Tuesday, April 2

'''मति/दिमाग " 02अप्रैल 2019

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             ब्लॉग संख्या :-346
मासूम अल्हड़ सी उम्र हैं 
दिमाग पर उम्र से ज्यादा भारी बोझ हैं 

जिंदगी में एक साथ कई उलझनें हैं 
लगता हैं नटखट बचपन शैतानी भरा बचपन गुम हैं .

मन को एक बार बचपन के दिमाग से मिलाकर तो देखो
एक बार बच्चा बनकर शैतानी करके तो देखो 
लुका-छुपी का खेल दोस्तों के संग खेलकर तो देखो
दुनियाँ की सबसे बड़ी दौलत मिल जायेगी .

मन दिमाग को एक मासूम बच्चा बनकर रहने दो 
हर फरेब तकलीफ से गुजर जाओगे 
मासूम बच्चे के मन में किसी से बैर नहीं होता हैं 
हर तरफ जिंदगी खुशी और प्यारी लगने लगेगी.
स्वरचित:- रीता बिष्ट

बुद्धि का न हो कभी मिसयूज
रिश्तों के बल्व हो रहे फ्यूज ।।

एक तरफ तो चाँद छू लिया 
दूसरी तरफ घर घर में फूट ।।

कैसे चलेगी समाज की गाड़ी
जब रिश्ते जायेंगे सारे टूट ।।

दिल दिमाग में फर्क समझना
रहना कभी न इनमें कन्फ्यूज ।।

बुद्धि वही है जो बुद्ध बनाये 
कर दे जो आत्मा को शुद्ध ।।

एक बुद्धि जो तरीका सुझाये
कैसे कहाँ से लिया जाये घूस ।।

जीवन है एक उलझन 'शिवम'
रखना इसमें हरदम तुम सूझ ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"


वरद हस्त सर रख देना 
सद्ज्ञान मुझे दे कर सृजन 
अंतस की गागर भर देना 
नमन आपको वीणावादिनी 
वरद हस्त सर रख देना…. 

हे!बुद्धिदात्री सरस्वती
मति निर्मल सदा रहे मेरी
हों आप अनुग्रही जो माता
हो खुशकिस्मती माँ ये मेरी
नमन आपको वीणावादिनी 
वरद हस्त सर रख देना…. 

करना पवित्र वाणी को माते
सद्चित हो कर्म किये जाऊँ
नित गान तुम्हारा गाऊँ माँ
रस मधुर कण्ठ में भर देना 
नमन आपको वीणावादिनी 
वरद हस्त सर रख देना….

हे!शारदे,हे! कमलासनी माँ
सब पर अपनी कृपा रखना 
हे!वागेश्वरी मूक -बधिरों पर
भी दया दृष्टि तुम कर देना 
नमन आपको वीणावादिनी 
वरद हस्त सर रख देना 

भाव भक्ति से माँ भुवनेश्वरी 
मैं नित- नित तेरा गान करुँ
हो निडर सत्य मैं लिखूँ सदा 
लेखनी को वो ताकत देना
नमन आपको वीणावादिनी 
वरद हस्त सर रख देना 

मणि अग्रवाल
देहरादून
स्वरचित(मौलिक)

े जमी बर्फ भी पिघल जायेगी
हाल ए बीमारी संभल जायेगी।

सवाल दिमागी मति का भी जी
कब तक हमारी,अकल जायेगी।

ये घाटी में प्रयोजित आतंकवाद
गोलियां ,सीने इनके छल जायेगी।

किस की शह पर बैखोप ये लोग
मौत बहाना नहीं जो टल जायेगी।

वतन फरामोशी अच्छी बात नहीं
नफरते इन्हें खुद निगल जायेगी।

अलगाव से सुलगते जिस्म इनके
पुश्तों को कमियां खल जायेगी

#राय ये देश अमन की बस्ती
रात गहरी फिर भी ढल जायेगी।

पीराय राठी
राजस्थान

दिमाग और दिल की,
आपस में बनती नहीं।
दिल कुछ और करना चाहे,
दिमाग की कुछ और रजा है।
जीना भी यारों,बन गयी सजा है।
एक को मनाऊं तो दूजा रूठ जाए,
एक की सुनूं तो दूजा आंसू बहाए।
इस अजीब कसमकस में जां बेहाल है।
कोई बताए मुझे क्या करूं मैं,
दौनो की ही जरूरत पड़ती बार-बार है।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

