Monday, April 29

"स्वतंत्र लेखन "28अप्रैल l2019


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                                      ब्लॉग संख्या :-370


 दिनांक-28/04/2019

लेखनी को स्याही का सहवास दे दो.......

 अपना माना है तो थोड़ा आभास दे दो

नेह करते हो तो उसका अहसास दे दो।

मैंने हर पल प्रतीक्षा करी अब तलक

सोच कर मेरे जीवन को मधुमास दे दो।

मन का पंछी है आकुल व्याकुल बहुत

सजल नयन मे पुलकित एक ख्वाब दे दो।

मेरे सपनों के उपवन की...देखो दशा दुर्दशा

सूनी आंखों के सावन को वनवास दो।

हे प्रभु...आपसे...प्रार्थना...है...यही,

मेरी सांसों को भक्ति का अभ्यास दो।

स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
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सुप्रभात"भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन,🌹
28/04/2019
 "स्वतंत्र लेखन"
वर्ण पिरामिड
  "पीड़ा/वेदना"
1
है
गर्व
वेदना
तड़पना
प्रसव पीड़ा
मातृत्व गरिमा
वंशानुक्रमागत ।
2
है
खेल
घिनौना
भद्दी नीति
राष्ट्र वेदना
गंदी राजनीति
खो रही संवेदना।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक    स्वतंत्र लेखन
विधा      लघुकविता
28 अप्रैल 2019,रविवार

लोकतन्त्र के महायज्ञ में
मिलकर सब आहुति देना
विश्वकीर्ति जग फैलादे
लोक प्रिय नायक को चुनना

खंड खंड मिलकर जोड़े
भेदभाव को सदा मिटावे
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई
सबको मिलकर गले लगावे

जातिपांति बंधन के तोड़े
अखंडित भारत को जोड़े
माँ भारती के विकास नित
तनमन धन अर्पण करदे

सत्य अहिंसा परमोधर्म
चतुर्दिशा में जो फैला दे
जो सोए गहरी निंद्रा रत
हाथ पकड़ उन्हें जगा दे

सर्वसुखी और निरोगी
तेरा मेरा फर्क हटा  दे
आतंकी सीमा में आवे
सदा सदा हेतु मिटा  दे

सुख समृद्धि की वर्षा हो
विश्व गुरु हम कहलाए
किसकी हिम्मत है जग में
जो हमसे आकर टकराए।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
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।। भणावजू ।।

मारसा, तमे तो भणी ग्या
अमारे सोर ने भणावजू ,
भणी-गणी ने मोटो थाय
नोकरिये लगवाडजू।

मारसा, अमे तो हुदरयाँ नी
पण मारा सोरा ने हुदारजू ,
अभण रई नी जाय, सोरो
एटले, बे-शार डंडा मारजू।

नेहारे आवे नी तो
खोटिये तमे लटकावजू ,
भणी-गणी ने मोटो थाय
एवो तमे बणावजू ।

मोटी-मोटी सोपड़िये
खोपड़ी में बेवडावजू ,
मारा सोरा बल्ले तमे
टाडा वायरा लावजू ।

सारे ओरे फरतो फरे तो
सकरी तमे फरावजू ,
ऐणा वाय भी नी माने तो
बडद ना खोटे बेवडावजू।

सोरो, सोरी वाय लागे तो
लाकडे-लाकडे हुजाड़जू  ,
भणी-गणी ने मोटो थाय
नोकरिये लगवाडजू।

भाविक भावी

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शेर की कविताएं...
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अन्तर्मन मे द्वंद बहुत है, जाकर किसे दिखाये।
ढूँढ रहा हूँ ऐसा मन जो, हृदय मेरा पढ पाये।
...
मन के उदगारो पर मेरे, अपना भाव दिखाये।
शेर के अन्तर्मन की बातें, सुने बिना मुस्काये।
...
कोमल से हर एक शब्द पे, अपनी राय बताये।
कमी अगर हो कुछ भी तो, निर्द्वंद मुझे बतलाये।
...
अन्तर्मन की हर बातों को, समझे बिना बताये।
ढूँढ रहा हूँ ऐसा मन जो हृदय मेरा पढ पाये।
....

स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
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😁।। इनकी भी सुनो ।।😁

चुक गयी जिन्दगी चुक गया जुनून
मारा है जब से अपनों ने नाखून ।।

बंदर कहे बंदरिया से
अब लाऊँ कहाँ से चून ।।

मेरा ही वह अपना था
बनाया गम का मज़मून ।।

जान बूझकर मैंने उसकी
फाड़ी नही थी पतलून ।।

मगर ग़लतफ़हमी में ही
भावना का किया वो खून ।।

मैं तो बस चलाता था
एक छोटी सी सैलून ।।

वही था रोटी का जरिया
थी शांति और सुकून ।।

तुड़वाया रोटी का जरिया
वह बना अफ़लातून ।।

राजनीति में जब से आया
वो भूल गया पद पियून ।।

हमने ही जितवाया था
फिरे थे मई और जून ।।

आज बना वो जब से नेता
नित दिखाये नये कानून ।।

कुछ नही है खाने को
अब बैठे करके दातून ।।

कैसी ये दुनिया 'शिवम'
कैसा है यहाँ हुजूम ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 28/04/2019
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नमन मंच-भावों के मोती
दिनांक-28.04.2019
विषय- स्वतन्त्र लेखन
विधा- गीत
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आस लेकर जो खिले थे फूल वो मुरझा रहे हैं।
वक़्त के क्षण-क्षण अनियमित बोझ बनते जा रहे हैं।।
              (01)
साँझ से लेकर सुबह तक किस मिलन की लालसा में?
रात का भीषण सफ़र तय कर उठी लहरी विभा में ।
क्यूँ बधिर सुनते नहीं हैं राग सस्वर है प्रणय का ?
व्योम तल पर गान कब से चाँद तारे गा रहे हैं ?
                  (02)
बादलो!दो चार बूँदें मेदिनी पर तुम गिरा दो ।
हैं तृषातुर होंठ जिसके प्यास जल देकर बुझा दो ।
कर रहे निर्भीक गर्जन तुम हवाओं के सहारे।
किसलिए उन्मुक्त हो यूँ नभ पटल पर छा रहे हैं ?
                     (03)
गिन रहा हूँ सिंधु के तट बैठ वलयाकार लहरें ।
जलप्लावन से उठीं जो देखिए किस ओर ठहरें ?
जलचरो!बैठे रहो ख़ामोश मत हलचल मचाओ ।
क्या मुझे कम? मित्र तट जिनके लिए ललचा रहे हैं ।
                      (04)
चल रहे हैं प्यार की काँटों भरी कब से डगर में ?
पाँव रुकते ही नहीं विश्राम को लम्बे सफ़र में ।
हम नियति का दोष मानेंगे अगर मंज़िल न पाई ।
"अ़क्स "पग-पग यातनाएँ झेलते ही आ रहे हैं ।।
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        ' अ़क्स' दौनेरिया

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🍊🌻    गीतिका    🌻🍊
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      🌹  छन्द- रजनी  ( वाचिक  )🌹
    मापनी- 2122 , 2122 , 2122 , 2
             समान्त-अता , पदांत- है
     🍏🍏🍏🍏🍏🍏🍏🍏🍏🍏

जिन्दगी  में  सत्यता से  प्यार  बढ़ता  है ।
भावना हो शुद्ध तो  व्यवहार   गढ़ता  है ।।

प्रेम की सरिता बहा कर खोज लें खुशियाँ ,
आपसी  सद्भाव  से हर कार्य  चलता  है ।

क्यों  रहें हम  द्वेष की  चादर सदा  ओढ़े ,
नेह की बरसात  से  तम-क्रोध गलता  है ।

संग लाये थे न कुछ , क्या साथ ले जायें ?
जो करें भव मोह ,मद से अन्त खलता  है ।

चार दिन की चाँदनी है , फिर  चले  जाना ,
साथ कुछ  जाये नहीं , बस नाम  रहता है ।

मानवी   संवेदना  से   मोह   लें  जग  को ,
है  नहीं   कोई   पराया , भाव   पगता  है ।

