Monday, April 29

"स्पर्धा "29अप्रैल l2019

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें |
                                      ब्लॉग संख्या :-371
सादर सुप्रभात🙏🌹💐🌹
🌹भावों के मोती🌹
29/4/2019
"स्पर्धा"
(1)
रोती चप्पल
स्पर्धा बनी कारण
हँसता रवि ।।
(2)
स्पर्धा की घण्टी
अंधी दौड़ती आँधी
लक्ष्य भटकी ।
(3)
स्पर्धा कहानी
स्वेद कण जुबानी
धैर्य ने लिखी।।

वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच -भावों के मोती
जय वीणावादिनि अंब🙏🌹🌹🙏
दिनांक-29.04.2019
शीर्षक-स्पर्धा
विधा-मुक्तक
=======================
मैं जीवन से हार चुका हूँ  स्पर्धा मत रखना मुझसे ।
जो निज मन को मार चुका हूँ स्पर्धा मत रखना मुझसे ।
छोड़ दिया उन्नति का जीवट सिर्फ़ सादगी अपना ली है,
उत्सुकता संहार चुका हूँ स्पर्धा मत रखना मुझसे ।।
=====================
" अ़क्स " दौनेरिया

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सुप्रभात"भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन,🌹
29/04/2019
   "स्पर्धा"
1
सुनिती रोती
स्पर्धा भी लक्ष्यहीन
विवेक खोया
2
स्वच्छ हो स्पर्धा
उभरती प्रतिभा
सुफल कीर्ति
3
ध्येय हो लक्ष्य
यशस्वी होती प्रतिभा
बढ़ निडर
4
स्वार्थ की स्पर्धा
खेला नकाबपोश
अंधी है दौड़

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

।। स्पर्धा ।।

दीदी ने बाजी मारी 
मैंने भी अब ठानी है ।
इस वर्ष दौड़ में 
शील्ड मुझे लानी है ।
पापा रोज मुझे उठाना
कीमत कुछ चुकानी है ।
रातों की कुछ नींद भी
इस खातिर गंवानी है ।
बेटा उच्च श्रंखल होना 
देता कभी हानी है ।
पी टी ऊषा सी क्यों
बनती तूँ दीवानी है ।
नही पता तुझमें क्या
उसकी खबर लगानी है ।
समय पर समझेंगे हम
अभी तेरी नादानी है ।
स्पर्धा का दौर है पर
नकल नही दिखानी है ।
मैंने अपनी बेटी में 
डा० की छवि जानी है ।
मैं नही बना तो क्या
मेरी बिटिया रानी है ।
दस ख्वाब पालकर 
हमें खुशी नही भगानी है ।
स्पर्धा की अंधी दौड़ में
'शिवम'दुनिया बौरानी है ।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 29/04/2019

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक      स्पर्धा
विधा      लघुकविता
29 अप्रैल 2019,सोमवार

हिय स्पर्धा अति जरूरी
स्पर्धा से आगे बढ़ते
असंभव को संभव करते
सदा प्रगति सीढ़ी चढ़ते

स्पर्धा के बल पर ही नर
चांद सितारों को छू लेता
कीर्तिमान करता स्थापित
नव ज्ञान जगति को देता

सागर की तह वह जाता
मोती माणक सदा खोजता
स्पर्धा और साहस बल से 
पर्वत फाड़ नव पथ गढ़ता

अन्तर्बल स्पर्धा पावनमयी
नयी राह जगत दिखलाती
रेगिस्तानी मरुधरा में नित
वह निर्मल जलधार बहाती

विश्व प्रगति की मुल्कों ने
जिसने धारित की स्पर्धा
खून पसीना सदा बहाकर
पाई उनने जग में सृद्धा

स्पर्धा मुस्कान जगत की
जो मंजिल पर पंहुचाती
सद्कर्मो से इस जगति में
अति शांति मन में आती।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

नमन भावों के मोती , 
आज का विषय ,  स्पर्धा , 
दिन , सोमवार , 
दिनाँक , 29 , 4 , 2019 , 

