Thursday, April 4

'''साथ/साथी" 04अप्रैल 2019

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रोने से कहाँ दर्द कम होते हैं
ये वो जख्म हैं जिन्हें हम बोते हैं
खिलें गुल तो मानो गुलशन
वर्ना जीवन भर काँटे चुभोते हैं

आसां नहीं होता"साथी"रिस्तों को सहेजना
कहाँ टूटी शाख पर मोर होते हैं
दर्द कहता है वो मजबूत होते हैं
जख्म सीने में जिनके पुरजोर होते हैं।

शवों में जीवन नहीं होता
कहाँ बबूल में बौर होते हैं
हो प्यार तो भाई साथ-साथ हैं
वर्ना हिस्से में माँ की रोटी के भी कौर होते हैं।।
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
***स्वरचित***
सीमा आचार्य(म.प्र.)


विधा -मुक्तक
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पूछता प्रियवर! प्रणय को याचना कब तक करूँगा ?
प्रेम पाने के लिए अभ्यर्थना कब तक करूँगा ?
साथ दोगे तुम नहीं आपत्तियाँ विधिवत् रहेंगीं ,
प्राण की संतुष्टि को मैं चाहना कब तक करूँगा ?
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मैं सारे फ़र्ज़ निभा दूँगा तुम आकर मेरे साथ रहो ।
जीवन गुलज़ार बना दूँगा तुम आकर मेरे साथ रहो।
राहों में सुस्ताने गर अशजार नहीं मिल पाते हैं ,
सायों के ढेर लगा दूँगा तुम आकर मेरे साथ रहो ।।
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राम सेवक दौनेरिया (अ़क्स )
आपका मित्र शाश्वत🙏
किस्मत वालों को जीवन मे
सच्चे साथी मिल जाते हैं
स्नेह समर्पण परोपकार कर
वे जीवन मंजिल पाते हैं
साथी मिला था श्री राम को
हनुमत सुग्रीव भागे आये
जय श्री राम हुंकार भरकर
पवन पुत्र उड़ लंका धाये
श्री कृष्ण सुदामा साथी 
स्व अश्रु से पाँव पखारे
गले लगा सिंहासन देकर
सखा कर दिये वारे न्यारे
गीता ज्ञान दिया अर्जुन को
फिर कौन्तेय गांडीव उठाया
साहस उत्साह नव ज्ञान से
रथारूढ़ उठ शंख बजाया
सच्चा साथ मिंले साथी का
जीवन स्वयं स्वर्गमय होता
हंसीखुशी भरता जीवन में
वह जीवन में कुछ न खोता
जीवन साथी प्रिय भार्या
पति हेतु सबकुछ सहती
साथी बने सात जन्म की
व्रत उपवास नित करती
साथी देता लेता कुछ नहीं
साथी पर जीवन कुर्बान 
सच्चा साथी अन्तर्मन में
वह जीवन का होता प्राण।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

साथी तो साथी होता है
शूल संग क्या गुल रोता है ।।
समझ'शिवम' यह सच्चाई
क्यों तूँ आँख भिंगोता है ।।

साथी संग तूँ हंसना सीख
साथी संग तूँ गसना सीख ।।
जीवन एक चुनौती भी है
हर चुनौती से लड़ना सीख ।।

शिकवा गिले भुलाकर चल 
साथी से हाथ मिला कर चल ।।
साथी कभी नही होता छोटा
साथी को शीष झुकाकर चल ।।

विनम्रता सदा मान बढ़ाती 
विनम्रता सम्मान दिलाती ।।
साथी के प्रति विनम्र रहो
यह विनम्रता ही रंग लाती ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 04/04/2019

टेढ़े मेढ़े रास्ते, 
फिर भी दृश्य सुहाना
बेर ,जाड़ सब मेरे अपने से ,
खड़ा मुंडेर पे ,बरगद,वही पुराना
फुरसत में यदि जीना चाहो तो
साथी मेरे गांव चले आना।

दिखती टीलों से ,तलहटी 
दिखता पोखर ,नदी रेत किनारे,
सांझ ढले चौपालें लगती,
करते आपस में, दिलों के वारे न्यारे।

अच्छा लगता है मिल बैठ बतियाना
फुरसत से यदि जीना चाहो तो,
साथी मेरे गाँव चले आना।

बैलगाड़ी पर बैठ कभी
दूरस्थ खेत खलिहान को जाते ।
बेलों की पदचाप बजती घन्टी
स्वरों के मधुर नाद ,
कानों में रस भर जाते ।

थक हार कभी हम
रामू डालू, संग,
देवा के रुक जाते ।
हर भोर सुहानी लगती,
सांझ को ,गायों के बछड़ो का ,
बगियाना,
फुरसत में यदि जीना चाहो तो,
साथी मेरे गाँव चले आना।

संग डोर के बंधी, बॉलटी
पनिहारिन डेरे डालती
भोर में ,सु बालाओ का
लगा रहता आना जाना,
फुरसत में यदि 
जीना चाहो तो,
साथी मेरे 
गाँव चले आना।

सांझ का जलता ,चूल्हा
कभी कैर सांगरी,
सरसों ,और बथुआ,
बाजरे संग माखन रोटी,
मकई के साथ, 
माँ के हाथ का खाना
फुरसत मिले यदि तो
साथी मेरे गाँव चले आना।

पी राय राठी
भीलवाड़ा, राज

तर्ज- मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोए

भले हो उजाला भले हो अँधेरा

जहां साथ तेरा वहीं हो बसेरा।

सभी राज दिल के अभी जान लें हम
बँधी डोर तुमसे यही मान लें हम
करो आज वादा न तुम छोड़ दोगे
लगाकर कभी दिल न तुम तोड़ दोगे
जनम तक रहे संग तेरा व मेरा
जहां साथ तेरा वहीं हो बसेरा।

