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ब्लॉग संख्या :-368दिनांक .. 26/4/2019
विषय .. निर्मल
विधा .. लघु कविता
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निर्मल मन से याद किया है, मैने तुमको आज।
शायद मिलना हो तुमसे , तुम मुझको दो आवाज।
.....
कई ऋतुओ के बाद जगा है ऐसा कुछ एहसास।
सुप्त हृदय मे शायद आये फिर से वो मधुमास।
......
मिलन की बेली से लिपटे तो, जागे फिर से प्यार।
शेर हृदय के मरूभूमि से, प्रीत का निकले सार।
......
पत्र मेरा पढ करके प्रियवर, देना तुम आवाज।
शेर तडपता है तेरा बस, सुनने को आवाज।
....
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
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।। निर्मल ।।
ज्यों गंगा का निर्मल जल
ऐसा रहे प्रभु यह दिल ।
खिला रहे मन सदा यहाँ
ज्यों खिला होता कमल ।
माया तो ठगिनी होऐ
मन में धूमिलता बोये ।
यही परीक्षा होय यहाँ
भूलबस फिर इंसा रोये ।
निर्मलता में छींट न आये
जिस पर तूँ कृपा बरसाये ।
पल पल फिसलन बनी रहे
तेरे भक्त भटक नही पाये ।
अर्ज़ यही सच्चे दिल की
खबर रहे हमें मंजिल की ।
सुधि न विसराना ''शिवम"
कसम तुझे गंगा जल की ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 26/04/2019
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नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक निर्मल
विधा लघुकविता
26 अप्रैल 2019,शुक्रवार
निर्मल मन रब मिलता है
निर्मल मन संत हैं जग के
निःस्वार्थ जीवन को जीते
वे सहारा बनते जीवन के
निर्मल जल रोग हटाता
निर्मल जल जग आधारा
जल नहीं तो कुछ नहीं जग
यह जीवन का मात्र सहारा
निर्मल वाणी सम्मोहन है
वाणी अभिव्यक्ति माध्यम
साधक पँहुचे सदा साध्य पर
बस निर्मल हो सदा साध्यम
निर्मल घर हो निर्मल जग हो
निर्मलता खुशियों को देती
निर्मलता विस्फारित जग हो
हर विपदा को खुद हर लेती
दूषित पर्यावरण समस्या
जो निर्मलता से जग आती
प्राणवायु अगर हो निर्मल
फिर जगति भी स्वर्ग कहाती
निर्मल तन मन हो सबका
निर्मल हो सब नातेदारी
निर्मलता में हर सुख होता
यह जीवन नित सांझेदारी
सत्य धर्म संस्कारित करती
जग निर्मल सुन्दर सपना हो
हम निर्मल तो सब निर्मल हैं
कौन पराया सब अपना हो।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
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सुप्रभात"भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन🌹
26/04/2019
"निर्मल"
1
निर्मल मन
असहनीय पीड़ा
खून से रोया
2
निर्मल गंगा
घर से निकलके
हो गई मैली
3
निर्मल नीर
मूल्य देके खरीद
प्यास अधीर
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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🌹नमन भावों के मोती🌹
विषय_ निर्मल
___
दो बूंद निर्मल पानी तेरा
अंत समय
मुख में डाला जाता है
है जटा वासनी तब जाकर
ये प्राण पखेरू
देह मात्र से
विमुक्त हो पाता है।
हर हर के नाद
होते तुझ पर
माँ गंगा
तुम कहलाती हो
घाट घाट तीर्थ बन
जाते तुमसे
कंकर कंकर
शंकर बनाती हो।
सतत वाही ,
जीवन प्रवाही
अतुल्य
गंगोत्री धाम तेरा है
तुम्हीं व्याख्या
जीवन मरण की
भागीरथी नाम तेरा है
दो घूट पानी तेरा
जीवन सुधा
बन जाते है।
बहती धाराओं की
कल कल
से मन शांत
रूप हो जाते है।
__
पी राय राठी
राजस्थान
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26अप्रैल2019
