Thursday, April 25

"सृजन"25अप्रैल l2019

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                                           ब्लॉग संख्या :-367

मंच को नमन 🙏
दिनांक- 25/04/2019
शीर्षक-"सृजन"
विधा- कविता
**************
चलो सब मिलकर कुछ नया सृजन करें,
भेद-भाव मिटाकर हम प्यार का सृजन करें,
मन के भावों को कविताअों में सृजन करें,
चलो सब मिलकर कुछ नया सृजन करें |

सुन्दर पौधे लगा हरियाली का सृजन करें,
सही मार्ग चुनकर सच्चाई का सृजन करें ,
भटक गये जो उनमें संस्कारों का सृजन करें,
चलो सब मिलकर कुछ नया सृजन करें |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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"दिंनाक-२५/४/२०१९
"शीर्षक-सृजन"
प्रभु ने किया सृष्टि का सुंदर सृजन
कितनी सुंदर है धरा हमारी
रंग बिंरगें, पेड़ पौधे
मनोहारी खग कूजते यहाँ पर।

हमें है यह ख्याल रखना
सुरक्षित रहे यह सुंदर सृजन
अपने सुंदर कर्मो से सदा रखें हम ध्यान
 प्रभु के सृजन का न करें अपमान।

नारी का अपमान मत कीजिए
नारी है सृजन आधार
नारी ही जन्मदात्री है अजुर्न या प्रह्लाद।
नारी का रखिये मान।

रत्नावली ने जब किया तुलसी को धिक्कार
चोट लगी जब मर्म पर बना
रामचरितमानस सृजन आधार
बाल्मीकि को जब हुआ ज्ञात,

कोई नही सगा धरा पर
राम नाम का लेकर सहारा
सृजन किया बाल्मीकि रामायण।
बना जीवन सार

अजुर्न को देने को गीता का उपदेश
सृजन किया गीता का श्री कृष्ण ने तत्काल।
गीता का संदेश देते हमें
सुंदर जीवन का संदेश।

सृजन करिए सुंदर स्वस्थ परिवेश
उत्तम सृजन का सुख पाईऐ
रहिए बिन क्लेश
नित नई सृजन करें बैठे न बिन काम।
सृजन को क्या चाहिए बस सही सोच का साथ।
  स्वरचित-आरती -श्रीवास्तव
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सुप्रभात"भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन🌹
25/04/2019
     "सृजन"
1
भाव उत्पन्न
कविता का सृजन
विधा विभिन्न
2
नव सृजन
स्वरुप विभाजन
आकार पूर्ण
3
मनु स्वभाव
सृजनात्मक कार्य
सतत् लगन

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)पश्चिम बंगाल
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🌻 सृजन 🌻

सृजन सीखो सृजनकर्ता से
क्या खूब श्रष्टि बनायी ।
कण कण में दिखे उसकी
कला और चतुराई है ।
सबने ही कुछ पाया यहाँ
जिसने जरा नजर गढ़ायी है ।
न्यूटन को गुरूत्वाकर्षण
की सूझ उसी से आयी है ।
प्रकृति पाठशाला जो जाना
सृजनशीलता पायी है ।
सृजनशील रहना सदा
इसमें बहुत भलाई है ।
जिसने रचा हमें उसने
भी कुछ आस लगायी है ।
क्यों न ''शिवम" जाना
सारी उम्र यूँ बितायी है ।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 25/04/2019
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नमन मंच
दिनांक .. 25/4/2019
विषय .. सृजन
विधा .. लघु कविता
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.......
मनोरम शब्द तेरे सच कहूँ तो तू रथि है।
निःशब्द तेरे भाव है पर सच कहूँ तो यति है।
अब देखना है भाव तेरे सामने आयेगे कैसे,
पर सच है ये की सिर्फ तू ही इक बलि है।
......
तडपती पुण्य भूमि फिर मेरा गौरव बढेगा।
वही सम्मान मेरा इस जगत मे फिर मिलेगा।
कमल के पुष्प का अर्पण पुनः सम्मान देगा,
ये भगवा ध्वँजा गगन मे लहलहता फिर मिलेगा।
......
हिमालय फिर तेरा गौरव गगन के सिर चढेगा।
तो गंगा स्वच्छ निर्मल मान उसको फिर मिलेगा।
चमकता सूर्य ना बन पायेगा ये शेर तो क्या,
मेरी कविता अमर है नाम जिन्दा तो रहेगा।
.....
सृजन का भाव है तो, पथ सदा उन्नत रहेगा।
तुझे गरिमा मिलेगा आज ना तो कल ये होगा।
कहा है शेर ने जो शब्द, कल जग ये कहेगा।
विजयश्री श्रेष्ठ है सम्मान तुझको ही मिलेगा।
......
मनोरम शब्द तेरे सच कहूँ तो तू रथि है।
निःशब्द मेरे भाव है पर सच कहूँ तो तू यति है।
अब देखना है भाव मेरे सामने आयेगा कैसे,
पर सच है ये की सिर्फ तू ही इक बलि है।
.......
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
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25/4/2019
💐💐💐💐
           सृजन
         🌿🌿🌿
इंसान हीं करता है सृजन इंसान का,
जब किसी माँ की गोदमें
आता है बच्चा उसका।