मतिभ्रम

जहां दौलत बेहिसाब हो,
ओर लोगों में रूआब हो।
अय्याशों की संगत हॊ
मद की चढ़ी रंगत हो
जब हर कोई लगता बौना है
मतिभ्रम तो होना है
जहां भोग की वस्तु नारी हो,
हर रिश्ता ही संसारी हो
जहां बात न माने नारी, नर की
इज्जत न जाने अपने घर की
पर मर्द ही लगे सलौना है 
मतिभ्रम तो होना है
जहां बच्चो में संस्कार न हो
जहां एक अदद परिवार न हो
जहां बुजुर्गों का सम्मान न हो
कभी पुजा जैसा काम न हो
भगवान जहां बस मौना है
मतिभ्रम तो होना है
अयोग्य को भी जब सत्ता मिले,
न्याय की जब नींव हिले
जहां देश विरोधी नारे लगें
ओर जनता को प्यारे लगें
जिसमें मान देश का खोना है
मतिभ्रम तो होना है
जब देश प्रेम न हो दिल में
साथ न दे कोई मुश्किल में
जब सत्ता ही सर्वोपरि हो
आत्मा तक मैल भरी हो
गंदा दिल का हर कोना है
मतिभ्रम तो होना है
जहां देश से न लगाव हो
बस कुर्सी का ही चाव हो
जहां मत बिक जाए नोटों से
ओर हाथ मिला लें खोटों से
लोकतंत्र तो खिलौना है
मतिभ्रम तो होना है
जहां देश हित का भाव न हो
कर्मठ व्यक्ति का चुनाव न हो
जहां अपने निजी एजंडे हों
कोई माने न तिरंगे को
भारत मां ने तो रोना है
मतिभ्रम तो होना है
मतिभ्रम तो होना है

जय हिंद
जय भारत।

सवरचित : राम किशोर, पंजाब।

बुद्धिजीवी तु है मनु, 
बुद्धि से ही करना काम, 
जीवन सफल हो जायेगा, 
दिमाग को मिलेगा आराम |

दिमाग के साथ कभी-कभी, 
दिल की भी सुनना एक बार, 
जब मति भ्रमित हो जाती है, 
दिल से आती है एक आवाज |

सादा जीवन उच्च हों विचार, 
फिर न होगी कभी भी हार, 
बुद्धि संग विवेक हो गर साथ, 
फिर डरने की नहीं कोई बात |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

पत्नी ने कहा :
कब से पूछ रही हूँ
खाओगे क्या ?"
मैंने कहा पढते हुए अखबार :
"कुछ भी बना लो 
दाल सब्जी रायता चटनी 
सलाद वगैरह वगैरह
बस बनाना खट्टी चीज जरूर
और हां बस बनाना जरा टेस्टी ।"
सुन कर लम्बा मीनू 
गुस्से से कहा उसने:
" आजकल जबान 
हो रही है चटोरी ऐसी
जैसे बनने वाले हो बाप तुम 
अरे लगाओ मत दिमाग ज्यादा
जो दूंगी बना खा लेना 
नहीं तो चटनी ही बना 
बना दूंगी दिमाग की तुम्हारे ।"
मैंने पढते हुए पेपर 
फिर कहा : 
" जब मीनू मालूम था तो 
पूछा ही क्यो रही थी घंटे भर से ? "
वह बोली :
" दिमाग तो कुछ है नहीं 
अब बोलने भी लगे हो बहुत ज्यादा
चटनी बना दूंगी
जबान की भी "
कहा मैने :
" भागवान बोलती हो ज्यादा तुम
करती हो काम कम, बनाना है जो
बनाओ जल्दी ।"
बोली वह :
" आ जाओ जरा पास मेरे 
होने हलाल
तभी निकलूगी दिमाग और जबान "
और ले कर चाकू बढ़ी
वो तरफ मेरे 
अब आया माजरा समझ में 
बके जा रहे था
अखबार की धुन में कुछ भी
मांगी माफी 
फिर सुनी झिडकियां बीवी की 
मिला तब नाश्ता चाय और खाना 

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

बुद्धि /दिमाग 
जब नहीं रहेगा कोई पेड़, 
कैसे पवन चला करेगी, 
कैसे ऑक्सीजन मिला करेगी, 
कैसे साँसे चला करेगी??

