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ब्लॉग संख्या :-3541
जेब कतरा
आम जनता मध्य
साथ चलता
2
मुँह को खाई
चक्कर धोखाधड़ी
जेब जो कटी
3
जेब गरम
सिद्धांत हुए नर्म
आड़े ईमान
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
भरी जेब का खेल निराला
मान और सम्मान मिलता
खाली जेबें नित मेहनत से
श्रमिक सदा ही रोता रहता
जिस पर हाथ हो लक्ष्मी का
दुनियां उसकी पीछे चलती
जेब भरी हो फिर क्या डर है
सदा क्षम्य है उनकी गलती
भरी जेब बोराये रहते
खाली जेबें हाथ पसारे
खून पसीना सदा बहाते
है किस्मत में नहीं बहारें
ज्यादा पैसा उचित नहीं है
खाली जेबें ठीक नहीं है
सुख संतोष भरा जीवन हो
वह परिवार सदा सुखी है
साथ नहीं जाता है कुछ
मायावी जीवन में पागल
पीछे भगते नित पैसों के
चाहे वे हो जाते घायल
इतना पैसा हो जेब मे
हँसी खुशी परिवार चले
दीन दुःखी की सेवा करलें
नित काम हो भले भले।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
बहुत करीने से
टेलर ने जेब लगा दी
सुंदर से कपडो पर
सोचा अच्छी दिखेगी
आदमी के काम आएगी
जेब मुस्कराई
अपने जन्म पर इठलाई
जेब का दस्तूर क्या
भरे तो सुख खाली तो दुख
जेब की लीला निराली
मतवाली और नखराली
जेब कितने काम करवाती
रुकी फाइले चलवाती
सैकड़ों मामले सुलझाती
जेब जब भर जाती
सौ शौक कराती
पर जब खाली रह जाती
बहुत अफसोस मनाती
सैकडो चिंताएं दे जाती
जेब की लीला अपरंपार
भर जाए तो भरे भंडार
और जब खाली होवे तो
आवे मन को दुख हजार
विनती भगवन मेरी
जेब किसी की न हो खाली
हर घर मने खुशियों की होली
और आए जगमग दीवाली
जेब किसी की न हो खाली
जेब किसी की न हो खाली
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
जेब खातिर दुनिया नाचे
पाप दोष न इसमें बांचे ।।
कोई खाली जेब में रोये
भरी जेब में भी न सोये ।।
जेब बड़ी होती है नंगी
बिना जेब भी होती तंगी ।।
जेब से हालत होती चंगी
जेब बड़ी होती है बेढंगी ।।
जेब से बचके रहना भाई
इंसान बने इसमें कसाई ।।
रिश्तों की न कदर करे
हर जगह यह गदर करे ।।
जेब कइयों सवाल करे
जेब सैकड़ों बवाल करे ।।
जेब खातिर जेब न काटो
मन चंचल उसको डाँटो ।।
जेब न हम पर होबे हाबी
हम ही रखें इसकी चाबी ।।
'शिवम' जेब की रीत निराली
जेब कहलाये सदा सवाली ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
जेब हो तुम्हारी
या हो हमारी
दिल पर है भारी
खाली हो जेब अगर
चिंता ग्रस्त हो जाते
कल की चिंता में
आज भी गंवाते
दर दर ठोकर खाते
आसानी से न मिले तो
छल कपट से कमाते
ज्यादा भरी हो तो
रातों की नींद गंवाते
खोने का डर सताता
चोर जेबें लगवाता
और अधिक धन
पाने का मन बनाता
स्टेटस बढाने की लालसा
मन में जगाता
हे ईश्वर
सद्बुद्धि देना
लालच , छल कपट से
दूर रखना
जेब इतनी भरी हो
जीवन यापन हो जाये
सन्तोष मन में जगाये
तृप्ति की भावना
मन में घर कर जाये
सरिता गर्ग
स्व रचित
जेब भरी हो इतनी भगवन,
संतोषप्रद जीवन जी पाऊँ।
ना इतना मिल जाऐ मुझको,
अपना होश सभी खो जाऊँ।
लालन पालन हो प्रभु अच्छा।
संस्कृति संस्कार सब अच्छा।
कभी जेब भले खाली रह जाऐ,
नहीं करें कोई चोरी की इच्छा
जेब भरी नहीं मन हो खाली।
हंसी खुशी सब बजाऐं ताली।
कोई याचक नहीं जाऐ भूखा,
रक्षक बन कर पाऐं रखवाली।
परोपकार भरी जेब से कर लें।
मनमोहन की सुधि बस धर लें।
केवल जेब नहीं टटोलें नहीं हम,
ये धर्म पुण्य भी धन से कर लें।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
**********
मैंने एक पेंट सिलवाई,
दो-तीन जेब उसमें लगवाई,
तनख्वाह वाले दिन हँसी आई,
सेलरी एक ही जेब में समाई,
ऊपर से ये ज़ालिम महंगाई,
मेरी तो जेब भी शरमाई |
सेलरी लेकर जब घर पहुँचे,
बीवी ने समान की लिस्ट थमाई,
सहम गये देखकर लम्बी लिस्ट,
जेब में न थी इतनी कमाई,
दर्जी तूने इतनी जेब क्यों लगाई?