माँ हीं है सृजनकर्ता,
माँ हीं है जीवन आधार।

जिस बच्चे की होती नहीं माँ,
उसका सूना होता संसार।

ईश्वर ने सृजन किया,
हमको,तुमको,दुनियाँ की हर चीज को।

पेड़,पौधे,नदी,तालाब,
समुद्र और खनिज भण्डार का।

उस सृजनकर्ता को,
करो प्रणाम।
जिसने सृजन करके किया हमारे नाम।
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
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नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक     सृजन
विधा       लघुकविता
25  अप्रैल   2019,गुरुवार

सृजन शक्ति होती है सबमें
प्रिय उपहार अति अनौखा
तप्त धधकती गर्मी में ज्यौ
सृजन बने शीतल सा झौखा
        पंचतत्व सृजनशील जग
        जीवन इनसे आगे बढ़ता
        कर्मवीर निज कर्मो से
        प्रगतिपथ सदा वह चलता
वसुधा सृजन सृंगार करे नित
जो वनस्पति हरियाली छाई
शस्यश्यामल अति अद्भुत वह
कण कण में खुशहाली लाई
         मातपिता सृजन अनौखा
         नव संस्कार संतति देते
         भावी जीवन उज्ज्वल करते
         परपीड़ा जग की सह लेते
गुरु पूजनीय स्व शिष्यों को
नित निज ज्ञान सदा वह देता
सत्य असत्य भेद बताकर
क्या करना है सदा  सिखाता
          गुरु ज्ञान आलोकित होकर
          सद साहित्य जग में भरते
          मात शारदे कृपा बरसती
          नित पीड़ा दुःखों को हरते
धरतीपुत्र सृजन करता है
खून पसीना सदा बहाता
परहित जीता परहित मरता
हर नर उसको सदा सुहाता।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

