ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें |
ब्लॉग संख्या :-351नमन मंच भावों के मोती
स्वतंत्र लेखन
कविता
07 अप्रैल 2019,रविवार
नूतन वर्ष चैत्र माह आया
नव खुशियां संग यह लाया
प्रकृति हँसती और मुस्काती
ऋतु वसंत अति मन भाया
देवालय में पूजा अर्चन
मधुर नाद हो घण्टी का
व्रत उपवास करते हैं सब
नया स्वरूप माँ चंडी का
श्री राम अवधपति अवतरित
रामनवमी के दिन आएंगे
दानव दूर अति दूर रहेंगे
राम राज्य अब पुनः लाएंगे
देशद्रोही भृष्टाचारी का
जीवन अति दुर्लभ होगा
मातृभूमि सच्चे सपूत का
अब आदर सम्मान होगा
धर्म पताका अब फहरेगी
राम राज्य युग आएगा
सारे जंहा से प्यारा भारत
अब जग अति लुभाएगा
कीर्तिमान स्थापित होगा
विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में
माँ भारती के अंचल पर
फूल खिलेंगे शुभ वेणी में।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम्
कोटा,राजस्थान।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
*आवाज*
आज फिरसे *तुम्हारी यादों* को
*संभालने* आया हूँ,
*फरियाद* खुदा से करने
आया हु,
करे थे जो *जतन* तुम्हारे लिए,
उनका *हिसाब* खुद खुदा से
*मांगने* आया हु,
मेरे *जज्बातों* का खाता आज
*देखने* आया हूँ,
खुदा के पास अपने *इश्क़ का अंधेरा* ,
आज फिर *रोशन* करने आया हूँ,
अपनी *अधुरी आरजू* को आज ,
*मुकम्मल* करने आया हूँ ,
अपनी *अनसुनी* कहानी ,
को मैं आज फिर *सुनाने* आया हूँ,
अपनी *मन्नत का धागा* आज
फिर *संभालने* आया हु,
अपनी *ख्वाहिश* आज फिरसे
बताने आया हूँ,
सुनो न अपने *दिल की आवाज,*
आज *साझा* करने आया हूँ।
*कामेश की कलम से*
*7 अप्रैल 2019*
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच-भावों के मोती
दिनांक-07.04.2019
शीर्षक- स्वतंत्र लेखन
दिन -रविवार
विषय-प्रणय(श्रृंगार रस)
=====================
मैं अकेला चल रहा हूँ अहर्निश चलता रहूँगा ।
कष्ट कितने ही मिलें यदि लक्ष्य को गतिमान दूँगा ।।
घिर गया भू पर कुहासा सूझता है पथ न कोई ।
देखकर अनिमेष विह्वल हाल मेरा सृष्टि रोई ।
दिन सुहाने रात मधुरिम क्या प्रणय पण हो सकेंगे ।
प्रेम आशासिक्त उर के अंकुरण कण हो सकेंगे ।
है नियति का खेल दुःखमय किन्तु आशापूर्ण हूँगा ।।01।।
मौन होकर क्यूँ दिशाएँ हर रहीं विश्रान्ति मन कीं।
नित्य बढ़ती जा रहीं हैं दूरियाँ क्षिति से गगन कीं।
ग्रहण कर बैसाखियाँ पुनि चल पड़ी है पंगु इच्छा ।
सृष्टि के आदिम प्रणय की आज होनी है परीक्षा ।
ज्ञान उत्प्रेरण सहारे विदित उत्तम अंक लूँगा ।।02।।
प्रेम की संवेदनाएं उठ रहीं अंतःकरण में ।
भाव तुझ से बँध चुका है दृष्टि के पहले चरण में ।
गर्व मत निज पर करो तुम रूप तेरा है न मेरा ।
काल ने अभिराम स्मित पुष्प डाली पर उधेरा ।
" अ़क्स" यह प्राकृत नियम है बात इतनी ही करूँगा ।।03।।
======================
राम सेवक दौनेरिया "अ़क्स "
बाह -आगरा (उ०प्र० )
स्वरचित
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच को
दिन :- रविवार
दिनांक :- 07/04/2019
विषय :- स्वतंत्र लेखन
## सुरक्षा ##
सुरक्षा साधन ही है कवच हमारा..
नियम पालन करना ध्येय हमारा...
सेफ्टी शूज,गोगल व नोज़ मास्क...
हेलमेट पहनना है कर्तव्य हमारा...
2मीटर से ऊँचाई पर जब हो कार्य..
सेफ्टी बेल्ट हो तब रक्षक हमारा..
ज्यादा जल्दबाजी व उतावलापन..
ये सब करते सदा अहित हमारा..
काम के समय जब हो ध्यान कहीं..