मार डालेगी हमें ये महंगाई |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
आज का विषय
"""""""""""""""""""""
जेब
"""""
कहते हैं कि "कफ़न में जेब नहीं होती"
अर्थी पर दुनिया मुर्दे के साथ नहीं सोती
फिर क्यूं जमानेभर की दौलत चाहिए
कुछ दिनों के बाद कोई आँख नहीं रोती..।।
हक मारकर दूसरे का जेब अपनी भरेंगे
राम-रावण भी मरे,मौत सब अपनी मरेंगे
मय्यत का खर्च भी उस दिन लोग उठाते हैं
धन के बँटवारे में अपने तो अपनी करेंगे...।।
भरी हुई जेब पर ना इतना इतरा पगले
माँ-बाप की भूख पर तू झाकेगा बगले
सिक्कों की खनक तो कुछ वर्ष की होगी
महल सूने हो गये,सूने हो जाएंगे बंगले....।।
स्वरचित
गोविन्द सिंह चौहान
लोग करते हैं कितना फ़रेब
कि खाली कर दें किसी की जे़ब
हर जगह इसी बात का शोर है
एक आदमी दूसरे को कहता चोर है।
जलेबियाँ लटकाई जा रही हैं
आशायें भटकाई जा रही हैं
जेबें जब सुनसान पडी़ हैं
तो मुद्रायें कैसे लुटाई जा रही हैं।
कर्मशीलों को काम के अवसर दो
जो कुछ भी देना है तत्पर दो
बिजली दो पानी दो और दे दो स्वस्थ बीज
नवरात्रि के दिन हैं समाप्त कर दो सब रक्तबीज।
सामान्य जेब भी भरे और भरे
राष्ट्र कोष
न कोई अकर्मण्य बने पर हो सबका ही पोष
आपसी छीछालेदारी में रखा है क्या
इससे तो बढ़ेगा सबमें रोष ही रोष।
जरा संभलकर चलना दुनियाँ के बाजार में
अभी जिंदगी के कई बदलते रंग देखने बाकी हैं
ज़रा सी जेब क्या खाली हुई
जिंदगी में रिश्ते और रिश्तों के मायने बदल जाते हैं .
जेब चाहें हमारी खाली हो
दिल के अमीर हैं हम
इन्सान के जेब से नहीं
दिल से रिश्ता जोड़ते हैं हम .
मिली हैं जिंदगी खुशियाँ बाँटने के लिये
क्यों भागते हो दौलत के पीछे
क्या करोगे दौलत से जेब भरकर
दुनियाँ से कफन में लिपटकर विदा होना हैं .
जिंदगी में सब कुछ पैसों से भरी जेब नहीं हैं
धनवान को पड़े देखा हैं हालात से मजबूर
होते देखा हैं मिट्टी में उसका गर्व होते चूर
देखा हैं उसे अपनों से होते दूर .