निर्मल
मञ्च को नमन।
गुरुजनों, मित्रों का अभिनंदन।
निर्मल तन,निर्मल मन,
माँ शारदे मेरा कर दे।
ऐसा हो जाये निर्मल मन,
जैसे गंगा माँ का पानी।
स्वच्छ,सुवासित काया हो जाये,
घर,घर में खत्म हो ईर्ष्या की कहानी।
निर्मल हो जायेंगे सब तो,
ईर्ष्या,द्वेष सब मिट जायेगा।
मिल,जुलकर सब रहेंगे जग में,
भेदभाव सब मिट जायेगा।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
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दिनांक-26/04/2019
दिन-शुक्रवार
शीर्षक-निर्मल
विधा-दोहे
निर्मल मन से कीजिए,दुनिया से व्यवहार
प्रेम सुधा बरसे अगन ,अहं दिया जो मार।
गहरी है दिल की नदी,निर्मल जल की धार
गंदा खुद ही कर रहे ,उस मे डाल विकार।
हरा भरा गुलजार हो ,हरले सबकी पीर
प्राणों का संचार हो ,निर्मल मन्द समीर।
सबके अपने काज हैं ,सबके अपने भोग
निर्मल हो जीवन अगर,सब मिट जाते रोग।
कपटी को भी बदलता,प्यार भरा व्यवहार
तोड़े वो पाषाण भी , निर्मल जल की धार।
स्वरचित@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच को
दिन :- शुक्रवार
दिनांक :- 26/04/2019
शीर्षक :- निर्मल
भावों की निर्मल हो धारा..
हो यही बस ध्येय हमारा..
लिखें हम नित नवविधाएं.
हो नव सृजन ध्येय हमारा..
निर्मलता शब्दों की गरिमा..
निर्मल हो स्वभाव हमारा..
सरलता रहे आचरण में..
हो नया प्रादुर्भाव हमारा..
कलम लिखे हृदय उद्गार..
लिखे ये सदा सकल संसार..
लेखन हो सदा संस्कारगत..
धर्म भी रहे सदा परंपरागत..
निश्चय रहे सदा संकल्प हमारा..
बहती रहे सदा निर्मल धारा..
सत्य,अंहिसा और परमार्थ..
रहे सदा ही बस ध्येय हमारा..
करे सकल उद्धार जगत का..
ऐसा निर्मल हो भाव हमारा..
वसुधैव कुटुंबकम का नारा..
हो बस यही ध्येय हमारा..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
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नमन" भावों के मोती "
26-4-2019
शीर्षक,,#निर्मल
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विधा-तांका
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
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माता धरणी
हृदय में धारण
अमृत जल
नदी नीर हज़ल
निर्मल गंगा जल //
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🌹🌹🌹🌹🌹🌹
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निर्मल मन
भगवान विराजें
पावन तन
दमके अन्तर्मन
सार्थक हो जीवन //
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🌹🌹🌹🌹🌹🌹
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित
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नमन मंच
निर्मल
पिरामिड
हो
धारा
निर्मल
अविरल
नीर उज्ज्वल
रहित गरल
करती कल कल।
हो
मन
निर्मल
सुभाषित
द्वेष रहित
नियत प्रवाह
चलेंगे नेक राह
स्वरचित
गीता गुप्ता "मन"
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🌺🌻 निर्मल 🌻🌺
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🌹 गंगे माँ 🌹
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
हे पतित पावनी गंगे माँ ,
कल-कल, छल-छल बहने वाली ।
भारत माँ के संताप हरें ,
तन-मन निर्मल करने वाली ।।
बह्म कमण्डल से प्रकटीं,
महादेव के शीश बिराज गयीं ।
भूप भगीरथ के तप-बल ,
पृथ्वी पर तारनहार भयीं ।।
ऋषि मुनि ज्ञानी ध्यानें ,
जल धार से तृप्ति कराइ रहीं ।
