ये,
जैसे केवल छार।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
🌹भावों के मोती 🌹
🌹सादर प्रणाम 🌹
विषय =मंच
विधा=हाइकु
=============
(1)जीवन मंच
होता खूब रोमांच
भागम-भाग
🌹🌹🌹🌹
(2)जिंदगी मंच
सांसों को देना होता
खुद सौ टंच
🌹🌹🌹🌹
(3)बेच ईमान
व्यवसाय के मंच
कमाते धन
🌹🌹🌹🌹
(4)कसते तंज
व्यवहार के मंच
जैसे हो कंस
🌹🌹🌹🌹
(5)धरती मंच
कठपुतली जैसा
नाचते हम
🌹🌹🌹🌹
(6)सम्पूर्ण वंश
करता अभिनय
धरती मंच
🌹🌹🌹🌹
(7)माइक डर
जाते ही मंच पर
करता घर
🌹🌹🌹🌹
(8)मंच बिछाता
जीवन शतरंज
खेलती सांसे
🌹🌹🌹🌹
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
20/04/2019
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
मंच
भावों के मोती--साहित्य-सृजन-मंच
सम्यक समावेशी पारदर्शी प्रिय पंच
सृजन-धर्म-पालन समन्वय सदाचार
समष्टि मूल हिंदी-कुल सकल उद्धार
जन-गण मनन करे झरे अंतःप्रवाह
गहन चिंतन भाव सुर-स्राव अथाह
साहित्य साधना में है निरत संसार
भावों के मोती का अद्भुत परिवार
कतिधा अभिधा नव विधा सिखाते
सुप्रतिष्ठ नियमनिष्ठ समिधा जुटाते
वरिष्ठ,विशिष्ट,यविष्ठजन सृजनकार
पटलपृष्ठ उत्कृष्ट शिष्ट नित नवाचार
लेखन-उत्प्रेरण सतत सत्त सराहना
नवांकुर सुयोग विनियोग अवगाहना
स्वाति-बूंद सीप संयोजन शिल्पकार
पिरोते मोती सँजोते सरस शब्दहार
-©नवल किशोर सिंह
20-04-2019
स्वरचित
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
ये
मंच
धरती
यहाँ पर
हमें निभाना
खुद किरदार
जीवन का उद्धार
(2)
मैं
खुद
अपना
किरदार
निभा सकता
ऐसा परिपक्व
मंच मिला मुझको
====रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
20/04/2019
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
मंच को समर्पित चंद पंक्तियाँ
यह मंच बड़ा ही प्यारा है..
हर मंच से बड़ा ही न्यारा है..
न्यारी है हर बात इसकी..
ये हमें दिलों जां से प्यारा है..
यहाँ पर फलता प्यार ही प्यार..
मिलता सदैव स्नेह अपार..
कलम कहे ठहर जा यहीं पर..
मिलेगी हर मंजिल यहीं पर..
भावों की सरिता बहती नित यहाँ..
मिलता अतिव प्रोत्साहन यहाँ..
भांति-भांति के पुष्प खिलते यहाँ पर..
रोज नए मीत मिलते यहाँ पर..
मिलता सदैव आशीष बड़ों से..
बनता यह परिवार बड़ों से...
होता नवविधाओं का सृजन यहाँ पर..
सजते भावों के उपवन यहाँ पर...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
आज का शीर्षक --मंच /रँगमंच
==================================
रँगमंच ये सारी दुनिया,..... .... .. पात्र बनाता ईश्वर है,
कठपुतली की तरह जगत में,.... . हमें नचाता ईश्वर है।
सुख दुख सारे और ख़ुशी,ग़म,उसकी कहानी के अध्याय,
किस को कैसा अभिनय करना,. .. ये बतलाता ईश्वर है।
कब आना है कब जाना है,. यह तय करना उसका काम,
किस के कैसे डायलॉग हों ,.. .... ये सिखलाता ईश्वर है।
ये मूरख इन्सान समझता,. सब कुछ उसका किया धरा,
मान किसे अपमान किसे,अध्याय ये लिखता ईश्वर है।।
================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी.