स्पर्धा जगत 
अतिशय़ प्रेरक 
उन्नति मार्ग । 

कुटिल नीति 
घृणित मनोवृति 
स्पर्धा  नियति ।

सोचना कैसा 
हो जाहिर प्रतिभा 
 करना स्पर्धा । 

स्पर्धा जरूरी 
कमजोरी हमारी 
तुरंत भागी । 

विकास होता 
हमारा लाभ होता 
 व्यापार स्पर्धा ।

कर लो स्पर्धा 
परोपकार ज्यादा 
कौन करता ।

हमारी स्पर्धा 
रिश्तों में घनिष्ठता 
मिले श्रेष्ठता । 

स्पर्धा संसार 
आपसी व्यवहार 
जगत सार । 

राष्टीय हित 
स्वविवेक निहित 
स्पर्धा विदित ।

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

नमन मंच
दिनांक.. 29/4/2019
विषय .. स्पर्धा
विधा .. लघु कविता 
**********************

खुद का खुद से ही स्पर्था, 
कि मै तुमको पाऊँ ।
खुद ही विजयी बन कर तेरे, 
दरवाजे पर आऊँ।
....
मँथ कर के सम्पूर्ण समुन्दर, 
गागर मे भर लाऊँ।
भावों के मोती को भरकर, 
गागर को झलकाऊँ।
...
साथ तेरा है जन्म-जन्म का, 
पर मै ना इतराऊँ।
शेर हृदय है तेरा प्यासा, 
तुझमे ही रम जाऊँ ।
...
स्वरचित एंव मौलिक 
शेर सिंह सर्राफ
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

कहीं जीत कहीं हार लगती है।
ये जिन्दगी इश्तिहार लगती है। 

अभी भी मुझपे  असर है तेरा।
जो  न उतरा  खुमार लगती है। 

थी  लडकपन  की  भूल  मेरी। 
जवां  पहला  बुखार लगती है। 

कभी लगती के कमाई नफरत। 
तो कभी खोया प्यार लगती है। 

मै उसे  रोज ही  याद करता हूँ। 
ये बात  उसे नागवार लगती है। 

मुझे शायद  न होश आए  अब। 
वो खिंजाओं मै बहार लगती है। 

हूँ  सरोबार  जिसमें आज तक। 
बस वही गर्दो - गुबार लगती है। 

जिनसे खेले थे हम कभी रोज। 
वही मुश्किलें बेशुमार लगती है। 

                       विपिन सोहल

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच,भावों के मोती
29/04/19 सोमवार
विषय-स्पर्धा
विधा-हाइकू
💐🎂💐🎂💐🎂
👍स्पर्धाएं बढ़ी
विकास की हवस
     सबके मन👌
☺️☺️☺️☺️☺️☺️
जिधर देखो
स्पर्धाएं ही स्पर्धाएं
कैसा विकास...?
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
    बसना 36गढ़
🎂💐🎂💐🎂💐

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
1भा.29/4/2019/सोमवार
बिषयःःः #स्पर्धा#
विधाःःःकाव्यःःः

जय  शिवशंकर भोलेभंडारी।
प्रभु प्रार्थना बस यही हमारी।
करें सभीजन हम स्पर्धा ऐसी,
जिससे  प्रगति जग की सारी।

हो स्पर्धा सबकी समृद्धि की।
हों भावना शुभम प्रगति की।
हो हर्षित मन सबजन का ही,
स्पर्धा सुखदशांति उन्नति की।

स्पर्धा करें रचनात्मकता की।
स्पर्धा करें राष्ट्रीय एकता की।
पालन स्वधर्म का करें सबही,
नहोस्पर्धा नकारात्मकता की।

स्पर्धा हो शुभ सुंदर रचना की।
सुखद भाव मोती सुरचना की।
विध्वंसकता ना झलके शब्दों में,
 हम बात करें सुखसरंचना की।

स्वरचितः ः
इंजी.
शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

1भा.#स्पर्धा #काव्यः ः
29/4/2019/सोमवार


भावों के मोती
29/04/19
विषय- स्पर्धा (होड़) 