लिखे गीत मैंने सुनो आज तुम भी
हमारे मिलन के बुनो ख्वाब तुम भी
अलग एक गाथा हमारी तुम्हारी
तुम्हीं आज पूजा तुम्हीं हो ख़ुमारी

अभी जिंदगी में हुआ है सवेरा
जहां साथ तेरा वहीं हो बसेरा।

बनी हीर रांझा हमारी कहानी
लिखेंगे नया छोड़ बातें पुरानी
सभी अप्सरा को जमीं पर उतारे
हमारे मिलन की गवाही सितारे

हमेशा बने तू प्रिये साज मेरा
जहां साथ तेरा वहीं हो बसेरा
भले हो उजाला भले हो अँधेरा
जहां साथ तेरा वहीं हो बसेरा

इति शिवहरे

विषय .. साथ/साथ
शैली .. लघु कविता 
*******************
🍁
मन के साथी मित पुराने,
अब वो साथ नही है।
यायावर बन नील गगन मे,
उडते दूर कही है ।
🍁
याद आते है बचपन के दिन,
सभी पुराने साथी।
मिले कोई तो बतला देना,
शेर जले बिन बाती।
🍁
उष्ण धरा है हृदय पटल का,
ओस गिरे ना पानी।
रहे पुराने दिन ना अब है,
साथ ना कोई साथी।
🍁

स्वरचित ... Sher Singh Sarraf

लिए हम तुम हाथों में हाथ 
जीवन भर रहे तुम्हारा" साथ "

फलक पर जब तक हैं चाँद तारे
यूँ हम साथ देखें रंगीन नजारे 

आओ चाँदनी रात में करें मीठी बात 
तुम्हारे साथ लगती है अमावस भी जैसे चाँदनी रात 

आओ कि एक हो जाएँ हम तुम 
साथ मिलकर एहसासों में हो जाएँ गुम 

तुझको "तनु " लेकर चलूँ मैं उस जहान में 
हो तू रहे मालिक मेरे दिल के मकान में ।।

तनुजा दत्ता (स्वरचित)

आज का विषय साथी,
हाइकु मुक्तक,1/
जग सूना है/साथी तेरे वैगर/हंसू तो कैसे/

छेड़े अनंग/कसके अंग अंग/हंसू तो कैसे/
जीवन लता/एक क्षण हंसती/क्षण में रोती/
मेरे नयन/सावन मेघ बने/हंसू तो कैसे।।1।।
देवेन्द्र नारायण दासबसना।।
2/तुमको पा के/सपने सच हुए/जीवनसाथी/
ठूंठ जिदंगी/फिर से हरी हुई/जीवन साथी/
डसती रही/हर पल मुझको/सांप बनके/
तुमको पा के/रात हंसती गाती/जीवन साथी।।2।।
देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।
स्वरचित।।

अगर साथ हैं ईश हमारे,
तो नहीं साथी हो कोई।
इनसे न कोई बडा हितैषी,
सर्व जगत जानता सोई।

धीरज धर्म मित्र अरू नारी,
यदि काम समय पर आऐं।
प्रभु इच्छा ही समझें इसको,
जो समय पर साथ निभाऐं।

सच्चा साथी सत्साहित्य है
हमें सदा इससे प्यार बढाना।
स्वयं को समझें क्या हैं हम,
पहले सुख साहित्य जुटाना।

ज्ञानीजन विद्वान मिलें कहीं ये
अपनत्व ज्ञान ही सच्चा साथी।
नहीं रुपरंग जातपात को देखें,
केवल निस्वार्थ प्रेम का साथी।

स्वरचितः ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.

💐💐🌹🌹
जिंदगी लगती अधूरी,
गर कोई साथ ना हो।
हो जाती है पूरी,
साथी जो कोई साथ में हो।

मित्र गर साथ दे तो,
लगती हर मंजिल आसान।
हनुमान ने दिया साथ राम का,
कर लिया सागर में सेतु निर्माण।

हनुमान के साथ मिलकर,
हो गया हर काम आसान।
सीता को ले आये जाकर,
हनुमान के संग श्री राम।

कृष्ण सुदामा का साथ,
अजर अमर रहेगा।
वर्षों के बिछुड़े जो मिले,
उनका साथ याद रहेगा।

अकेले चना भांड नहीं फोड़ता,
अकेले कोई कुछ नहीं कर सकता।
साथ जो दे,दे कोई,
हर काम पूरा हो जाता।

जिंदगी में चलने को,
किसी का साथ जरूरी है।
अकेले जिंदगी वीरान लगती,
एक दूजे का चलना,साथ जरूरी है।।
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी

विधा : - छंदमुक्त 
🖐👏🙏🤝
एक हाथ के है पाँच सारथि
देते हमें नेक ज्ञान
भिन्न है हर सारथि की आकृति
कराते हमें हर परिस्थितियों से पहचान। 

कर्म के राह पर
चलना सिखाते
मेहनत कर हमें उन्नत बनाते 
देते एकता का सोपान
कर बंद मुट्ठी कराते शक्ति से पहचान।

एक हाथ मनचलों पर
लगाम लगाता 
साथ कर अपने सहयोगी को
फिर विन्रम बन जाता, 
करता प्रोत्साहित जब यह
तालियाँ बजा मधुर ध्वनि सुनाता। 

थामते जब हम हाथों में कलम
बनकर यह साथी कलम के
लिखते हैं कितने भाव अविरल। 

स्वरचित: - मुन्नी कामत।

समान्त - आयें , पदांत - साथ सभी 
🍑
🌿🍅 गीतिका 🍅🌿🍑

🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒

दिलों में प्यार का दीपक जलायें ,साथ सभी ।
चलें फिर एक होकर मुस्करायें , साथ सभी ।।