तब होता है सदा नुकसान हमारा..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सुप्रभात"भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन,🌹
07//04/2019
स्वतंत्र लेखन
🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗
शाम गहराती रही निशा दहलीज पे,
उनींदी पलकों से यादों को निहारा न गया।
खोल दो राज जो दिल में है,रखे कब तलक
नाम तेरा पर जानेजा पुकारा न गया।
टूटकर जो दिल ये बिखरा जानेमन
नाम दूजा फिर से कभी सँवारा न गया।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
🌹नमन भावों के मोती🌹
7 अप्रैल19 रविवार _स्वतंत्र सृजन◆गजल
~~~
आजादी महलों की दीवानी क्यों है
दीवारों की आपस में मनमानी क्यों है।
बदहाली की सूरत पे चमकते है नारे
जमीं का मसला आसमानी क्यों है।
पिछड़े, तो पिछड़े ये तगड़ों का भी देश
शर्मिंदा कोई नहीं मरता, हैरानी क्यों है।
गुल होने से पहले ही नोंचे जाते हो बदन
फिजाओं में आज जहर खुरानी क्यों है।
आलीशान रुतबों को नहीं दीखता
मगरूर लोगों में ये शैतानी क्यों है।
सूखता है समुन्दर भी रोकर आखों से
दिखाते सब्जबाग रेगिस्तानी क्यों है।
तुष्टिकरण से होते सत्ता के हरण
जनता में इतनी नादानी क्यों है।
आजादी तुझे कितनी महबूबा लिखूं
पास सबके सितम की कहानी क्यों है
#राय दशकों से लानत ओढ़े सोता देश
ये मर्ज आखिर कार हिंदुस्तानी क्यों है।
पी राय राठी
भीलवाड़ा, राज
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
ग़ज़ल
यादों के गलियारे में तुम आ जाना
बादल नही तो बदली बन छा जाना ।।
तुम अगर हो वीणा तो मैं सरगम
राग कोई नया आकर सुना जाना ।।
दिल का दयार कब से है सूना सूना
सूनापन तुम आकर दूर भगा जाना ।।
अश्कों की माला बनायी है हमने
अपना भी कुछ हाल हमें बता जाना ।।
मेरी कलम की कारीगरी को फिर से
आकर नया आयाम तुम दिखा जाना ।।
बहारें तो तुमसे ही हैं इस दिल में
कुछ और चमन आके मँहका जाना ।।
सांसों की हर लय पुकारे है तुम्हे
मेरा नाम लेकर मुझे बुला जाना ।।
क्या कहूँ आखिर मैं तुमको 'शिवम'
कोई नाम आकर तुम ही सुझा जाना ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/04/2019
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
"जन मानस की पहचान"
धार शीतल बहती रहे
पहुँचाती रहे सुकून
पथरीले राहों को तोड़कर
पूरा करे जुनून।
फसलों का मसीहा
सरिता तेरा नीर
देकर अनमोल उपहार तू
हरती सबकी पीर।
फैली है हरियाली तुझसे
खिले अनेकों फूल
अमृत-सा नीर तेरा
तू ही धरा का मूल।
बहती रहे तू निरन्तर
होता रहे जन-कल्याण
है प्राण वायु का संचार तू
है जन-मानस की पहचान।
रचनाकार-
राकेशकुमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
1भा7/4/2019(रविवार)बिषय#अध्यात्मः#
विधाःःःकाव्यःःः
यहाँ शुभ शुभ ही कर दे माता
भक्ति भाव से भजन करें हम।
सुखसमृद्धि शांति आऐ घर में,
नित वंदन तेरा स्वजन करें हम।
शुभ्रज्योति प्रज्जवांचल कर दें।
मन निर्मल ये हृदयांचल कर दे।
सहयोगी हम परस्पर बन पाऐं,
मां खुशियों से हर आंचल भर दें।
मधु मुस्कानों से मुस्कित हों सब।
खिलें फूल से माँ कुसुमित हों सब।
हृदय सुमन सबजन के खिल जाऐं,
नहीं दुखी कोई प्रफुल्लित हों सब।
यहाँ जातपांत का बिष नहीं घोलें।
प्रेम प्रीत संग सब आपस में बोलें।
न हो कहीं द्वेषपूर्ण वातावरण माते,
केवल मधुरंग मधुरिमा में ही डोलें।
स्वरचितः ः
इंजी .शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
1भा #अध्यात्म#
7/4/2019(रविवार)
काव्यः ः
नमन 'भावों के मोती'
दिनाँक: 07.04.2019
विषय: स्वतंत्र लेखन
माँ दुर्गा आओ ना
मेरे अंधकार भरे जीवन में.।
ज्योतिर्मयी ज्योत जलाओ ना।।
कपटी, अवगुणी मन मेरे में।
सद्गुण का दीप जलाओ ना।।
तेरे अबोध, अज्ञानी बालक को।
तुम ज्ञान का पाठ पढ़ाओ ना।।
तेरे दीदार को तरस रहे नैन।
नैनो के भाग जगाओ ना।।
अनंत रूप है तेरे माँ दुर्गा।
किसी एक रूप में आओ ना।।
अब करूणा रस बहाओ माँ।
आओ ना माँ, अब आओ ना।
ज्योतिर्मयी ज्योत जलाओ ना
सद्गुण का दीप जलाओ ना
तुम ज्ञान का पाठ पढ़ाओ ना
नैनो के भाग जगाओ ना
किसी एक रूप में आओ ना
आओ ना माँ, अब आओ ना।।
-:स्वरचित:-
सुखचैन मेहरा
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन 'भावों के मोती'
दिनाँक: 07.04.2019
विषय: स्वतंत्र लेखन।
प्यार का इजहार
चलो आज करता हूँ प्यार का इजहार
हा, मैंने बहुत कर लिया तेरा इंतजार।
रुको थोड़ी देर, सांसे थम सी गयी है
प्रिय, दिल धड़क रहा है मेरा बार-बार।।
लो ये लाल गुलाब जो निशानी है प्यार की
आज जाकर खत्म हुई है घड़ी इंतजार की।
थोड़ा और रुको, सांसो को सहज होने दो
हलचल है अन्तर्मन में पहले पहले प्यार की।।
हा, बहुत दिनों से कुछ कहना चाह रहा था
एक झिझक के चलते कह नही पा रहा था।
आज अवसर पाकर कह ही देता हूँ मैं
अब तक तो दिल डर की सह पा रहा था।।
(मैं अपने घुटनों पर झुक गया हूँ)
ओ, सनम मैं तुम से बहुत प्यार करता हूँ
हा बस रात दिन बस तुम पर ही मरता हूँ।
मना मत करना मेरे हमदम, मेरे हमराही
मौत से ज्यादा तो तुझे खो देने से डरता हूँ।।
तुझे हर खुशी दूँ, तुम दिललगी हो मेरी
मैं खुदा से करूँ वो बन्दगी हो मेरी।
कभी छोड़कर मत जाना मेरे हमदम
सच कहता हूँ मैं, तुम जिंदगी हो मेरी।।
सुखचैन मेहरा
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
7-4-2019
🌸🌸🌸
स्वतन्त्र विषय लेखन
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
नमन मन्च।
नमस्कार गुरुजनों, मित्रों।
💐💐🌹🌹💐💐
आशियाँ
🌿🌿🌿
एक,एक तिनका जोड़के, बनाया जो आशियाँ,
उसमें आज रहने बाला कोई नहीं।
पर होते हीं उड़ गये बच्चे,
अपना यहाँ पर कोई नहीं।
बड़े प्यार से बनाया था आशियाँ,
हाथों से अपने सजाया था आशियाँ।
उड़ नहीं सकते अब,
दाना लायें कैसे।
भूखे पेट सोने को,
मजबूर हैं ऐसे।
संगी,साथी भी आते नहीं इधर,
दुःख,सुख बाँटने बाला कोई नहीं।
एक,एक..............
जीवन यही है, जिये जा रहे हैं,
दर्दे जिगर को सिये जा रहे हैं।
अपना तो अब है रखबाला राम,
बाँकी दुनियाँ से मुझे नहीं कुछ काम।
विपदा सुनाऊँ किसको अब अपनी,
कहने,सुनने बाला कोई नहीं।
एक,एक..........