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🌹नमन भावों के मोती🌹
विषय_सृजन
25\04 \019
~~~~~~~~~
शब्द शब्द कतार बने तो
गीत सृजन  हो उठते है।
तब भवनाओं के अति वेग 
परिलक्षित होकर दिखते है।

एक विचार जब
ह्रदय  से
मंथन  हो के उठता है
अंतर्मन  भित्तियों को भेद,
कुछ साहस कर लिखता है

एक विचार कभी _कभी
झंकृत हो उठता है
खाली पृष्टों के मंच पर
शब्द शब्द  थिरकता है।

अक्षर  अक्षर,
सरस सलिल बन बहते है
बनाता कोई आलेख
लेखक उसी को कहते है।

जो  असि बन शौर्य
शब्दों में जगाते है।
जो न कॉट सके तलवारें
उन्हें ,शब्द भेदकर जाते हैं।

लेखक की ,
असि  कलम है
लेखक की
पतवार कलम है
शिल्प होते  कितने ही ग्रंथ
शब्द शब्द ,
गहन ,सघन  है।
जिसमें  होंती चिंतन की
गहराई
जिसमें होती,
गिर सी ऊँचाई
एक  शिरा नभ इसका
एक छोर पाताल गहराई।

नापती उसे
सिर्फ एक ,कलम है
अक्षर अक्षर
में रमता  है जो
वो लेखक का  मन है।

🙏🙏🙏✍
पी राय राठी
भीलवाड़ा, राज

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भावों के मोती
बिषय- सृजन
प्रकृति के ज़र्रे-ज़र्रे में,
जिसके सृजन का कमाल है।
वो खुदा बेमिसाल है।

ये पेड़-पौधे, नदी-पर्वत
चंदा-सुरज, खेत-खलिहान
हम पर है उनका अहसान

मात-पिता,भाई-बहन
रिश्ते-नाते, दोस्त, गुरुजन
सबका प्रेमोपहार मिला।

जरुरत की हर चीज दी
हमपर असीम उपकार किया
उनको न कभी भी भूले हम।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

सुबह लिखता हूं शाम लिखा करता हूँ।
मै हरेक हर्फ तेरे नाम लिखा करता हूँ।

एक शायर की  हैसियत भला कया है।
बन के गजल सरे आम बिका करता हूँ।

लोग कहतै है क्या  खूब कलम होगा।
अजब सर हूँ  नाकाम झुका करता हूँ।

लोग कहते है सुकूं सुन के बडा आया।
मुफ़्त मरहम हूँ बे दाम बिका करता हूँ।

मै गुल नहीं के मौसम का इंतजार करुं।
सिर्फ पत्ता हूँ खूलेआम दिखा करता हूँ।

सिर्फ तेरा जिक्र है मेरे हरेक फसाने में।
मय तेरे नाम पे मै जाम बिका करता हूं।

                             विपिन सोहल

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आज काविषय सृजन,समूह द्वारा प्रदत्त,सबसाथियो को नमस्कार,
गजल पेश, है,,
प्राण का मंथन चलता रहेगा,
गीतों का सृजन चलता रहेगा,।।1।।
मोह की कंदील को बुझा दो,
मर्म का अकंनचलता रहेगा।।2।।
जीवन पल पल जा ही रहा है,
शब्दब्रम्ह संधान चलता रहेगा।।3।।
मन कलुषित न होने पाये,
हर पल मार्जन चलता रहेगा।।4।।
धूल कण भी कभी चंदन बनते,
मातृप्रेम नर्तन चलता रहेगा।।5।।
मन में सदा नाद  होते  रहेंगे,
गीतों का अर्पण चलता रहेगा।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दासबसना छ,ग,।।
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1भा.25/4/2019/गुरुवार
बिषयःःः #सृजन #ः
विधाःःःकाव्यःःः

जय वीणावादिनी हंस वाहनी।
बने सृजनात्मक  दयादायिनी।
विकास हो सृजन क्षमताओं से,
वरदानी माँ तुम्हीं ज्ञानदायिनी।

भजन भक्ति हमको मिल जाऐ।
सृजनशक्ति सबको मिल जाऐ।
ये सोच कभी नकारात्मक न हो,
हमें सकारात्मकता मिल जाऐ।

 विध्वंसक कभी हम बने न पाऐं।
कुछ सदविचार मन में हम  लाऐं।
गौरवान्वित मिलजुल करें देश को,
सुखद शांति सब मिल कर  लाऐं।

साहित्य सृजन अच्छा कर पाऐं ।
अभियान  स्वच्छता  चला  पाऐं।
मात शारदा हमें आशीष दीजिये,
भाव मोती के सृजित कर पाऐं।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी

#सृजन# काव्यः ः
1भा.25/4/2019/गुरुवार
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II  सृजन II नमन भावों के मोती....

मैं सोचता था तुम्हारे जाने के बाद....
मैं और मेरी कविता दोनों....
दम तोड़ देंगे....
फिर कोई सृजन न होगा...
न दिल में न कलम से...

तुम थी तो....
तेरी आँखें नित नए भाव मुझे देती थीं....
तेरी मुस्कराहट बेचैन करती थी कि लिखूं....
तेरी चाल तड़पा देती थी कलम को....
तेरी कलाई जब घूमती थी तो...
लफ्ज़ मेरी आँखों के आगे नाचते थे...
तेरी बातें मुझे छंदों के आयाम...
खोलती थीं...
और जब तुम हाथ झटक कर जाती....
ग़ज़ल के काफिये निकलते थे...