बाँटते जो सुख-दुखों को साथ हिल-मिल के ,
शान्ति को पाते वही , प्रभु  द्वार मिलता है ।।

             🌺🍀🌻☀️🌹

🌴🌸**....रवीन्द्र वर्मा आगरा
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सुप्रभात।माँ शारदे को नमन
मंच को नमन
दिंनाक२८/४/३०१९"
"स्वतंत्र-लेखन"
फुर्सत नही है दो घड़ी
मैं बैठू तेरे पास
जी भर कर बातें करूँ
सुकून भरी वो बात।

बस आते जाते तुम्हें मैं
देखूँ एक नजर
तुम्हारे पास से हवा  जो गुजरे
वो ,दे जाती मुझे सुकून।

बार बार मै मुड़कर देखू
कैसे बैठू तेरे पास
जब पारा हो चालीस पार
तुम्हीं हो भगवान।

हे ,ए०सी०,तुम्हीं हो गर्मी के भगवान
नमन करूँ मैं तुम्हें आज
तुम्हें दिखाऊँ अगरबत्ती आज
हे गर्मी के भगवान।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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नमन मंच को
दिन :- रविवार
दिनांक :- 28/04/2019
विषय :- स्वतंत्र लेखन

राम नाम रस रसीला रे...
पी ले ये अमृत प्याला रे..
जग में कर नाम सुनाम..
मिटा ये गड़बड़ झाला रे..
कर भक्ति प्रभु की बंदे..
है ये हृदय विशाला रे..
हरे हर ये विपदा तेरी..
बनकर ये रखवाला रे..
राम नाम रस रसीला रे..
लक्षिमन रहे सँग जिनके..
भक्त है हनु मतवाला रे..
सबरी के जूठे बैर खाए..
सुग्रीव का तारणहारा रे..
केवट बना खैवय्या जिनका..
वो दशरथ राज दुलारा रे..
राम नाम रस रसीला रे..
भक्त वत्सल प्रभु राम..
कौशल आँख का तारा रे..
चला उठा धनुष बाण ये...
प्रत्यंचा भरे टणकारा रे..
सिया वरण की बेला आई..
उठा धनुष परशुराम का..
अहम् प्रचंड उतारा रे..
जय जय सियाराम भज ले प्यारे..
आएंगे प्रभु तेरे द्वारे..
लगा जय श्री राम का नारा..
सब दुख हरेंगे तेरे प्यारे..
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

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नमन मंच
28/04/19
दोहे
***
बातों में उलझो नहीं ,करो मान मनुहार
आपस के संबंध ही ,जीवन का आधार।
***
मेहंदी हाथों में रचा ,चली पिया के गाँव
जन्मों के बंधन जुड़े,मिले प्यार की छाँव।
***
कठिनाई हो डगर में ,पड़ते छाले पाँव
माँ का आँचल धूप में,शीतल ठंडी छाँव।
***
अहंकार अरु लोभ से ,होता बुद्धि विनाश ।
आडम्बर मे मत करो ,पवित्रता का नाश ।।
***
मानव जीवन जो मिला ,कर उसका उपयोग।
जीवन में सत्कर्म से  , बने मोक्ष का  योग ।।

स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव

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नमन भावों के मोती 🌹🌹🙏🙏

रेगिस्तान सी जिंदगी मेरी
पतझड़ का ये आलम
तपती हुई धूप में
अमराई सी नजर आती हो तुम ।
सारा सारा दिन बस
बीत जाता है यूँ ही
अक्सर मेरे ख्यालों में
दुल्हन सी नजर आती हो तुम ।
ढलती हुई शाम में
लजायी सी नजर आती हो तुम
चाँदनी रात में एक और
चाँद सी नजर आती हो तुम ।

सुलोचना सिंह
भिलाई
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भावों के मोती दिनांक 28/4/19
स्वतंत्र लेखन
लघुकथा

बुढापा - एक हसीन जिन्दगी

दिनांक 28/4/19
लघुकथा

हसीन पल

"सुनो जी, आगरा का पेठा ले लो आपको अच्छा  लगता है ।"
पत्नी ने  पति  से कहा । लेकिन उसने मना
कर दिया । तभी गरमागरम समोसा लिए , एक बेचने वाला खिडकी के पास आया तब पति ने पत्नी   से कहा :
" समोसा खा ले , ले लूँ  दो ठो "
लेकिन अब पत्नी  ने मना कर दिया ।
मैं  दिल्ली  से भोपाल आ रहा था । मेरी सीट के सामने ये वृद्ध  दम्पत्ति बैठे थे और मैंने  महसूस किया   पूरे रास्ते पत्नी,   पति से मीठा खाने का कहती  और पति मना कर देता फिर  पति , पत्नी को  मिर्च  मसाले की चीज खाने को  कहता और वह मना कर देती ।
इसके बाद पत्नी   ने  सब्जी रोटी निकाली और दोनों ने साथ  साथ खाई ।
फिर उनमें  जब स्टेशन पर कोई कुछ बेचने आता तब मीठा - नमकीन खाने , न खाने के लिए बहस
होती रही ।
इस बीच उस दाम्पत्ति  में  से पति सीट से उठ कर बाहर गया तब मैंने  अपनी  उत्सुकता  जाहिर करते हुए कहा :
" माता जी आप अपने पति को मीठी  चीज खाने के लिए क्यो  बार बार कहती है , जबकि वह मना कर देते है । तब उन्होंने  कहा :
" बेटा बूढ़ा  और बच्चा एक सा होते है , इनको शुगर की बीमारी  है , पहले जब मैं  मीठा खाने के लिए मना करती थी तब यह खाने के लिए ज़िद  करते थे और खाने के बाद बीमार पड़  जाते थे । अब मैंने  उल्टा  रास्ता अपनाया, अब मैं  मीठा खाने को कहती हूँ  तो ये खुद मना कर देते हैं  ।"
इसके बाद थोडी देर बाद जब पत्नी   उठ कर गयी तब मैंने  पति से भी यही बात पूछी तब उन्होंने  कहा :
" बेटा इसे हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्राल  है पहले जब मैं  नमक मिर्च  तेल वाली चीजें  खाने को मना करता था तब ये लडती थी , लेकिन अब कहता हूँ  तो मना कर देती है और यही मैं  चाहता था  ।"
तब तक भोपाल  आ गया और फिर सामान उठाने पर पत्नी  कहती ज्यादा  सामान मैं  उठाऊंगी  तो पति  कहता मैं  उठाऊंगा । इस तरह  दोनों  लड़ते  झगड़ते  प्लेटफार्म से बाहर आ गये ।

मैंने  महसूस  किया बुढापे मे लडाई एक दूसरे का , ध्यान  रखने , आराम देने के लिए होती है , जिसमें  स्वार्थ नहीं   बस समर्पण होता है ।

शायद परमेश्वर  ने बुढापा ,  जीवन के इन्हीं  हसीन पल के लिए  बनाया है ।

स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपा
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*☘☘☘☘-*स्वतंत्र सृजन

                      सितारों  के  पार भी कोई,
                      दुनिया है तो ले  चलो
                      नज़ारों के  पास भी कोई 
                      नजारें हो  तो वहाँ ले चलो ।

          क्या खाक होता  है ?
          ज़िस्म बनकर ,
          जिस्मों का जीना मरना
          तुम भी अव्यक्त ना रहो
          मेैं भी अव्यक्त न रहूं

                       मन अनुरागों को 
                       मन  मीत मेंरे ,
                       कहीं और ले चलो।
                       डूब  जायें मदहोशियों  में ,
                       होश  के  पार  ले  चलो  ।

         परवाह न हो
         तुम से बिछड़ने की
         जुदाईयों के 
         पार ले  चलो  ।

                         गुफ्तगूंँ
                         तेरे मेरे दरम्यां रहे ,
                         जज्बातों और चाहतों को
                         ख्वाहिशों के
                         अंबार पे ले चलो ।