काटोगे अगर वृक्षों को तुम, 
ओज़ोन भी होगी गुम, 
ओज़ोन गर होगी गुम... 
हरियाली भी खो जाएगी, 
बात करो ना तुम अपनी, 
मिटटी सारी जल जाएगी ll

सम्भल जाओ ऐ इंसा जग में, 
पेड़ो पर न करो अत्याचार, 
बुद्धि से काम लेलो तुम, 
नहीं तो होगा हा हा कार ll
कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित 
देहरादून

"घूमा दिमाग "

समय का दिमाग घूमा है
सारे अस्त व्यस्त से हो गए हैं
अंबर जल रहा है
पानी प्यासा है
नदियों में रक्त बह रहा है
समुद्र में ज्वारभाटा फूट पड़ा है
पानी उफन गया
दूध जम-सा गया है
लावा खा रहे हैं सब
रोटियाँ सड़कों पर फैंक रहे हैं लोग
मिट्टी से भूख मिटा रहे है
आदमी बना है घोड़ा 
बकरियाँ बैठी है गाड़ी में
ढो रहा है उनको 
अब बकरी हाथी को पीट रही है
बन्दर जा रहा है सुसुराल
घास उग आई है आसमान में
सूरज धरती पर घूम रहा है
चाँद तालाब में नहा रहा है
तारों से कंचे खेल रहे हैं नेता
हवाई जहाज सड़कों पर घूम रहे हैं
बच्चे धो रहे हैं कपड़े 
अध्यापक सारे नेता बन गए हैं
पढा रही है गाँव की बुढिया
रुक-सा गया है समय 
उथल-पुथल मची है संसार में
समय पगला-सा गया है
अब कोई इलाज इसका
करावाओ तो सही।

रचनाकार:-
राकेशकुमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा

शैली .. लघु कविता 
**********************
🍁
हर मति की अपनी ही गति है,
बुद्धि यथा दिमाग।
ईश्वर की रचना हर मानव,
कर्म से बदले भाग्य।
🍁
माटी की किस्मत भी बदले,
बदले देश समाज।
बुद्धि और विवेक के कारण,
उदभव सभ्य समाज।
🍁
मात शारदे वास करे जो,
रखे शुद्ध विचार।
शेर को भी कुछ बुद्धि देना,
खडा मै लेकर हार।
🍁

स्वरचित .. Sher Singh Sarraf

बिषय:- मति/बुद्धि/दिमाग
विधा:- सायली छंद

(1) 
मति
बिगाड़ देते
माता पिता परिवार
होड़ में
आज

(2)
मति
बिगड़ जाती
मोटी रकम देखकर
कर्मचारियों की
आज

(3)
दिमाग
बड़ा रहा
भाई भतीजा बाद
रिश्वत खोरी
आज

(4)
भ्रष्ट
हो रही
लोगों की बुद्धि
पैसे कमाने
आज

स्वरचित: 2-4-2019
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी, गुना (म.प्र.)