सियासत ने हमें तो बाँट कर नफरत दी है ,
प्रीति से आपसी खाई मिटायें , साथ सभी ।

दिलों के फासलों को अब मिटाना है अच्छा ,
सभी मिल हर्ष की बगिया खिलायें ,साथ सभी ।

नफरतों से गमों की घटा छाई है चहुँ दिश ,
फिजाओं में खुशी के रँग मिलायें ,साथ सभी ।

हमारे पूर्वजों ने है सिखाया अपनापन ,
उन्हीं की सीख को खुद में समायें ,साथ सभी ।

हमेशा स्वार्थ में जी कर बने हैं बेरहमी ,
दुखी के दर्द में खुद को बिठायें , साथ सभी ।

जमाने में नहीं कोई पराया है मितवा ,
गले मिल हर्ष से अपना बनायें , साथ सभी ।।

🍑🌿🍋🍃🍅🍈🌲🍓

🍅🍃** ....... रवीन्द्र वर्मा , आगरा

सुगंध सुमनो की

मुरझाए पराग

फूल उपेक्षित क्यों फूला

महक जाती उर में आग

दोनों ओर प्रेम पलता

पतित पतंगा भी जलता

शीश हिलाकर दीपक कहता

है कितनी विह्वलता

हाय कितना करुण साथ 

पथ में विछ जाते पराग

यह अनुराग भरा उन्माद

घुल जाती होठों से विषाद

लुट जाता संचित विराग

कैसा है यह तेरा साथ..।

स्वरचित सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज

(जनाब बशीर बद्र साहिब की एक ग़ज़ल है....'ये कसक दिल की दिल में चुभी रह गयी.... ज़िन्दगी में तुम्हारी कमी रह गयी'...उसी ज़मीन में लिखी ग़ज़ल...आपके सुपुर्द...) 

शमअ तन्हा जली तो जली रह गयी...
ज़िन्दगी बिन तुम्हारे थमी रह गयी...

चाँद तपता रहा नभ की अमराई में..
बन सँवरके ठगी चाँदनी रह गयी...

मुड़ के देखा तो था कुछ न बोला मगर... 
एक उम्मीद जलती बुझी रह गयी...

उम्र भर इम्तिहाँ में रही ज़िन्दगी....
बेबसी में महब्बत घुटी रह गयी....

शब् भिगोती रही सुबह रोती रही....
जां सुबकती सुबकती मेरी रह गयी...

कुछ न आता नज़र सब से हूँ बेखबर...
पल हरिक शै तेरी ही छवी रह गयी....

संगज़ाँ ज़िंदगी तेरी आमद नहीं... 
राख लोटे में जैसे भरी रह गयी...

उम्र भर साथ देता यहां कौन है...
याद तेरी मेरा सँग बनी रह गयी.....

जीत लाया ज़मीनों जहां सब मगर....
*ज़िन्दगी में तुम्हारी कमी रह गयी*....

संगज़ाँ = जां मुश्किल से निकलना 

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 

०४.०४.२०१९

विधा :गीत
****
राह देखती ये अंखियां ,कैसे कटे दिन विरहन के
काटे नही कटती अब रतियाँ,ओ साथी मेरे मन के ।

कब आओगे खत लिख दो 
तुम बिन रहा न जाये 
तुम बिन ये श्रृंगार अधूरा
पल पल याद सताए
सूना पड़ा ये घर चौबारा
तुम शोभा घर आँगन के
राह देखती ये अंखियां ,कैसे कटे दिन विरहन के
काटे नहीँ कटती ये रतियाँ,ओ साथी मेरे मन के ।

जल की एक बूंद हो तुम
इस जीवन के मरुधर मे
बसंत की मुग्ध बयार हो
तुम पतझड़ के मौसम मे 
आकर अमृत वर्षा कर दो
,तुम इस महीने सावन के
राह देखती ये अंखियां ,कैसे कटे दिन विरहन के
काटे नहीँ कटती ये रतियाँ,ओ साथी मेरे मन के ।

तुम बिन जैसे तारे बिन गगन 
तुम बिन सूनी है डगर
तुम बिन अब चैन नहीँ,
तुम बिन जैसे जल बिन कमल
अब आ जाओ प्रियतम मेरे,
बांधो जन्मों के बंधन में
राह देखती ये अंखियां ,कैसे कटे दिन विरहन के
काटे नहीं कटती ये रतियाँ,ओ साथी मेरे मन के ।

स्वरचित
अनिता सुधीर

विषय - संगी साथी
विधा - छंद मुक्त

संगी साथी मेरे सजना
आज मुझे कुछ तुमसे कहना
बाबुल का घर छोड़ा जिस दिन
संग तुम्हारे हो ली उस दिन
संग साथ अब जीवन भर का
हमें निभाना पल पल छिन का
सुख दुख सब बांटेंगे मिलकर
होठों पर मुस्कान रहेगी
धूप छांव सब जीवन भर की
तेरी मेरी संग रहेगी 
सपनों का संसार सजेगा
दिल धड़कन का साज बजेगा
आँगन में बिरवा रोपूंगी
खिल उठेगा मेराअँगना 
नन्हें नन्हें सुमन खिलेंगे
चमन सा महकेगा मन अँगना
एक दूजे पर रंग मलेंगे
पिचकारी की होंगी बौछारें
दिवाली के दीप जलेंगे
खुशियों के होंगे फव्वारे
झूमे गाएंगे हम दोनों
बाजेगा फिर मेरा कंगना
मौसम आये जाएं कितने
अपना संग न छूटे सजना

सरिता गर्ग
स्व रचित

गुरुवार 

माँ तुम्हारा साथ जो मिल जाएगा,
स्वप्न मेरा सत्य ही हो जाएगा। 
चाँद- तारे कुछ नहीं मेरे लिए,
यह जहां मुट्ठी में मेरी आएगा ।