हरिप्यारी , त्रिलोक सुधा ,
कलि-काल के पाप मिटाइ रहीं ।।
देवासुर वन्दित श्री गंगे ,
भुक्ति , मुक्ति देने वाली ।
भारत माँ के संताप हरें ,
तन-मन निर्मल करने वाली ।।
उच्च हिमालय गो मुख से ,
अविरल सागर तक अमिट धार
ऋषिकेश, हरिद्वार, काशी,
तीर्थ बसाती अमृत धार ।।
सींचती भूमि ,जीवनदात्री ,
ताप नाशिनी पुण्य धार ।
मोक्षदायिनी गंगे माँ की ,
सौगंध निभा , पायें जगत प्यार ।।
यमुना-सरस्वती से संगम कर ,
अटूट श्रद्धा भरने वाली ।
भारत माँ के संताप हरें ,
तन-मन निर्मल करने वाली ।।
मानव बन शत्रु करें दोहन ,
प्रदूषित कर पाप चढ़ाय रहे ।
माता का सीना चीर नित्य ,
भौतिक सुख में इतराय रहे ।।
सद्बुद्धि प्रदान कर चेताओ,
स्वार्थ में लोग भरमाय रहे ।
हे पाप नाशिनी पाप हरें ,
माँ संजीवनी को विसराय रहे ।।
संस्कार व संस्कृति की पोषक ,
भव दुखों को हरने वाली ।
भारत माँ के संताप हरें ,
तन-मन निर्मल करने वाली ।।
🌺🌴🎈🌻🍀🌹
🌲🏵**...रवीन्द्र वर्मा आगरा
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2भा*26/4/2019/शुक्रवार
बिषयःःः #निर्मल#
विधाःःःकाव्यःःः
निर्मल मन तो निर्मल जीवन।
निश्छल उर से मिले संजीवन।
गर नहीं खटास हो अंतरतम में।
फिर क्या कठिन घर आनन में।
ये पुण्य प्रताप भागीरथी भर लें ।
निर्मल माँ गंगा भागीरथी कर लें।
हरेक नदी उपयोगी उपकारी तो,
क्यों ना प्रयास भागीरथी कर लें।
हमें सुखी सुखद रखें परमात्मा।
नहीं दुखी करें कभी सुखदात्मा।
निर्मल स्वच्छ साफ हो अंन्तर्मन,
सदैव प्रसन्नचित्त रहे हर आत्मा।
हर मनमयूर पुलकित हो जाऐ।
हर मनमानस सुरभित हो जाऐ।
कालिख साफ करे उरअंतस तो
स्वयं निर्मलता हर्षित हो जाऐ।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
2भा# निर्मल#काव्यः ः
26/4/2019/शुक्रवार
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तिथि - 26/4/29
विधा - कविता
विषय - निर्मल
निर्मल नीले नयन तुम्हारे
सींच रहे प्रिय प्राण हमारे
स्वच्छ धवल चांदनी विराजे
उज्ज्वल वसन गात पर साजे
तितली के पंखों की फड़कन
होठों पर गुलाब की लाली
दूर खड़ा मैं तुम्हें निहारूँ
मेरे हाथ अभी तक खाली
पावन सरिता सी बहती हो
नहीं किसी से कुछ कहती हो
निर्मल कोमल हृदय तुम्हारा
शीतल करती हृदय हमारा
प्यार भरा सागर तैरा दो
इस भवसागर पार लगा दो
मेरी बन जीवन में आओ
हाथ पकड़ कर वचन निभाओ
जन्म जन्म की प्यास बुझाओ
पावन परिणय में बंध जाओ
सरिता गर्ग
स्व रचित
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"नमन-मंच"
"दिंनाक-२६/४/२०१९
"शीषर्क-निर्मल"
देखकर आज निर्मल गगन
प्रफुल्लित हुआ जग सारा
स्वच्छ चाँदनी फैली नभ में
टिम टिम करते सुंदर तारे।
गंगा बहे ,बहे निर्मल धारा
सुंदर निर्मल,बहे मलय हमारा
ऐसा सुन्दर सृष्टि को देख
मन मलिन भी हो निर्मल हमारा।
माँ के निर्मल बाणी से
मिट जाये दुःख दर्द हमारा
माँ,बाप का निर्मल प्यार से
जीत ले हम जग सारा।
क्रोध, लोभ से दूर रहे हम
कर ले अपना निर्मल मन
मन निर्मल तो कर्म भी निर्मल
सुन्दर हो जाये जग सारा।
निर्मल बाणी है अमोल जग में
इसे बस ले अपनाये हम
निर्मल बाणी, निर्मल कर्म से
हर दिल में बस जाये हम।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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भावों के मोती
दिनांक- 26/04/2019
विषय- निर्मल ( मातृत्व )
विधा- चौपाई आधारित गीत
माँ शिशु-गीत कंठ बन जाई !