        न कोई  टूटे  सितारा ,
        न आँसुओं  की 
        बूँंद  बनकर गिरें
        अच्छान्दीत मन  को ,
        रुहों के  पार  ले चलो  ।

                       तुम भी अव्यक्त  ना रहो
                       मेैं भी अव्यक्त ना  रहूं
                       सफर  के हम सफर
                       कुछ  तो  एहसासों   में
                      ,विश्वास ले चलो ।

        .             .☘☘☘☘☘🙏

#पी_राय__राठी
भीलवाड़ा_(राजस्थान )
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नमन मंच
28-4-2019
स्वतंत्र लेखन

"#कलाधर छंद" पर,,,,,,शहीदों को नमन
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गुरु लघु की आवृत्ति 15 बार ,,,चरणांत एक गुरु
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
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भारती पुकारती,सुनो पुकार देश-वीर,
       देश को बचाइये,सुधीर- वीर सैनिकों !
 शक्ति धार के,प्रचंड लक्ष्य में रहो सदैव,
      जै निनाद घोष संग,हो अधीर सैनिकों!
ना झुको,डटे रहो,महान- देश के जवान,
      जीत की उमंग में,बढो प्रवीर सैनिकों!
देश- अस्मिता झुकाय,घात से चलाय तीर,
      मार डालिए तुरंत वक्ष-चीर,,सैनिकों!!
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🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार

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शेर की कविताएं...
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थोडा सा काजल, इक बिन्दी लगाते है।
थोडा सा लाली, कुछ पाउडर लगाते है।
आओ रे सखियो , ठिठोली कर आते है,
बन-ठन के गेहूँ को,काट घर लाते है।
..
भईया और भौजी को छोड घर आते है।
रोटी प्याज संग आचार हम खाते है।
गिद्धा और भांगडा को मस्ती मे गाते है।
बाँके छबिलो को छेड के हम आते है।
....
गाँवो के बुढ्ढो को थोडा चिढाते है।
लंहगा चढा के कमर मे खोस लेते है।
मस्तानी चालो से ऐसे लहराते है।
आओ रे खेतो से गेहूँ काट लाते है।
....
भावों के मोती से कुछ सँखिया बुलाते है।
गेहूँ कटाई के गुड को सीखाते है।
जया और हेमा की फोटो दिखाते है।
आओ ले संखियो वैसाखी मनाते है।
...
शेर जो चाहे वो सबको बताते।
गाँवो गलियो की रौनक दिखाते है।
सण्डे है काहे को सो के बिताते है।
आओ रे सखियो हम गेहूँ काट लाते है।
....
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ

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28अप्रैल2019
नमन मञ्च,गुरूजनों
तथा साथियों।
स्वतन्त्र विषय लेखन
💐💐💐💐💐💐💐
        राधाकृष्ण
कान्हा तूने क्या किया,
राधा का दिल चुरा लिया।

एक वही तो अपना था,
बाकी सब तो सपना था।
वो भी तूने ले लिया,
कान्हा तूने जुल्म किया।
कान्हा.......

दिल के बिना जियेगी कैसे,
ये तो जरा बतलाओ तुम।
कैसे अब वो क्या करेगी,
ये आके समझाओ तुम।
कान्हा तूने क्या किया,
क्यों दिल को चोरी किया।
कान्हा...........

माँग भी लेते दिल अगर तो,
मना करती क्या राधा।
जान भी तेरी,दिल भी तेरा,
चाहे कृष्ण कहो या राधा।
फिर तूने क्यों चोरी किया।
कान्हा.........

राधा कृष्ण का प्रेम अमर है,
जपते हैं सदा हम और तुम।
सदा रहा है, सदा रहेगा,
कहते हैं कथा हम और तुम।
नाम को सदा जपो तुम,
जग में तुमने जो जन्म लिया।
कान्हा........
💐💐💐💐💐💐💐

स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
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नमन मंच
"भावों के मोती"
दिनाँक-28/4/2019
विषय-
स्वतंत्र लेखन
खामोशी
-----------
ये जो खामोशी है न बहुत कचौटती
है,बहुत बात करती है,बोले जाती है लगातार बिना रुके अनवरत न जाने
क्या-क्या कहती
है कहाँ से लाती है
ये इतने अल्फ़ाज़ मेंआश्चर्य चकित
हो जाती हूं।कभी उसके सवाल मुझे
देखते हैं कभी मैं
अभिभूत हो जाती हूं तो कभी थककर
चूर हो जाती हूं उसे जबाब देकर
कितने सवाल करती है ये मुझसे
इतना सवाल तो
कभी मेरे अपने भी
नहीं करते जो हर
वक़्त मेरे साथ या
मेरे आस-पास होते हैं,खामोशी
मुस्कुराती है मुझे
देखती है उसको
अपने तरफ ऐसे
देखते मैं झेंप जाती
हूँ, ऐसा लगता है
जैसे वो पूछ रही हो
कहाँ है वो तेरा अपना ? लेकिन
मैं जानती हूँ जो
मुझे अपना नही
कहता सिर्फ दूर
से महसूस होता है
या करवाता हैऐसे
लगता है जैसे वो हर पल मेरा हाथ थाम कर खड़ा है
कह रहा हो मैं हूँ न।
मेरे प्रत्येक कार्य कलाप पर उसकी
नज़र है,कुछ गलत  न कर दूं मैं
प्रश्न भरी निगाहों
से पूछता है स्वयं का ध्यान रख रही
हो न।वो मेरा अपना सा मेरे हर
दुख सुख का साथी
मेरे अहसासों का
अहसास भी मुझसे पहले हो
जाता है उसे।मैं
भी उसे अपने पास
ही रखना चाहती हूँ।किसी से बेपर्दा
नही करना चाहती
मैं खुश हूं उसके साथ वो सिर्फ मेरा
है,मेरी उस खामोशी में भी वही
मेरे साथ रहेगा जो
मेरी चिर खामोशी
होगी।
और साथ होगा वो मेरा अपना मन......अंतर्मन ।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर(म.प्र.)
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28-4-2019
विषय:-मनुहार
विधा :-ताटंक

नहीं रूठो पिया मुझसे  , अकेला सीख लो रहना ।
बचा बाकी समय थोड़ा , पड़े गा वक़्त को सहना ।।

ज़माने  में रहे बन के , सदा हम हंस का जोड़ा ।
कहो पहले कभी मैंने , तुम्हारा साथ है छोड़ा ।।

सदा ये सोच है रहती , जिओ गे तुम भला कैसे ।
कभी काँटा नही झेला , रहे हो फूल के जैसे ।।

निराशा  हो नहीं मन में , अकेले सीख ले जीना ।
रहे गी याद  जब ताज़ा    , सरल होगा गरल पीना ।।

वहाँ पर तुम अकेले हो , यहाँ पर मैं अकेली हूँ ।
लिखी  ताटंक में बिछुड़न  , व्यथा की मैं  सहेली हूँ ।।

चकोरी की व्यथा जैसी , कहानी मेल है खाती ।
नहीं दूरी सही जाती  , नही वस्तु मुझे भाती ।।

अभी तो साथ हैं दोनों , पिया ये खेल है खेला  ।
बची जो चंद हैं साँसें , बने वो तीज का मेला ।।

मुझे तुम माफ़ कर देना , नहीं ये फिर करूँ सैंयाँ ।
चले आओ पिया जल्दी , पकड ऊषा रही पैंयाँ ।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
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नमन  भावों के मोती
विषय  स्वतंत्र लेखन
विधा   कविता
दिन     इतवार
दिनांक 28/4/2019