विधा -छन्द 

हे बुद्धि प्रदायिनी, हे मात वरदायिनी।
वीणा कर धारिणी ,नमन मात शारदे।।

वर मोक्षदायिनी, मात हंसवाहिनी।
त्रिय ताप हारणी ,नमन मातु शारदे।।

अज्ञान विनाशनी,निर्मल मति दात्री
भवसागर तारणी, नमन मातु शारदे।।

सरस्वती भवानी, दे दो विमल वाणी।
वेद ज्ञान दायिनी,नमन मातु शारदे।।

रचनाकार
जयंती सिंह

दिमाग
कोरे सपनों को संग लिए
मन में बजता मृदंग लिए
डिग्रियों से भरे दोनों हाथ
वक्र भाग्य का भी है साथ
चक्कर रोजगार के दफ्तर
सम्मुख बैठा एक अफसर
नजर भरे सरसरी तौर पर
दायें-बाएँ चौकस गौर कर
मन-ही-मन वो मुस्काया 
मैं कुछ भी भाँप न पाया
शब्द नहीं आँखों के इशारे
मंतव्य मेरे जेहन में उतारे
मेधावी हूँ सर बकलोल नहीं
फूटी कौड़ी पर मोल नहीं
उसके कठोर कुटिल भ्रूभंग
शिथिल पड़े मेरे भी उमंग
सहसा चली उसकी दुलत्ती
बुझी मेरे दिमाग की बत्ती
मानो बह गया सारा तेल
हर कहीं हो रहा अब फेल
खाली डिग्री गाँठ मगर छूछा
तब दिमाग को किसने पूछा?
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित


मैं मूढ़ अज्ञानी
बुद्धि बहुत लगाई ,
कुछ समझ न पाई
बुद्धि से कुछ
लिख न पाई,जब
चारों ओऱ नजर दौड़ाई 
अनुपम कृतियां सुखदायी
फूलों में रंग भरे किसने
भौरे संग कैसे प्रीत लगे 
इंद्रधनुष में रंग भरे 
पृथ्वी धुरी पर मगन रहे
पर्वत नदियां झरने देखे
सूरज चाँद गगन मे देखे 
तारे लुकाछिपी करें
चाँद घटता बढ़ता रहे
सब देख मति भरमाई
मैं मूढ़ अज्ञानी कुछ 
कुछ समझ न पाई ।
एक मानव नजर आया 
श्रेष्ठ कृति वो कहलाया 
बुद्धि उसे मिली उपहार 
वाणी का अद्भुत ज्ञान 
मन के घोड़े वो दौड़ाए
दिमाग चाँद के पार ले जाए 
जटिल कोशिकाओं का शरीर
उसके कैसे रहस्य सुलझाये 
जितना मेरी बुद्धि सोचे 
मकड़जाल मे उलझ जाए
मै मूढ़ अज्ञानी ,बुद्धिहीन 
कुछ समझ न पाई ।
एक बात में अटक गये
मति फिर भटक गयी
परमशक्ति की सत्ता भी 
क्या सीमाओं में बंटी रही 
धर्म का क्या बंटवारा वहाँ 
रीति रिवाजों में फंसी रही,
जब मानव बुद्धि में श्रेष्ठ
नफरत के बीज कहाँ से आये 
क्यों उलझा है धर्म जाति में
इंसान सब बराबर कहलाये।
बुद्धि का कर विस्तार 
ईश्वर के अनुपम उपहार ।

स्वरचित
अनिता सुधीर

आज का विषय - बुद्धि/मति/दिमाग
विधा - हाइकु

हे माँ शारदे
पाएं विद्या का दान
दो सदबुद्धि

चला दिमाग
टूटते परिवार
स्वार्थ के हाथ

मति हरता
धन की अधिकता
कुछ न सुनता

स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)


 मानव-जीवन अमूल्य निधि है।
करो सदा इसका अनुपम उपयोग।

उत्तम मानव की विशिष्ट पहचान है,
धैर्य,शील,क्षमा,बुद्धि और विवेक।।
**************************
जो न अपनाता इन गुणों को जीवन में,
वो कौशल, प्रतिभा,ज्ञान, कभी न पाता है।
कर्मठ बनो,जग-हित में नित काम करो,
"गीता-संदेश" हम सबको यही सिखलाता है।।
**********************************
(स्वरचित) ***"दीप"***


शीर्षक- अलीम =बुद्धि 

अंधो के शहर आईना बेचने आया हूं 

फिर से आज एक कमाल करने आया हूं 
अंधो के शहर में आईना बेचने आया हूं।

संवर कर सुरत तो देखी कितनी मर्तबा शीशे में
आज बीमार सीरत का जलवा दिखाने आया हूं।

जिन्हें ख्याल तक नही आदमियत का
उनकी अकबरी का पर्दा उठाने आया हूं।

वो कलमा पढते रहे अत्फ़ ओ भल मानसी का
उन के दिल की कालिख का हिसाब लेने आया हूं।

करते रहे उपचार किस्मत ए दयार का 
उन अलीमगरों का लिलार बांच ने आया हूं।

स्वरचित 

कुसुम कोठारी।

अकबरी=महानता अत्फ़=दया
किस्मत ए दयार= लोगो का भाग्य
अलीमगरों = बुद्धिमान
लिलार =ललाट(भाग्य)