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती
दिनाँक - 7/4/2019
आज का कार्य - स्वतंत्र लेखन
विधा गजल
2122 2122
दर्द में भी मुस्कराओ,
राज दिल का ना बताओ,
निगल जाओ तुम हलाहल
मुश्किलों में गुनगुनाओ,
जिन्दगी है एक सवाल सी
हल किसी से ना कराओ,
फंस जाओ बीच भंवर
हौसलों से तीर पाओ,
प्यार सच्चा अब न मिलता
इश्क में आँसू मत बहाओ,
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
दिनांक .. 07/04/2019
विषय .. स्वतन्त्र
विधा .. लघु कविता
***********************
🍁
मनभाव बता दो तुम मुझको,
क्या तेरा मेरे जैसा है।
क्या नींद नही आती तुमको,
क्या हाल हमारे जैसा है।
🍁
क्या तुमको भी मेरी ही तरह,
कुछ-कुछ बेचैनी रहती है।
मन के मंदिर अरू हृदय पटल पे,
मेरे यादें रहती है।
🍁
क्या पलक बन्द करते ही तुमको,
शेर नजर आता है।
क्या मन रिद्धम सा भावों को,
झकझोर के रह जाता है।
🍁
कुछ भाव यदि बतला दो तुम,
तो मन के भावों को समझे।
यह बात अगर इक तरफा है,
तो वैध से मिल कर कह दे ।
🍁
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच को
विषय : मेरी कलम मेरे भाव
दिनांक: 07/04/2019
विधा : कविता
नमन सभी कवि जनों/ रचनाकारों को ।यह बहुत पहले लिखी कविता है तकरीबन साल 1996-97 की जब हम भारतीय फौज में सेवारत थे।इसमें खामियां होंगी। क्षमा चाहूँगा।
पागल कौन
कभी हंसना उसका अपने आप
तो कभी अपने आप ही रोना।
जरूरी था देखकर अजीब हरकतें,
लोगों का इक्टठा होना।
लगता यूं देखकर उसको
वो थी कोइ वक्त की मारी।
किसी को दया न आई बस,
तमाशा देखती रही भीड सारी।
कर रहे थे जो उस से छेडखानी,
सच में तारिफ के काबिल थे।
क्योंकि उन लोगों में ज्यादातर
पढे लिखे लोग शामिल थे।
कोई उसका आंचल खींचे,
कोई उसको पत्थर मारे।
वो गालीयां देती गुस्से में आकर,
खुशी से खिल खिलाते सारे।
दो घडी हंसने की खातिर
लोग रहे थे उससे खेल।
कोई न समझा पीड़ उसकी
जो कर्मों की मार रही थी झेल।
देखकर ऐसा भयानक दृश्य
यूं लगा मानवता रो रही हो।
मगर लोग ऐसे उत्सुक थे,
जैसे कोई प्रर्दशनी हो रही हो।
अचानक वहां खडे एक बच्चे ने,
पत्थर से उस पर वार किया।
गुस्से में आकर उस अबला ने
एक थप्पड उसको मार दिया।
इतने में ही वहां खडे लोग,
पीटने लगे उसे इस बात से।
दर्द से वो चिल्लाने लगी,
होती लात घूसों की बरसात से।
उसकी दर्द भरी चीखों से
किसी का भी दिल नही भरा।
खींच रहे थे उसको जैसे
कसाई खींचते हैं जानवर मरा।
इन्सान के दर्द पर इन्सान का हंसना,
बात बडी निराली थी।
गौर से देखो तो मानवता के
नाम पर एक गाली थी।
जुल्म कर किसी अबला पे
कैसे खुश रहोगे तुम।
अब खुद ही बताओ सोचकर यारो,
इन सब में किस को पागल कहोगे तुम।
किस को पागल कहोगे तुम।
किस को पागल कहोगे तुम।
जय हिन्द
स्वरचित : राम किशोर, पंजाब ।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सादर नमन
07-04-2019
पतझड़
ठगा ठिगना सा ठूंठ पेड़
ठिठक खड़ा कोई बौर नहीं
है मूक,मौन सा गौण खड़ा
माली भी तो करता गौर नहीं
कुंज-गूंज कलरव सब छूटे
ठिठक-ठिठोली का दौर नहीं
सुखी टहनी डाली भी टूटे
हरियाली का कोई ठौर नहीं
हुये पर्णपतन कह जीर्ण-शीर्ण
छाती को छलनी किए विदीर्ण
अवशेष चिन्ह सा उजड़ा नीड़
विहग विलगाव विभूषित पीर
चुपके से दस्तक है पतझड़ का
आया है पर कोई शोर नहीं
मैं छाया तुझे क्या दे सकता
जब पत्तियाँ ही घनघोर नहीं
ओ दूर देश के पथिक श्रांत
मत ढूंढ यहाँ अब तू एकांत
जा चलता जा अमराई में
मैं खुद ही खड़ा तनहाई में
हर बात-बेबात एक काश लिए
हृदय में मोहक आस लिए
काश सुधारस की हो बरसात
खिले नवकोंपल हरित हो पात
आए और गए कितने वसंत
इस पतझड़ का कहाँ है अंत ?
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
थोड़ा सा इश्क़....
**************
थोड़ी सी करारी,
थोड़ी बेकरारी...
थोड़ी जफायें ...साथ लें...
एक धागा ...मन्नतों का..
प्यार वाली ...जन्नतों का..
जिंदगी से मैं बांध लूँ..
जा न पाये फिर .....जिंदगी...
हाथ छुड़ा कर.... कहीं......
भोर की उमंगों में..
मन की तरंगों में...
तेरी ही लहर आये...
सपनो की गांवों में...
तारों वाली छावों में...
तुही तो नजर आये.....
देखूँ मैं जिधर,
आती है नजर....
तेरी ही.. तेरी रोशनी....
तू जो न मिले तो लगे....
जिंदगी में कितनी कमी....
जा न पाये फिर .....जिंदगी...
हाथ छुड़ा कर.... कहीं......
पेड़ों के साखों से...गिरते जो पत्ते हैं,
फिर उनसे जुड़ते कहाँ...
वक़्त जो चले...आगे-आगे,
फिर पीछे मुड़ते कहाँ....
जैसे टूटा तारा ....आसमां का..