निर्मम भाग्य
☆☆☆☆☆☆

कल रात ही उनसे मुलाकात हुई,
थोड़ी देर बैठै तसल्ली से बात हुई,
सफेद केशों में ताज़गी थी,
वेषभूषा में वही सादगी थी,
मुस्कान में उनकी  अब भी फूल झरते थे,
मन में वो एक निराली सुगन्ध भरते थे,
ऑखों पर लिखने को शब्द अब भी मचलते थे,
सुन्दर सुन्दर उपमाओं के साँचे में ही ढलते थे
उनके गौरवर्ण पर चान्दनी के हस्ताक्षर आज भी स्पष्ट थे,
ऐसा लगता था कि वे वर्तमान के ही पृष्ठ थे।
उनके बोलने की गरिमामय शैली थी,
मानों अलंकारों की महक सब ओर फैली थी,
अपनत्व था,हर लम्हा भाव प्रधान था,
बोलती ऑखें थीं, अनोखा सम्मान था।

मेरे प्रणय निवेदन की पंक्ति उन्होंने ही दोहराई,
और यह कहकर वो मेरे और निकट चली आई,
ये इस बात का सूचक था कि वो मुझे नहीं भूली,
और इसी सादगी ने मेरे मन की भीतर की परत छूली,
हम बीती बातों में खो गये,
दोनों के अन्तरमन रो गये,
उनकी ऑखे भी हो गईं गीली गीली,
निर्मम् भाग्य की दशा भी हुई होगी अवश्य पीली,
हम सोचते कुछ और हैं होता कुछ और है,
इसी तरह बीत जाता बस ज़िन्दगी का दौर है।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
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* भावों के मोती
* तिथि -  28  अप्रेल 2019
*वार -  रविवार
* स्वतंत्र लेखन


आधुनिक (बंधन मुक्त) क्षणिकाएं
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पुरुष शक्तिमान ,
फौलादी इन्सान ...
पाता सम्मान |
*****
पुरुष लक्ष्य पे नज़र ,
पार   करता  डर .....
लाता नई सहर |
*****
पुरुष हौंसला ,
सफलता का काफिला ....
आसमानो से आँखे मिला |
*****
पुरुष बरगद घना ,
कभी  होता अनमना ....
पसीने से सना |
*****
पुरुष कठोर पत्थर ,
दुखो को रखता अंदर ....
मन का गहरा समंदर |
*****
पुरुष क्रोध की ज्वाला ,
समन्वय की मधुशाला ....
सफलता की गूंथता माला |
*****
पुरुष स्त्री का अग्र पहिया ,
जैसे जीवन का छंद, सवैया ....
सबको  देता छैया |

*  प्रहलाद मराठा
* चित्तौडग़ढ़ (  राजस्थान )
*  रचना मौलिक ,स्वयं रचित सर्व अधिकार सुरक्षित
* भावों के मोती
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नमन भावों के मोती
दिनांक - 28/04/2019
आज का कार्य - स्वतंत्र लेखन
गजल

2122  2122  2122  212

झूठ के इस दौर में कैसी अदालत हो गयी,
अब यहां फरियाद करना भी शिकायत हो गई,

मोहबत में देख सौदे इस कदर मन मचला
दिल लगाते वक्त भी देखों सियासत हो गई,

देख मन्जर इस जमाने का अजब ही दोसतों
दर्द सहने की मिरी अब तो ये आदत हो गई,

वक्त का पासा चला इस कदर कुछ ना समझ सका
क्या पता फिर क्यों मुझी से सबको नफरत हो गई,

अब किसे दोषी कहूँ तकदीर या हालात को,
जिन्दगी फिर भी तुझी से ही मुहब्बत हो गई,

स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
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28/4/19
भावों के मोती
विषय - स्वतंत्र लेखन
___________________
तू अगर इजाज़त दे तो...
बीती यादों की गठरी खोल
चुन-चुनकर हसीं लम्हे उठा लूँ
कुछ को दिल से लगाकर
कुछ को आँखों में सजा लूँ
 तू अगर इजाज़त दे तो...
बीती यादों की गठरी खोल
कभी गाए थे हमने गीत
उन गीतों से सरगम चुराकर
उनमें प्रीत के अहसास भरकर
प्यार का एक नया गीत बना लूँ
तू अगर इजाज़त दे तो...
बीती यादों की गठरी खोल
कुछ अधूरे पड़े ख्व़ाब
कुछ दबी हुई ख्वाहिशें
चलो आज कुछ ख्व़ाहिशें पूरी कर
तेरा दामन को खुशियों से भर दूँ
तू अगर इजाज़त दे तो...
बीती यादों की गठरी खोल
सारे गिले-शिकवे निकालकर
फेंक देते हैं कहीं दूर बहुत दूर
सृजन करते हैं एक नए प्रेम का
जिससे दुःख रहे हमेशा दूर
तू अगर इजाज़त दे तो...
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित रचना ✍

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भावों के मोती
स्वतन्त्र लेख
क्या हुआ जो देखा हुआ
ख्वाब कोई टूट गया।
आंखें मूंदों,एक नया ख्वाब
देखने का हौसला करो।।

क्या हुआ जो अजीज दोस्त कोई
मुंह मोड़ कर चला गया।
किसी अजनबी से मिलकर ही
दोस्ती की शुरुआत करो।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर

भावों के मोती
28/04/19
स्वतंत्र लेखन

निराशा से निकलो

चारों ओर जब
निराशा के बादल मंडराऐ
प्रकाश धीमा सा हो
अंधेरा होने को हो
कुछ भी पास न हो
किसी का साथ न हो
मन डूबा सा जाये
कुछ समझ न आये
तब एक बार शक्ति लगा
अपने खोये आत्मविश्वास
को ललकारो, उठो चलो
लगेगा मैं चल सकता हूं
आने वाली सूर्य रश्मि
काफी चमक के साथ
स्वागत करेगी
यह निश्चय ही होगा
मन  में गर  ठान  लो ।
स्वरचित

    कुसुम कोठारी ।
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🙏 नमन भावों के मोती मंच 🙏
प्रदत्त विषय : स्वतंत्र लेखन
विधा : कविता
दिन : रविवार
दिनांक : २८/०४/२०१९
विषय : हरसिंगार

""चिर जलधि मंथन जनित श्रृंगार का अनुपम समागम,
सुरगणों के कल्पतरु में श्रेष्ठ हरसिंगार अपना..!!

पुष्प के सौंदर्य अगणित रात्रि को भी कर सुवासित,
जगत से निर्लिप्त मन मे भी प्रणय रस घोल देता..!
कालगति से क्लांत पथिकों की क्षुधित सब भावना को,
दे तनिक विश्राम, उर की गांठ तक है खोल देता..!
सृष्टि के सारे उपागम प्रेम के इसमें समाहित..
है तभी 'कविकुलगुरु' का इष्ट हरसिंगार अपना..!!
चिर जलधि.........................................!!१!!

देवताओं के नगर का स्वर्ग स्वर्गिक है इसी से,
सत्यभामा के हृदय की तुष्टि का साधन यही है..!
तेजशीला, शोक से निवृत्त, निर्जर कामना से,
है जनित कश्यपवधू की योगतप का फल यही है..!
श्वेत पुष्पों से सुशोभित नाम पा 'शेफालिका' का..
और है परिजात से निर्दिष्ट हरसिंगार अपना..!!
चिर जलधि........................................!!२!!

कामशर में एक, जो वाहक युगल रति संचरण का,
यह न केवल पुष्प है, यह रोग का उपचार करता..!
वात-कफ नाशक है ज्वर नाशक सहित कर मृदु विरेचन,
शुद्ध कर कायिक शिरा में रक्त का संचार करता..!
लक्ष गुण से है सुसज्जित कर हृदय शुचि और निर्मल..
है शतों औषधिगणों में ज्येष्ठ हरसिंगार अपना..!!
चिर जलधि.......................................!!३!!

