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ब्लॉग संख्या :-361
।। असंतोष ।।
असंतोष ही असंतोष है हर कोने में
नींद की गोली लेय इंसा अब सोने में ।।
एक ख्वाब पूरा नही हो पाया कि
दूसरा ख्वाब लग जाये संजोने में ।।
चार दिन को ही यह मिली जिन्दगी
लगा है दुनिया की दौलत संजोने में ।।
नीति अनीति सब ही विसराये हैं
कितने पापों को लगा वह ढोने में ।।
संतोष ही सुख का मूल कहाये है
संतोष को ही लगा वह खोने में ।।
असंतोष में अन्तस की मुस्कान कहाँ
वो मुस्कान 'शिवम' स्वस्थ मन होने में ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 17/04/2019
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17अप्रैल2019असन्तोष
नमन मन्च।
सुप्रभात गुरुजनों तथा मित्रों।
सन्तोष सबसे बड़ा धन है,
पर असन्तोष है अभिशाप।
जिसने सन्तोष पा लिया,
वो जग से तर गया,
पर जिसे है असन्तोष,
वो सदा विचलित हीं रहा।
चाहे जितना भी कमाओ,
सुखी रहो,सन्तोष से रहो
नमक के साथ चाहे रोटी खालो,
पर कभी असन्तोष मत करो।
वही सदा जीवन में है सुखी,
जिसने पाया अनमोल धन सन्तोष,
वो होगा कभी ना दुखी।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
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नमन भावों के मोती ,
आज का विषय , असंतोष ,
दिन , बुधवार ,
दिनांक , 17 , 4 , 2019 ,
अपनी जिदंगी एक बिसात है ,
हर कोई चल रहा चाल है ,
अब इसे खेल भाग्य का कहें ,
या फिर किसी ओर का दोष है ,
असंतोष ही असंतोष है |
घर घर में दो खेमे बने हुऐ ,
आपस में रहें सदा तने हुऐ ,
बस वे अपनी ही अपनी कहें ,
सबके अवगुण ही तलाशते रहें
मन में उगा असंतोष ही असंतोष है |
कहीं पर तो बना महल विशाल है ,
कहीं पर बनी झोपड़ी फूसदार है ,
बात हम अमीर गरीब की क्या कहें ,
दिखती हमको हर तरफ दीवार है ,
अभाव से जगा असंतोष ही असंतोष है |
देश में प्रतिभाएं तो बेमिसाल हैं ,
न जाने क्यों फिर भी बुरा हाल है ,
बेरोजगारी की अब क्या बात कहें ,
हर जगह नकारा ही हुऐ कुर्सीदार हैं ,
आरक्षण से फैला असंतोष ही असंतोष है |
हो रहा है सत्य व्यथित और परास्त है ,
मुख पर फैली असत्य के मुस्कराहट है ,
अब भ्रष्टाचार की हम क्या बात कहें ,
देश में ये जगह जगह पर व्याप्त है ,
इस भ्रष्टता से असंतोष ही असंतोष है |
आपको अगर चाहिऐ संतोष तो ,
इस व्यवस्था ही को बदल दो ,
चर्चा राजनीति की हम बंद करें ,
यहाँ पर सब कुछ ही हमारे हाथ है ,
सही मतदान से संतोष ही संतोष है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
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मंच को नमन
दिनांक -17/4/2019
विषय-असंतोष
मैन ख़ुद ही तो संतोष हूँ
असंतोष मेरी पहचान नही
निज नाम से जानी जाती हूँ
असंतोष मेरा कोई दूजा नाम नही
सुख में हँस लेती दुःख में निखरती हूँ
दुख के घावों से भी अनजान नही
मै ख़ुद ही तो संतोष हूँ
असंतोष मेरी पहचान नही
सफलता भले ही हो हर्षाती
विफलता से पाठ सीख लेती हूँ
मायूसी ,अधीरता से मेरा कोई सरोकार नही
मैं ख़ुद हो तो संतोष हूँ