चाँद को छू लूंगी मैं खुद हाथ से ,
तुझसा साथी साथ मेरे आएगा।
तेरे आँचल की ही शीतल छाँव में, 
मुझको कोई कष्ट न मिल पाएगा। 

तेरी ममता का मिला संबल मुझे,
जिसके बल पर रास्ता कट जाएगा।
तूने ही मुझको दिखाया रास्ता ,
साथ तेरे हौसला बढ़ जाएगा। 

लक्ष्य पा लूँगी मैं जीवन मार्ग का,
मन-सुमन आनंद से खिल जाएगा।
विघ्न -बाधा मुझको रोकेगी नहीं ,
तेरा आशीर्वाद जो मिल जाएगा। 

स्वरचित 
डॉ ललिता सेंगर

िधा- कविता
****************
डगर बहुत हैं कठिन जीवन की, 
जीवन साथी जानो तुम मेरे मन की,
तुम बिन एक कदम न चला जाये, 
तेरा हर एक फैसला मुझे भाये |

जीवन की डोर यूँ जुड़ी है तुमसे,
जानते हो तुम हमें, ज्यादा हमसे, 
साथ तुम्हारा ही है ताकत हमारी,
साथी हो तुम मेरे खुशनसीबी हमारी |

जीवन गाड़ी के दो पहिये हम हैं यारा, 
मैं नदी हूँ तुम हो जीवन जल धारा,
बस यूँ ही प्यार तुम बरसाते रहना,
साथी तुम हो सबसे अमूल्य गहना |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

सफर के दौरान अकसर कुछ नये लोगों का साथ मिल जाता है ....जो फिर यादें बन जातीं हैं ....कुछ सुहानी तो कुछ तल्ख़........

चलो अच्छा है .....
**************

सफ़र में जितना भी मिले साथ,चलो अच्छा है
चलते-चलते हो जाए मुलाक़ात,चलो अच्छा है।

अपने ग़म की हो नुमाइश हमें कभी गवारा नहीं
पोशीदा ही रहे दिल में जज़्बात,चलो अच्छा है।

तसववुर में भी कोई,मुक़कमल साथ नहीं होता
कुछ आधे-अधूरे से हैं ख़यालात,चलो अच्छा है।

मानिनद-ए-दरिया नहीं,अब चश्मे-नम की रवानी 
अब सहमी सी गुज़रती है बरसात,चलो अच्छा है।

तन्हा इक हम ही नहीं,अहल-ए-ज़हाँ! तेरी बज़्म में 
चाँद भी तन्हा सा है आज की रात ,चलो अच्छा है।

ख़्वाहिशों का हुज़म और मुख़्तसर सी ये ज़िंदगी 
वक्त रहते याद आ गई औक़ात,चलो अच्छा है।

क्यूँ करे रायगाँ ये ज़िंदगी ज़वाबों की जुस्तज़ू में
रह जाए कुछ उलझे से सवालात,चलो अच्छा है।

जन्नत की आरज़ू भी जाती रही बशर के दिल से 
शायद उधर भी है ग़रदिश -ए-हालात,चलो अच्छा है।

शब-ए-हिज्रात लंबी सही,मगर ख़त्म तो होगी कभी
दिल बहलाने को क़ाफी ये एहसासात,चलो अच्छा है
स्वरचित(C) भार्गवी रविन्द्र...... oct 2018
All rights reserved (C)Bhargavi Ravindra

पोशीदा -छुपा हुआ ; तसववुर -ख़याल ; मुककमल - पूरा 

चश्मे - नम - आँखों का पानी ,आँसू ; हुजूम - भीड़ ; 

अहल ए जहाँ - दुनिया वाले ; बज़्म -महफ़िल ,मुख़्तसर - छोटी सी 

रायगाँ - व्यर्थ , जु़स्तज़ू - तलाश ; बशर - इंसान ,शब ए हिज्रात -जुदाई की रात

🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
नजाना सा सफर था
कुछ लम्हों का यह मिलन था
अनजानी राह में 
मंजिल की चाह में 
अजनबी एक-दूजे से
अनजानी डगर थी
चला सिलसिला बातों 
ख्यालों से ख्याल मिले
नयनों से नयन मिले 
अहसास कुछ छलक पड़े
अधरो पर मौन लिए 
कुछ क़दम और साथ चले
मन में छिपे हुए भाव 
नयनों से झलक उठे
हृदय की धड़कन में 
गीत कोई बजने लगा
अनजाना सफर 
अब पहचाना लगने लगा
ख्यालों में तुम संग 
ख्वाब कोई बुन गया
मुँद गई पलकें सहसा 
तस्वीर तेरी झलक गई
सांँसों की डोर 
तुम संग बंध गई
प्रीत का अहसास 
मन को लुभाने लगा
साथ हमसफ़र का 
मन को रास आने लगा
जाने कब मैं बन गई 
तेरे जीवन की रागिनी
बातें कब तेरी
मन को रास आने लगी
पतझड़ के मौसम में
बहार खिलखिलाने लगी
अधरो पर थिरक उठे 
बोल किसी गीत के
जीवन का अर्थ नही 
अब बिना मेरे मीत के
साथ कुछ लम्हों का 
मेरे दिल में समा गया
साथी जन्मों के साथ 
मैंने तेरा है पा लिया
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित

क्या फर्क पड़ता है
मेरे होने या न होने से?
पूछा है जब तुमने
तो बता दूं तुम्हें
अय साथी मेरे!
मेरा वजूद तमाम
बिखर जाता है 
यूं होकर टूकडे-टूकडे
कि सहेजना
हो जाता है नामुमकिन।
साथ बैठ जाती है
तन्हाई, उदासी, बैचेनी।
सुबह की सुनहरी किरणें
अंगारे बरसाती है।
शाम की शोख,ठंडी हवाएं
यादों की बरसात ले आती है।
एक तुम्हारी गैरमौजूदगी,
सबके हौसले बढ़ा जाती है।
है गुजारिश तुमसे
कर लो चाहे जितने सिकवे-गिले,
मत छोड़ कर जाना मुझे।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