और जब तेरी सांसें मेरे चेहरे से छूती...
तो ग़ज़ल का सृजन होता था...

तेरे जाने के बाद....
मेरे गीतों...ग़ज़लों में काफिये ने...
पैयाम बदल दिए हैं....
शोखियों ने दर्द के जाम दे दिए हैं....
पहले मेरे गीत...ग़ज़ल...शेर...
तुमसे ही बात करते थे...
तुम ही कहती थी...तुम ही सुनती थी...
अब सीधे मुझसे सवाल करते हैं....
और जहां सुनता है....
तेरे दर्द ने.....
देख बेइंतहा सृजन किया है...
हर पल...एक नया सृजन....
न कविता मरी...न मैं मरा...
बस....
सृजन बदल गया है...

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२५.०४.२०१९
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🙏 नमन 'भावों के मोती' 🙏
शीर्षक - सृजन
दिनांक - २५/०४/२०१९

"रिक्त हृदयागार में संचित जलद कण,
मुक्तक को में ढ़ाल दे वह सीप हूँ मैं..
जो न मन हारा नियति के क्रूर छल से,
विश्व वह अविक्षत नक्षत्री दीप हूँ मैं..!

वेदना को साधना का बिंब कहकर,
सृष्टि के निर्माण यज्ञी हवि बना हूं..!
पालकर संसार की सुख दैन्य करुणा,
आत्म की अनुभूति करता कवि बना हूं..!!

जो सृजन के नित नए प्रतिमान गढ़कर,
बन गया अदना सृजक इस कविजगत का..!
जाने कितने क्लांत पथिकों के लिए जो,
बन गया दृष्टांत नित उन्नत प्रपथ का..!

वह सृजन जिसने दी औषधि वेदना को,
वह सृजन जो दंश उर के काटता है..
वह सृजन जो दोपहर में छांव सी है,
वह सृजन जो माँ के आँचल की छटा है..!

✍️आशू की कलम से
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शुभ मध्याह्न , मित्रों ,
भावों के मोती
मंच को नमन
दैनिक कार्य
स्वरचित लघु कविता
दिनांक 25.4.19
दिन वीरवार
विषय सृजन
रचयिता पूनम गोयल

चाह है मेरी कि
सृजन करूँ नित
नूतन उत्कृष्ट रचनाओं का ।
एवं सृजन करूँ मैं
नित भावभरी , रसीली कविताओं का ।।
बीजारोपण कर ,
नित विभिन्न
वृक्षों का सृजन करूँ ।
झीलें , नदियाँ व
झरने बनवा कर ,
प्रकृति का श्रिंगार
करूँ ।।
भरके ऊँची उड़ान गगन में ,
मैं चाँद-तारों की
यात्रा करूँ ,
एवं वहाँ जाकर ,
मैं नवीन आविष्कारों का सृजन करूँ ।।
है ईश्वर से मेरी प्रार्थना ,
कि वह सहायक बने ,
मेरे प्रत्येक सृजन में ।
ताकि मैं कर पाऊँ ,
हर बार कुछ अच्छा ,
अपने उन प्रयासों में ।।

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नमन मंच को 🙏🙏
दिनांक - 25/4/2019
विषय -सृजन
विधा -छोटी कविता

हकीकत के चाक पर
रखी हुई ख्वाहिश की
माटी को,  कल्पना के सधे
हुए हाथ, जब पूरे समर्पण से
पूरी तल्लीनता,  और पूरे अनुराग से
संतुलित और सार्थक
आकार देते हैं
तब होता है..... सृजन!

तनुजा दत्ता (स्वरचित)
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नमन मंच को
दिन :- बृहस्पतिवार
दिनांक :- 25/04/2019
विषय :- सृजन

लेखनी रचे शब्द जो..
भाव हो अंतर्मन के..
सृजित हो काव्य विधा..
जब उद्गार हो हृदयपट के..
सृजन है विचारों का...
सामाजिक आधारों का...
सृजन हो राष्ट्रहित का..
या हो सृजन भक्ति गीत का..
सृजन है राग मल्हार..
सृजन है सरगम सप्त सुर...
रस,छंद,व अलंकार..
सृजन का है आधार..
सृजन करे श्रृंगार प्रकृति का..
सृजन है संस्कार संस्कृति का..
शब्दों का श्रृंगार सृजन..
कविता का आधार सृजन..

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

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नमन मंच "भावों के मोती
25-4-2019
शीर्षक-सृजन

 नव निर्मित रचना,,
हरिगीतिका छंद में,,गीतिका
2212, 2212 ,2212, 2212
"मातृभाषा हिन्दी की वंदना "
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿
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माँ भारती हिन्दी सुधामयि,,,,,,लेखनी मनभावनी !
जग वंदिता,भाषा मनोरम,,,,मातु सम हिय पावनी!!
+
हिन्दी सरल,भाषा विमल,सुजला सुफल,करती #सृजन,
कविता सृजी,रचना रचे,कवि कल्पना की कामनी!
+
सौंदर्यमयि शुचि शब्दिका,,,,,मधु राग गुंजित अक्षरा,
हर वर्णमाला ,,,,,मोतियों सम,दमक-दुति हीरामनी ।
+
नमनीय हिन्दी,देव दुहिता,,,,,,,,सुभग सुंदर वर्णिता,
ज्योतिर्मयी पद-छंदिका,,,,रचती सृजन ज्यों दामनी!
+
अक्षर मधुर,हिन्दी सृजक लिपि,लेखनी दे कल्पना !