स्वतचित :- रीता बिष्ट
विषय -जेब (1 )
जज्बातों की जेब
लुटा रही
स्नेह की अशरफ़ियां ।
खिली जा रही
रूह की बगिया
महक रही रूबाइयां ।
रोज करते घोटाला
खुल रही सबकी कलाइयां ।
हाथों में चाहिए माहताब
तो सूखे ना जेब का आब
हौसलों में भर लो ताब
वर्ना मिलेगी सिर्फ रूसवाइयां ।
जो कम हुआ तेरी जेब का शबाब
रूठ जाएगा तुझसे रूआब
छोड़ जाएगी तन्हा तुझे
तेरी परछाइयाँ ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
शीर्षक - जेब
खाली जेब, गुमगश्ता रुमानियत
फूल दिया किये उनको खिजाओं में भी
पत्थर दिल निकले फूल ले कर भी ।
रुमानियत की बातें न कर ए जमाने
खाली जेबों की गिर्दाब में गुमगश्ता है जिंदगी भी।
संगदिलों से कैसी परस्ती ए दिल
वफा न मिलेगी जख्म ए ज़बीं पा के भी।
चाँद तारों की तमन्ना करने वाले सुन
जल्वा ए माहताब को चाहिये फलक भी।
"शीशा हो या दिल आखिर टूटता" जरुर
क्यों लगाता है जमाना फिर फिर दिल भी ।
तूफानों में उतरने से डरता है दरिया में
डूबती है कई कश्तियां साहिल पर भी।
स्वरचित।
कुसुम कोठारी।
(गिर्दाब =भंवर, ज़बीं =माथा, सर)
जेब
मेरे हालात से उन्हें कोई दरकार नहीं
ख़्याल-ए-रैयत की कोई सरकार नहीं
खिलखिलाकर हँसता है मेरा जेब भी
इसपर भी मेरा कोई इख्तियार नहीं
उम्रभर मैं सिक्कों का टकसाल बना
और वो रहे सरकते कोई झंकार नहीं
गफ़लत में फटा रह गया हो शायद
बोला रफ़ूगर वो कोई जिम्मेदार नहीं
दिनरात जो जेबें ही सिलता रहता है
देखो वो भी तो कोई साहूकार नहीं
तेरी किस्मत का तू खुद कारीगर है
सिवा खुशियों के कोई तलबगार नहीं
देखें है बहुत नवल भरे जेब लिए भी
ज़िंदगी उनकी भी कोई खुशगवार नहीं
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
शीर्षक :- जेब
वो जेब सदा ही मुस्कुराती रही ,
हर गम अपना मुझसे छुपाती रही ।
ख्वाहिशों को देती रही सदा मंजिले ,
हौसलों के सिक्के खनकाती रही ।
मेरी हर सफलता का आधार रही ,
परिश्रम का सदा साक्षात्कार रही ।
तपती धूप से चुनकर के कुछ मोती,
परिवार की खुशियों का आधार रही ।
खुशियों से थी आबाद जेब पिता की ,
रहती न थी कोई जगह तब चिंता की ।
सांस लेने तक की न थी फुरसत उन्हें,
जिम्मेदारियां ही इतनी होती पिता की।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
आज का विषय - जेब
विधा - हाइकु
कैसे हैं नेता
भ्रष्टाचार में लिप्त
भरते जेब
काहे भ्रमाया
खाली जेब तू आया
चक्षु तो खोल
जेब है भरी
रिश्तों पर आघात
दिखी औकात
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
हाइकू(5/7/5)
विषय:-"जेब"
(1)
रुलाता पेट
गरीब की जिंदगी
चिढ़ाती "जेब"
(2)
स्वार्थ को तौले
भ्रष्टाचार के हाथ
"जेब" टटोले
(3)
खाली सत्कर्म
दिखावे की "जेब" है
दान न धर्म
(4)
मुट्ठी मे रेत
जीवन फटी "जेब"
फिसले वक़्त
(5)
बिजली छड़ी
बादल "जेब" फटी
बूँदें बिखरी
(6)
जादुई धन
ठंडे करे उसूल
"जेब"गरम
(7)
आमद ढ़ेर
महंगाई की मार
सिकुड़ी "जेब"
स्वरचित(मौलिक)
ऋतुराज दवे
छोटी सी होती है जेब ये लेकिन , इसकी गाथा बृहद् और विशाल है |
इस दुनियाँ का हर एक जीने वाला , इस अदुभुत सी शक्ति का गुलाम है |
होती जिसकी जेब है भारी बस समझो , उसके ही सपनों का संसार है |
आकर्षित रहती है सारी दुनियाँ , हर पल ख्वाबों पर छाया हुआ खुमार है |