शीर्षक-साथ/साथी
जब कोई ना दे साथ मेरा
तब तुम देना साथ प्रभु
जब विचलित हो मन मेरा
तब देना जरा ध्यान प्रभु।

जब कभी मैं भूल भी जाऊँ,
तुम रखना याद प्रभु,
जब तक रहूँ मैं अचला पर
खंडित न हो विश्वास प्रभु।

कलि काल मे तुमसा प्रभु
ना संगी ना साथी प्रभु
अंतर बाह्म मैं एक सा रहूँ
करना ऐसा उपकार प्रभु।

मैं भोगी,तुम योगी प्रभु
फिर भी देना साथ प्रभु
मै लौकिक, तू अलौकिक प्रभु
फिर भी देना साथ प्रभु

सत्कर्म मैं हमेशा करूँ
ताकि तुम दो मेरा साथ प्रभु
सच्चा साथी तुम ही हो
समझ गई मैं बात प्रभु।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।

"छंदमुक्त"
🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝
साथ तेरे चलने की खातिर
जग सारा छोड़ के आई।

इन राहों में रहगुजर जो मिला
उन रिश्तों से मुँह मोड़ के आई।

कुछ बंधनों से बंध गई थी मैं
क्यूँ बंधन सारे तोड़ के आई।

बुद्धि से कभी मैं न सोपान चढ़ी
और न ही दिल परवान चढ़ा।

भावो की नदी में बहती रही
जख्मों सी लहरों को झेलती रही।

सदाचार के साथ चलती रही
अनाचार से बगावत करती रही।

साथ न मिला अपनों का यहाँ
जिसे परिवार मैं समझती रही

मिल रहे गमों को सहलाती रही
अश्कों से गम गलत करती रही।

बहते हुए सागर तक जा पहूँची
सभी के साथ जो बह के आई थी।

गंदगियों के साथ दरकिनार कर
तट के मुहाने में लगा दी गई।

खामोशी से देखती रही
सोचती रही---
नियति क्या मेरी यही थी!!

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल

मिलोगे न तुम मुझे,
मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से देखा ?
उसकी तरफ,अभी हो तुम, वहां होंगे न मेरे साथ-
वो मुस्कुराया उसकी आंखें भी मुस्कुरा पड़ी साथ जैसे कह रहा हो
क्यों नही मिलूंगा-देखो तो अपने मन के अंदर झांक कर
जहाँ मैं बसा हूँ ,हर प्रतिपल,हर क्षण, हर लम्हा तुम्हारे साथ,तुम्हारे मन के प्रत्येक अहसास में,
मैं तुम्हें देखता हूँ ,महसूस करता हूँ ,चाहता हूं,पाता हूँ, खोता हूँ, फिर
तुम्हें पाने के लिये 
क्या तुम ये सब महसूस नहीं करती 
मैं तो रक्त - मज्जा के साथ तुम्हारे शरीर की
हर धमनी में बहता हूँ, मौजूद हूँ तुम्हारी हर सांस में ,
तुम्हारा विश्वास व प्रेम
बनकर,
मैं ज़र्रे ज़र्रे में हूँ बस
डूब जाओ और पालो मुझे - मैं हूँ हाँ मैं हूँ तुम्हारा सच्चा साथी,तुम्हारे साथ-तुम्हारा ईश्वर ।।।
अंजना सक्सेना

विधा:-गीत
**************************
हे!मेरे जीवन के साथी
हरदम साथ मेरे रहना,
भटक जाऊं जब भी पथ पर
संग मेरे तब तुम चलना !!
हे!मेरे जीवन के साथी ,
हरदम साथ मेरे रहना.....

विश्वास कभी हो तीतर बितर,
साथ न दे जब कभी अधर !
रिश्ते सारे हो अलग -थलग,
अपने सारे हो जब कभी विलग |
विश्वास डोर पकड़ हे प्रिये,
रोम-रोम में तुम रमना !!
हे!मेरे जीवन के साथी ,
हरदम साथ मेरे रहना !!

मुश्किलों ने जब घेरा हो,
पथ में आफत जहां खड़ा हो|
रास्ता भयानक यहां दिखे जब
सारे अपने अलग पड़े सब !!

सारा तन हो थका हुआ,
हौसला जब हो रुका हुआ !
बुझते दीपक को दे हवा तुम,
जज्बातों संग तुम भी बहना !
हे! मेरे जीवन के साथी ,
हरदम साथ मेरे रहना !!

जब कभी बिखर जाऊं टूटकर,
जाऊं जग से कभी छुटकर |
मधुरंग सारे फीके पड़े जब,
अपने ही अपने मे रहे अड़े जब!
सब रंगों में रंग जाऊं मैं,
ऐसा रंग मुझ पर बरसा देना !!
हे!मेरे जीवन साथी,
हरदम साथ मेरे रहना !!

रंजन रज बन जब गुबार बने,
उपलब्धियां अहंकार बने
कोमल ह्रदय हो जब-जब दूषित ,
तन मन होने लगे कलुषित !
तब सुगंधित पुष्प बन,
रोम रोम महका देना !!
हे!मेरे जीवन साथी,
हरदम साथ मेरे रहना !!