विधाःःःकाव्यःःः
कठपुतली हम रंगमंच की,
इसकी डोर प्रभु के हाथों।
जैसे भी हमें ये नाच नचाऐं,
सभी नाचेंगे ईश्वर के हाथों।
अभिनय अलग बंटे हुए है।
संवाद सभी को रटे हुए हैं।
करते कुछ सचमुच नाटक,
बहुत नेताओं से सटे हुऐ हैं।
महामंत्र दुनिया से लेकर के ,
महामंच से अभिनय करते ।
ये संसार हमें मायावी लगता,
मंचासीन सभी यहां फंसते ।
मंच कभी हम साझा करते।
कभी अभिनय करके डरते।
ये जीवन अपना कर्मक्षेत्र तो,
सुखझोली सत्कर्मों से भरते।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
1भा.#मंच /रंगमंच# ःकाव्यः
20/4/2819/शनिवार
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
विधा- कविता
*************
ये दुनियां का मंच अनोखा,
कहीं प्यार तो कहीं है धोखा,
रंगमंच बना अपना ये जीवन,
किरदारों का लगा यहाँ मेला |
बंद आँखों से आते धरती पर,
तन मन होता एकदम साफ,
आँख खुल जाती जब अपनी,
यहीं के रंग में रंग जाते किरदार |
हमने तो एक मंच चुना है,
जिसमें मोती हैं हजार,
सुबह-सुबह शीश वहीं झुकता,
करते भावों की खूब बरसात |
*भावों के मोती* का है मंच,
जिससे हमको बेहद प्यार,
पहचान हमको इससे मिली,
माने इसका हम आभार 🙏
स्वरचित *संगीता कुकरेती
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
"भावों के मोती"
दिनांक-
20/4/2019
विषय-रंगमंच
बीतती जाती जिंदगी
अभिनय का पैरहन लादे
जन्म से लेकर
मृत्यु तक
हर इंसा पर
उसके अनुसार ही
साजे ।
है जितनी क्षमता जिस इंसा की
उसका लबादा उतना रंगी
किसी किसी का तो
रंगी कढ़ाई और
सितारोँ से फबता ।
यूँ खिलखिलाना,
ठहाके लगाना कि
भर आईं आंखे
उन आँखों को
मुस्कुराते हुए
पोंछकर अपना गम छुपाना ।
टीस रहा दर्द से
सीना फिर भी
मुस्कुरा कर गले
लग जाना ।
हैं नागवार न जाने
कितनी बातें जिंदगी की फिर भी
उनको शिद्दत से जिये जाना ।
न शिकन कोई
चेहरे पर बस
कदम से कदम
मिलाते चलते
जाना ।
न जाने कैसा रंगमंच है ये दुनिया
है सभी करने में अभिनय माहिर
अपने अभिनय को
न चाहे कोई
दिखाना।
ईश्वर प्रदत्त रंगमंच
अभिनय का जरिया
बन गया
है किसी की मजबूरी
तो किसी का शौक
बन गया ।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर (म.प्र.)
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
भावों के मोती
20/04/19
शीर्षक - मंच /रंगमंच
मंच दानवीय प्रवृत्तियों का
कहते रावण स्वाहा हो गया
कंस वंश से नाश हो गया
हिटलर भी तो दफन हो गया
फिर भी खुले आम उन सी प्रवृत्तियां
विद्रूप आधिपत्य जमाये बैठी चहुँ और
दशानन सौ मुख लिये घुम रहा
कंश की सारी क्रूरता तांडव कर रही
हिटलर सत्ता के द्वारा पर अट्टहास कर रहा
लगता है तीनों की आत्मा का मिलन हो गया
संसार में शैतानों ने श्रोणित बीज बो दिये
दंभ, अत्याचार अतिचार, लालसा और भोग का
मंचन हो खुला नाटक खेला जा रहा
सूत्र धार पीछे बैठा मुस्कुरा रहा
मानवता कराह रही
नैतिकता दम तोड गई
संस्कार बीते युग की कहानी बन चुके
सदाचार ऐतिहासिक तथ्य बन सिसक रहे
हैवानियत बेखौफ घुम रही
नई सदी में क्या क्या हो रहा है
इंसान इंसानियत खो के इतरा रहा है
और ऊपर वाला ना देख रहा ना सुन रहा ना बोल रहा है
जाने क्या हो रहा है जाने क्या हो रहा है।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