✍️कुमार आशु की कलम से..🖋️
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नमन मंच को 🙏🙏
दिनांक _28/4/2019
विषय -स्वतंत्र लेखन
🍁🍁🍁🍁🍁🍁

कभी वो वक्त भी था
जब मुझसे तुम्हें
बेइंतेहा मुहब्बत थी
इश्क की राह पर
साथ चलने का वादा
किया था दोनों ने।
न जाने ऐसा क्या हुआ
जो मुझे छोड़कर
चले गये तुम। 
जिस मोड़ पर तुमने छोड़ा मुझे
जो वजह थी तुम्हारे साथ
खुश रहने की
तूने उसी वजह में दर्द
भर दिया।
आज बेवजह तुम्हारी
याद क्यूँ आ रही है
लगता है..
उसने फिर से पुकारा मुझे....
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
तनुजा दत्ता (स्वरचित)

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नमन मंच
स्वतंत्र लेखन के तहत
किरीट सवैया।
सगण8
    211*8
जीवन का पथ दुष्कर बेहद,
              ध्यान रहे चलना खुश हो कर
पावक भीतर पावक बाहर, 
               मध्यम ही जलना खुश होकर।
मानुष का सच भूषण धीरज,
                 सुन्दर ही ढलना खुश होकर।
ये जग तो सुख ही सुख खोजत,
      आप नहीं छलना छलना खुश होकर।

दुर्मिल सवैया ..112*8
जगण 8
सुख में दुख में प्रभुजी मुझको
                 चरणों शरणों  अपनी रखना।
चलते  उठते हँसते  रूसते ,
                   हरसू मुझको प्रभुजी दिखना।
जब भी तुमरी रचना परखू,
                  सब में   मुझको  तुमहीं लखना।
जग मे भटकी जनमों जन्मों
                      प्रभुजी न पड़े  मुझको दुखना।

नीलम तोलानी
स्वरचित
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28/4/2019/रविवार
बिषयःःः #अतिशयोक्ति अलंकार#
विधाःःःकाव्यःःः

खच्चर चडा खजूर पर खाने लगा अंगूर।
नीचे से ऊपर गिरा ये हो गया चकनाचूर।

पानी मे जब आग लगी हमको आई हांफ।
पानी सारा खाक हुआ मछली बच गई साफ।

वो दिन कैसा दिन होगा
सूरज को जिसदिन ठंड लगेगी।
चंदा को जिसदिन ताप चढेगी।
रात्रि में दिनकर निकलेगा।
दिन में चांद नजर आऐंगा।
वो दिन कैसा दिन होगा।
गुरू शिष्य में भेद न होगा।
बालक गुरू को शिक्षा देगा।
इसके बदले शिक्षक उसको
हाथ जोड प्रणाम करेगा।
वो दिन कैसा दिन होगा।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
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शी.#अतिशयोक्ति अलंकार#
28/4/2019/रविवार।


नमन भवों के मोती💐
कार्य:-स्वतंत्रलेखन
बिषय:- नई दुनिया

गमे उल्फत से फना हो जाना अच्छा है।
दिल के टूटने से मौत मिल जाना अच्छा है।।

आओ चलकर ढूंढें बीती बातों को।
हाथों में भर लें उठती-बनती लहरों को।।

आहें भरकर ही घर जीना बेहतर हो।
तो छोड़ दो गुजरी हुई मीठी यादों को।।

औरों की याद में हर लम्हां जलना बेकार होता है।
अपने ही दमन में सिमटकर रोना आसान होता है।।

तन्हा रहना और तड़पना बेवफाई की बातों में।
तो छोड़ दो जीना दुश्वार है प्यार भरी राहों में।।

सावन की घटायें सूनी आँखों में सिमटना अच्छा है।
उलझे गेशुओं का चेहरे पे बिखरना अच्छा है।।

छलकते अश्कों में गुजरी यादों को मिटा लेने दो।
हमको हमसे जुदा नई दुनिया बसा लेने दो।।
(मेरे कविता संग्रह से)

डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी, गुना(म.प्र.)
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नमन भावों के मोती
दिनांकः-28-4-2019
वारः- रविवार
विधाः- कविता
स्वतकन्त्र लेखन
शीर्षकः- किसे भूलूं किसे याद करूं

पहुंच चुकी हो दूर बहुत तुम, गयीं क्यों मुझसे रूठ ।
उड़ गया है सभी कुछ मेरा, चैन, प्यास तथा भूख ।।

कहतॆं है सभी मुझसे, आओगी नहीं कभी तुम वापस ।
करता रहता हूँ याद तुम्हें, फिर भी क्यों अब नाहक ।।

छोड़ देना चाहिये मुझे क्या, याद करना तुम्हारा नाम ।
भूल कर तुम्हें, जपूं क्या केवल ईश्वर का ही मैं नाम ।।

संभव है क्या त्याग कर जल, मछली कभीजीवन पाये ।
संभव है क्या, जीव जल न पीये, सिर्फ भोजन ही पाये ।।

भोजन तथा जल हैं दोनों ही, जीव के लिये आवश्यक ।     
मछली के लिये भोजन के साथ जल भी ज़रूरी बेशक ।।

मर जायेगी तुरन्त मछली, निकलने पर जल के बाहर ।
मर जायेगी कुछ समय बाद किन्तु, भोजन रोकने पर ।।

हैं ज़रूरी दोनों ही मेरे लिये, तुम्हारा तथा प्रभु का नाम ।
छोड़ सकता हूँ कैसे मैं, रटना दोनों किसी का भी नाम ।।

रटाया था बचपन से ही, प्यारी अम्मा ने प्रभु का नाम ।
दिल की हर धडकन में समाया है, सिर्फ तुम्हारा नाम ।।

आया हूँ प्रभु के कारण मैं, इस संसार में अस्तित्व में ।
लगे हैं चार चांद, तुम्हारे कारण ही मेरे व्यक्तित्व में ।।

बसी हो तुम ही तो केवल, प्रत्येक कोने में मेरे दिल के।
आती है महक तुम्हारी सनम, मेरी प्रत्येक रग रग से ।।

धडकने दिल की मेरे गाती हैं, केवल तुम्हारा ही सरगम ।
हर पताका पर मेरी, देता है दिखाई तुम्हारा ही परचम ।।

साथ युगों का अपना बताओ तुम ही, कैसे मैं भूल जाऊं ।
साथ तम्हारे बिताये पलों को अब, कैसे  मैं भुला पाऊं ।।

सुमरन से प्रभु का नाम, होगा दोनों लोकों का कल्याण ।
यादें ही तुम्हारी, रखेंगी अंकुरित मुझमें थोड़ा सा जीवन ।।

प्रभु अथवा नाम तुम्हारा, नहीं कभी मैं त्याग सकता ।
दोनों में से एक आँख भी अपनी, हूँ कैसे फोड़ सकता ।।

आती हो तुम सपनों में आज भी, छोड़कर अपने काम ।
हूँ क्या मूर्ख या कृतघ्न मैं, करूं याद न तुम्हारा नाम ।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
"व्यथित हृदय मुरादाबादी"
स्वरचित
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नमन् भावों के मोती
27/04/2019
विषय प्याज
विधा स्वतंत्र कविता

कुछ ऐसे ही लिखने की कोशिश की है
उम्मीद है अच्छा लगेगा

सुंदर रंग सजीली प्याज
बिना प्याज सब्जी बेस्वाद
लाल श्वेत वर्णों के साज
व्यंजनों को देती अलौकिक स्वाद
हरी भरी जब होती प्याज
साग का होता अदभुत स्वाद
नवजीवन दात्री  होती प्याज
प्रतिरोधक क्षमता का उत्पाद
औषधीय गुणों से युक्त प्याज
किसानों की होती फसल नकद
सभी मसालों का सरताज
प्याज है देती अनुपम स्वाद
©स्वरचित
मनीष श्री
रायबरेली
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II  स्वतंत्र लेखन  II नमन भावों के मोती....

ज्योति एक जले....एक ही ज्योति जले....

सारे ब्रह्माण्ड में....सारे विश्व में....
एक ही ज्योति जले...ज्योति एक जले....

हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई...एक से एक भले..
तू क्यूँ भेद करे....ज्योति एक जले.....

गंगा यमुना बहती धरा पर...वही भीतर भी बहे..
तू क्यूँ न समझ सके.....ज्योति एक जले.....