कर्तव्य भार से उन्मुक्त

नीलम सा नभ उस पर खाली डोलची लिये 
स्वच्छ बादलों का स्वच्छंद विचरण
अब  उन्मुक्त  हैं कर्तव्य  भार से
ना कोई स्पर्धा ना कोई होड़ 
सारी सृष्टि  को जल का वरदान 
 मुक्त हस्त दे आये सहृदय 
अब बस कुछ दिन यूं ही झूमते हुवे घूमना 
चाँद  से अठखेलियां ,हवा से स्पर्धा 
नाना नयनाभिराम  रूप मृदुल, श्वेत 
चाँद  की चांदनी में चांदी सा चमकना
उड उड यहां वहां बह जाना फिर थमना
धवल शशक सा आजाद  विचरण करना
कल फिर शुरू करना है कर्म पथ का सफर
फिर  खेतों में खलिहानों में बरसना
फिर पहाडों पर , नदिया पर गरजना
मानो धरा को सींचने स्वयं न्योछावर होना।

स्वरचित

               कुसुम कोठारी।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

सुप्रभात💐💐

जीवन में स्पर्धा करना तो
खुद से स्पर्धा कर लो।
खुद को जीतो
आगे बढ़ लो
मंज़िल का रस्ता खुद चुन लो।
औरों से जो स्पर्धा की
मन तार -तार हो जाएगा
हासिल कुछ हो न सकेगा फिर
मन बाद में फिर पछतायेगा।
जो मिलना है वो मिल के रहे,
कोई वो छीन  न पायेगा...
कुदरत का करिश्मा अद्भुत है
बिन मांगे सब मिल जाएगा।

स्मृति श्रीवास्तव
सूरत

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच 🙏
सभी गुणीजनों को सादर नमन 🙏
दिनांक- 29/4/2019
शीर्षक- "स्पर्धा"
लघुकथा 
***************
बात उन दिनों की है जब सिया, कक्षा 8 में पढ़ती थी, सीधी, साधारण व संस्कारी लड़की थी, विद्यालय में सभी के लिये वो प्रिय व सम्मानीय थी | विद्यालय की प्रत्येक प्रतियोगिता में उसकी भागीदारी रहती थी, और हमेशा ही किसी न किसी श्रेणी  में पुरस्कृत की जाती थी | जबकि वहीं उसकी मित्र दिशा हमेशा ही हर क्षेत्र में उससे एक कदम पीछे रह जाती थी |
बस दिशा में एक बात बहुत अच्छी थी कि वह ईर्ष्या नहीं करती थी | इस बार विद्यालय में बाल-दिवस पर निबंध लेखन प्रतियोगिता का आयोजन था, सभी ने हिस्सा लिया, दिशा और सिया पक्ष-विपक्ष के प्रतिभागी थे और विषय था "साक्षरता", दोनों ने बहुत अच्छा लिखा पर आज दिशा ने मन में ठान ली थी कि इस बार वो पुरस्कार की हकदार बनेगी, उसकी स्पर्धा रंग लाई और उसका लेखन इतना असरदार  था कि निर्णायक टीम ने उसे प्रथम श्रेणी से पुरस्कृत किया | आज उसका मनोबल और अधिक बड़ा सभी ने उसके लिए खूब तालियां बजाई 👏👏👏,स्पर्धा ऐसी ही होनी चाहिए इसे ईर्ष्या का रूप नहीं देना चाहिए | क्योंकि स्पर्धा किसी का नुकसान नहीं करती अपितु ईर्ष्या सर्वनाश कर देती है |

 स्वरचित *संगीता कुकरेती*
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

🌻भावों के मोती🌻 
🌻सादर प्रणाम🌻 
    विषय=स्पर्धा 
    विधा=हाइकु 
============
(1)कलयुग में 
     सभी को हराने की
     चली है स्पर्धा
      🌻🌻🌻
(2)चलाओं स्पर्धा
     खुद को हराने की
     और जीतिए 
     🌻🌻🌻
 (3)आज की बात
       सफलता का राज
       स्पर्धा में रहें 
      🌻🌻🌻
(4)जीती हैं स्पर्धा 
     सतत् परिश्रम 
     आया प्रथम
      🌻🌻🌻
(5)लक्ष्य मेडल
     दिन रात तैयारी 
     स्पर्धा कठिन
      🌻🌻🌻
(6)छल कपट
     करके जीती स्पर्धा
     दिखाती आँखे 
     🌻🌻🌻
(7)हार में जीत 
     इमानदारी स्पर्धा
     गर्व से कहूँ 
     🌻🌻🌻
(8)धोखे से जीता
     मेडल देख रोता
     वह जो स्पर्धा 
     🌻🌻🌻
(9)ऐसा भी होता
     अपनों को जीताने
     खुद ही हारे
     🌻🌻🌻
(10)ज्ञान की स्पर्धा 
       निर्माण का सूचक 
       खुशी के क्षण
       🌻🌻🌻
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश 
29/04/2019