होता है गिर के फना....
वैसी ही मेरी....जिंदगी को
मिलता ही नही है मकां....
तुझसे निकलकर...तुझी पर
जिंदगी है मेरी थमी...
तेरे ही लिये ...इन आंखों में
अब तक बनी है नमी.....
जा न पाये फिर .....जिंदगी...
हाथ छुड़ा कर.... कहीं......
देखूँ जो तुझे....ख्वाब में...
आता है ....मुझको सुकूँ...
सँग तेरे ये...जिंदगी...
बिना तेरे मैं न रहूँ...
तेरे और...मेरे दरमियाँ...
थोड़े से...जो हैं फासले...
फसलें ....जुदाई वाली ये...
मिलके चलों काट लें....
मेरा -तेरा...हो आसमां..
तेरी-मेरी हो जमी.....
जा न पाये फिर .....जिंदगी...
हाथ छुड़ा कर.... कहीं......
© राकेश पाण्डेय
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सादर नमन 'भावों के मोती'
आज 'स्वतन्त्र लेखन'में दो मुक्तक प्रेषित है,
आशा है ,पटल स्वीकार करेगा..🙏
एक
चाहे भी अगर दरिया , समंदर हो नही सकता ।
लाख कर ले जतन शीशा,तो पत्थर हो नही सकता।।
रखूँ तहज़ीब फूलों सी , ये मेरी परवरिश में है,
मेरी तासीर है ऐसी , मैं खंज़र हो नही सकता ।
दो
फिर से पतझड़ जिद पे अपनी अड़ रहा है ।
पत्तियों का रंग पीला पड़ रहा है ।।
तेरे हुश्न पर कुछ रोटियों की रंगत है ,
इसलिए 'शैलेन्द्र' क़सीदे पढ़ रहा है ।
#स्वरचित ...🖋️शैलेन्द्र श्रीवास्तव
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच:भावों के मोती
दिनांक: ७/४/२०१९
विषय- स्वतंत्र लेखन
विधा- गजल
212,212 212
काफ़िया-आने
रदीफ़- लगे आजकल
वो हँसाने लगे आजकल,
मन में भाने लगे आजकल।
दिल चुरा के सनम लो मेरा,
मुस्कुराने लगे आजकल।
लब पे देकर हँसी हमको तो,
वो सताने लगे आजकल।
बज़्म में नज़्म सुनकर मेरी
गुनगुनाने लगे आज़कल।
इश्क का दौर ऐसा चला,
पास आने लगे आजकल।
मेरे हमदर्द बनकर सनम,
दिल समाने लगे आजकल।
"वीणा"के साथ साजन जी अब,
घर बसाने लगे आजकल।
स्वरचित
©सारिका विजयवर्गीय "वीणा"
नागपुर (महाराष्ट्र)
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
आज का विषय स्वतंत्र है।
गजल पेश है साथियों, नमस्कार,
गजल,
झूठ को सीने से हम लगा बैठे है,
सच के जलते दीप हम बुझा बैठे है।।1।।
भू पर अमीर गरीब जातियां दो ही है,
फासले क्यों दिलों मेंहम बना बैठै है,।।2।।
मानवता की बगिया में तुम देखो,
दानव लीला नेता चला बैठे है।।3।।
हिंसा घृणा के बीज हम ही बोते रहे है,
सत्य निष्ठा प्रेम को हम जला बैठै है।।4।।
जनसेवक कहां है,झूठों वादों से,
देश के नेता हमेँ बहला बैठे है।
चुनाव के मौसम पर गजल साथियों को नजराना के तौर पर पेश है।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती
दिनांक 07/04/2019
वार - रविवार
विषय - स्वतंत्र
विधा - गजल
बेरुखी देख तेरी , नैना हुए सजल ।
संभलता नहीं है दिल, बोझिल हुए ये पल।
तरुणाई रुत पे छाई, मौसम भी हंसी है,
तेरी याद में हरजाई, मन हो रहा विकल।
सपने सुहाने सजते, है फिजा भी गुनगुनाता,
फांस आलिंगन के, बंधता मन चपल।
हृदय कंवल खिल रहा है, शबाब चाँदनी में,
ख्वाहिशों का पल - पल दरिया रहा मचल।
ठहरे हुए हैं लम्हें, साँसें ठहर गई हैं,
होती बेदम है 'उषा' अब साँसें रही निकल।
डॉ उषा किरण
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
शेर की कविताएं....
07/04/2019
*******************
🍁
खुलेगा राज का हर इक पन्ना, एक ना इक दिन।
बजा लो चैन की बँसी फटेगा, ना इक दिन।
🍁
दबाओगे कहाँ तक तुम मेरी, आवाज को हरदम।
कभी तो वक्त आयेगा दिखेगा ,जुर्म सब इक दिन।
🍁
कभी सागर के लहरो को दबाया है भला कोई।
हवाये तेज हो या मंद रोका है कहा कोई।
🍁
जहाँ इन्साफ होता है वहाँ ना दर्द होता है।
मगर जब दर्द होता है वहाँ इन्साफ ना कोई।
🍁
दिखेगा जर्म तेरा वक्त आयेगा मेरा इक दिन।
मिलेगा शेर को इन्साफ, आयेगा वो दिन इक दिन।
🍁
स्वरचित मौलिक .. शेर सिंह सर्राफ
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच को
दिन :- रविवार
द्वितीय प्रस्तुति
सोचता हूँ कभी..
गुमनाम ही रह जाऊँ..
पर लिखूँ सत्य सदा..
भले बदनाम ही रह जाऊँ..
करे वार सदा तलवार सा..
शब्दों को समरभूमि सा आधार दूँ..
आमजन की आवाज बने सदा..
ऐसा उनको अधिकार दूँ..
अंधियारों का दीपक बने..
ऐसी दहकती ज्वाल दूँ..
ढहा दे हर अहंकार मन के..