जो ब्रह्माण्ड में वो ही पिंड में...सब में वो ही जले...
तू क्यूँ अज्ञान पले.....ज्योति एक जले.....

निर्विकार वो साकार वो...हर मूरत वो ढले...
तेरी श्रद्धा फूले फले....ज्योति एक जले.....

उसका वैरी कोई नहीं है...वैर न वो भी करे...
तू ही क्यूँ वैर करे....ज्योति एक जले.....

मेरे भीतर जो तेरे भी वो...सब में वो ही रमें...
तू क्यूँ है पराया बने.....ज्योति एक जले.....

मैं अज्ञानी तू अभिमानी...काहे दम्भ करे...
जब एक में सब ही रमे ...ज्योति एक जले.....

ज्योति एक जले....एक ही ज्योति जले...

II  स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२८.०४.२०१९
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नमन 'कलम की यात्रा'
दिनांक: 28.04.2019
विषय: स्वतन्त्र लेखन

परिंदा व शिकारी

परिंदा
है बुद्धिजीवी ज़रा तरस कर
मुझे रिहा कर इस जंजीर से।
है बुद्धिजीवी  ज़रा रहम  कर
बाहर निकाल सोच गंभीर से।।

शिकारी
कर्म को कैसे  भूलूँ  ऐ  परिंदे?
तूने कर्म कर लिया मैं करूँगा।
अब डाह  ना कर  मेरी राह में
शिकारी   हूँ , शिकार  करूँगा।।

परिंदा
मेरी मान ले  एक  बात  ज़रा
दम घुट रहा है रे मेरा कैद में।
उन्मुक्त  गगन  का   पंछी  हूँ
क्या तु रह लेगा छोटे *छेद में?।।

* निहायती छोटा सा घर

शिकारी
नहीं रह पाऊँ, प्राणी कुल का मैं
तूने जान देनी है मैंने जान लेनी।
फिर शिकारी कौन कहेगा मुझे?
छोड़ दूँ गर तुझे, देख तेरी बेचैनी।

परिंदा
तो  तु ज़रा  सा  तरस  नहीं  करेगा?
मुझ  बे  सहारा  पर, ज़रा  ये  बता।
मार देगा  किसी  के   हाथ   बेचकर,
ले मार दे अभी मुझे, मेरा सर झुका।।

(उस परिंदे ने अपनी गर्दन शिकारी के आगे करके कहा।)

शिकारी
कोई तूने पुण्य किये हे परिंदे.
जो मेरे मन में आ गई है दया ।
जा,  उड़  जा  उन्मुक्त गगन में
मानस हूँ पहले, शिकारी न रहा।।

-:-स्वरचित-:-

सुखचैन मेहरा
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नमन :भावों के मोती
स्वतन्त्र लेखन
२८:४:२०१९
🌺🌺🌺🌺
सुख - दुःख
दुखों को मेने बहुत सालों पहना
बहुत सम्भाला और बहुत सहेजा
हर पल सवाँरा पल -पल बढ़ाया
वक़्त-वक़्त पर उनको साफ़ करके नया बनाया
धोया इस्त्रि करके फिर कड़क बनाया
कभी हो ना जाए धूमिल एहसास हमेशा रखा
पुराना होते ही नया दु:ख ले आती
फिर उसकी सार सम्भाल करती
ज़िन्दगी गुज़रती जा रही थी
ओर बोझ बढ़ाती जा रही थी
फिर साँस लेना भी हुआ मुश्किल
तब फैंक दिये उठा के सब
सोचा अब सुख पहनूँगी
जो होते हैं हल्के फ़ुल्क़े
सम्भालने की ज़रूरत भी नहीं
नया बनाए रखना भी ज़रूरी नहीं
जब चाहा मुस्कुरा के नया ले लिया
पुरानी परछाईं छोड़ नयी रोशनी आज़मायी
तब जा के ज़िंदगी समझ में आयी
                     शहला जावेद

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हाइकु मुक्तक, स्वत्रंत विषय,
भाई चारे की/गंगा भू पर बहा/मेरे मालिक,
प्यार के बोल/हर की जुबाँबोले/मेरे मालिक,
बम धमाकों, फट रहे है कान,अविरल विश्व,
इस धरती, को स्वर्ग सा बनादो,मेरे मालिक।।
स्वरचित हाइकु मुक्तक कार देवेन्द्र नारायण दासबसना।।1।।
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नमन मंच को
विषय: स्वतंत्र लेखन
दिनांक : 28/04/2019

मां बाप

वो एक सर्वशक्तिमान,
रचाया कुल जहान।
अपने ही दो रूप बनाकर,
धरा पे उन्हें उतारा यारो,
हो सके तो पूजा कर लो,
मां बाप न मिलें दुबारा यारो।
मत मानों तुम राम शाम को,
मत जाओ तुम मथुरा काशी।
कौन सा पुण्य पा सकोगे,
गर अखियां होंगी उनकी प्यासी।
अपने लिए तो जीते ही न,
बस मांगे प्यार तुम्हारा यारो,
हो सके तो पूजा कर लो,
मां बाप न मिलें दुबारा यारो।
तुम ही उनका जीवन लक्ष्य,
तुम ही उनकी दुनिया हो।
उनको तो हैं जान से प्यारे,
अवगुणी या गुणीया हो।
जिस को ढूँढें सकल जगत में,
तुम हो वही सहारा यारो,
हो सके तो पूजा कर लो,
मां बाप न मिलें दुबारा यारो।
तुम बुरा करो या करो अच्छा,
बस दुआएं ही वो देते सदा।
भगवन जैसा विशाल ह्रदय,
माफ करें हर तेरी खता।
सुपुत्र हों चाहे हों कुपुत्र,
मां बाप ने न दुत्कारा यारो,
हो सके तो पूजा कर लो,
मां बाप न मिलें दुबारा यारो।
मां बाप न मिलें दुबारा यारो।

अपने माता पिता जी को शत शत नमन। 🙏🙏🌹🌹

स्वरचित : राम किशोर, पंजाब ।

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मंच को नमन🙏🌹🙏
आदरणीय जन को नमन
🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏
विषय-स्वतंत्र लेखन (हरसिंगार)
विधा।  -छंद मुक्त कविता
🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂
हरश्रृंगार करता पृथ्वी का श्रंगार
निसदिन महकता देता प्रणय का आगाज हरसिंगार
सजता नव वधू की सेज पर
फैलाये खुशबू की बहार
हरसिंगार
पा कर सूर्य का ताप झरता
जब आती निशा रुप गंध से महकता हरसिंगार
सजता देवताओं के भाल पर,
गुथकर एक माला के अंदर
बढाता शोभा गले की
हरसिंगार

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
मथुरा [उ०प्र]
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नमन मंच - भावों के मोती
दिनांक    -28 अप्रैल 2019
दिन       -रविवार
विषय     - स्वतंत्र लेखन
विधा      -ग़ज़ल

जब जब गले मिलेंगे यूँ पंडित इमाम से
गोहर मिलेंगे देश को अब्दुल कलाम से ।

ऐसी हवा चली है सियासत की आजकल
कोई ख़फ़ा अज़ां से कोई राम-राम से ।

मेहनत से हुई शीश महल जब ये झोपड़ी
पत्थर उछालता है कोई इंतक़ाम से ।

कल रात जाग जाग सुलाई थी उसकी याद
फिर याद आ रहा है वही आज शाम से ।

कुछ इस तरह बसा है वो मेरे बज़ूद में
मुझको पुकारता है कोई उसके नाम से ।

मुमकिन नहीं था जिनके बिना घर सँवारना ।
बाहर किए गए हैं वो बद इंतजाम से ॥

पाया है बुज़ुर्गों ने तज़ुर्बा अभी नया ।
रखने लगे हैं काम वो बस अपने काम से ॥

          -अंजुमन 'आरज़ू'©✍
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सादर नमन मंच
आज स्वतंत्र लेखन के तहत----
विधा----कविता