असंतोष मेरी पहचान नही
आशाओं के दीप जलाकर
नित साधना करती हूँ
अगर निराशा हाथ लगे
फिर भी खोती स्वाभिमान नही
मैं ख़ुद ही तो संतोष हूँ
असंतोष मेरी पहचान नही
अपने कठिन परिश्रम संग
आगे बढ़ती जाती हूँ
अहंकार का तनिक भी भान नही
मैं ख़ुद ही तो संतोष हूँ
असंतोष मेरी पहचान नही
कहना हो जो स्पष्टता से कहती हूँ
चाटुकारिता करना मेरा संस्कार नही
मैं ख़ुद ही तो संतोष हूँ
असंतोष मेरी पहचान नही
जब चाहे जितना मिले
सहर्ष स्वीकारती हूँ
बनकर असंतोषी जीवन में
तृष्णाओं का ढोती भार नही
मैं ख़ुद ही तो संतोष हूँ
असंतोष मेरी पहचान नही
मानवता ही परम धर्म मेरा
भक्ति भाव से जीती हूँ
मौक़ा मिले देश सेवा का
पलायन करना मंज़ूर नही
मैं ख़ुद ही तो संतोष हूँ
असंतोष मेरी पहचान नही
सद्भाव मेरे ताक़त मेरी हैं
अतिशयोक्ति का यह कथन नही
कैसे कह दूँ, कैसे लिख दूँ
असंतोष से मेरा कोई मेल मिलाप नही
मैं ख़ुद ही तो संतोष हूँ
असंतोष का मेरे पास प्रमाण नही
बनकर संतोष ही जीना चाहती हूँ
असंतोष संज्ञा कदापि मुझे स्वीकार नही
मैं ख़ुद ही तो संतोष हूँ
असंतोष मेरी पहचान नही ..........
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
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🌹भावों के मोती 🌹
🌹सादर प्रणाम 🌹
विषय=असंतोष
विधा=हाइकु
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सुविधा पूर्ण
परिणाम है शून्य
है असंतोष
कर्म करिए
भगाएं असंतोष
आए संतोष
मन का रोग
असंतोषी है दुःखी
संतोषी सुखी
झेलते दल
असंतोष बादल
चुनावी वक्त
तरक्की राह
खोलता असंतोष
संतोषी रोके
वही सफल
पहले असंतोष
फिर संतोष
संतों के संग
नहीं हैं असंतोष
लालच परे
गया संतोष
ले आया असंतोष
लालची मन
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
17/04/2019
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"नमन भावों के मोती"
17 /04 /19 --बुधवार
आज का शीर्षक -- "असंतोष"
आ०--रेखा रविदत्त जी
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प्रयास पूरे करें, .. . ......करें हर काम को देकर जोश,
असफ़ल भले हों,..... लेकिन कभी न खोएं अपने होश,
होना तो है वही,. समय और विधि ने जो लिखि राखा,
तेरे हाथ में है प्रयास बस। . ,...... और करना संतोष।
================================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी
आज मानव निराश क्यों
आँखों में उसके अश्रुधारा क्यों
ह्रदय उसका अधीर क्यों
घर कर गई उसके ह्रदय में असंतोष भाव क्यों .
क्यों मिट रही हैं उसके ह्रदय की अभिलाषा
क्यों आज मानव उधास हताश हैं
क्यों अर्थहीन जीवन जी रहा हैं मानव
क्यों अंसतोष के बीज उसके मस्तिष्क में उग रहे हैं .
छोड़कर असंतोष के भावों को
ह्रदय में संतोष के भाव जगाओ
लोभ लालच को छोड़कर निःस्वार्थ बन जाओ
ह्रदय में संतोष और सकरात्मक सोच जगाओ .
प्रेम की भावना का सृष्टि में करो आगाज
मोह माया के इन्दरजाल से निकलो बहार
जीवन में खुशियों को बिखरने दो
असंतोष के काले मेघ अपने आप हट जायेंगे जिंदगी में खुशियों के सुमन खिल जायेंगे.