कठपुतली हम
डोर ईश्वर।।
ये रंगमंच
अभिनेता मनुष्य
लेखक ईश।।
अपना मंच
उधार के दर्शक
लो पटाक्षेप।।
नायक चुप
मध्यांतर के बाद
अंधेरा घुप।।
भावुक
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती मंच को
विषय : रंगमंच
दिनांक : 20/04/2019
रंगमंच
भावों का रंगमंच,
भरा है खचाखच,
नये नये रोज यहां भाव संजोते
जिंदगी जाए बीत,
भावों के, मोती पिरोते।
यहां कर्मठ सेनानी रितुराज जी जैसे,
मीना/बीना/जोशी जी, ओर भी हैं ऐसे ।
खुल जाते यहां विसरी
यादों के झरोखे,
जिंदगी जाए बीत,
भावों के, मोती पिरोते।
एक से एक बढ़ के,
कलम के हैं बाजीगर।
समाज को आईना दिखाते,
भावों के मंच पर।
भावों की जमीं, भावों का आसमां,
भावों से बनें नित्य नये घरोंदे,
जिंदगी जाए बीत,
भावों के, मोती पिरोते।
यह सफर न थमे यारो,
किसी मोड़ पर ।
रखना हर मोती यूं ही
सदा जोड़ कर।
यह रंगमंच यूं ही रंगा रहे,
मेरा मन यही लोचे
जिंदगी जाए बीत,
भावों के, मोती पिरोते।
जिंदगी जाए बीत,
भावों के, मोती पिरोते।
भावों के, मोती पिरोते।
🙏🙏🌹🌹🌺🌺
जय हिंद
जय भावों के मोती मंच की
स्वरचित : राम किशोर, पंजाब ।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
20/04/19
रंगमंच
****
जीवन के रंगमंच पर
माँ की कोख से लेता आकार
एक अनोखा किरदार
अपने मे पूर्ण
स्वयं का आधार ।
धीरे धीरे पर्दा खुलता,
सामने पड़ी खाली कुर्सियां
नित भरती नए रंगकर्मियों से
नेपथ्य से आती आवाजें
लाइट ,कैमरा, साउंड ऑन।
सदृश रंगमंच जीवन में
नित नए वेश मे
नए लोग मिलते जाते ,
सामने पड़ी कुर्सियां भरती जाती
जीवन के रंगमंच पर
लाइट कैमरा साउंड
विभिन्न परिस्थितियाँ बन
कई पात्रों का एक साथ
अनुपम अभिनय करवाती ।
अनोखे किरदारों का अद्वितीय
अभिनय जब हो जाता पूर्ण
लाइट साउंड कैमरा ऑफ़,
और...परदा गिरता जाता है ।
स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सुप्रभात"भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन,🌹
20/04/2019
विषय -रंगमंच
विधा-छंद मुक्त कविता
💐🌹💐🌹💐🌹💐
रंगमंच
रंगमंच संसार मे होते सब किरदार
कोई हंस कर काटता जिन्दगी
कोई अपने आसु बहाए चार
कोई बना किसी हाथ की कठपुतली
कोई अपने मे मगन है यार
कोई भूल गया संस्कार
कुर्सी जिसको मिल गई
राजा बन गया रंक
डंका अपना बजा रहा
नाचे बिन मृदंग
भूल गया लोक लाज
खेल रहा वह खेल
खुद ऊपर वाला देख रहा
इस कठपुतली का खेल
स्वरचित
नीलम शर्मा #नीलू
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
दिनांक : - २०/४/०१९
विषय : - रंगमंच
🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
जिंदगी एक रंगमंच है
हर इंसान किरदार,
जन्म के साथ ही वह
करता शुरू अपना मंचन है।
आसमां में उड़ते
उस पतंग की तरह,
जिसका डोर कोई और थामे होता है,
वह हमेशा हवा के वेग को चिरता
ऊपर उठने को संघर्षरत रहता है,
इस बात से अंजान कि यह डोर
कभी भी छूट सकती है
टूट सकती है।
इस रंगमंच पर भी
हमारा पर्दा कब गिर जाए
मंचन रुक जाए नहीं पता
पर इतना ज्ञात है,
की, गिरते ही पर्दा हम
अदृश्य हो जाएंगे, विलीन हो जाएंगे।
स्वरचित: - मुन्नी कामत।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन सम्मानित मंच
(मंच/रंगमंच)
**********
चारु धरा की सीमान्तर्गत,