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
तिथि - 29/4/29
विधा - छंद मुक्त
विषय - स्पर्धा

आगे बढ़ने की सदा
मची हुई है होड़
खिला पटखनी प्रतिद्वंद्वी को
हम आगे बढ़ जाएं दौड़
सब देशों में प्रतिस्पर्धा
आपाधापी  मची हुई
अंतरिक्ष हो या धरती
नष्ट कर रहे सुंदर प्रकृति
कहीं सजी सौंदर्य स्पर्धा
कहीं सजा दंगल मैदान
कहीं परीक्षा प्रतियोगी है
स्पर्धित सारा विज्ञान
प्रतिस्पर्धा है भली
गर मन में जग जाए
छू लेंगे हम आस्मां
मन में विश्वास जगाये
स्पर्धा करनी है गर
आगे बढ़ कर कुछ काम करो
सत्कर्मों की कर स्पर्धा
सबसे तुम व्यवहार करो
कभी पराये से प्रेरित हो
कुछ समाज कल्याण करो
मात पिता सेवा करने की
बच्चे गर स्पर्धा कर पायें
कहीं न कोई वृद्धाश्रम हो
मात पिता सबके सुख पायें

सरिता गर्ग
स्व रचित
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
भावों के मोती 
दिनांक २९|०४|२०१९
वार - सोमवार!
विषय - स्पर्धा!
विधा -लावणी छंद 
विधान – ३० मात्रा, १६, १४ पर यति !
कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत ! अंत मे गुरु ! 

मैं देख रहा नित्य इतिहास , शांति काल तो मिला नहीं!
हरपल दुनियाँ को देख रहा ,जीवन स्पर्धा दौड़ रही !
अंहकार के ऊंचे पद पर , पशु बन जाते जंगल के !
आम जनों की अग्नि परीक्षा, प्राण फँसे है निर्बल के !!

बँधा विश्वास सोच नहीं हैं, कैंद बनी सारी दुनिया !
बढ़ी प्रतिस्पर्धा वैभव की , अनाचार खाई पुड़िया!
ज्ञान बढाओ सच्चाई का ,रोज जियों अच्छे बनके!
हिन्दू मुस्लिम प्रेम बढाओ, सोच बनाओ तुम हटके!!

पिघला देता है प्रेम सदा , मतलब की जड़ रजनी को !
मिटे अभिमान भरी मूढ़ता, सौरभ भाये अवनी को !
स्पर्धा अंधानुकरण तज , ज्योति जलाओ चित चमके!
शांति करो जग के जीवन में, ताप मिटाओ खुद जल के !!

स्वरचित 
छगन लाल गर्ग विज्ञ!
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@


नमन भावों के मोती
दिनांक: - २९/४/०१९
विषय : - स्पर्धा

      स्पर्धा

स्पर्धा में कटती जिन्दगी
सबको आगे जाना है
रौंदकर पैरों तले मानवता को
उसे तो मंजिल तक पहुँचना है। 

जन्म के साथ ही 
रेस लगाई गई
पड़ोस के बच्चे संग
बार - बार स्पर्धा कराई गई। 

काँटों सी हमेशा टक्कर होती
पिछड़ते_पछाडते यहाँ तक पहुँचीं हूँ
उतरे हैं सारे प्रतियोगी
लड़ने जीवन की लड़ाई है। 

स्वरचित: - मुन्नी कामत।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

नमन मंच
लघु कविता
विषय-स्पर्धा

कहाँ लाकर छोड़ 
दिया प्रकृति को
प्रतिस्पर्धा की होड़ में
कर दिया है धरा का
फर्श मेला
खोकर स्वार्थी दौड़ में
मौका अभी भी
है संभलने का
सीख,धरा और शून्य के मेल से।

🙏नमन मंच🙏
🙏आदरणीय जन🙏
🙏को नमन🙏
विषय-स्पर्धा
    (२९-४-१९)
👍 👍 👍 👍
है #स्पर्धा चुनाव की
तुम भी आगे बढ़ो
पहले अक्षत,कमल से
श्री जी का पूजन करो