बंध भयंकर होने लगे जब,
आस्था मेरी टूटने लगे जब
जीवन के अंतिम पड़ाव हो,
निष्प्राण सांसे घुटने लगे तब,
जीवन के अंतिम छोर पर,
महाप्रयाण तक तुम चलना !
हे!मेरे जीवन के साथी ,
हरदम साथ मेरे रहना !!
**************************
रचनाकार:-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
चांगोटोला, बालाघाट (मध्यप्रदेश )

ल दो पल की होती है बात नहीं, 
यह सिलसिला तो है उम्र भर का | 
हमेशा ही चाहत मन में रही यही ,
हाथ में सदा हाथ बना रहे प्यार का | 

रहे दिलरुबा जो दिल के करीब ,
मन में भाव बना रहे सुकून का |
कोई मिले हमदर्द हो साथी मेरा , 
मिलता रहे आनन्द फिर जिन्दगी का |

माना डगर जिंदगी की कठिन सही ,
धूप ही धूप है नहीं निशाँ है छाँव का |
जो हो अपना हमसफर साथी कोई ,
हमें कोई खौफ हो न फिर खार का |

मन खुश ही रहे हो नहीं कोई वेदना ,
हो एहसास संग सुख दुख बाँटने का |
बहती धारा नदी की तरह रहे जिंदगी ,
मिल जाये साथ जो किसी हमराज का |

दुनियाँ में बनते बिगड़ते कई रिश्ते रहे ,
पर निरंतर बना साथ रहा विश्वास का |
सदा संसार में घर-बार यूँ ही चलते रहे ,
सिलसिला पर टूटा नहीं कभी प्यार का |

साथ साथी का जरूरी है मन के लिऐ ,
मिल जाता जब कोई सहारा भाव का |
अपना हमराह हो कोई मंजिल के लिऐ ,
चैन से बसर हो जाता लम्हा जिंदगी का |

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश 

साथी / साथ

साथी का साथ,
वो मधुर अहसास,
वगिया में खिले फूल
हजारों से पूछो,
आसमां में रहते,
दुख सुख सहते,
उन चांद तारों से पूछो।
वो नदियों की कल कल,
लगे प्यारी पल पल,
साथ देते मूक किनारों से पूछो।
धरती का वो तपता सीना,
जल बिन कितना मुश्किल जीना,
बारिश की उन फुहारों से पूछो।
मन में उठती प्रेम तरंगे,
खुशीओं से सराबोर उमंगे,
बरसात की उन बहारों से पूछो।
वो बंसी की धुन,
सखा कृष्ण से मिलन,
बृज के गवालों हजारों से पूछो।
वो विचित्र स्नेह,
कह सका न, दे,
सुदामा से कंगाल यारों से पूछो।
मोल उस साथ का,
दया के हाथ का,
द्रौपदी जैसे बेचारों से पूछो।
संग अन्याय का,
हश्र होता है क्या,
दुर्योधन जैसे मक्कारों से पूछो।
देशद्रोह बुरा है,
इतिहास गवाह है,
जयचन्द जैसे गद्दारों से पूछो।
साथ न्याय का कर
ओर रहो बेफिक्र
बिभीषण से भक्त न्यारों से पूछो ।
दुनिया हैवान है,
कहां ईमान है,
लुटकर बैठे लाचारों से पूछो।
कृष्ण ही सखा है,
कण कण में बसा है,
बृज की गली गलियारों से पूछो।
साथ उसका सही,
यूं ही कहता नहीं,
भक्तों पे किए उपकारों से पूछो।

जय श्री राधे 🙏🙏

स्वरचित : राम किशोर, पंजाब ।

साथ चलकर तेरे
मेरी हंसी खिलखिलाये
तू बसे रूह में मेरे
मेरी दुनिया तुझी में समाये 
मेरा हाथ हाथों में तेरे
कष्टों को मेरे मिटाये
लेकर सात वचनों के फेरे
तू मेरी प्रीति निभाये
प्यार में तू ने मेरे
कितने कष्ट हैं उठाये
मेरे सपने बने सपने तेरे
हमने साथ चलकर संजोये
साथ चलकर तेरे
मेरी हंसी खिलखिलाये

मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित

चलो एक साथ चलें हम 
होठों पर खुशियाँ जो लायें वो उगती प्रभात हैं हम 
एक दूसरे का अटूट साथ हैं हम 

एकदूसरे का आत्मविश्वास हैं हम .

हम दोनों का साथ और रिश्ता हैं बड़ा निराला 
जिंदगी भर का ये साथ जिसे दिल से हमने संभाला
साथ एक दूसरे के हम रहते ये हैं दस्तूर 
कभी हँसते कभी रोते फिर दूर भी कभी नहीं होते .

मुझे रिश्तों का भरे बाज़ार से कुछ नहीं लेना देना 
जिंदगी में तुम्हारा साथ मेरे लिये ये बहुत हैं 
तुम प्रेम से एक बार मुस्करा दो 
जिंदगी की धूप और छाँव में इतना काफी हैं .

तुम्हारे साथ मिल जाने से जिंदगी में बहार आई 
दिल की चाहतों को फिर मंजिल मिल गई 
पतझड़ में फिर से फूल खिल गये
तुम्हारा साथ मिल जाने फिर से नवजीवन मिल गया .
स्वरचित:- रीता बिष्ट

"तुम हो मेरी 
जीवन साथी
कभी न 
रूठ जाना ।"
कहा मैंने
रोमांटिक मूड में
पत्नी से

" साथी , 
साथ निभाना
कहते हो ईधर 
और
झांकते ऊधर हो 
पडौसन को ।"

मैंने भी कहा
बेरूखी से :
"आँखे देखने को
कुदरत ने 
मैं बस रुख़सत
करता हूँ उनसे ।"
मैने भी कह दिया
बस चिढाने के लिए

अब उसने 
मारा चाँटा 
झन्नाटेदार
गाल पर
और बोली वह:
" हाथ दिए हैं 
मारने के लिए 
कुदरत ने 
मैं बस 
यूँ ही आजमा 
रही थी तुम्हारे 
गाल पर
जीवनसाथी 
हो तो रहो 
बन कर साथी मेरे
मत होओ
बेलगाम हाथी मेरे "