उन्नत मण्डप अथवा स्थल,
विविध कार्यहित चारु मंच,
रंगकर्म - हित रंगमंच।
मंच-स्तर से विभिन्न सभाऐंं,
होती सम्पादित दिन-प्रतिदिन,
गहन प्रभावित होती जनता,
भाषण से पलक्षिन।
साहित्यिक क्रियाकलापों हेतु,
आँनलाइन स्थापित मंच,
बुद्धि-प्रखरता के शुचिकारक,
भावों के मोती संवाहक।
रंगमंच के चारु सुतल पर,
अभिनीत चरित्र विविध होते,
सत्य हेतु संदेशित करते,
करते मन को भी अनुरंजित।
चारु बसुन्धरा का शुचितल,
चर-अचर जीव का रंगमंच,
लक्ष्य परम को नित विस्मृत कर,
जीवों के मन छल व प्रपंच।
--स्वरचित--
(अरुण)
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच को
20/4/2019
मंच /रंगमंच
हाइकु
1
है रंग मंच
मानव कलाकार
ईश रचता
2
जीवन मंच
मनु कठ पुतली
ईश नचाये
3
संसार मंच
मनु निभाए रोल
नहीं है कट
कुसुम उत्साही
स्वरचित
देहरादून
नमन् भावों केमोती
20अप्रैल19
विषय रंगमंच/मंच
विधा हाइकु
आदमी पड़ा
जिन्दगी रंगमंच
सांसें सिमटी
कहानी हुई
हर प्रहर घटी
जिन्दगी मंच
रंगमंच से
सन्देश देती बातें
गुजरा पल
मौसमी रंग
अभिनेता से नेता
चुनाव मंच
सृष्टि सृजन
काल का प्रहसन
विनाश मंच
कल्पना मंच
अनमोल जीवन
भाग्य निर्माण
मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
20/04/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"मंच/रंगमंच"
(1)
भावों को भर
कागज़ के "मंच" पे
नाचे कलम
(2)
परदा गिरा
जीवन रंगमंच
नाटक पूरा
(3)
मन दुखना
साहित्य सजा "मंच"
चोरी रचना
(4)
नाना प्रपंच
अभिनय नगरी
जगत "मंच"
(5)
विष उगला
राजनीतिक "मंच"
गिरी गरिमा
(6)
अहम् भिड़ा
मंच बने अखाड़ा
किसका भला?
स्वरचित
ऋतुराज दवे
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
भावों के मोती
विषय- मंच/रंगमंच
_________________
जीवन के रंगमंच पर
देखे हैं अजब तमाशे
पैसे वाले नींद को तरसे
गरीब लेते हैं खर्राटें
जेब भरी है दौलत से
सुकून चेहरे से गायब है
जीवन के इस मंच का
यह कैसा अजीब नायक है
थाली में भोजन हैं छप्पन
किसी में नमक कम है तो
किसी में कम लगे मख्खन
संतुष्ट नहीं किसी बात से
जलते एक-दूजे के आराम से
ग़रीब को देख घिनियाते
जोकर-सा उनको नचाते
ग़रीब पर जब अत्याचार करते
फ़ख्र बड़ा इस बात पर करते
बनाकर उनको यह कठपुतली
इंसानियत की हदें पार करते
बलवान बड़े यह नायक
इंसानियत को करते घायल
यह रंगमंच बड़ा पेचीदा है
मरता वही जो सीधा है
सदियों से यह रीत चली आई
निर्बल पर हावी यह दुनिया सारी
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित✍
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती ,
आज का विषय , मंच , रंगमंच ,
दिन , शनिवार ,
दिनांक ,20 , 4 , 2019 ,
हैं
भाव
कल्पना
किरदार
कलम सज्जा
साहित्य रचना
मंच भावों के मोती |
ये
मनु
दुनियाँ
रंगमंच
ईश्वर हाथ
सुख दुख साथ
अभिनय करता |
है
मंच
फरेब
राजनीति
जनता भोली
नेता अभिनेता
झूठा सच्चा लगता |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
विषय -मंच /रंगमंच
जीवन जोगी वाला फेरा,
ना कुछ तेरा ना कुछ मेरा ।
चंद दिनों का ढेरा प्यारे
ये जग रैन बसेरा ।
रंगमंच की कठपुतली हम सब
यवनिका का एक इशारा
खेल खत्म होता सारा
किरदार ठगा सा बेचारा ।
चला छोड़ यहीं सब
रे मनवा समझेगा कब ?