नारी का अस्तित्व--
*********
हाँ मैं नारी हूँ मेरा भी ''अस्तित्व'' है
नारी प्रकृति का वो वरदान हूँ जिसके ''अस्तित्व'' के बिना
बाकी कोई ''अस्तित्व'' नहीं होता
ये शास्वत सत्य है!
तो फ़िर जो नारी सृष्टि की रचयिता है
उसे क्यों देखा जाता है हेय  दृस्टि से?
उसे क्यों एक भोग्या के रूप में स्वीकारा जाता है?
एक पिता के लिए वो सामाजिक बोझ होती है
तो एक माँ हर पल उसे संस्कारों की घुट्टी पिलाती है
उठते बैठते उसके संस्कारों का बोध कराया जाता है
याद है वो पल जब एक बार पांव से भाई को छू दी थी
उसे कितनी डाँट पड़ी थी
अरे वंश को पैर लगाती है
काट दूंगी पैर  दूर हटो।
तो क्या नारी का'' अस्तित्व'' परे है उस पुरुष से?
जिस पुरुष के ''अस्तित्व'' का  निर्माण भी
स्वयम एक नारी करती है
भाई कभी नहीं चाहता उसकी बहन बाहर निकले
हर समय उसे एक ही सीख दी जाती है
नजरें झुंका कर चलो,किसी के बात का जवाब मत दो
पराये घर की अमानत हो सऊर सीखो।
अब बड़ी हो रही हो कायदे से दुपट्टा लो
उसके बाद भी वही पुरुष जिनकी पैनी धारदार नजर
ढूढ़ ही लेती हैं एक नारी में ''देह'' को
उन वासना भरी नजरों से बिंघ जाती है नारी
न जाने कितने नामों से निभाती है आपने किरदारों को
पर उसेको  ही गुजरना पड़ता है 'अग्नि परीक्षा'' से
नारी ही शापित हो पाषाण बन जाती है।
फिर भी धन्य है नारी
नमन है उसके''अस्तित्व को''
क्यूंकि वो सबका मान रखती है
अपनी ख़ुशी क़ायम रखती है।
फ़िर भी आज ''अस्तित्व'' शापित है नारी का
जिसे तलाश है हर नारी को।
@ मणि बेन द्विवेदी
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नमन भावो का मोती
दिनांक २८|०४|२०१९
वार- रविवार
स्वतंत्र लेखन
विषय- मीरां (मूर्ति प्रसंग ) !

विधा - मतगयंद सवैया !
7 भगण, 2 गुरु 23 वर्ण , चार चरण समतुकांत !

प्रीत जगी नव बोध हुआ जब , संत महाजन आँगन आये !
देख अलौकिक सुन्दर मूरत , जिद्द करे यही माधव भाये !
प्राण अमोलक माँगत साजन , भक्त कहे नही बेचन लाये !
भोर हुई सब सज्जन जावत , प्राण महा धन खूब रुलाये !!१

नैन बहे जल आँचल भीजत , श्याम बने चित नीर पनारे !
चैन गया सब पीर बढ़ी तन , अंतर आग जले तन प्यारे !
माँ समझी कलिका बहु भावुक, प्रेम भरी समझावत हारे !
माधव मोहन देख रहे सब, नेह मिटी गहरे तल तारे !!२

स्वप्न मिले जब भक्त कहे प्रभु , साधक अर्पित मूरत मीरां !
है असली हकदार वही अब, दो प्रतिमान बढ़े मन धीरा !
दौड़त साधु गये फिर वापस , हाथ धरी छवि मोहन हीरा !
नैनन नीर बहा रस पावन , प्रेम सुधा रस दायक गीरा !!३

बाल मनोहर खेल रही जब , देख अकिंचन लोग लुगाई !
देख विवाह रचे जब औरन , माँ कब दुल्हन मैं बन जाई !
मोहन मूर्ति महा पति पावन , जान सुता करतार सुहाई !
नैन बसे मन मोहन साजन , और कहाँ अब आस लगाई !!४

कृष्ण बसे चित में सजनी अब , नेह घुली तन डूबत तीरा !
राग मिला प्रभु गान मनोहर, मस्त हुई अँखियाँ मधु नीरा !
पायल बोल रही मृदु मादक , मंगल मंदिर माधव हीरा !
नाच उठी धुन में रस नागर , आन मिलो अब साजन मीरां !!५

छगन लाल गर्ग विज्ञ!
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नमन  भावो  के मोती
 तिथि   28/4/19
विषय ; स्वतंत्र लेखन 

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 समय के चक्र पर कुछ हवाएं यूं चली कि
हम उन्हें थाम ना सके,
रोक ना सके,
बस बेबस सा देखते रहे 
डाली से एक पत्ता ..
 टूट कर गिरा
जमाने की मदमस्त हवाएं
उडा ले गयी...
पत्ते ने भी अभी अभी
 नई आजादी पाई थी
उड़ने लगा...
 मदमस्त हवाओं के संग
भूल गया उस दरख्त को  .
जिस पर वो हरा भरा
फल फूल कर बड़ा हुआ
 जिसका डर था वही हुआ
अपनों से बिछड़कर
मुरझाने  लगा,
पीला जर्द कमजोर सूखा
सुस्ताने लगा,
आया  हवा का एक झोंका ...
जा पहुंचा उन सूखे बेजान
पत्तों की टोली में 
चर- चर करड़- करड़
करकड़ाने लगा 
जमाने के हाथों
जब हुआ धुँआ धुँआ
अपनों से दूर होने का
 सबक समझ आने लगा।
***************************
स्वरचित 
                #पूनमसेठी 
              #बरेली -उत्तरप्रदेश

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आप सभी को हार्दिक नमस्कार

आज मुक्त दिवस पर मेरी प्रस्तुति

ताप

युग की  कैसी  त्रासदी,जाने कैसा शाप।।
प्रति दिन पल पल बढ़ रहा,
पृथ्वी का परिताप।।

अगन बरसता  गगन से,विकट हुआ संताप ।
जीवन दूभर हो रहा,महा उमस की ताप।।

कूलर पंखा  थक रहे,चलते हैं दिन रात।
चिलमिल करती देह सब,स्वेद भिगाते गात।।

रखना मुश्किल हो गया,घर से बाहर पाँव।
पंछी  छाया ढूंढते,मिले कहीं ना ठाँव।।

जंगल सारे कट रहे,बूढ़ा बरगद रोय।
मारे पैर कुठार सब,आँखें मींचे सोय।।

उगा रहा  खुद मनुज है,निज मग पर है शूल।
वर्तमान सुख चाह में,भावी बैठा भूल।।

वसुंधरा आतप सहे, कब तक असीम पीर।
भीषण बढ़ती है गर्मी,सूखा अंतर नीर।।

सहना ही होगा हमें,धरणी क्रोध कराल।
ताप अभी प्रारंभ है,बचा अभी विकराल।।
स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
 28-4-2019
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नमन मंच
२८/०४/२०१९, रविवार
स्वतंत्र विषय

        "इकरार हुआ"
कुछ तो तुममे है जो हमको तुमसे प्यार हुआ,
वर्ना ये दिल अब तक किसी और पर न निसार हुआ।

जब आई तुम मेरे जीवन में आते ही जगह बना ली,
तुम ही बनोगी हमारी ऐसा न कभी विचार हुआ।

कहते हैं दुनिया वाले तुमने है सब बदल दिया,
कुछ हमें भी तो बताओ यह बदलाव कैसे हुआ।

न जाने खुदा ने तुम्हें क्या जीज बक्सी है,
जबसे मिला हूँ तुमसे तुम्हारा ही तलबगार हुआ।

ये भी सच है कि मैं इस जमाने से हट कर हूँ,
बड़े नसीब से इस वत्स को यह इकरार हुआ।

(अशोक राय वत्स ) स्वरचित
जयपुर
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नमन "भावों के मोती"
स्वतंत्र सृजन
28/04/19
रविवार
विषय-जीवन का विश्वास
कविता