अगर दिमाग नहीं होता मानव में ,
तो ये दुनियाँ कैसी दिखती होती |
अब तक जो विकास किया सबने ,
तरकीब नहीं और कोई उसकी होती |

सदुपयोग जहाँ दिमाग का होता ,
कुछ न कुछ अच्छा ही है होता |
नया नया अविष्कार ईजाद होता ,
नव निर्माण सदा ही होता रहता |

चालाकी ने ही सब काम बिगाड़ा ,
मतलब के लिऐ अगले को चराया |
अहं भाव ने ही हम सबको सताया ,
रहा न कोई यहाँ पर अपना पराया |

पर कितने होते हैं मतलबी यहाँ पर ,
ये दुनियाँ टिकी हुई मानवता पर |
जब दर्द पराया असर करता दिल पर ,
तस्वीर अंकित हो जाती जब मति पर |

सहयोग भावना जाग उठती है परस्पर ,
काम होते जग में फिर जन हितकर |
क्या से क्या हो गये आज सब नारी नर ,
दिख रहा दिमाग का ही तो है ये असर |

हम अपने जैसा ही समझें सब को ,
लूट खसोट में नहीं लगायें मति को |
विकिसित करते रहें हम दुनियाँ को ,
गाली नहीं बनायें अपने बुध्दि बल को |

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश 


::::::::::::::मति::::::::::

मति हर लीन्हा हरि ने,
किया कैकई बुद्धि विनाश,
सकल सन्मति छीन लिया,
श्री राम को दिया बनवास,

स्वपुत्र सिंहासन की चाहत,
रघुकुल के माथे कलंक बनी,
किन्तु यह लीला अमर हुई,
विधि मानव रूप में हरि जनी,


लघु कविता
🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝
इर्ष्यावश कभी-कभी इंसान
दिग् भ्रमित हो के रह जाता है

अपना हर दाँव-पेंच लगाके
सम्मान खुद का लुटाता है।

किसी को जलील करने की खातिर
कुबुद्धि दिमाग पे हावी हो जाता है

मान प्रतिष्ठा अपनी खोकर
न जाने हासिल क्या हो पाता है।

ये भी भूल जाते हैं उस वक्त 
विनाशकाले विपरीत बुद्धि ही आता है।

हमने दिमाग किसी को न दिखाया है
फिर भी धार तलवार का ही पाया है

जीवन पथ के उतार चढ़ाव में
दिल खोलके प्यार ही लुटाया है।

हर हाल में कर्तव्यों को निभाया है
फिर भी ढूँढने वालों को नुक्स ही नजर आया है।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल


विषय:-"बुद्धि/मति" 
(1)
"बुद्धि" कमान
जिह्वा से छूटा तीर
घायल प्राण
(2)
पाश्चात्य हाथ 
वैचारिक बंधन 
"बुद्धि" गुलाम 
(3)
आस्था की बाढ़
भावनाएँ बहती
ठहरी "बुद्धि"
(4)
कल्पना घोडे़
"बुद्धि" हाथ लगाम
मन भी दौडे़
(5)
करते खोज
कल्पना के हाथ में
"बुद्धि" की टॉर्च
(6)
"बुद्धि" थी नग्न
शिक्षा ने पहनाए
सभ्यता वस्त्र
(7)
"बुद्धि" की बाढ़
बिछड़ी भावनाएँ
कुचला ज्ञान
(8)
"बुद्धि" की चाबी 
ज्ञान तिजोरी खुली
सच्चाई मिली

स्वरचित 
ऋतुराज दवे


"बुद्धि"
पिरामिड
1)
ये 
बुद्धि
कुबुद्धि
सर्वनाशी
कुलबुलाती
हिय सुलगाती
लूम लपेट जाल।।😊