मंच छोड़कर जायेगा जब
माटी का घट फूटेगा तब ।
बिखर जायेगा पानी सारा
दूर आकाश पर टिमटिमाता तारा
कहता
पल में सबेरा, पल में अंधियारा
बीत जाता यूँ ही दिन सारा ।
ना कुछ मेरा ना कुछ तेरा
जीवन जोगी वाला फेरा
ये जग रैन बसेरा ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती
विषय ---रंगमंच/मंच
राजनीति के मंच पर
सत्ता के देखो खेल
नेता अभिनय कर रहे
जनता दर्शक मौन
तरह -तरह के रूप है
तरह-तरह के विचार
ना रिश्तों की मर्यादा
और ना हैं शब्दों में संस्कार
जाति-धर्म ,संप्रदाय ,नस्ल
सब आजमा रहे मोहरा बना
किसी से ना किसी का मेल
अभद्रता ,अपशब्द ,अपमान
शोभा दी मंच की बना
सब पटकथा लिखी पढ़ रहे
चालाकी के रहे किरदार निभा
नेता अभिनेता इस मंच का बड़ा
गरिमा दी बेच खाय
अब दाग लगा रहे चरित्रों पर
इतिहास रहे सब लजाय
अपनी-अपनी कथा लिख रहे
नहीं सत्यता की कोई पहचान
झूठ की रोशनी से जगमगा रहा
देखो फलता-फूलता यह
सिंहासन के खेल का
राजनीतिक मंच
---नीता कुमार(स्वरचित)
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
2,भा.तिथि ःःःःः20/4/2019/शनिवार
बिषयःःरंगमंच/मंच
विधाःःमुक्तकः ः
दुनिया के इस रंगमंच पर लगे हमें आघात।
राम नाम से करते हैं इन पर हम प्रतिघात।
जीवन यापन जब यहां रहें प्रेमप्रभु के साथ,
गर रहें परस्पर प्यार से हो सुंदरतम ये बात।
रंगमंच पर अभिनय निशदिन होते रहते हैं।
प्रतिदिन अपने नटखट लीला रचते रहते हैं। रासबिहारी रास रचें समझ नहीं पाते हैं हम,
इस रंगमंच की कठपुतली कैसे नचते रहते हैं।
स्वरचितः ः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
नवोः.मुक्तक दिवस,#297#ःःः
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
भावो के मोती
सादर नमन मंच को
विषय---मंच /रंगमंच
दिनांक-----20/4/2019
वसुंधरा के इस रंगमंच पर
ईश्वरीय सत्ता भी आती है
पाठ पढाती मर्यादा के
कर्म की शिक्षा भी दे जाती है
जी लो अपने अभिनय को
जीवन के इस रंगमंच पर
न रहे कोई भाव अधूरा
जीवन मिलता नहीं दुबारा
मंचों पर आसीन नेता
अर्नगल भाषण देते हैं
वोटों के खातिर जनता को
बहु प्रकार भ्रमित करते हैं
जागों अपने जीवन मंच पर
अभिनय कुछ ऐसा कर लो
जनता को भी राह दिखा दो
स्वयं भी भव पार हो जाओं ।
स्वरचित--------🙏🌷
आप सभी को हार्दिक नमस्कार
आज की प्रस्तुति में
हाइकु
विषय-मंच-रंगमंच
ये रंगमंच
विभिन्न कलाकार
भिन्न भूमिका
कठपुतली
डोर किसके हाथ
जीवन चक्र
रंगीन मंच
सुनहरे सपने
बिखर जाते
अभिनीत हो
स्मृतियों में बसते
अतीत पात्र
करते सभी
अपना अभिनय
जीवन मंच
वक्त का खेल
गिरता यवनिका
पात्र बदला
यूँ ही चलता
जगत रंगमंच
खत्म ना होता
स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
20-4-2019
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
दिनांक -20/04/2019
शीर्षक -रंगमंच
जीवन के इस रंगमंच में,
हम सब एक कठपुतली हैं।
डोर हमारी उसके हाथ में ,
हम सब तो बस नकली हैं।
भिन्न- भिन्न किरदारों में,
हम अपना अभिनय निभा रहे ।
जैसे -जैसे रूप दिए है,
वैसे ही रंग भर रहे।
कभी खुशियों की तान भर रहे,
कभी मायूसी भारी है ।
हरदम हरपल इस दुनिया में ,
अभिनय की तैयारी है ।
संवादों को रटने में ,
अभिनय को निभाने में,
कभी होती चूक भारी हैं
कभी मिले प्रशंशा प्रसिद्धि,
कभी आलोचना भारी है।
हे रंगमंच के निर्देशक ,
ऐसी कृपा बनाए रखना ।
अपने -अपने अभिनय की ,
शक्ति बढ़ाए रखना ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती
दिनाँक-20/04/2019
शीर्षक-मंच , रंगमंच
विधा-हाइकु
1.