निज देश में भाषा अनेकों,,,,किन्तु सब अनुगामनी!!
+
मानस-सरोवर हँसनी,,,,चुगती सदा सत-मुक्तिका,
माँ संस्कृत-जननी प्रखर,,,,,,,कवि चेतना देवांगनी!!
+
कर दो विमल मति ज्ञानदा!,,,,देना मुझे सन्मति सदा,
वर दो!नवल रचना रचूं,,,,,,हे वाणि!  वीणावादनी!!!
+
*********************************
🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार

#स्वरचित#सर्वाधिकार #सुरक्षित

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दिनांक-25/04/2019
दिन-वीरवार
शीर्षक-सृजन
विधा-दोहे

सृजन किया भगवान ने,रचा सकल संसार
चंदा सूरज को रचा , तारों की भरमार।

लख चौरासी योनियाँ , सृजन न टूटा तार
मणि माणिक धरती भरी,जीवन का संचार।

प्यार हृदय मानव दिया,सृजन दिया संदेश
राग द्वेष हमने रचा , बदल गया परिवेश।

कुदरत करती है सृजन,भर भर देती माल
मूरख मानव काटता,बैठा है जिस डाल।

सृजन सदा होता रहा,हर पल इस संसार
पाप मिटाने को लिया , बार बार अवतार।

~प्रभात
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सृष्टि सृजन
अद्भुत संयोजन
चले जीवन।।

साहित्य रचें
आईना समाज का
विरले लोग।।

करें कुतर्क
अनुचित सृजन
नकारात्मक।।

सृजनकर्ता
एक परमेश्वर
मत अनेक।।

जीव सृजन
करे प्रत्येक जन
बढ़ीं पीढियां।।

भावुक
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नमन मंचःभावों के मोती
गुरुवार,दि.25/4/19.
       शीर्षक: सृजन
*
उल्लास लुटाती है प्रतिपल,
शिव सृजनमयी सुंदर सत्ता।
आकाश  बाँटती है  सबको,
चाहे  पर्वत  हो , या   पत्ता।

सौन्दर्य - शैल  सी   स्वर्गोन्नत ,
वह आदिशक्ति जो परम शुभा।
पालन करती है अग - जग का,
वह  ही  प्रलयंकर  दिव्य  प्रभा।।
    -(स्वरचित)डा.'शितिकंठ'
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भावों के मोती दिनांक 25/4/19
सृजन
विधा - हाइकु

होता सृजन 
प्रकृति  है मोहक
सब सुन्दर

देश विदेश
बढते है कदम
सृजन सतत्

बने कर्मठ
हो जीवन सफल
करें सृजन

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव  भोपाल
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माँ शारदा को नमन मंच को नमन । 
दिन :-गुरूवार -25/4 /2019।
विषय :-सृजन
सृजन सर्जना का उपहार
संसृति है जिसका आगार
विपुल भरा जिसकाभंडार
प्रकृति बनी जिसका उद्गार ।
सृजन शब्द का अर्थ अपार
नित् नये शब्दों का आचार
जिनसे उपजें नये  विचार ।
परिवर्तन गति शील हुआ
सृजन नया नव गीतहुआ ।
स्वरचित:-उषासक्सेना
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भावों के मोती
25/04/19
विषय - सृजन

एक रस काव्य का सृजन

ढलती रही रात,
चंद्रिका के हाथों
धरा पर एक काव्य का
सृजन होता रहा
ऐसा अलंकृत रस काव्य
जिसे पढने
सुनहरी भास्कर
पर्वतों की उतंग
शिखा से उतर कर
वसुंधरा पर ढूंढता रहा
दिन भर भटकता रहा
कहां है वो ऋचाएं
जो शीतल चांदनी
उतरती रात में
रश्मियों की तूलिका से
रच गई
खोल कर अंतर
दृश्यमान करना होगा
अपने तेज से
कुछ झुकना होगा
उसी नीरव निशा के
आलोक में
शांत चित्त हो
अर्थ समझना होगा
सिर्फ़ सूरज बन
जलने से भी
क्या पाता इंसान
ढलना होगा
रात  का अंधकार
एक नई रौशनी का
अविष्कार करती है
वो रस काव्य सुधा
शीतलता का वरदान है
सुधी वरण करना होगा।

स्वरचित

        कुसुम कोठारी।

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नमन भावों के मोती
दिनांक : - २५/४/०१९
विषय  : - सृजन

       " सृजन "
आकर जिंदगी में मेरे
मुझे सृजनात्मक बना दिया,
दर्द की आह नहीं
प्यार भरा समन्दर दिया.....।

सृजन किया अपने बगिया का
अनमोल दो फूल खिला
खुशियों से चहकता घर - आंगन
जीवन सार्थक कर दिया...

थामकर हाथ मेरा
मुझे प्रोत्साहित किया,
कराती हूँ नित भावनाओं का सृजन
हाँ, आपही यह उपहार दिया......।

घोर अंधकार में, भटके राह पर
मुझे प्रकाश दिखाया,
लक्ष्य की चाह जगाकर
मुझे सिढी पर चलना सिखाया.....।

देना मेरे साथी यूँ ही साथ मेरा
मैं नित नई राग सुनाऊँ
हर एक पल को
कोरे कागज पर सजाऊँ।

स्वरचित : - मुन्नी कामत।
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