उग्र जलधि सम ज्वार दूँ..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
07/04/19
जयति जगतजननी
**
माँ दुर्गा के नवरूप है
इस जीवन का सार
कल्याणकारिणी देवी तुम
करो जन जन का उद्धार
शैलपुत्री माता तुम
चेतना का संचार करो
ब्रहमचारिणी माता तुम
अनंत दिव्यता से मन भरो
चन्द्रघण्टा मन की अभिव्यक्ति
इच्छाओं को एकाग्र करो
कूष्मांडा प्राणशक्ति
ऊर्जा का भंडार भरो
स्कंदमाता ज्ञानदेवी
कर्मपथ पर ले चलो
कात्यायनी माता तुम
क्रोध का संहार करो
कालरात्रि माता तुम
जीवन में शक्ति भरो
महागौरी माँ
सौंदर्य से दैदीप्यमान करो
सिद्धिदात्री माता तुम
जीवन मे पूर्णता प्रदान करो
नवदुर्गे माँ जन जन के
जीवन को आलोकित करो
आत्मसात कर सके
ये अलौकिक रूप तुम्हारे
ऐसी कृपा हम पर करो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमम
"भावों के मोती"
आज दिनांक-
6/4/2019
विषय-अहसास
जुगनू जुगनू जीवन,
तितली तितली तन- मन
झंकृत होते वीणा के तार
कलकल करती सरिता प्रवाह ,
मन हो उठता भाव विभोर
जब तुम देते दस्तक
दिल के द्वार
मन हो उठता प्रफुल्लित
कोयल जब लाती तेरा प्रेम संदेश
जगमग जीवन हो जाता
तेरे प्रेम दीपक से
मन हो उठता मयूर
तेरे भेजे गीतों से
इन सब मे रच बस कर प्रीतम
तुम भी आ जाओ मेरे मन के देश
कहूँ अपने ह्रदय की विरह व्यथा ,
जिसे सुन
तुम भी कुछ कहो अपनी अश्रु धारा से
मैं भी अनुरुतरीत करूँ तुम्हें
अपनी बहती अश्रु धारा से
मेरी अश्रुधारा से।
अंजना सक्सेना
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
मंच को नमन🙏🙏
आदरणीय साहित्य प्रेमियों को नमन🙏🌹🌹🌹🙏
विषय-स्वतंत्र लेखन(७-४-१९)
होकर लहूलुहान गिरा होगा फ़लक से
तारा जो शगुन किसी को अपशगुन लगे है ।
टकराकर लौटी जन्नत से माँ बाप की दुआ
शाम दुल्हन को जो आशिकाना लगे है ।
फ़िर उभरा है परीशां ख़्वाब आज करीने से
भुलाने में जिसको ज़माना लगे है ।
उङा तो होगा गुबार मुहब्बत का उनके दिल से
कि मौसम भी आज शायराना लगे है ।
जो नजरों ने की आज उनसे गुफ्तगूं "सीमा"
क्यूँ ज़माना कहे हर्ज़ाना लगे है ।
**** स्वरचित****🌹🌹
"सीमा आचार्य (म.प्र🌹🌹
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
दिनांक /७/४/२०१९
"स्वतंत्र-लेखन
"संस्मरण"विडंबना"
कुछ दिन पहले मैं अपनी सहेली से मिलने उसके घर गई,वह बहुत दुःखी और परेशान लग रही थी, जब मैंने उससे कारण जानना चाहा तो वह बहुत ही मायूसी से बोली"मैं १५दिन के लिए अपने मायके गई थी,जहाँ मुझे अपनी भाभी की कमी बहुत ही खल गई"
परन्तु मैंने उसे टोकते हुये कहा"लेकिन जहाँ तक मुझे याद है ,तुम्हारा कोई भाई है ही नही, सिर्फ तीन बहने है,फिर भाभी की कमी?मुझे कुछ समझ नही आया"तभी वह रोनी सूरत बनाते हुये बोली"बचपन से लेकर आज तक हम तीनो बहनों को मम्मी पापा ने इतना प्यार दिया कि भाई की कमी कभी महसुस ही नही हुई,परन्तु आज मेरी शादी के तीस साल बाद,भाभी की कमी हमें बहुत खल गई।"
जब मैंने पूरी बात जाननी चाही तो उसने बताया कि"जबतक मम्मी पापा स्वस्थ थे:हर छुट्टियों में हम बहनें अपने पूरे कुनबे के साथ छुट्टियाँ मनाने मैके जाते रहे,और हम सब बहुत मस्ती करते, परन्तु अब मम्मी का उम्र हो चला है और वे हमें रसोई में बिल्कुल सहयोग नही करती;वैसे मे हम सभी बहनों को ही पूरे परिवार के लिए दिनभर खाना बनाना पड़ता है, यहां तक की सभी दामाद और बच्चों की फरमाइश हमें ही पूरी करनी पड़ती है, रात होते होते हम सभी बहने इतने थक जाते थे कि मैके जाने का सारा मजा ही किरकिरा हो जाता,आखिर मैके जाकर भी हमी रसोई संभाले,वैसे मे मैके जाने का आखिर फायदा ही क्या है?अब तुम्हीं बताओ भाभी की कमी हमें क्यों नही खलेगी?हमारी एक भी भाभी रहती तो हम सब बहनें वहां जाकर खूब मस्ती करते और धमाल मचाते, और भाभी अपनी गृहस्थी मे खटती रहती।"
मैं अपनी सहेली की मुख से ऐसी बाते सुनकर यह सोचने पर मजबूर हो गई"वाह रे राम जी, तुम्हारी दुनिया अद्भुत है जिन बेटियों को उनकी मम्मी पापा ने कभी भाई की कमी नही महसुस होने दी,आज वही बेटियों अपनी मम्मी पापा के वृद्धावस्था में उनका सही मायने में सहारा न बनकर एक भाभी ना होने का रोना रो रही है।क्या शादी के बाद मैका सिर्फ आरामगाह ही बनकर रहना चाहिए, क्या हमें मैके मे अपनी भाभी या माँ की मदद नही करनी चाहिए, मैं अपनी सहेली को उसकी छोटी सोच के साथ छोड़ कर तुंरत अपने घर आ गई क्योंकि हमारे संस्कार तो मैके क्या, किसी भी रिश्तेदार के घर जाकर मदद करने की है।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