जिसकी जेब में छेद बना है , वह इस जग में अपनों के लिऐ बेकार है |
उसको हरिश्चन्द्र का नाती कहते ,सबके लिऐ वह मूर्खों का अवतार है |
यहाँ बजन नहीं होता जिसकी जेब में , दुनियाँ में कहलाता वह नाकाम है |
कहीं पर कदम चूमती सरस्वती उसके ,कहीं इन्सानियत उसकी गुलाम है |
आखिर सुखी कौन है इस दुनियाँ में , यह चर्चा हमेशा जवाब से अनजान है |
सुख की तलाश में जेबों बाले ही , रहते आये अक्सर ही परेशान हैं |
मेहनत कर के रोज कमाकर खाने वाले , हमेशा ही बने रहे नादान हैं |
चाहत , रुआब , राजनीति और रिश्ते , करें भावना को घायल जेब ही शैतान है |
जग में कहीं सत्कर्मो की बात न चलती , सब यहाँ जेब भरने को परेशान हैं |
कुछ अपनों का प्यार कुछ अच्छे विचार , चले जो जेब में डाल वही धनवान है |
चलें मंजिल की ओर आये जब जीवन का छोर , हमारा शेष रहे न कोई गुमान है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्थप्रदेश ,
जेब
कोई कहे
मेरी चलती है।
सरकारें तक
भी डरती हैं।
टाल न पाए
मेरा कहना।
डी सी साहिबा
है मेरी बहना।
रौब देख
दुनिया डोलती है
यहाँ जेबें अक्सर
बोलती हैं ।
कोई मान करे
यहां अफ़सर का।
किसी का भाई
बाबू दफतर का।
बातें अजब
रंग घोलती हैं
यहाँ जेबें अक्सर
बोलती हैं ।
कोई शेखियां बघारे
नेता अपने पर।
केंद्रीय मंत्री तक
आते हैं घर।
बस अपनी बजाते
ढोलकी हैं
यहाँ जेबें अक्सर
बोलती हैं ।
गरीब की यहां
सुनता कौन।
हाथ बांधे बस
रहता मौन।
इंसान नहीं, चीज
मखौल की है।
यहाँ जेबें अक्सर
बोलती हैं ।
उत्सव मेले ना
गरीब का काम।
फर्जों से घिरा हो
जब इंसान ।
यहाँ चीजें सारी
मोल की हैं।
यहाँ जेबें अक्सर
बोलती हैं ।
यहाँ जेबें अक्सर
बोलती हैं ।
जय हिंद ।
स्वरचित : राम किशोर, पंजाब ।
ईमानदारी की जेब भरो
सदैव सुख संगत पाओगे
घर परिवार भी हों खुशहाल
बच्चे रहे सफल संस्कारी।
बेईमानी की जेब भरो
कभी न मिले सुख चैन
मन चित्त उलझा रहे
बच्चे बने व्यभिचारी।
कागज के टूकड़े हैं ये
रे मानव! मत भूल, खाली
हाथ ही आया
खाली हाथ ही जायेगा।
अच्छे कर्म कर
दया धर्म कर ,पूत कपूत
का धन संचय
पूत सपूत का धन संचय।।
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तनुजा दत्ता (स्वरचित)
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घर सेे निकला था
रोजी-रोटी तलाशने
जेब में संभाल कर रखे थे
माँ के आँसू,
पिता का आशीष
पत्नी के अरमान
बच्चों की ख्वाहिशें
लिए चंद रुपए
खाई दरबदर की ठोकरें
सच्चाई की दौलत जेब में लिए
मेहनत कर पैसे कमाए
हर काम के लिए
करता औरों की जेब गरम
गरीब के पैसे ख़ाकर
भ्रष्टाचारियों को न आए शरम
सच्चाई हारने लगी
झूठ पांव पसारने लगा
गांव से आया सच्चा इंसान
धीरे-धीरे भ्रष्टाचारी बनने लगा
दोष उसका नहीं
दोष रसूखदारों का है
पैसे वालों को सारी सुविधाएं
गरीब की कौन सुनता है
धूप में बदन जलाकर
मेहनत कर पसीना बहाते
फिर भी जरुरत पूरी न हो पाए
ना ही बच्चों को पढ़ा पाते
तंगहाली में कब फट जाती जेब
गिरकर मिट्टी के मिल जाते
पत्नी के अरमान
बच्चों की ख्वाहिशें
माँ के आँसू, पिता का आशीर्वाद
करने सबकी जरुरतें पूरी
करने लगा सबकी जी हुजूरी
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित
विधा-हाइकु
1.