25/04/2019
छंदमुक्त रचना   
विषय:-"सृजन"

सृजन..हमेशा,
सँतुष्टि का,अहसास देता है,
यदि..
अहँ का भाव ना हो,
तो उसमें
परमात्मा का वास होता है।
सृजन में जीवन बोलता है,
रचनात्मक ईंटे  जोडता है,
सकारात्मक होता है सृजन,
हर असँभव सपना संजोता है,
हाँ...,सृजन ही है,
जो
मनुष्य को
मानवता  की ओर,
इस धरती को
पवित्रता की ओर,
ले जाता है,
उसकी ऊचाइयाँ बता
छिपी हुई क्षमता से
परिचय करा जाता  है..

स्वरचित
ऋतुराज दवे
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नमन मंच को
विषय : सृजन
दिनांक : 25/04/2019

  सृजन

कौन बनाए दिन ओर रात,
किसने जीवन दी सौगात,
जिसने रंग भरे फूलों मे,
अद्भुत कलाकार है,
वो ही जीवन, वो ही मृत्यु,
वो ही सृजनहार है।
चांद सितारे, सूर्य चलते,
उसके बने उसूलों में।
वो ही भरे मिठास मधू की,
रंग बिरंगे फूलों में ।
खुशबू देते भीनी भीनी,
आती जब बहार है,
वो ही जीवन, वो ही मृत्यु,
वो ही सृजनहार है।
न वो दिखता न वो कहता,
पर वो ही सब करता है।
हर ह्रदय में प्राण बन कर,
वो ही तो धड़कता है।
प्यार करो हर किसी से,
सब में वही साकार है,
वो ही जीवन, वो ही मृत्यु,
वो ही सृजनहार है।
कितने ही इंसान यहाँ पर,
कितने जीव मिलते हैं।
उसकी इच्छा के बिना तो,
पत्ते तक न हिलते है।
उसकी रजा में रहना सीखो,
वो ही परम आधार है,
वो ही जीवन, वो ही मृत्यु,
वो ही सृजनहार है।
वो ही सृजनहार है।

जय हिंद

स्वरचित : राम किशोर, पंजाब ।
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मंच को नमन
दिनांक -25/4/2019
विषय -सृजन
विधा -हाइकु

(१)
हित भावना
सर्वोपरि कामना
सृजन जाना

(२)
शब्द वंदन
माथे पर चंदन
सजे सृजन

(३)
शब्दों की शक्ति
सृजन बने भक्ति
कवि नियति

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित✍🏻


नमन मंच
"भावों के मोती"
दिनाँक-25/4/2019
विषय-सृजन

प्रेम सृजन है
 है सर्जनात्मक
प्रेम
सागर की लहरों से
संचित प्यार
हो सीपी में
मोती के रूप
में सृजन ।

आकाश में मिल
जल की बूंद
प्रकाश से करती
सतरंगी इंद्रधनुष
का सृजन ।

धरती में बीज
और पानी करते
नवांकुर का अवतरण होता
सृजन।

मनुष्य ह्रदय प्रेम
के अविरल
अनवरत बहती
प्रेम धारा
बनता मनुष्य कला
का सृजनकारी ।

कवि के ह्रदय में सृजन नित नई कविता कर शब्दो का
मिलन
चित्रकार रंग और पानी से केनवास
पर मन की कल्पना
का सृजन
शिल्पकार मिट्टी और पानी को ढलता नए रूप
में मनमोहक
सर्जन।

ये धरती ईश्वर का
सृजन मनुष्य उर में
प्रेम का सृजन
यह सृजन अनमोल करता नई
पीढ़ी का सृजन ।

इसलिए-
प्रेम प्रेम सब करे,
प्रेम न समझे कोय।
प्रेम से सृजन होत है, प्रेम ही सृजन होय।।।
  स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर (म.प्र.)

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सादर नमन
विषय- सृजन
        "सृजन"
बंद कर आँखों को,
ख्यालों में रहती हूँ,
भावो के समुन्द्र में मार गोता,
शब्दों के मोती ढ़ूँढती हूँ,
कभी उपमा कभी अलंकृत,
प्रेम रस कभी हास्य रस में ड़ूबती हूँ,
भावपूर्ण शब्दों को संजोकर,
नित नए सृजन करती हूँ,
मैं वो धारा हूँ भावो की,
जो रचनाओं में बहती हूँ,
कह ना सकूँ जो प्रत्यक्ष में,
कविताओं में वो कहती हूँ,
माँ-बेटी के प्रेम का कर सृजन,
ममता के भावो में बहती हूँ,
पिया याद के लिखकर गीत,
विरह की आग में जलती हूँ।
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
25/4/19
वीरवार
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नमन सम्मानित मंच
       (सृजन)
        ******
अदभुत एक  मानसिक  शक्ति,
  सृजन मनस की शुचित प्रक्रिया,
    जन्मित करती  विचार  श्रंखला,
      मनस गहन  के  चारु  पटल पर।

सम्यकता    एवम    मौलिकता
  सृजन- फलों  में  विद्ममान शुचि,
    सार्थकता  प्रति   स्तर  पर  अति,
      प्रत्येक  कोंण  से  छविमान शुचि।

धुरी    और   धारा   बसुधातल,
  मानव  प्रजाति   में  नारी  मुख्य,
    अनुपम सृजन  कला कौशल ही,
      उसका   अनुपम   दिव्य   सुगुण।

सृजन  और  विध्वंस  धरा  पर,
  प्रक्रिया परस्पर प्राकृतिक शुचि,