आँख राह में बाल समाई !
प्रेम तार लहरी लहराई !
निश्छल चित वीणा गुण गाई !!
माँ सागर चित है गहराई!
बाल नेह निर्मल अँगडाई !
कन्या रचना सुन्दर पाई !
ममता रस की चखी मलाई!!
कंचन मृदुल अस्तित्व खोई
कोमल मन शुद्ध अंश होई
प्रेम रत्न धन पाया गोदी
निरखे अंतर सुन्दर कोई !!
बाल खेल मिलती तरुणाई !
कोमल बोल भरे अरुणाई !
बेला मनहर पाई नारी !
सपने संजो बहु इतराई !!
निर्मल नेह नार अति भाई !
नवल सृजन चेतन गुण गाई !
त्याग पुण्य की महिमा देखो
धर्म कर्म में गंगा माई !!
आत्म बोध की अग्नि जलाई !
देह पीर रस धार बनाई !
ताप तपे ढकती निज छाया!
बदली बनकर घिरती जाई !!
छगन लाल गर्ग "विज्ञ"!
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नमन भावों के मोती
दिनांक: - २६/४/०१९
विषय: - निर्मल
* निर्मल *
निर्मल हो तुम, ममता हो
है निर्मल तेरा प्यार
तुम नारी हो उस समाज के
जिसमें रचा - बसा है संसार।
हाँ, नहीं मिली अनुकूल परिवेश तुझे
ना ही अच्छे ज्ञान का सार
फिर भी हैरत है जग तुझे देखकर
कितने उच्च, आदर्श है तेरे विचार।
दबाती रहेगी यूँ ही तुझे
कूटनीति का यह संसार
जननी हो तुम आज और कल की
बदलो इसके सोच- विचार।
पैदा करो अपनी कृतियों से यहाँ
मानवता का निश्छल संस्कार
निर्मल हो तुम ममता हो
है निर्मल तेरा प्यार........।
स्वरचित : - मुन्नी कामत।
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🙏🌹🙏🌹🙏
विषय-निर्मल(२६-४-२०१९)
विधा-काव्य
दुर्योधन की द्रुत सभा में
पांडव भार्या हार दिया
भ्राता दुष्ट दुःशासन ने
द्रौपदी चीर उघार दिया
पांचाली की चीत्कार से
गृह सारा कांप गया
हा-हाकार मचा सभा में
गुरूजन अनहोनी भांप गया
हाथ नहीं उठा रक्षा में
न किसी ने प्रतिकार किया
तब द्रौपदी पुकार पर
गोविंद वसन अवतार लिया
द्रुपद सुता के अपमान से
कुरुवंश का मान गया
पुण्य गया,धर्म गया
अंत निकट युग जान गया
जब जब कलुषित मन
नारी पर हाथ बढ़ायेगा
तब तब होगा महाभारत
कृष्ण धरा पर आयेगा
#निर्मल आँचल को मानव
तू क्या अपवित्र कर पायेगा
तुझको संहारने खुद
ईश्वर धरती पर आयेगा।।
स्वरचित
-सीमा आचार्य-(म.प्र.)