जेब में पैसा
यार बने अनेक
देखो तमाशा
2.
जेब कतरा
बनकर खतरा
बस में बैठा
3.
आज के दौर
मंहगाई की मार
जेब है खाली
4.
जेब कतरा
कर आँख मिचौनी
लूटता पैसा
5.
जेब ना कटी
मेरी आँख थी खुली
पकड़ा हाथ
6.
मौद्रिक नीति
डिजिटल प्रणाली
जेब है खाली
7.
हाथ सफाई
जेब कतरे ने की
नकदी लूट
********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
सादर मंच को समर्पित -
🏵☀️ जेब ☀️🏵
**********************
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
जेब ,
कोट, पतलून , जवाहरकट की ,
झेलती हाथों को ,
बचाती सर्दी को ,
थामती हर बस्तु को ।
जेब ,
फूली है या सपाट ,
खाली है भरी ,
गहरी है या उथली ,
भान कराती माया का ।
जेब ,
भरती जब चोरी की बस्तु को ,
छिपाती सत्यता को ,
तलाशी पर दर्शाती लाचारी को ,
उड़ेलती हाथ की सफाई को ।
जेब ,
काट ली जाती जेब कतरों द्वारा ,
हो जाती धन , गहनों से बेसहारा ,
भाग्यवश चोर जेब ही बचा पाती कुछ चारा ,
बन जाती कवच निर्बल हारा ।
जेब ,
जब हो जाती खाली ,
साफ कर देती या तो घरवाली ,
यदि कोई रख दे सीने पर दोनाली ,
बना देती निर्धन , होती बदहाली ।
जेब ,
पैंट के पीछे वाली ,
करे बटुये की रखवाली ,
पाकेटमार की सहज थाली ,
फूल कर जोखिम भरी होती हानि वाली ।
जेब ,
जरूरी हैं बस्त्रों को ,
प्यारी होतीं बच्चों को ,
टाफी, चाकलेट, खिलौनों को ,
कवि की पूरक कलम, डायरी को ।।
कविता
आज जीवन साधनों की लालसा में लिप्त होकर,
व्यक्ति अपने पैर चादर से अधिक फैला रहा है।
कितनी ही हो जेब खाली खर्च पर रुकते नहीं है,
इसलिए षडयंत्र और फरेब उसको भा रहा है।
धन कमाने के लिए अब तोड़कर सब श्रृंखलाएं
वह जघन्य अपराध करके जेब भरता जा रहा है।
क्यों मनुज सुख-साधनों में इस कदर उलझा हुआ है,
जिससे मर्यादा का न प्रतिमान मन में आ रहा है।
आज भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण यही है,
क्यों सभी को लोभ-लालच इस कदर भरमा रहा है।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
गज़ब-गज़ब के खेल दिखती है किस्मत।
कभी कुबेर तो कभी फ़कीर बनाती है किस्मत।
हमें कभी हंसाती, कभी रुलाती है ये किस्मत।
दुनिया में भांति-भांति के रंग दिखाती है किस्मत।।
***************************
ग़ुरूर कभी ना करना अपनी इस किस्मत पर।
समय बड़ा बलवान,पड़ जाता है भारी सब पर।
करो सबका सम्मान,ना करो ग़ुरूर किस्मत पर।
"राजा-रंक" का सारा खेल टिका है किस्मत पर।।
**************************
जिस प्रभु ने जन्म दिया है,वही बेड़ा पार लगाएगा।
"जेब"अगर खाली है आज,कल "प्रभु" ही भर जाएगा।