स्वतंत्र लेखन
०७/०४/२०१९
" इल्जाम हमीं पर डाल गई"
दीवाना हमको कर के देखो।
वह इल्जाम हमीं पर डाल गई।।
हर काम तजा, विश्राम तजा ,
घर बार तजा ,.परिवार तजा।
सारी दुनिया को तज कर के ,
हर वक्त उसी का नाम धरा।
उसकी चंचल अनुपम छवि ,
हर पल नैनों में मेरे रहती है।
उसको देखूं , उसमें डूबूं ,
दिल की धड़कन यही कहती है।
हम जितना दूर गये उससे ,
उतना ज्यादा वह पास आई।
दीवाना हमको कर के देखो,
वह इल्जाम हमीं पर डाल गई।
उसकी मुस्कान निराली है,
जुल्फें हर पल लहराती हैं।
दे कर के अपनी एक झलक,
दिल सम्मोहित कर जाती है।
स्मृतियाँ उसकी जो संचित हैं,
उर को व्याकुल कर जाती हैं।
सब कुछ विस्मृत हो जाता है,
जब याद हमें तड़पाती है।
अब दोष न देना तुम हमको,
यदि आपा अपना हम खो बैठें।
दीवाना हमको कर के देखो,
वह इल्जाम हमीं पर डाल गई।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
जयपुर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन"भावो के मोती"
07/04/2019
###############
2122 2122 2122 212
काफिया ----अर की बंदिश
रदिफ ------हो गया।
(दो शेर पेशे खिदमत है )
1
जब मिला यारा तु दिल मेरा दिवाना हो गया
अब जमाने में मुकद्दर का सिकंदर हो गया।
2
शहर में आंधी चली आई न जाने किसलिए
दिल ये अब मेरा नहीं, दिल बस कलंदर
हो गया।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
भावों के मोती
विषय-स्वतंत्र लेखन
वार-रविवार
रीत जहाँ में देखी हमने।
उजाड़ना है सबकी प्रीत।।
उजाड़ करके आशियाना।
गाते हैं खुशियों के गीत।।
रीत कमल की न्यारी है।
किचड़ से रखता है प्रीत।।
हरी चरणों में अर्पित हो।
भक्त संग गाता है गीत।
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी दाहोद
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
भावों के मोती दिनांक 7/4/19
स्वतंत्र लेखन - गजल विधा
बेवफा जिन्दगी
सफर वही
रहते हैं
बदल जाते हैं
मुसाफिर
सड़क के
दोराहे वही
रहते हैं सड़क पर
भटक जाता है आदमी
यहाँ आ कर
ताउम्र प्यार
करता है इन्सान
अपने अपनों से
एक बेवफ़ाई
तोड़ देती है रिश्ते को
कम हो जातीं हैं
तड़प
जब पेट भर जाता है
दौलत की भूख
सताती रहती है
जिन्दगी भर
इन्सान को
कोई पेट भरा होने पर भी
रहता है भूखा ताउम्र
कोई भूखा रह कर भी
बताता नहीं वह
भूखा है
बड़ी बेरहम है
ये जिन्दगी मेरे दोस्त
करो कितनी भी बफाई
आखिर बेवफा हो ही
जाती है ये जिन्दगी
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती ,
स्वतंत्र सृजन ,
रविवार ,
7, 4 ,2019 ,
बेवफा होता है ये वक्त जितना ,
कौन होगा इस जग में इतना |
नहीं राग कोई इसकी धड़कनों में ,
सीखा नहीं है कभी इसने झुकना |
ये सिरफिरा लगता है पंछी कोई ,
सीखी है इसने तो बस साफगोई |
सिसकता नहीं है ये कभी दर्द में ,
तबियत मुसाफिरों के जैसी है पाई |
वैरागियों सा है इसका जीवन ,
तड़पता नहीं है कभी इसका मन |
ठंड़क तो बेहिसाब है इसके तन में ,
असर करता ही नहीं है कोई रुदन |
माया की नगरी का लगता है वासी ,
कौन जाने कब ये बदल ले गुलाटी |
हर किसी को रखता है ये जेब में ,
कौन पढा सकता है इसको पाटी |
ये रोते को हसाकर हसते को रुला दे ,
देदे रंक को महल राजा को भटका दे |
सब आशाओं को मिटा डाले ये पल में ,
निराशाओं के भँवर में जब चाहे गिरा दे |
चिरंजीवी रहा है शायद ये इसलिए ,
सुख दुख का महत्व नहीं इसके लिए |
खड़ा होता नहीं है ये किसी के पक्ष में ,
जीता रहा प्रभु की आज्ञा पालन के लिए |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच को
विषय: स्वतंत्र लेखन
द्वितीय रचना
दिनांक 07/04/2019
वृंदावन वासी बांके बिहारी लाल श्री कृष्ण जी को समर्पित रचना
पंख लगा मैं, पंछी होता
काश,
पंख लगा मैं, पंछी होता।
यूं मन ही मन मैं,
कभी न रोता।
पीड़ जो उठती,
प्रभू मिलन की।
राह न देखूं
किसी सजन की।
उड़ जाता मैं
दुर गगन में,
ले दर्शन की
अभिलाषा
मन में।
पल पल करता
याद सांवरे।
उड़ता जाता,
मैं तो भांवरे।
हरि दर्शन को,
प्यासे नैना।
राह रोक सके
न रैना।
अखीआं तरसे
व्याकुल मन हो,
उड़ता जांउ ना
कोई बंधन हो।
कोई दुख न
उसे सुनाउं।
बस नैनन की
प्यास बुझाउं।
असुओं से मैं
प्रभू पग धोता।
काश, पंख लगा मैं, पंछी होता।
काश, पंख लगा मैं, पंछी होता।
ॐ।जय श्री राम ।ॐ
स्वरचित:
दास : राम किशोर, पंजाब ।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
🙏🌹जय माँ शारदा..