    सापेक्ष ध्वंस  के  सृजन कठिन,
      होता निज  करतल  के  वश में।
                               --स्वरचित--
                                  (अरुण)
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दि- 25-4-19
विषय- सृजन
विधा - मुक्तक
सादर मंच को समर्पित -

    🌹🍀      मुक्तक      🍀🌹
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     🌸     छंद - लावणी     🌸
           चौपाई +मानव छंद
       ( 16+ 14 ) = 30 मात्रा
       समान्त -आनी  , पदांत - में
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

भाव सँजोती प्राण बाँसुरी ,
                   बजती प्रणय कहानी में ।

हृदय पीर से निकले कविता ,
                    आग  लगादे  पानी में ।।

गीतों की बह सृजन रागिनी ,
                   गूँज उठें धरती  अम्बर--

नैन निहारें बस प्रियतम को ,
                     बढ़ें राह अन्जानी  में ।।

        🌹🍀🌺🏵🌲🌻🌹

🌲🌸***....रवीन्द्र वर्मा आगरा
       
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तिथि - 25/4/19
विधा - छंद मुक्त
विषय - सृजन

ईश्वर नियंता
इस सृष्टि का सृजक
एक अद्भुत रचनाकार
सृजन और विनाश
सब उसके हाथ
फूटता बीज से नवांकुर
खिलते सुमन
महकती बगिया
बनते बिखरते बादल
सम्पूर्ण प्रकृति के
सृजनकर्ता ने बनाई
लाखों योनियों में
विचरती माँ
हर पल करती
सृजन सन्तान का
वही सन्तान
जड़ या चेतन
निरन्तर करती सृजन
हर दिन बदलता प्रकृति का रूप
पहाड़ों का बदलता स्वरूप
नदियों के बदलते रास्ते
दीमक अति कुशल
कारीगर सी
बनाती वल्मीक
बया का घोंसला
चींटी का धरा के तल में
अजब साम्राज्य
मधुमक्खी करती सृजन
अनुपम शिल्पी सी
छत्ता बनाती
मकरन्द से शहद बनाती
करती अद्भुत सृजन
शिल्पकार गढ़ता मूर्तियां
कुम्हार के चलते चाक पर
मिट्टी का नवरूप
नित नए आविष्कार
नव सृजन
नए नए भावों का
उद्गम स्थल हृदय
काल्पनिक दुनिया में विचरता
रचता नये भावों का संसार
हो जाती कृतियां साकार
हो जाता सृजन
महाकाव्यों का
जब तक रहेगी सृष्टि
होते  रहेंगे
नित्य हल पल
नवीन सृजन

सरिता गर्ग
स्व रचित
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नमन भावों के मोती
विषय - सृजन
🌹🌹🌹🌹

सृजन के गीत ,
चलो गायें मनमीत ,
दुख के दिन जायेंगे बीत ।
बंजर भूमि सोना उगलेगी
बुझी अंगीठी फिर सुलगेगी ,
धानी चुनर ओढ़ वसुधा नाचेगी ।
हरी चुनरिया सतरंगी गोटे वाली
पहन झूमेगी फूलों की डाली ।
फिर चमक उठेगी स्वेद बूंदें
कृषक के माथे पे हीरक मोती जैसी ।
चलो गायें मनमीत
सृजन के गीत ।
अथक परिश्रम की होवे बरसात
महके फिर वसुधा के गात ।
कांधे पर उठाये हल
ओ साथी चल
गायें सृजन गीत ।

(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई  (दुर्ग )
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भावों के मोती
गुरुवार दि 25/04/2019

विषय- सृजन!
विधा - कुण्डलिया छंद !

हलचल उठती मौन मे, भीतर सृजन उजास!
कवि चित रचता पद्य मे, अखिल राग उल्लास!
अखिल राग उल्लास, कलम की चेतन माया!
महा कृत्य का मेल, सत्य चिर लेखक काया!
मोह मुग्ध है प्राण, शून्य मे व्यापी कलकल!
लिखती लहर अनंत, सृजक ने छेड़ी हलचल!!

छगन लाल गर्ग "विज्ञ"!
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नमन भावों के मोती
दिनाँक-25/04/2019
शीर्षक-सृजन
विधा-हाइकु

1.
काव्य सृजन
कलम का कमाल
साहित्य क्षेत्र
2.
उठते भाव
शब्द लेखनीबद्ध
नव सृजन
********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
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25/4/19
भावों के मोती
विषय-सृजन
_____________________
तू अगर इजाज़त दे तो...
बीती यादों की गठरी खोल
चुन-चुनकर हसीं लम्हे उठा लूँ
कुछ को दिल से लगाकर
कुछ को आँखों में सजा लूँ
 तू अगर इजाज़त दे तो...
बीती यादों की गठरी खोल
कभी गाए थे हमने गीत
उन गीतों से सरगम चुराकर
उनमें प्रीत के अहसास भरकर
प्यार का एक नया गीत बना लूँ
तू अगर इजाज़त दे तो...
बीती यादों की गठरी खोल
कुछ अधूरे पड़े ख्व़ाब
कुछ दबी हुई ख्वाहिशें