2)
ये
बुद्धि
छिछोरी
अहंकारी
अतर्कपूर्ण
सुख चैन खाती
कंटक पगडंडी।।😊

स्वरचित
वीणा शर्मा वशिष्ठ


"शीर्षक-बुद्धि/दिमाग/मति
जब दिमाग में हो उथल पुथल
तब बुद्धि करें सजग हमें
जैसे अर्जुन को दिये गीता का ज्ञान
वैसी बुद्धि दो भगवान।

उचित अनुचित का करें विचार
बुद्धि विवेक जागे हर बार
धर्म कार्य से हो न हम दूर
स्वविवेक जागे जरूर।

नियति करें जब हमें परेशान
मन न विचलित हो भगवान
ध्यान रहे बस तेरे चरणों पे
ऐसी बुद्धि दो भगवान।

परिहार न करना कभी तुम हमारा
चारो पहर हम जपे नाम तुम्हारा
हरो तम, दो बुद्धि ज्ञान
कृपा करो हे कृपानिधान।।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।

दिनांक 2 अप्रैल 2019 
विधा कविता

बुद्धि का खेल
नही किसी का मेल
सृजन सार
अनुपम उपहार
आदि से अन्त
बुद्धि अनन्त
मति ही संसार
अथाह गुणागार
सृष्टि का पालन
बुद्धि का संचालन
तेज दिमाग
जीवन का राग
ज्ञान और विज्ञान
दिमाग की जान
स्वस्थ शरीर
उत्तम विचार
जीव बुद्धिमान
जीवन आसमान

स्वरचित
मनीष श्री
रायबरेली


मतिभ्रम हुआ मुझको इतना
खुले आसमान में घूम रहा हूँ।
खुद को ही रणवीर समझता
हो मस्त मलंग मैं झूम रहा हूँ।

आकाओं को गुरू मानता।
इनसे कोई न वरिष्ठ जानता।
मुझसे बडी नहीं कोई हस्ती,
स्वयं संस्कृति से परे मानता।

मुझे विवेक से काम नहीं है
सब सहनशीलता मैने खोई।
मुझ जैसे नहीं कोई जगत में,
यह सारी दुनिया मुझसे रोई।

बस आतंकवादी नाम है मेरा,
मेरा नहीं कोई ठौर ठिकाना।
सोंपा लक्ष्य मुझे आकाओं ने
मार मार कर खुद को मरना।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.



शीर्षक- मति/बुद्धि/दिमाग
मानव जीवन बुद्धि आधार
इसकी ही प्रबलता से ही जीवन पाता निखार
जब -जब इसमें आया अहंकार
सब तरह से हुआ उसका तिरष्कार 
बड़ों -बड़ों का जीवन बिखर सा गया 
जीवन के उजाले में अँधेरा सा छा गया
मन बुद्धि को रखो काबू में 
न फंसों कभी सम्मोहन के जादू में 
जब भी कोई भूल होगी तुमसे 
कोसी जाएगी बुद्धि ही ज्यादा सबसे 
अतः बुद्धि को सबसे अधिक अंकुश की जरूरत है 
क्योंकि सूरत नहीं प्रबल सबकी सीरत है 
बुद्धि के फिरने से रावण जैसा विद्वान भी नीचे गिरता है
केवल स्वयं नहीं वंश के नाश का कारण बनता है ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय


विधा :-ताटंक छंद 

चमत्कार मति करती कितने , तर्क जाल बुन लेती है ।
वाद विवाद बढा देती है ,सिर प्रज्ञा धुन लेती है ।।

प्रज्ञा नभ मण्डल तक जाती , करती भ्रमण सितारों का ।
मति भ्रम जब मनुष्य को होता , भक्षण हो अंगारों का ।।

सीमित है साम्राज्य बुद्धि का , नभ से पार नहीं जाती ।
श्रेष्ठ बुद्धि के आरोहन से , प्रज्ञा आगे ले जाती ।।

बल से बडा वैभव बुद्धि का , सब निर्णय कर लेता है ।
जब दिमाग हो जाय कभी चुप ,बल छल से लड़ लेता है ।।

मौलिक स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055 ( हरियाणा )