स्वरचित:- रीता बिष्ट
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मंच को नमन🙏
दिनांक- 17/4/19
शीर्षक-"असंतोष"
विधा- कविता
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आज का ये दौर ,
इसपे नहीं किसी का जोर,
असंतोष से भरा पड़ा,
युवा दल बेरोजगार खड़ा |
मन को नहीं मिलती शांति,
फैली चारों तरफ अशांति,
स्थिरता डगमगाने लगी है,
जीवन में असंतोष जगाने लगी है |
पढ़-लिखकर धक्के मिल रहे हैं,
हर जगह चोर उच्चके मिल रहे हैं,
संतोष किसी को नहीं मिल रहा है,
असंतोष का चरखा खूब चल रहा है |
ऐश और आराम सभी को चाहिए ,
पैसों के पीछे इंसान दौड़ रहा है,
संतुष्ट कोई नहीं हो रहा है,
तभी असंतोष बढ़ रहा है |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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नमन मंच को 🙏🙏
दिनांक -17/4/2019
विषय -असंतोष
विधा-हाईकु -लिखने की कोशिश
1) लालच मन
करता भ्रष्टाचार
है असंतोष।
2) ये असंतोष
मूल जड़ विनाश
है अभिशाप।
तनुजा दत्ता (स्वरचित)
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भावों के मोती
17/04/19
शीर्षक असंतोष
संतोष या असंतोष
मन की गति विरला ही जाने
एकाकीपन अवलंबन ढ़ूढता
और एकांत में वास शांति का
जो जो एकांत में है उतरता
उद्विग्नता पर विजय है पाता ।
बिना सहारा लिये किसी के
वो महावीर गौतम बन जाता
जगत नेह का स्वरुप है छलना
पाने की चाहत में और उलझना।
प्रिय के नेह को मन अकुलाता
मिलते ही वहीं उलझा जाता
और उसी में बस सुख पाता
ना मिले तो रोता भरमाता।
मन को समझना मुश्किल
विकल, विरल ओ विचलित
"असंतोष" प्यास आज जो होती
कल वितृष्णा बन है खोती ।
मन की गति विरला ही जाने ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
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नमन मंच को
विषय : असंतोष
दिनांक : 17/04/2019
विधा : कविता
असंतोष
यूं न मन भर,
थोड़ा सब्र कर,
मन में असंतोष भरा,
आखिर किस बात का,
छोड़ भी दे किस्सा अब,
बीती हुई रात का।
बीत गया जो अब,
लौट के न आएगा।
कब तक दिल में यूं
राग यही गाएगा।
मोल नहीं यहां तेरे
किसी जजबात का
छोड़ भी दे किस्सा अब,
बीती हुई रात का।
वो न मिला मुझे ,
वो खो गया है।
दुनिया वहीं है तुझे,
क्या हो गया है।
बन ही न जाए कहीं
मुद्दा यह फसाद का
छोड़ भी दे किस्सा अब,
बीती हुई रात का।
जो है तेरे पास बस,
उसी में गुजारा कर।
मिलेगा जो भाग्य में है,
व्यर्थ न पुकारा कर।
धन्यवाद कर रब्ब से,
मिली हर सौगात का
छोड़ भी दे किस्सा अब,
बीती हुई रात का।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर, पंजाब ।
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"नमन-मंच"
"दिंनाक-१७/४/२०१९"
"असंतोष"
असंतोष नही,रहे जीवन में
रहे सदा परम संतोष
"और " "और"की चाह नही
सबके पास रहे संतोष धन।
असंतोष है विकारों का घर
जहाँ बनते सँवरते लोभ,क्रोध व ईष्या रोज
लोभ व मोह का कोई अंत नही
इससे बड़ा कोई गर्त नही।
नियति ने जो हमें दिया
उसीमें खुश रहे हम
नीड़ छोड़ कर जैसे उड़े खग
वैसे ही हम परमपिता घर।
अधम नही, हम उत्तम मानव
असंतोष से हमें क्या काम
हम तो है परम संतोषी
असंतोष को दूर से प्रणाम।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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नमन सम्मानित मंच
(असंतोष)
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तृष्णाओं के शुचि अरण्य के,
चारु असीम विस्तारों में,
अतृप्ति का भाव हृदयगत,
असंतोष मन का विकार।
स्वलक्ष्य - केन्द्रित भावाभाव,
साहस की भावना का भी ह्रास,
अनुकूल फलों की अप्राप्ति,
असंतोष कारक सशक्त।
असंतोष मानव प्रजाति मे,