पाँचों ऊँगली उझल 
आई गाल पर
अब मैं बोला 
हाथ जोड़ कर :
" साथी साथ निभाना
भटक जाए पति 
गर तो जम के
हाथ जमाना
साथी साथ निभाना ।"

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

विषय-साथी/साथ

साथी जबसे तुम मेरे बने,
साथ बुने हमने सपने।

नयनों ने प्रेम-पुष्प चुने,
भावों के सुंदर हार बने।

मेरे जीवन का श्रृंगार हो तुम,
हर सफर में साथ रहेंगे हम।

मैं वीणा हूँ, संगीत हो तुम,
मैं दिल हूँ , तो धड़कन हो तुम।

हम दोनों का अस्तित्व भी एक,
अहम न हो,सदा हो विवेक।

सुख-दुख कितने ही आएंगे,
हम मिलकर साथ निभाएंगे।

एक सुंदर - सा संसार अपना,
बस प्रेम भाव से सहज बना।

जीवन का यह सुंदर सफर,
तेरे साथ ही पूरा हो हमसफर।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

ंदमुक्त कविता 
विषय:-"साथ" 

साथ सभी हैं 
साथी कौन होता है ,
वक्त रिश्तों का
कडा इम्तिहान लेता है।
कहीं साथ बँधन,
तो कहीं ..
स्वतंत्र होता है,
कहीं बोझ, समझौता
तो कहीं...
जीने का मंत्र होता है।
कोई पराया हो कर भी
दामन थाम लेता है,
तो कोई अपना हो कर भी
'साथ' छोड देता है ।
तो..
इस छोडने-थामने में भी
कहीं स्वार्थ होता है,
खुशनसीब है जहाँ
'साथ' निस्वार्थ होता है
वहाँ ..
प्रेम और विश्वास का
वास होता है
शायद..
वही सच्चा साथ
और..
'साथ' का अर्थ होता है...

स्वरचित 
ऋतुराज दवे

साथ जो रहने की आदत हो गई।
जुदाई पल भर की आफत हो गई।


बदलने लगा है जमाने का सुलूक।
कमजोरियों जब से ताकत हो गई।

जब से देखी सनम की अंगड़ाइयां।
हाय इस दिल पर कयामत हो गई। 

आप के रुखसार पर ठहरी नजर।
तो आज शर्मिंदा नजा़कत हो गई। 

आके मिल जाओगे सरे राह तुम।
हम ये समझेंगे जियारत हो गई। 

बेरूखी हैं बेसबब क्यों आपकी। 
हमसे क्या ऐसी हिमाकत हो गई। 

सच कहूँ तो सच में लगता है डर। 
जब से खतरे में शराफत हो गई। 

विपिन सोहल

तुम बहती नदिया की धारा, तेरे साथ चलती रहूँगी,
तुझे खुशी देने का वादा,हर पल मैं करती रहूंँगी।

(१)

अर्ध चन्द्र की धवल निशा में,तेरे संग संग चलूँ पिया ,
अधरों पर आने से पहले,हर बात जान जाऊँ जिया ।
प्रीत रीत के सम्मोहन में, मधुर गीत रचती रहूंँगी
तुझे खुशी देने का वादा,हर पल मैं करती रहूंँगी।

(२)

छोड़ बेरुखी तुम पास आओ,अपना सब हम तुम को देंगे।
तेरे नैनों के अश्कों को,चातक जैसे हम पी लेंगे।
नेह प्रेम की इस बगिया में, घट भावों का भरती रहूंँगी,
तुझे खुशी देने का वादा,हर पल मैं करती रहूंँगी।

(३)
खेल नहीं मेरे भावों से, धागा प्रेम रेशम सरीखा,
मत बोना आँखो में आँसू , संयम बस मैंने है सीखा।
रीति रचित सौगंधों को मैं,पोर पोर पिरोती रहूंँगी,
तुझे खुशी देने का वादा,हर पल मैं करती रहूंँगी।

तुम बहती नदिया की धारा,तेरे साथ चलती रहूंँगी,
तुम्हें खुशी देने का वादा,हर पल मैं करती रहूंँगी।

चंचल पाहुजा
दिल्ली

विधा---मुक्त
***********************
हम सब पुतले जीवन-मृत्यु के
सुख के साथ दुख की लहरें
रंध्र रंध्र में बहती है
एक आँख मुस्काती संग में दूजी आँख से गिरते मोती

उषा -निशा ,दिवस-रात में
चार पहर की दूरी है
फिर भी जब जब बात उठे उषा,दिवस की साथ निशा और रजनी भी है

दरिया के किनारों में भी दूरियां पर्याप्त है
फिर भी दो भुजाओं की भाँति दोनों संग साथ है

उपवन की शोभा फूलों से
पर कांटो बिन शोभित नहीं
सरताज डाल के फूल बने तो
कांटे डाल के साथ रहे

धरा-गगन की इक दूजे के पूरक
इक प्यासा दूजे की प्यास बुझाये
कभी धरती जल देती तन का
कभी बरस आकाश धरती की प्यास बुझाये

जीवन के हर रिश्ते में 
सुख- दुःख का साथ है।

डा.नीलम.अजमेर
स्वरचित

साथी/साथजीवन साथी बिन कहाँ, जीवन मे आराम
उसकी हर मुस्कान से,खिलती मन की शाम।।

आओ बैठो साथ मे,ओ साथी दिलदार
तेरे मेरे बीच की,दूर करें दीवार।।

मुस्कानों से बांट ले,साथी मिलकर प्रीत
पतझड़ भी सावन लगे,गाए मधुरिम गीत।।

साथी तेरे बिन सदा,जीवन मे है क्षोभ
क्षण है बिता जा रहा,त्याग क्रोध अरु लोभ।।

ईश्वर ने मुझको दिया,अनुपम यह उपहार
दोनों मिलकर रच रहे,,खुशियों का संसार।।

वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित।

विधा-हाइकु

1.
अपने साथी
न हों विश्वासघाती
मार्गदर्शक
2.
कृष्ण सुदामा
बचपन के साथी
खेले साथ में
3.
जीवन साथी
बनते हिमायती
इक दूजे के
4.
कलम साथी
बढाती रिश्ते नाती
लिखती पाती
5.
मित्र का साथ
व्यवहार की बात
पसंद मुझे
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा

विधा - छंदमुक्त

आशा का एक
नन्हा सा दीप जला मन में,
कर रही नित नया-नया सृजन
आज नही तो कल,
उभरेगी, निखरेगी जरूर मेरी कलम।

सोचूँ, ले विश्वास को साथ,
रच डालूँ, लिख डालूँ
एक-एक शब्द ऐसा जो,
छूकर हर हृदय को गहराई से
कर देगा विवश.......
नयनों को, नीर बहाने को,
मस्तिष्क को, सोचने को और
दिल को, महसूस करने को।

चाह बस इतनी सी,
जीऊँ जब तक इस धरा पर,
लेखनी बने मेरी #साथी और,
दिलाती रहे मुझे सबका,नेह और विश्वास।

चाहती हूँ....….
चुरा समय से कुछ पल अपने लिए,
जी भर जीना,
लिखना चाहती एक नई परिभाषा,
लिए बेशुमार स्नेह और दुलार
#साथी कलम के #साथ,
समझाना चाहती हूँ प्यार की भाषा।

........बस मन यही एक छोटी सी आशा,
जी, हाँ बस यही एक............😊🙏🙏

स्वरचित
©सारिका विजयवर्गीय"वीणा"
नागपुर (महाराष्ट्र)

मिला साथ तेरा है जब से मुझे सुन
गुलों सी महकने लगी ..जिंदगी भी.......
कभी थोड़ी खट्टी, कभी थोड़ी मीठी
चलती है यादों के सँग ...जिंदगी भी.......
कदम दर कदम साथ बढ़ते रहे हम
बजे जलतरंग की तरह.. जिंदगी भी.......
किया कोई वादा न तुमने ..कभी भी
अधूरी कभी न रही .......जिंदगी भी.......
तमन्ना यही हर ख़ुशी.... और ग़म में
फ़लक चूम जीता करे ...जिंदगी भी.....
निभाएंगे हरदम तेरा साथ ...हमदम
जनम सात लेती रहे..... जिंदगी भी......
रजनी
न्यू दिल्ली

साथ, साथी

चार कदम साथ चलने से 
कोई हमकदम नही होता 
चंद सफर का साथी कोई 
हमसफर नही होता 
सरे राह जो चल पङे साथ 
वो हम राह नही होता 
सिर्फ मुस्कुरा के बात करने से 
कोई हमदम नही होता 
जीवन भर जो साथ निभाये 
दुख सुख पीङा सब अपनाये
सदा साथ साथ जो चलता 
वो ही जीवन साथी होता ।
स्वरचित 
कुसुम कोठरी 

साथ/ साथी
खो गई वो मुस्कान कहीं,
जो मेरे होंठों पर मेरी रहती थी,
थाम लेते थे तुम हाथ मेरा,
जब नैनों से धारा बहती थी,
तेरा साथ था जब पिया,
सपने नए बुनती थी,
ना आता था चैन मुझे,
जब आवाज तेरी ना सुनती थी,
ओ साथी हमदम मेरे,
तू क्यों मुझसे रूठ गया,
वादा था साथ निभाने का,
छोड़ अकेला तू चला गया,
यादों को लेकर साथ पिया,
जीवन पथ पर चलती हूँ,
लेकर आँसू आँखों में,
मैं हरदम हँसती हूँ,
मार लगी दुखों की मुझपर,
ना टूटने दिया खुद को मैनें,
खुदको मैंनें है सँवारा,
आत्मबल के पहन के गहने।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
4/4/19
वीरवार

विधा- हाइकु
विषय -साथी

(१)

वक़्त समुद्र
विपत्तियाँ मंथन
मिलता साथी

(२)
जीवन धारा
सुख दुख किनारा
साथी सहारा

दूसरी रचना

साथी
दो वर्ण
मात्राओं का साथ
गागर में सागर
भरता शब्द ज्ञान
साथ देने वाला
साथी ही कहलाएगा
मूल उसका जानना
जटिल अवश्य हो जाएगा
सुख में साथी 
स्वतः बन जाते
दुख के दिनों में
ईद का चाँद बन जाते
स्वार्थ का ना हो अंश मात्र 
वे ही सच्चे साथी मित्र
दुख बँटाते भार घटाते
ऐसे साथी मान बढ़ाते
मतलब से जो साथी बनते
रिश्ते ऐसे पल भर चलते
साथी सोच समझकर चुनना
सच्चा साथी सदा संग रखना 

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित

भावों के अंगार पर दहकन पिया तेरे प्यार की
दे रही एहसास मुझको तुम हो कहीं मेरे पास ही

साथ मेरे जीवन के पथ पर रखना कदम हर बार ही
हो डगर खामोश लेकिन तुम चहकना अनायास ही

जब तुम थक जाओगे सफर मे थाम लूँगी बाँह ही
तब खुले केशों से मिलेगी ठंडी हवा और छाँव ही

मंद झोकें जब चलेंगे बीती याद सुलगेंगी बडी
तब न रहूंगी साथ तेरे मन की डोरी हिलेगी बडी

यादों के झूले झूलना इन्सान की प्रकृति है यही
रुठना और फिर मनाना जीवन में उमंग भरते यही

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
4/4/2019
दिन-गुरुवार

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