.....नमन भावों के मोती
दि. - 07.04.19
स्वतंत्र सृजन
**************************************
हुनर अपना जमाने को दिखाने हम चले आये
दिलों में आपके पाने ठिकाना हम चले आये
तमन्ना कुछ नहीं ज्यादा यही छोटी सी हसरत है
बसाने चाहतों का आशियाना हम चले आये
जो भटके हैं सफ़र में जिंदगी के बात उनकी क्या
खुद अपने आपको समझाने समझने हम चले आये
हकीकत को बयाँ करती जुबाँ सबको नहीं भाती
जमाने के मुतालिक सीखने को हम चले आये
दिखावे की हसीं महफिल में जब खुद को जुदा पाया
*सरस* तन्हाई में महफिल सजाने हम चले आये
================================
#स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी जि.सिवनी
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती
7.4.2019 रविवार
प्रकृति तेरे रूप अनेक
रंगता ज़मी का कैनवस
आनंदित जश्न बसंत का
सन्नाटे में बुनी धुंध कहर
कभी झड़ते पत्तों का दर्द
कौन रंगरेज
कितनी अल्पनाएं रचता
कभी सूरज बुझाता
कभी चांद को जगाता
सागर में लहरे उठाता
. कौन कलाकार
कितने ही गीत लिखता
पंछियों का कलरव रचता
ज्वालामुखी का गर्जन
कभी नदी झरनों के गीत रचता
कौन संगीतकार
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
7/4/19
भावों के मोती
विषय-स्वतंत्र लेखन
👀❄❄❄👀
कुछ कहती हैं यह आँखें
भेद खोलती हैं यह आँखें
कभी हँसती कभी रोती
मन की बात बताती आँखें
आँखों आँखों में ही कितने
प्रीत के गीत सुनाती आँखें
कभी हँसती और मुस्काती
दिल का हाल बताती आँखें
मन का दर्पण बनती आँखें
चंचल-सी यह सुंदर आँखें
काजल-सी काली कजरारी
मन को बड़ा लुभाती आँखें
विरहा का दर्द छलकाती
दिल के घाव छुपाती आँखें
प्रिय से कर दिल की बातें
सजनी की शरमाती आँखें
ममता के रस में डूबी
आशीष का रस बरसाती
कभी पैनी नजर बनकर
दिल में गहरे उतर जाती आँँखें
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित✍
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
शुभ संध्या
शीर्षक- ''मानवीय विकास"
सम्पूर्ण विकास कैसे हो
आखिर प्रयास कैसे हो ।।
छोटे छोटे मकान है
दम घुटता जहान है ।।
मोबाइल में सबके प्रान है
रिश्तों के न कद्रदान है ।।
समयाभाव सभी के पास
बच्चे घर में रहें उदास ।।
माँ बाप का ढूढ़ें प्यार
माँ बाप करें आखें चार ।।
विचार अब संकीर्ण है
मानवता हुई विदीर्ण है ।।
उसूल सभी टूटे हैं
इंसा इंसा से रूठे हैं ।।
सांस लेने को हवा नही
प्यार वाली वो दवा नही ।।
''शिवम्" कैसे हों खास
बदले जब हों हालात ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/04/2019
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
भावों के मोती समूह
दिनांक -07/04/2019
दिन -रविवार
विषय -स्वतंत्र लेखन
==========================
(मां वीणावादनी की वंदना)
***********************
नित नित मैं तेरा ध्यान करूँ,
हे माँ तेरा गुणगान करूँ।
ज्ञानप्रदायनी, वीणावादनी,
माँ तेरी जयकार करूँ।....
तेरे आंचल में जो आता,
जीवन धन्य धन्य हो जाता।
ज्ञान प्रफुल्लित चहुँ दिशा में,
दीपक बनकर सदा फैलाता।
माँ कर दे राह मेरी आलोकित,
नमन मैं बारम्बार करूँ।
ज्ञानप्रदायनि वीणावादनी,
माँ तेरी जयकार करूँ।.........
नित नित मैं तेरा ध्यान करूँ,
हे माँ तेरा गुणगान करूँ।
हंस सवारी मां कहलाती,
वाणी में भी है बसती।
सदमार्ग मिले हे मातेश्वरी,
जब जब वीणा है बजती।
वीणा की झंकार बजा दे,
ज्ञान का तरकश हे मां भर दे।
रज तेरे चरणों की बनूँ,
विनती मैं बारम्बार करूँ।
ज्ञानप्रदायनी वीणावादनी,
माँ तेरी जयकार करूँ।
नित नित मैं तेरा ध्यान करूँ,
हे मां तेरा गुणगान करूँ।...
.........भुवन बिष्ट
रानीखेत (उत्तराखण्ड)
(स्वरचित /मौलिक रचना )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती
स्वतंत्र लेखन
07/04/19
रविवार
विषय- बागबाँ
बागबाँ ने बाग को कुछ यूँ सँवारा,
हरीतिमा से पूर्ण है सौन्दर्य सारा।
वृंत वृक्षों के सभी पुष्पित-फलित हैं,
देख रूप अनूप बहती हर्ष- धारा।
हर कली पर भ्रमर गुंजन कर रहे हैं,
श्रवण में रस घोलता संगीत प्यारा।
तितलियाँ रंगों का जादू हैं दिखातीं,
नव तरंगों को जगाता यह नजारा।
मंद शीतल पवन से झूमें लताएँ ,
किसके मन को छू न जाए दृश्य न्यारा।
पुष्प, पल्लव और पादप जब विहंसते,
भूल जाते बागबाँ का श्रम है सारा।
कौन जाने इस अमित सौन्दर्य का सच,
बागबाँ ने ही हृदय का कोष वारा।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
मंच को नमन
दिनांक-7/4/2019
विधा-काव्य
विषय-स्वतंत्र लेखन
ना काम पर जाने की जल्दी
ना रसोई पकाना चाहती हूँ।
आज मैं फ़ुरसत में हूँ
पल फ़ुरसत के फ़ुरसत संग
जीना चाहती हूँ
नीले नभ में देखकर
प्राची की अरूणाभा
पक्षियों का कलरव
सुनना चाहती हूँ
मंद मंद हवा के झोंकें
किसी फलदार वृक्ष की
छाया चाहती हूँ
दूर क्षितिज में उड़ रहे पखेरू
उनके हौंसलों की उड़ान
देखना चाहती हूँ
सागर के तट पर गुनगुनाते हुए
लहरों का गर्जन- तर्जन
जी भर सुनना चाहती हूँ
खेतों की टेढ़ी मेढ़ी मेंढे
गेहूँ की बालियों को
छूना चाहती हूँ
गली गली घूम घूमकर
मासूम बच्चों का बचपना
महसूस करना चाहती हूँ
दादी परदादी की गाथाएँ
उनकी गोद में बैठकर
आनंद उठाना चाहती हूँ
आज मुझे रोकना नही
मुझे तुम टोकना भी नही
फ़ुरसत में बैठी हूँ आज मै
इन पलों में कुछ पलों का