 मन की शुष्क टहनियों  में  भी
     जीवन  का  विश्वास  छिपा है,
         तरल  भावनाओं  का मधुरिम
           अतुलनीय उच्छ्वास  छिपा है।

आस   लगी   है   जीवन  में 
    फिर से वासंती फूल  खिलेंगे  ,
          एक बार फिर सूने   खेतों में
               सरसों   के   रंग    बिखरेंगे ।

घोर  निराशा चपल  रूप  धर
     मन  को  आंदोलित कर देगी ,
         सुखद  कल्पनाओं  में रत  हो 
            प्रमुदित तन और मन कर देगी ।

मन के  तरु पर कल्पनाओं  के 
     सुन्दर    पक्षी   पर     तोलेंगे ,
        जीवन में नव-गति ,नव-लय व
             नव-नव उज्ज्वल दीप जलेंगे ।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

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सादर नमन
        "शिकायत"
सहनशक्ति का क्यों,
तू इम्तिहान लिए जा रहा है,
मुस्कुराना अच्छा नही लगता मेरा,
जो गम दिए जा रहा है,
दुनियाँ क्या कम थी,
जो तू भी सता रहा है,
करके तन्हा मुझे,
जो तू मुस्कुरा रहा है,
तू ही शिकायत सुनने वाला,
किस जुर्म की तू सजा सुनाए जा रहा है,
पत्थर दिल नही हूँ मैं,
जो वार पर वार किए जा रहा है,
ना रूला इतना कि टूट जाऊँ,
सब्र का बाँध अब टूटा जा रहा है।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
28/4/19
रविवार
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मंच को नमन
दिनांक -28/4/2019
विधा -छंद मुक्त कविता

विषय -स्वतंत्र लेखन 

(कुछ अजीब दोस्त)

लोकप्रिय मनभावन नाम बनाम फ़ेसबुक
इसकी तकनीकी संस्कृति है बेमिसाल
परजीवी,आभासी है इसका श्वेत पटल

ना समय की पाबंदी ना सरहदों की मार
सबको एकता के सूत्र में बाँध देती है
मित्रता के ताबीज़ में टैग कर देती है

पर................क्या कह दूँ.....

कुछ मित्र बड़े ही अजीब से होते
प्रोफ़ाइल पिक देख फ़्रेंड रिक्वेस्ट भेजते
आनन -फ़ानन में टटोलते सारे फ़ोटो
लाइक कॉमेंट करना फिर फ़र्ज़ मानते 

कुछ मित्र घड़ी की टिक टिक से होते
ऑनलाइन देख रैपिड संदेश भेज देते
ना उनकी बातों के होते कोई मायने
ना साहित्य संग उनका सरोकार होता
केवल मानसिक यन्त्रणा ही तो देते

कुछ ,मित्र कम शल्य चिकित्सक होते
लड़की नाम से पहचान नई बना लेते
तुच्छ मानसिकता का ही प्रदर्शन करते
नाराज़ ना होना दोस्तों!बात अभी अधूरी
नक़ली पहचान ,लड़की करे हेरा फेरी

कुछ मित्र बगिया के चोर भी होते
रोज़ चुराकर गुलाब,बना गुलदस्ता
मोबाइल स्टोरेज को भी हर लेते
मान ना मान मैं ज़बरदस्ती तेरा मेहमान
सुख चैन यजमान का छीनते रहते

कुछ मित्र बड़े ही आध्यात्मिक भी होते
सुबह शाम के उनके संदेश और चित्र
राधे राधे कान्हा की राधा के नाम होते
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

हाँ, मैं स्वीकारती इसलिए लिख पाई हूँ
सिक्के के दो पहलुओं को स्वीकारा है
कुछ गुणी,प्रतिभावान मित्र सच्चे भी हैं
ऐसे मित्रों को नमन वंदन करते रहिए
ऐसे पावन रिश्तों का संवर्धन भी करना
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
लिखते-लिखाते,सोचते-विचारते
निष्कर्ष आज का यही निकलता
फ़ेसबुक पर छिछोरापन शोभा ना देता

✍🏻 संतोष कुमारी ‘संप्रीति’
स्वरचित



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 नमन"भावो के मोती"
28/04/2019
गजल

################
रात खामोशी ले आई गर तेरे बिन
भोर बेचैन चली आई पर तेरे बिन।

लाख कोशिश भी मेरी हुई बेअसर,
दूर तक जा सकी न नज़र तेरे बिन।

बेगुनाही की सजा भोगती ही रही,
छोड़के जा न सकी घर पर तेरे बिन।

ख्वाब जो खो गया मगर आज कहां,
रंगत चांद का बेअसर तेरे बिन।

आशियां न बना पाई दिल में तेरे,
दर-ब-दर ढूंढती हूँ घर तेरे बिन।

अलविदा जो कह दो एक बार सनम,
छोड़ के चल ही जाऊं दर तेरे बिन।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल


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 भावो के मोती --नमन मंच को
दिनांक ----28--4--2019
विषय--/--स्वतंत्र लेखन

कर्मो की किताब है
कभी धूप, कभी छांव है जीवन
नव पल्लव, नव अंकुरों का
एक मधुर उपवन है जीवन
कुसुम सी खिलखिलाती
यादों का एक झरोखा जीवन
अन्र्तमन की वेदनाओं को
यह अपने मैं समेटे रहता
हर पल घायल होता रहता
हर गम सह जाता जीवन
नयनों से बहती जज्बातों की
अविरल अश्रुधाराओ का
एक महा संग्राम बन जाता जीवन
शिवोहं बनकर
सत्य का पथ दिखाता जीवन
कभी धूप, कभी छांव है जीवन
स्वरचित -------;🙏🍁🙏



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नमन मंच
स्वतंत्र लेखन


तुमको प्रणाम 
तुम शर शैया पर रहे सदा 
उन्मुक्त गीत फिर भी गाया
क्रंदन में ढूंढा स्वर्ग गायन का 
मानव मन की जिजीविषा 
तुमको प्रणाम 

लेकर छाले दुर्गम पथ में 
घायल पथ को ही सहलाया दुलराया 
अपने कर से पोंछ अश्रु ,बहलाया 
मानव मन के छाया देते विशाल वृक्ष 
तुमको प्रणाम 

पर दुख से कातर मन को 
अपने दुख से विह्वल प्राणों को 
गीत सुनाते हो आश्वासन का 
मानव मन में जलते आशा के दीपक 
तुमको प्रणाम

मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित


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भावो के मोती
दिनांक-28/04/19
विषय-स्वतंत्र लेखन


हरिगीतिका छंद 

शीर्षक - इंतजार-ए-इज़हार 

हम साथ में चलते रहै बस, ये दुआ हमको मिले !
हम तोड़ दे सब सरहदे गर, साथ ये हमको मिले!!
हम एक है दुनिया कहै हम, दो नही यह तुम कहो! 
हम आस ये करते रहै कब, तुम कहो हम एक हो!!1!!

तड़पे बहुत मरते नही हम, कब मरे यह तो कहो! 
तुम सोच लो यह जिंदगी कब, तक रहै कब खत्म हो!!
मरते रहै हम बिन मरे फिर, भी हमे तुम ना मिले! 
अब प्रेम है न हि प्रेमिका कुछ, तो कहो हम क्यूं जिये!!2!!

गर तुम कहो हम छोड़ दे हर, वो गली हर वो शहर! 
तुम ना मिलो जिस मोड़ पर हम, छोड़ दे हर वो डगर!!
चलते नही अब पैर भी जिस, राह पर तुम ना चलो! 
हम अंत तक चलते रहै तुम, साथ में कुछ तो चलो !!3!!

हम जानते यह प्रेम है हर, शख्स को मिलता नही! 
पर क्या करे यह बावरा मन, मानता बिलकुल नही!!
तुमने नही गर कुछ कहा तब , देखना मर जाउंगा! 
मर जाउंगा पर छोड़ के तुम, को नही मर पाउंगा!!4!!

सुरेश जजावरा "सरल"


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