चलो आज कुछ ख्व़ाहिशें पूरी कर
तेरा दामन को खुशियों से भर दूँ
तू अगर इजाज़त दे तो...
बीती यादों की गठरी खोल
सारे गिले-शिकवे निकालकर
फेंक देते हैं कहीं दूर बहुत दूर
सृजन करते हैं एक नए प्रेम का
जिससे दुःख रहे हमेशा दूर
तू अगर इजाज़त दे तो...
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित✍
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नमन मंच
विषय - सृजन
हाइकु

1

कन्या अभाव
सृष्टि संतति हीन
कैसा सृजन

2

माँ का सृजन
खुशियों भरा घर
प्यारा संसार

3

माटी का घट
नित नव सृजन
 ईश कुम्हार

4

बंशी के स्वर
रचते सम्मोहन
नाचे ग्वालन

5

सृजन पिता
रचें नव सोपान
बच्चे निहाल

6

हर्षित जन
श्रमिक का सृजन
करो नमन

(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई  (दुर्ग )
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नमन "भावों के मोती"
विषय- सृजन
25/04/19
गुरुवार
मुक्तक

 सृजन है  अधूरा अगर  इस धरा  पर कहीं है उदासी।
मनन तब है पूरा अगर  मन में पीड़ा नहीं है जरा सी।
सभी मिल जगत में करें मानवी-तत्त्व का आत्मदर्शन-
तभी  सर्जना  की  बहे  शुभ्र - शीतल तरंगें सुधा -सी।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
किसने यह मानव जीवन दिया
वृक्षों से फल
पीने को जल
प्राणों  का  प्यारा पवन दिया
ये नदीयों का प्यार
और झरने झरते
कोई नील गगन में
नभचर विचरते
उन दृश्यों के
इर्द-गिर्द ही,
एक भटकता चंचल  मन दिया
किसने यह मानव जीवन दिया।
कई रिश्तों की बौछार
भाईचारे और प्यार
माँ-बेटे  के  लाड़
वे पिता के दुलार
अनमोल कितना यह धन दिया
किसने यह मानव जीवन दिया।
मैं संसार में झाँका तो
लगता है ऐसा, कौन हूँ?
किंतु एक सवाल हुआ
जिसपर  मैं  मौन हूँ!
कि , किसने मेरा  सृजन किया
किसने यह मानव जीवन दिया।

~ परमार प्रकाश

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नमन भावों के मोती
दिनांक -25/04/2019
विषय- सृजन
सृजन हो नव विचारों का
मानवता के उदगारों का
प्रकृति के प्रति अनुराग का
कृतज्ञता का,उत्साह एवं उत्कंठा का ।
प्रकृति भी देती है यही संदेश
नित नव सृजन का ,जैसे
नित नव रूप धर धरा
कभी धानी चूनर ओढ़ लहराती
कभी पीली सरसों से फूल -फूल इठलाती
अपने रूप से सबको हर्षाती ।
नित नव अंकुर प्रस्फुटित कर
सबको जीवन दान देती,
क्षुधा को तृप्त करती,
अपनी सृष्टि के जीवधारियों की ।
यहाँ सृजन है ,विध्वंश नहीं
यहाँ जीवन है नाश नहीं ।
प्रकृति के इसी सृजन में मिल जाएं
सृजन के गीत गाएँ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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नमन भावों के मोती ,
आज का विषय ,सृजन ,
दिन , गुरुवार ,
दिनाँक , २५ ,४ ,२०१९

सृजन आशा
जाने कहाँ निराशा
होश में आजा ।

सृजनकर्ता
सुरक्षित भविष्य
खुशी के पल ।

 समृध्द बने
साहित्यकार करे
 साहित्य कोष ।

स्वरचित , मीना , शर्मा , मध्यप्रदेश ,
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नमन- भावों के मोती
विषय-सृजन
25/04/19
विधा-गीतिका

हाथ में लेकर कलम हम,नव सृजन करते चले|
शब्द की तलवार लेकर,दोष सब हरते चले|
हम शिवालिक के पहाड़ो की अमर संतान है|
हम बहै निर्झर-निरंतर,तो कलम का मान है||

आह निकले गर किसी की,तो कलम रोती रहै|
हो खुशी के पल अनोखे,तो कलम अपनी हंसे|
युद्ध का त्योहार हो तो,जोश स्याहीं में दिखे|
शब्द बारुदी भंवर हो,छंद बाणो से लगे||

सत्य के रक्षक बने हम,वीरता गढ़ते चले|
कृष्ण बनकर अर्जुनो को,रोज हम गीता कहै|
सत्य युग के राम लक्ष्मन,की कथा सबसे कहै|
और इस युग के चलो हम,राम को गढ़ते चले||

दोष हमको भी लगेगा,सत्य जो कह ना सके|
झूठ और अन्याय अपनी,आंख को गर ना दिखे|
ये कलम बदनाम ना हो,वो सृजन तुम सीख लो|
चापलूसी कर प्रशंसा, की कभी ना भीख लो||

आग शब्दो से लगा दो,सुर्य हो तुम आज के|
बादलों को तुम बुला लो,जो कलम थोड़ी झुके|
रंक को राजा बना दो,तुम दया का सार हो|
सत्य कहने के लिए ही,तुम नया अवतार हो||

सुरेशजजावरा सरल
स्वरचित मौलिक

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