शुचि स्वरूप अधार्मिकता का,
जीवन का अभिशाप निकृष्ट,
दारुण दुख का मात्र प्रदाता।
असंतोष के कारणवश भौतिक,
गात बनें आगार रोग के,
माया के भोगों का आकर्षण,
देता आमंत्रण असंतोष को।
--स्वरचित--
(अरुण)
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नमन मंच
असन्तोष
हायकू
है असन्तोष
मानवीय चिंतन
सुख की इच्छा।
मानव मन
बढ़ता प्रलोभन
है असन्तोष ।
जीवन नभ
असन्तोष बादल
दुःख वर्षण
मृगतृष्णा है
असंतोष सदन
दुःखी मनुष्य।
व्याकुल मन
असन्तोष हृदय
भौतिक चाह।
गीता गुप्ता 'मन'
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अजनबी से मुहब्बत हुई।
भूले खुद को है, मुद्दत हुई।
दांव हमने लगाया मगर।
न, मेहरबान किस्मत हुई।
मुझसे झुकना नहीं आया।
यू, बेड़ियाँ मेरी गैरत हुई।
न वो कुछ मेहरबां हुए।
न कुछ हमसे खिदमत हुई।
वो मसरूफ है अपने घर।
न हमें उनकी आदत हुई।
देख लेता है बंद आंखों में।
दिल को जब भी जरुरत हुई।
हम जां - बे - हक हो जाएंगे।
हाय यह कैसी शरारत हुई।
अब तो ईमान डरने लगा।
है ऐसे रुसवा शराफत हुई।
चार बूंदों से बुझती है क्या।
खैर मौसम को राहत हुई।
जब से गिरने लगा मयार है।
नाकाम हर हिफाज़त हुई।
हवस ने किया दिल में घर।
बस खतरे में अमानत हुई।
'सोहल 'बात दिल की कही।
ऐसी भी क्या हिमाकत हुई।
विपिन सोहल
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नमन"भावो के मोती"
17/04/2019
"असंतोष"
विधा:---छंदमुक्त
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ये बच्चे मन के सच्चे
दुनिदारी में कच्चे.....
छोटी छोटी खुशियों में जीते
आइसक्रीम या चाकलेट जो मिलते.........
नैनों में संतोष झलक जाते
फिर एक नयी चाहत....
खिलौने के लिए बगावत
वह कुलबुलाहट.......
असंतोष की ही आहट।
नव यौवना...भरपूर उन्मादना
सपनों की अलग अनोखी दुनिया.....
आशाओं की उँची उड़ान
चिडियों सी चहक....
आसमान छूने की ललक
हौसले भी बुलंद......
सफलताओं की सीढियां चढ़ते.........
संतोष से आगे बढ़ते...
फिर भीअसंतोष पीछा न छोड़ता।
यौवन की दहलीज....
कामयाबी से हासिल खुशी
कभी .....
नाकामियों ने भी डाका डाला
"संतोष" और "असंतोष"
दोनों ही गहराता....।
ढल रहा यौवन......
प्रौढ़ता आगमन
आ रहा चिड़चिड़ापन
बदलाव तन ,मन...
पेंडुलम की भाँति...
दोदुल्यमान........
सामंजस्य बिठा रहा अंतर्मन
कहाँ है संतोष!!!!!
असंतोष ही असंतोष।
वृद्धावस्था.. है अंतिम यात्रा
बिमारियों से जूझता....
जर्जर तन........
परिवार के संग......
बिठाता तालमेल....
है कुछ असंगतियाँ...
लाती मानसिक विकृतियाँ
असंतोष के सागर में डूबता मन।
घर आँगन में गूँजती किलकारियां......
क्रिड़ा करते नाति नतनीयाँ
देख फिर से लौटा है बचपन
मन उमंगों से झूमकर नाचता
...."दिल तो बच्चा है जी".....
बच्चा मन ......निस्तेज तन..
वैद्यों के अधीन जीवन....
खेल निराला........
"संतोष"और "असंतोष"।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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नमन मंच
दिनांक .. 17/4/2019
विषय .. असंतोष
विधा .. लघु कविता
**********************
....
नारी मन की भावना, लिखता हूँ मै आज।
असंतोष मन मे रहा पर ना किया प्रतिकाज।
....
मनु की शतरूपा रही सृष्टि की पहली नार।
ढोल गवाँर शूद्र पशु नारी लिख गये तारणहार ।
.....
क्यो सीता के हरण पर, मौन रही सब नार।
अग्निपरिक्षा मे जली पर ना किया प्रतिकार।
....
अम्बा या अम्बालिका थी तो नारी जाति।
क्यो कोई कुछ ना कहाँ हरण पे उपजी बाति।
....
द्रोपदी ने जो कुछ सहा वो ही फिर इक बार।
अतःवस्त्रो पे कामी मुँह करता रहा प्रचार।
....
नारी गरिमा पे नही नारी मन मे शान।
आर्याव्रत मे शेर हुआ नारी का अपमान ।
...