उसके खेल निराले भइया,देख तू विस्मित हो जाएगा।
"कर्म" करे जा बस तू मन से, फल "कान्हा" ही दिलवाएगा।।
(स्वरचित) ***"दीप"***
जेब जब भरी होती हमारी,
हर रिश्ते आस-पास मंडराते।
हर किसी को हम हैं कितने भाते।
दुनिया बड़ी ही हसीन लगती है,
जरुरत की हर चीज खरीद पाते।
मगर जब जेब होती है खाली,
हर रिश्ते हमको देख घबराते।
अगर भुले से मिल भी जाएं तो,
कन्नी काट कर निकल जाते।
यही है आज की कडवी सच्चाई,
जेब भरी देख सब गले लगाते।
स्वरचित- निलम अग्रवाल,
आदमियत पोशाक का बनती हिस्सा
हर जेब का अपना अपना क़िस्सा
जेब भले ही बोलती नही
हैसियत अवश्य तोलती
जेब की अपनी
एक तासीर भी होती
ईमानदारी से ठंडी
बेईमानी से गरम होती
किसी को अपनी जेब पर गुमान
कोई इसकी ख़ातिर होता क़ुर्बान
कमाकर कोई इसे भर लेता
कोई भरी हुई को लुटा देता
जेब किसी की उसूल बनाती
किसी की जेब भ्रष्टाचार फैलाती
श्रम की बूँदे जब इसे भरती
क्यों ज़िंदगी जैसे-तैसे कटती ?
रिश्वतखोरी से जब भरती
क्यों ज़िंदगी वे मौज मस्ती से कटती ?
जेब का सवाल है
चहुँ ओर मचा बवाल है
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
विषय---जेब
जेब खाली रखो पर
मन ना हो कभी खाली
मेहनत का पैसा हो इसमें
तुम करो प्रगति भारी
सिक्के, नोट, पर्स को
सदा ये सहेजे
गिर जाए अगर ठोकर खाकर
तो करती है रखवाली
बाबू, अफसर, नेताओं ने
खूब खाई रबडी
भ्रष्टाचार की आंधी ने
इनकी जेबें मोटी कर दी
ई.डी.,सी.बी.आई.ने जब
जेबें इनकी कुतरी
माल गया इनका सारा
हालत पतली हो गई
जेबें रखो इतनी सी
जितना तुम मेहनत से कमाओ
भ्रष्टाचार के धन को
जेबों से दूर भगाओ
जीवन के अंत समय में
ये साथ नहीं जायेगी
इनमें रखा धन भी
दुनिया लूट ले जायेगी
जेब खाली रखो पर
मन ना हो कभी खाली ।
स्वरचित ----🙏🍁😊
"शीर्षक-जेब"
जेब हो खाली, तो मन रहे भारी
खाली जेब का बोझ है भारी
जेब भरा हो तो न हो मनमना
जेब खाली तो न हो अनमना।
जेबखर्च पर नियंत्रण जरूरी
मध्यम वर्ग का यह मजबूरी
जेब हो खाली, पिता मजबूर
बेटी की शादी, लाचारी बहुत।
जेब मे न हो पैसा बाप मजबूर
बेटा चाहे पढ़ना विदेश
घर मे नही राशन,विदेश तो दूर
पर्व त्यौहार है,तो बढ़े जेब पर भार।
जेब खर्च को रोकना है जरूरी
वरना ये सुरसा की तरह
बढ़ाये अपना मुँह।
जेब तो जेब है उसका क्या कसूर,
समझना तो हमें है हुजूर
जेब हो भरा भरा,मन रहे हरा भरा
जेब करें खाली, जरूरत मंद के पास
इसी मे समझदारी हुजूर।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
धन दौलत पास जिनके नहीं देखती उनमें कोई ऐब।