सुकून से रसास्वादन
करना चाहती हूँ ।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति’
स्वरचित
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती
7/4/2019::रविवार
स्वतन्त्र लेखन
डमरू घनाक्षरी
नमन करत जब,भजत भजत रब
जनम सफल तब,जप मन भगवत
हर हर अधरन, मगन नयन कन
सरस सहज मन,पल पल बरसत
दरशन कर घट,रसत पलक पट
झटपट झटपट,जन जन सहमत
बढ़ उग घर घर,करत सरस तर
लहक लहक कर,रहत वरदरत
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
भावों के मोती
विषय: स्वतंत्र लेखन
माँ अम्बे भक्तों को वर दो ।
माँ मनमोहनि मूरत तेरी
ह्रदय बसी माँ सूरत तेरी
भक्तवत्सला मातु भवानी
अभय दान दे साहस भर दो
माँ अम्बे भक्तों को वर दो ।
पावन भाव भक्तिमय कर माँ
कर आशीष शीश पर धर माँ
जीवन ज्योति प्रकाशित कर माँ
दूर अंधेरे मन के कर दो
माँ अम्बे भक्तों को वर दो ।
जय शक्ति रूप जय बलदाता
जय महादयालू सुखदाता
घट घट वासिनि जय जगमाता
पीड़ा दुःख तमस माँ हर दो
माँ अम्बे भक्तों को वर दो ।
अनुराग दीक्षित
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सादर अभिवादन आदरणीय मंच 🙏🙏🙏
#ज़िंदगानी_दर्द_की
इक मुकम्मल दास्तां है ज़िंदगानी दर्द की ।
मुस्कुराते लब के पीछे है निशानी दर्द की ॥
ठोकरों के बीज बो कर सींचती है अश्क से ।
ग़म की फसलें सब्ज़ करती बागबानी दर्द की ॥
गंगा यमुना में मिलाते कारखानो का ज़हर ।
अब नदी का ये सफ़र भी है रवानी दर्द की ॥
जख्म ये ज्वालामुखी के है ज़मी दिखला रही ।
दास्तां शबनम सुनाती आसमानी दर्द की ॥
साथ बचपन से रहा है हमसफ़र बन के सदा ।
दिल हमारा हो गया है राजधानी दर्द की ॥
वस्ल से खुशियां मिलेंगी क्या ये सच है साथियों ।
राम सीता का मिलन भी है कहानी दर्द की ॥
दर्द में बस दर्द ही हमको दिया ये सच नहीं ।
ये ग़ज़ल भी 'आरज़ू' है महरबानी दर्द की ॥
रचना तिथि 07/04/2019
रचना स्वरचित एवं मौलिक है ।
©®🙏
-सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'✍
छिंदवाड़ा मप्र
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
07-4-2019
विषय :- स्वतंत्र
विधा :-विधाता छंद
पसारा देख कुदरत का , बडा हैरान जग सारा ।
कहीं पर पेड़ हैं दिखते , कहीं पर सिंधु है खारा ।।
कहीं हेमंत है होती ,कहीं मधुमास है होता ।
कहीं सूखा कहीं बाढ़ें , प्रकृति का हास है होता ।।
बुलाते भौंर कलियों को ,सुनाई गूँज है देती ।
बुलाती पिक पिया अपना , नहीं सोने हमें देती ।।
नचाती मोर को कुदरत , बहाते मेघ जब आँसू ।
पिया जब छोड हैं जाते , बहाती विरहिणी आँसू ।।
सुनामी देख जीवन की , सुनामी सिंधु में आती ।
करें खिलवाड़ कुदरत से , नहीं वह सहन कर पाती ।।
घुमाता कौन तारों को , कहीं वह दिख नहीं पाता ।
करिश्मा कौन करता है , गगन नीचे नहीं आता ।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
II स्वतंत्र लेखन II नमन भावों के मोती....
II वो पल.... II
सब झूठ बोलते हैं कि...
इस समंदर के गर्भ में....
बेशकीमती नायाब मोती छुपे हैं....
मैं भी गहरे उतरा....
लौटा खाली हाथ ....
नहीं मिले वो पल....
जो गुज़ारे तेरे संग...
थे बह गए पानी में...
वक़्त के साथ....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०७.०४.२०१९
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
भाव के मोती :स्वतंत्र लेखन
*********************
फिर लौट आई हूँ मैं अपने पास
ज़िदगी की उलझनों में
ऐसा उलझा रहा मन
वकत कब मुझे दोराहे पर छोड़
आगे निकल गया याद नहीं!
सुबह सवेरे आँगन में उतरी धूप
खिसकते -खिसकते दहलीज़ को लाँघ
घर से बाहर निकल गई
उधर शाम भी अपनी ख़्वाहिशों को
रात के सुपुर्द कर
दबे क़दमों से गुज़र गई!
रात अनमनी सी मुझे देखती रही
ठहर जाना उसके भी बस में न था।
मैं जडवत सी उन्से जाते देखती रही
न उन्हें रोक पाई
न उनके संग जा पाई
दिन बदले , मौसम बदले
और धीरे धीरे बहुत कुछ बदल गया
तब जाना
अनजानी राहों पे चलते चलते
मै तो बहुत आगे निकल गई
पर खुद को कहीं बहुत पीछे छोड़ दिया।
मगर ,अब और नहीं
मैं अब थोड़ा वकत ख़ुद के साथ बिताना चाहती हूँ
और ,यही सोचकर
फिर लौट आई हूँ अपने पास !
स्वरचित (c)भार्गवी रविन्द्र .....बेंगलूर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
भावो के मोती
नमन मंच को --7/4/2019
विषय --स्वतंत्र लेखन
हे, उठो युवा तुम्हें
मां भारती पुकारती
गगन सदृश्य प्रेम से
ये तुम्हें निहारती
पले बढे इसकी माटी मे
कर्ज इसका चुकाना है
कर सेवा गुरु, मात-पिता की
जीवन धन्य बनाना है
छोड़ रज,तम गुणों को
सत् को अपनाकर
सभ्य समाज बनाना है
बन लाठी दिव्यांग, बुजुर्ग की
उन्हें मंजिल तक पहुचाना है
सत्य सहित अविराम रुप से
सेवा में लग जाना है
छोडो कायरता पैदा कर लो
लक्ष्मी बाई सी मर्दानगी
हुकार भर शिवा, प्रताप सी
दुश्मन को दहलाना हैं
छोड़ कर महलों को अब
शर शैय्या को अपनाना है
अन्याय, अत्याचार से
हर असहाय को बचाना है
कुरबान हुये उन शहीदों की
लाज तुम्हें बचाना है
सत्य, अंहिसा को अपनाकर
सम्राट अशोक सा
अखंड भारत बनाना है
देकर अपना शीश,लहु तुम्हें
करनी है इसकी आरती
हे उठो युवा तुम्हें
माँ भारती पुकारती ।
स्वरचित-------🙏🍁
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
No comments:
Post a Comment