स्वरचित .. मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
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1भा.17/4/2019,बुधवार,
बिषयः ः#असंतोष#ःः
विधाःःःकाव्यःःः
जय जय हे संतोषी माता,
हम असंतोष से दूर रहें।
शुभार्शीवाद मिले माँ तेरा,
यहां सब संतोष से पूर रहे।
संतोष रखें दुखी नहीं हों,
कभी असंतोष नहीं पालें।
मनोविकार मानस में आऐं,
यथा शीघ्र अंतस से टालें।
मन संतोषी सदा सुखी है।
ये प्रगतिशील बहुर्मुखी है।
धन भौतिक सुख दे सकता,
असंतोषी सदैव दुखी है।
हे प्रभु असंतोष नहीं देना।
वैरभाव हमको नहीं देना।
प्रेमप्रीत विकसित हो जाऐ,
ये शुभाशीष तुम्हें ही देना।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
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#असंतोष# काव्यः ः
1भा./17/4/2019/बुधवार
असंतोष हृदय को देता अस्थिरता है।
अश्रु के सागर में हमको डूबो देता है।
अभिलाषाओं की कोई हद नहीं होती।
एक पूरी हो ती दूजी खुद खड़ी होती।
खुशी को डसती, ख्वाहिशों की नागन,
अंकुश में रहे हमेशा, हमारा तन-मन।
व्यर्थ के दिखावे से, बचे रहें हरदम।
स्वच्छ,सरल मन ही,है असली धन।
स्वरचित
निलय अग्रवाल,खड़कपुर
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भावों के मोती दिनांक 17/4/19
असंतोष
है एक
यक्ष प्रश्न
मानव है क्यों
हैरान परेशान ?
फैल रहा है
असंतोष जन जन में
भ्रष्टाचार , बेईमानी
है चरम पर
कैसे होगा
विकास देश का
जब खोखला
कर रही हो दीमक
देश को
जागो उठो
जगाओ मशाल
सत्य धर्म ईमान की
छोड़ो
अधर्म का मार्ग
होगा देश, समाज से
असंतोष दूर
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
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सादर नमन
विषय- असंतोष
हर सुख जब हो झोली में,
असंतोष का कोहरा फिर भी,
हृदय में वास क्यों करता है,
भूल कर दामन की खुशियों को,
क्यों आँसू बहाता रहता है,
देते सुख जो अपने हैं,
उनको ही कोसता रहता है,
अपनी तृष्णाओं की खातिर,
अपनों का हृदय दुखाता है,
मानव पवृति है ऐसी,
दूसरों के सुख से रोता है,
अधिकाधिक की ईच्छा में ,
अपना सब कुछ खोता है,
जानते बुझते हर कोई,
असंतोष का प्रहार झेलता है,
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स्वरचित-रेखा रविदत्त
17/4/19
बुधवार
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भावों के मोती
दिनांक-१७/४/२०१९
विषय-"असंतोष"
विधा-#हाइकू
1)
है असफल
असंतोषी मन
सदा है रोता
2)
मन सवार
असंतोष की नैया
डगमगाये।
3)
है असंतोष
विकार करे घर
अशांत मन।
4)
विवेक हीन
असंतोषी इंसान
गलत काम।
5)
है अंतहीन
असंतोष सागर
खारा जीवन।
6)
पहुँचता है
असंतोष मानव
अधर्म मार्ग।
7)
है असंतोष
अंतर्मन में जंग
व्यथित मन।
स्वरचित
©सारिका विजयवर्गीय"वीणा"
नागपुर(महाराष्ट्र)
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तिथि - 17/4/19
विषय - असन्तोष
कल रात्रि दस बजने में दस ही मिनिट बाकी थे जब मैंने अपनी रचना लिखनी शुरू की। इन्हीं दस मिनिट में मुझे रचना पूर्ण कर प्रेषित करनी थी मगर
समय अभाव के कारण बहुत कुछ और अधिक स्पष्टता से न लिख पाने का असन्तोष मन में रह गया।
जीवन में हम बहुत कुछ करना चाहते हैं पर अनेक कारण या परिस्थितियां ऐसी उत्पन्न हो जाती हैं जो हमारे मन में असन्तोष भर देती हैं और वह दुख हमें सालता रहता है।
जीवन में मन चाही शिक्षा प्राप्त न कर पाना ,मनचाहा साथी न मिल पाना जैसी अनेक बातें असन्तोष का कारण बन जाती हैं ।जैसे सुख दुख जीवन का हिस्सा हैं, उसी तरह सन्तोष,असन्तोष भी जीवन में साथ साथ चलते हैं।
असन्तोष जब मन में होता है तब आदमी क्रोधित हो जाता है ,होश गंवाने लगता है। कभी कभी बेचैनी बढ़ जाती है। मनुष्य की अनन्त आकांक्षायें
जब पूरी नहीं हो पाती तब असन्तोष
उत्पन्न हो जाता है.....