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२६/४/१९
भावों के मोती
विषय- निर्मल
______________
#गंगा
गंगा तू बहती जा
कल-कल गीत सुनाती जा
निच्छल निर्मल तेरी धारा
सबके जीने का तू सहारा
भागीरथ की तू भागीरथी
शिव की जटाओं से तू है बहती
जहाँ-जहाँ से निकल कर आती
जीवन में रंग भरती जाती
तेरे मन में कोई बैर नहीं
तेरा अपना कोई शहर नहीं
पर्वतों से निकल कर आती
सागर में जाकर मिल जाती
गंगासागर तू कहलाती
सागर से तेरा मिलन अमर है
सबसे पावन यह तीरथ है
गंगा तू बहती जा
कल कल गीत सुनाती जा
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित कविता
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भावों के मोती
दिनांक- 26/04/2019
विषय- निर्मल
विधा-तुकांत कविता
🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀
निर्मल निर्झर कान्हा तेरा प्यार
मोरमुकुट पहने करे बडा सृगार
मोटे नयन में हैं काजल की धार
अधरों पर बांसुरी का सृंगार
मोहित राधा बांबरी का प्यार
मिटा इस छवि पर सारा संसार
कृपा करो हे जग के पालनहार
बन जाये दासी "नीलू" यही पुकार
🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂
स्वरचित
नीलम शर्मा #नीलू
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शीर्षक --निर्मल
शुक्रवार/26-4-19
विधा--दोहे
1.
बच्चों के मन में सदा, बहती निर्मल धार।
बच्चे तो सच मानिए, ईश्वर का अवतार।।
2.
जम जम का जल शुद्ध या,गंगा निर्मल नीर ।
अगर प्रदूषण से बचे, अमरित मिले शरीर।।
3.
दुनिया निर्मल स्वस्थ हो,सहाय श्रेष्ठ विचार।
स्वअस्तित्व,सह अस्तित्व,दोनों की दरकार।।
4.
बना स्वच्छ भारत मिशन, स्वस्थ देश का मीत।
निर्मल अतीत रीत ये, फिर से हुई प्रणीत।।
*******स्वरचित******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र)451551
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नमन मंच
"भावों के मोती"
दिनाँक-26/4/2019
विषय-निर्मल
पाए निर्मल मन
निरोगी काया
हो निर्मल मन
न किसी को छल
पाया ।
पाए निर्मल मन
राग-विराग की
स्थिति से निकल
वीतराग को ।
बाह्य से अंतर की
कर यात्रा करे
साक्षत्कार उस
अनंत को ।
निश्छल प्रेम बहता
निर्मल मन में हो
ज्यूँ जल गंगा का
ढल जाता जल
हर आकार में ।
पा उस अनंत
को खुद उसमें
ही सम्माहित हो
जाता !!!
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर (म.प्र.)
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नेह की नदिया के मै इस पार तुम उस पार हो।
मै धरा की शुष्क धूलि , तुम मेह की बौछार हो।
दिग् दिगन्त विस्तृत अनन्त अमित नाद हो तुम।
अप्रिय ककर्ष शोर हूँ , तुम स्वरमयी झन्कार हो।
मै तप्त अनल अग्नि में धुसरित तपा तम सार हूँ।
तुम हिमशिखर से अवतरित, शीत का श्रंगार हो।
कथ्य हूँ मै एक पराजित तुम विजय का गान हो।
मै हार कर जीता रहा, और जीत का तुम हार हो।
श्रंग सी मै भोग लिप्सा लिए मन वश बेबस हुआ।
आतिथ्य निर्मल हो, तुम आनन्द मय सत्कार हो।
स्वरचित विपिन सोहल
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नमन मंच
26/04/19
निर्मल
सायली छन्द
*****
निर्मल
अंतर्मन से
सहज होता जीवन
खुशी मिले
मनभावन
निर्मल
निर्झर धारा
नदिया का पानी
प्रदूषण मुक्त
जीवनदायिनी
निर्मल
निश्छल बचपन
खोया कहीं अपनापन ,
पचपन मे
पुनःआगमन
स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
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निर्मल मन
यही प्रगति मंत्र
साधे न सधे।।
निर्मल जल
चाहिये हर पल
बड़ा मुश्किल।।
निर्मल तन
स्वास्थ्य मंत्र प्रबल
खिले कमल।।
निर्मल जन
जीवन का संबल
समस्या हल।।
भावुक