मति 
जैसे जिसकी 
गति वैसी उसकी, 
मति वैसी उसकी 
संगत जैसी जिसकी 
संगत कीजै ऐसी 
मति बन जाए मोती जैसी

मति पहचान मनुज की 
मति मिलती नही मोल 
मति से ही होते हैं 
काम कितने अनमोल 

मति करती सृजन 
करती नवीन आविष्कार 
मति से हुए जग मे 
देखो कितने चमत्कार 

मति होती परिष्कृत 
करो जो नित नित काम 
रुके तो जड हो जाए 
आए न किसी के काम

ऐसी मति सब चलो 
होवे जग कल्याण 
जग सकल जय करे 
याद करके तेरे काम 
याद करके तेरे काम 

कमलेश जोशी 
कांकरोली राजसमंद


विधा-हाइकु

1.
बुद्धि परीक्षा
नकल रहित हो
निगरानी में
2.
हुआ विकास
बुद्धि का परिणाम
नव विज्ञान
3.
दिमागी खोज
बनाई ब्रेल लिपि
अंधों के लिए
4.
हे शारदे माँ
दे सदबुद्धि हमें
राह दिखा दे
5.
हे दुष्ट पाक
हो जाएगा बर्बाद
भ्र्ष्ट बुद्धि से
**********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा


विधा पिरामिड

है
बुद्धि
सद्बुद्धि
महाग्यान
चढ़े सोपान
विकसित आत्मा
प्राप्त हो परमात्मा

जो
बुद्धि
कुबुद्धि
अहंकार
रचे विनाश
विकृत विचार
जीवन अनाचार

मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित


विषय -बुद्धि, मति, दिमाग 
चंद हाइकु 




प्रज्ञा की गली 
विवेक उपवन 
महके मन 



बुद्धि विवेक 
प्रेम का अतिरेक 
मानव नेक 



सुमति मिली 
सरपट है चली 
जीवन गाड़ी 



मति के मारे 
भटके द्वारे -द्वारे 
पिया अनाड़ी 



दिल के हाथों 
मजबूर दिमाग 
कुछ ना सूझे 

(स्वरचित )सुलोचना सिंह 
भिलाई (दुर्ग )


विधा-हाईकु

कुटिल बुद्धि
योजनाएँ तैयार
करती वार

बुद्धि विहीन
असफल जीवन
रूकती राह

बुद्धि से वार
शब्दों के हथियार
बनते भले
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
2/4/19
मंगलवार


भावों के मोती
विषय-मति/बुद्धि/दिमाग


वक़्त की बेहरमी ने
तोड़े मन के सारे भरम
कभी दिल टूटकर बिखरा
यह वक़्त यूँ बदला
चल दिए छोड़कर अपने
जिगर पर मार के खंजर
वक़्त की यह कैसी मनमानी
मरता दिखे आँखों का पानी
बुद्धि विवेक सब भूल बैठे
वक़्त के चुभे शूल ऐसे
अपनापन पहचान खो रहा
अपना ही अब घाव दे रहा
मति के मारे इंसान सारे
आपस में ही लड़ते रहते
आपसी प्रेम की भूले भाषा
वक़्त के साथ बढ़ती अभिलाषा
इंसानियत पर हावी हो रहा
वक़्त अपने रूप बदलकर
अच्छा हो या बुरा ही सही
वक़्त न रुकता किसी के लिए भी
दिल दिमाग दोनों खुले रखकर
चलो वक़्त से कदम मिलाकर
***अनुराधा चौहान***©®स्वरचित


विषय--मति , बुद्धि ,दिमाग
विधा---कविता
कोई पाये भगवत कृपा से
कोई साधना से पाता है
इंसान अनाडी बुद्धि बिना
जैसे कोई कोरा कागज
स्याही बिना रह जाता है
जीवन अधूरा इसके बिना
लक्ष्य नहीं सध पाता है
बिना इसके कोई कर्म
श्रेष्ठ नहीं बन पाता है
युग पुरुषों का जीवन
प्रमाण इसका दिखाता है
बिना बुद्धि के मानव जीवन
पशु समान रह जाता है ।
स्वरचित----🙏🌺

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"अंदाज"05मई2020

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