जो मन साधे न सधे मन में हो असन्तोष
इच्छाओं को साध लो, मन में हो सन्तोष
सरिता गर्ग
स्व रचित
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असंतोष
🎻🎻🎻🎻
जब होने लगता है असंतोष
तो चाहे खा़ली कर दो पूरा कोष
असंतोष बार बार उभरेगा
और कभी नहीं सुधरेगा।
इसलिए संतोष को ही कहते सच्चा धन
जिसमें यह नहीं वह है पूरा निर्धन
रुखी सूखी भी मजा़ दे देती
यदि संतोषी होता अपना मन।
आशायें संजोना बहुत ही अच्छा है
पर बेकार उडा़नों में क्या रखा है
जितनी चादर हो फैलालो पाँव
जो आकाश छूने की जिद करे वो बच्चा है।
संतोषी रहता सदा सुखी
असंतोषी रहता सदा दुखी
सबसे बढि़या तो यही बात
थोडा़ थोडा़ हो व्यक्ति अन्तरमुखी।
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नमन भावों के मोती
दिनाँक-17/04/2019
शीर्षक-असंतोष
विधा-हाइकु
1.
सुखी जीवन
छोड़ के असंतोष
मिले संतोष
2.
ये नेता लोग
फैलाते असंतोष
वोट पाने को
3.
लोभ लालच
बना है असंतोष
स्वार्थ भावना
4.
रोके कदम
असंतोष भावना
ईर्ष्या व द्वेष
5.
ओछे विचार
असंतोष मन में
जीना दूभर
6.
रुके कदम
असंतोष मिटाने
बढ़ते गए
********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
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नमन मंच
दिनांक-
17/4/2019
विषय-असंतोष
संतोष का घर मन
है बहुत सुंदर सुंदर
पाया वो सब जो चाहा
पहनी सुख की लड़ियाँ
आया लालच तेरे हिय मेँ
हुई दौड़ शुरू ज्यादा और
ज्यादा पाने की ,ह्रदय मे
अब हो गयी हलचल
जो की मेहनत अपने काम
को माना भगवन ,की
उसकी साधना जैसे आराधना
पायेगा हमेशा अधिक और
मीठा फल खिल जाएंगे तेरे
उर में पुष्प पाकर सफलता
के फल ,जो न पा पाया तो
कर देगा तेरा मन मष्तिष्क
बगावत ,दुख और अन्तोष से
भर जाएगा ये ह्रदय ।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर (म.प्र.)
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नमन 🙏
🙏🌹भावों के मोती 🌹🙏
🌷कुंडलियां छंद🌷
विषय -असंतोष
🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿
असंतोष संसार का यह , ले डूबा हे राम ।
वोट माँगते फिर रहे, नेता बडे महान । ।
नेता बडे महान ,देश की शान अभिमान ।
झूठा आश्वासन , लूटे जनता की जान ।।
भूँख से बिलखे जन, बडा कर पेट और फन ।
डस रहे जन का मन,चढ रहा असंतोषी धन ।।
🍂स्वरचित🍂
🌹नीलम शर्मा # नीलू 🌹
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नमन मंच
17/04/19
असंतोष
***
सदा दूसरे का धन अधिक लागे है
अपना दुख सबसे बड़ा लागे है
असंतोष का जन्मदाता यही ,जब
अपनी कमीज उससे मैली लागे है।
सोशल मीडिया पर जा के बतायें
हम यहाँ घूम कर ,डिनर खा आये
आज नई कार ,और बंगला ले आये
देख , ये असंतोष मन मे भरता जाए।
ये सब एक कुंठा को जन्म देता जाए
हीन भावना से मन ग्रसित हो जाये
उसका तो सब ठीक ,मेरे साथ क्यों बुरा
सोच मन मे असंतोष भरता जाये ।
जीवन जीना है जो सुख से
जितना मिला संतोष कर लो प्यारे
चलते चलते एक नेक सलाह ले लो
सोशल मीडिया से जरा दूरी बना लो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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