अजीब दस्तूर यहाँ का , अजीबोग़रीब रीति रिवाज
झूठी शान और खोखले विचार वालों का ये समाज।
सारी दुनिया अपनी है जब हो कोई मतलब की बात
काम हो जाने पर पल भर में याद दिला देते औक़ात ।
आँखों के सपने ऐसे टूटते,जैसे अंबर से कोई तारा टूटे
संगी साथी बस कहने की बात,मोड़ आया तो सब छूटे ।
जेबों की खनखन के अलावा कुछ और नहीं सुनाई देता है
पैसे की चमक से धुँधलाई नज़र को कुछ नहीं दिखाई देता है।
मान सम्मान कहने की बातें ,यहाँ पैसा ही ईमान सभी का
जेबें भरी हो तो जिनकी वही है दीन धर्म, भगवान सभी का ।
पैसे के पीछे -पीछे यूँ ही जाने कब तक दौड़ेता रहेगा इंसान
जाने कब इनकी मति बदलेगी कब पहचानेगा ख़ुद को नादान ।
स्वरचित(c) भार्गवी रविन्द्र ......बेंगलूर .
कमीज की,
पतलून की
कुर्ते की
पाजामे की
और न जाने कितनी
लेकिन एक जेब है
मेरे मन की जेब
इस जेब मे यादों का पिटारा है
आज भी वो जेब मे
कभी झांकती हूं
बचपन मे न जाने
क्या क्या इस जेब
में रहता था
कभी तितली तो
कभी कागज़ की
नाव,गेंद,तो कभी
हवाई जहाज ।
बाबा के साथ बगीचे में सैर करते
हुए धीरे से जमीन पर पड़े रंग बिरंगे
फूलों को इस जेब के हवाले कर देती
उस उम्र में जेब का
यही प्रयोग आता
जो भी मिलता उसमे ठूंसा जाता
उम्र बढ़ी थोड़ी आया महत्व पैसों
का समझ ,मिल
जाती गर चवन्नी
भी इसमें चेहरा खिल खिल जाता
बहुत अलग मायने
थे इस जेब के दोस्तो के लिए बहुत कुछ छुपा होता इसमें उनके लिये
उम्र बढ़ती गयी
जेब का महत्व
बदलता गया अब
वो मुझ तक सिमट
गयी और मेरी जेब हो गयी उसका रिश्ता भी पैसों से
जुड़ गया,और उन
पैसों से मैं और मेरा
अब बाबा के शब्दों
का महत्व समझ
आया कि
"जितनी चादर हो
उतने ही पैर फलाने चाहिए "
यानि"जेब"
स्वरचित-
अंजना सक्सेना
इंदौर (म.प्र.)
विषय-जेब
१
जेब है खाली
बेटी घूमे बाजार
झूठी उम्मीद
२
जेब कतरे
निगाहें बचाकर
हुनर हाथ
३
खेल खिलौने
बाजार की दमक
जेब चिढ़ाती
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
10/4/19
बुधवार
जेब
हाइकु
1
खाली है जेब
नेता करे फरेब
लुटे जनता
2
जेब गरीब
सोता हुआ नसीब
रूठते ईश
3
दिल है जेब
धड़कन रूपया
खरचा सांसे
4
तन है जेब
साँसे होती रूपया
पूंजी अध्यात्म
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
जेब निराला
रहे भरा या खाली
जादू पिटारा
ईश्वर जेब
आशीर्वाद से भरा
रहता सदा
बादल जेब
भर के चले जल
सूखे की ओर
जेब में पैसा
रिश्तेदार पुछेंगें
हाल है कैसा
पुण्य की जेब
करके सद्कर्म
भरते संत
मुकेश भद्रावले
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