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छोड़ के माया
चली मोक्ष के द्वार
निर्मल काया
रहे आबाद
सजग है समाज
निर्मल बाग
निर्मल जल
अमृत के समान
रखना जान
बच्चों का मन
निर्मल धारा सम
कहते हम
संत बहाते
निर्मल भाव गंगा
प्रवचनों में
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
26/04/2019
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26-4-2019
विषय:-निर्मल
विधा :-दोहा
हृदय सलिल निर्मल बहुत , कौन फेंकता शैल ।
तलछट से उठ मलिनता , चित में जाती फैल ।।१।।
आए नर जब जगत में , होते निर्मल भाव ।
हेरा फेरी जगत की , डाले ग़लत प्रभाव ।।२।।
सुबह सुनहरी खिल गई , दिखता निर्मल रूप ।
रक्तिम रवि से खेलती , स्वच्छ हृदय से धूप ।।३।।
निर्मल गंगा बह रही , नर नारायण धाम ।
पवन मंद शीतल बहे , जपे विष्णु का नाम ।।४।।
मंदाकिनी सुंदर अति , चाराबाडी पास ।
वासुकि जलपोषित करे , निर्मल सुने सुहास ।।५।।
मन निर्मल होता तभी , दूर होय सब खोट ।
सत संगत भट्ठी चढे , संत मार दे चोट ।।६।।
स्वरचित :
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
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नमन "भावों के मोती"🙏
26/04/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"निर्मल"
(1)
कीचड़ सब
"निर्मल" राजनीति
दुर्लभ अब
(2)
हो विरेचन
आँसुओं की बुहारी
"निर्मल" मन
(3)
ऐसे भी जन
हृदय भरा पंक
"निर्मल" तन
(4)
धरा की गोद
बादलों की सौगात
"निर्मल" बूँदें
(5)
पसरा स्वार्थ
निर्मलता तलाश
हाथ निराश
(6)
भले न ज्ञानी
हृदय उतरती
"निर्मल" वाणी
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ संध्या
।। निर्मल ।।
द्वितीय प्रस्तुति
निर्मल मन ऊँची उड़ान
चेहरे का रहे अनुमान ।।
खुद की खुद को बनी रहे
फिक़्र और सदा पहचान ।।
निर्मलता बच्चों की भाये
कौन न उनको गले लगाये ।।
निर्मलता के कारण ही तो
ईश रूप बच्चे कहलाये ।।
निर्मलता को परखो देखो
कदम माया में जब टेको ।।
ये धूमिल करती है मन को
अंतस की नजरें नित फेंको ।।
कहीं कोई जो होवे धूल
करो उसे तुम तुरत कुबूल ।।
संतो की सतसंग है साबुन
नहाओ 'शिवम' उसमें भरपूर ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 26/04/2019
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बहती निर्मल धारा सा हैं ये जीवन
बस बहते जाना हैं हरदम
जिसमें कभी ख़ुशी के पल हैं
तो कभी गम की परछाई हैं .
जिंदगी में कदम कदम आगे बढ़ता मुसाफिर हूँ
ह्रदय में सागर की हिलोरे लेते कुछ ख्वाब हैं
ह्रदय मेरा निर्मल नदी का बहता पानी
जीना सबको मैं सबको सिखलाती हूँ .
तुम ह्रदय के भाव का उमड़ता सागर हो
मैं मन की निर्मल आस हूँ
मैं और तुम मिल जाये तो
उम्मीदों का जीवन में आगे बढ़ते आस हैं .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
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निर्मल
मलिन मन,
सबके जहां पर,
उजले तन।
मन के भाव
निर्मल हों सबके
सुख आपार।
निर्मल गंगा
कलकल बहती
करती पार।
मन बच्चे का,
होता निर्मल जैसे,
रंग श्वेत सा।
उच्च विचार,
हो ह्रदय निर्मल,
सुखी संसार ।
जय हिंद
जय हिन्दी
स्वरचित : राम किशोर, पंजाब ।
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विषय -निर्मल
1
निर्मल उषा
शक्ति अपरिमित
धरा के प्राण
2
प्रेम की नदी
मयंक की ज्योत्सना
निर्मल छटा
3
दिव्य सुमन
परिमल पराग
निर्मल प्रेम
4
पावन मन
निर्मल आचरण
स्वस्थ जीवन
5
निर्मल सोच
कीचड़ राजनीती
खिले कमल
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
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दिनाँक-26/04/2019
शीर्षक-निर्मल
विधा-हाइकु
1.