उठा परदा
कलाकार मंच पे
कला प्रारंभ
2.
चुनावी रैली
राजनीतिक मंच
खेलते नेता
3.
रूप अनेक
दिखाता भगवान
धरा मंच पे
4.
आसान नहीं
मंच का संचालन
शुद्ध बोलना
********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सादर नमन
विधा-हाईकु
विषय- मंच/रंगमंच
१
नयन कला
मोहब्बत का मंच
दर्शक प्रेमी
२
दासी मंथरा
अयोध्या रंगमंच
वन गमन
३
नाचे इंसान
जीवन रंगमंच
लेखक प्रभू
४
मीठे संवाद
चुनाव रंगमंच
नेता की कला
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
20/4/19
शनिवार
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
भावों के मोती दिनांक 20/4/19
मंच / रंगमंच
तीन विधाओ का नया प्रयोग
विधा - छंदमुक्त कविता
1
दुनिया है
एक रंगमंच
खेल खिलाता है
ईश्वर
कभी खुशी
तो कभी गम
कभी गैर अपने
कभी अपने पराये
विधा - पिरामिड
2
है
मंच
जीवन
खिलवाड़
खुशी गमों से
इन्सान लाचार
कठपुतली तन
3
मुक्तक
राजनीति है
रंगमंच
हर पांच साल में
शतरंज खेल
सज कर तैयार
चुनावी मंच
जनता को मौका
वोट करें सब
नहीं खाएंगे धोखा
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच - भावों के मोती🙏
जय माँ शारदे🌹
दिनांक-20.04.2019
आज का शीर्षक- मंच/रंग मंच
विधा-कविता
***********************************
नया मंच ''भावों का मोती'' ज्ञान का सागर बहता है।
गागर में शब्दों का सागर शुचि पावन मन करता है।
इस जीवन की पगडण्डी पर गिर गिर सभी सम्भलते हैं।
अभिनय के आयाम बदलते थाम हौसला चलते हैं।
सभी यहाँ तो हैं कठपुतली विधना बीध बिधाता के।
थाम सभी कर्मों का दामन कर्म पथ पर बढ़ते हैं।
कुछ बैठे दर्शक दीर्घा में कुछ मंच पर नाच रहें।
आज तुम्हारा कल है मेरा पारा पारी चलता है।
कहीं तो है अदृश्य शक्ति जो करता मंच का संचालन।
भाँति भाँति के किरदारों को वक़्त भी यहाँ नचाता है।
भावों का मंचन करता है सुखद अनुभूति होती है,
इस जीवन के रंगमंच पर सब किरदार निभाता है।
सुखद कभीं हो दुखद कभी कभी हास परिहास सजे!
जीवन के इस रंगमच पर विविध रंग एहसास सजे।
@ मणि बेन द्विवेदी
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
ये मंच सब का हो कर भी....
न तेरा है न मेरा.....
दावा सब करते हैं....
अपना होने का...
खरीदफरोख्त में....
बोली लगती है...
कहीं ज़मीं की...
कहीं हवा की....
ज़मीन के पीछे ...
लठ्ठ चल जाते हैं....
मंच का रंग...
लाल हो जाता है....
रूह...की बोली में....
जब जिस्म तार तार होता है....
किसी बच्ची का...
खूं तो उसकी अस्मिता का भी होता है...
फिर कोई लठ्ठ नहीं चलता...
क्यूँ ?
रोटी के बदले बच्चे से भीख मंगवाई जाती है...
हाथ पैर तोड़ दिए जाते हैं...
कोई बाजू फड़कता नहीं है....
लठ्ठ के लिए...
पग पग पर झूठे किरदार हैं...
पग पग पर....
जिस की नेकटाई का रौब है...
वो सब के गले में फंदा डाल रखता है....
किसी के पान की पीक की पिचकारी....
सफेदपोशों के वस्त्र भिगोती है...
किसी ने सर की टोपी में...
सांप..नेवले पाल रखे हैं...
पग पग पर....
किरदार झूठे...मक्कार...
जिसका लठ्ठ है... वही...
सूत्रधार...
मंच के...
पटकथा के...
निर्देशन के...
बाकी सब...
कठपुतलियां....
हाड-मांस की !
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२०.०४.२०१९
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
No comments:
Post a Comment