निर्मल आत्मा
सबसे बड़ी माया
निरोगी काया.
2.
निर्मल गंगा
गंगोत्री से निकली
पवित्र नदी
3.
निर्मल मन
बन छोटा बालक
खेले आँगन
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स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
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निर्मल
🎻🎻🎻🎻
निर्मल तो शब्द कोष का मात्र शब्द है
कौन इसे प्रमाणित करने को कटिबद्ध है
कुर्सी की लडा़ई ने सब बता दिया
निर्मलता से कोई नहीं सम्बद्ध है।
आरोप प्रत्यारोप चिल्ला रहे
लोग एक दूसरे पर झल्ला रहे
कोई किसी से कम नहीं
लोग आपस में तिलमिला रहे।
निर्मलता मुस्कराये तो होवें झंझट क्यों
ऐसी तीखी रहें फिर खटपट क्यों
मित्रता के द्वार खुले सदा रहें
शान्ति के होवें बन्द पट क्यों।
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26अप्रैल2019
विषय निर्मल
विधा कविता
निर्मलता की बात निराली
रहे हमेशा ही खुशियाली
पत्ते पत्ते डाली डाली
प्रकृति की छायी उजियाली
निर्मल जल जीवनदायी
निर्मल हृदय सदा सुखदायी
छल प्रपंच सदा कष्टदायी
निर्मल मन प्रेरणादायी
कोमल हृदय प्रेम रस भाव
निर्मल मन सरस स्वभाव
परहित धर्म सरलता भाव
जीवन धन्य सुखमय रस स्राव
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
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" निर्मल"
छल-कपट से दूर,
बचपन प्यारा,
निर्मल मन में ,
सुविचारों की धारा,
ना समझे वो ऊँच -नीच,
निर्मल भाव से सबको अपनाता,
अपना पराया ना जाने मन,
सबकी थाली में वो खाता,
ऐसे सुंदर विचारों वाला,
निर्मल मन है कहलाता,
ना लेता स्वार्थ का सहारा,
रखता सबसे निर्मल नाता
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स्वरचित-रेखा रविदत्त
26/4/19
शुक्रवार
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शुक्रवार , २६ ,४ ,१९,
निर्मल ,
निर्मल जल
संसार का आधार
संघर्ष जारी
प्रदूषण है भारी
मानवता पुकारी ।
निर्मल मन
सपनों का संसार
आज का युग
बनाबटी चेहरे
फैला दिल का रोग ।
माँ की ममता
निर्विवाद हमेशा
निर्मल छाया
किस्मत से नसीब
चमके तकदीर ।
निर्मल वाणी
रहती हँसी खुशी
मधुर रिश्ते
नफरत गायब
लाजबाब ताकत ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
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नमन भावों के मंच
दिनांक- 26/04/2019
विषय-निर्मल
निर्मल नीर ,निर्मल वायु
मिले तो बढ़ती है आयु
आज निर्मल शब्द ही है बेमानी
न निर्मल नीर, वायु ,न निर्मल वाणी
मानव जाति ने करी इतनी मनमानी
कि सब कुछ दूषित कर के ही मानी
न निर्मल आचार ,न निर्मल विचार
पता नहीं कैसा सजा लिया बाजार
संबंधों की निर्मलता में भी आया प्रदूषण है
सबको मानो भौतिक सुख ही आभूषण है
बड़े तो बड़े बच्चों में भी निर्मलता गायब है
पता नहीं कौन सी संस्कृति अब कायम है?
नदियाँ जिनको देवी माना था
उन पर भी अत्याचार किया मनमाना था
सोचो ठहरो विचार करो, सृष्टि की, आचारों की व्यवहारों की निर्मलता को बहाल करो ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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