अपना हित छोड़कर
राष्ट्रहित ध्यान हो
भारत को जो सम्मान दिलाये
उसका सम्मान हो

आज चुनलो वह शक्सियत
देश का कल्याण चुनो
जय श्रीराम, राधे राधे
आप सब को नमो-नमो

🍁स्वरचित🍁
  सीमा आचार्य(म.प्र.)
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@


नमन मंच  भावों के मोती 
विषय      स्पर्धा 
***
परीक्षा परिणाम पर कुछ पंक्तिया
आजकल सभी बोर्ड के परीक्षा परिणाम आ रहे हैं ।
90%परिणाम और प्राप्तांक तो बहुत साधारण सी बात हो गयी है । इस स्पर्धा में, बच्चों का भविष्य महंगी उच्च शिक्षा , महत्वाकांक्षाये  आदि के लिए सोच कर मन  व्यथित हो जाता है .. इस को रेखांकित करती पंक्तियां..
**

लाख  लाख बधाइयां
होनहार कर्णधारों को,
मन उड़ता परिंदा 
और अन्तहीन सपनें 
स्पर्धा के युग में आगे
निकलने की दौड़ 
तस्वीर भयावह 
सीमित संसाधन है
उच्च शिक्षा ,रोजगार
 का कितना सृजन होगा
बाकी बचा व्यवस्था 
आरक्षण की भेंट चढेगा।
होनहारों के सपने 
व्यवस्था की भेंट ना चढे
इन्हें जीविका के भरपूर साधन मिलें
देश मे रह कर ये
देश का नाम करें
काश ...

स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

29/4/19
भावों के मोती
विषय- स्पर्धा
➖➖➖➖➖
स्पर्धा करो 
चुनौतियों से टकराने की
स्पर्धा करो 
नाकामियों को जीतने की
स्पर्धा करो 
बुराई से जीतने की
स्पर्धा करो 
नफ़रत पर विजय पाने की
स्पर्धा करो 
दिलों को जीतने की
स्पर्धा 
रिश्तों से नहीं करना कभी
यहाँ इंसान 
जीतकर भी हार जाता है
जीत लो 
ज़िंदगी से खुशियों को
ज़िंदगी मौत की स्पर्धा में
मौत ही सदा 
बाज़ी है जीतती 
जीत लो दिलों को प्यार से
मोहब्बत और नफ़रत
की स्पर्धा में
मोहब्बत 
नफ़रत पर भारी है
अपनों का कभी 
दिल मत तोड़ो
आज के दौर में 
मतलब रिश्तों पर भारी है
सच्चाई, प्रेम 
और ईमानदारी से
जिसने सबके 
दिलों में जगह बनाई
ज़िंदगी की स्पर्धा में 
उसने जीत ली दुनिया सारी
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित✍

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
शुभ मध्याह्न , समस्त प्रबुद्धगण ,
भावों के मोती
मंच को नमन
दैनिक कार्य
स्वरचित लघु कविता
दिनांक 29.4.19
दिन सोमवार
विषय स्पर्धा
रचयिता पूनम गोयल
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
है आधुनिक युग ,
स्पर्धा एवं प्रतिस्पर्धा का युग ।
दूसरे को पराजित कर ,
स्वयं आगे बढ़ने का युग ।।
ग़लत नहीं कदापि 
स्पर्धा , या प्रतिस्पर्धा ।
बल्कि है 
प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार ,
प्रगति करने का ।।
परन्तु , गिरा कर
किसी भी अन्य को ,
स्वयं शिखर पर
पहुँचने की अभिलाषा ।
है सर्वथा ग़लत , 
व्यक्ति की ऐसी आशा ।।
आज है लगभग 
हर क्षेत्र में ,
बहुत अधिक स्पर्धा ।
व्यस्त है हर कोई ,
पाने को अत्याधिक सफलता ।।
होती थीं प्राचीन युग में भी ,
अनेक स्पर्धा ।
किन्तु तब न थे इतने क्षेत्र ,
एवं नहीं थी मनों में
इतनी प्रतिस्पर्धा ।।
प्रतियोगिता को उसी भावना से रखा एवं जीता जाता ।
हारने वाला व्यक्ति भी ,
सब वही भूल के
वापिस घर आता ।।
समय के साथ-साथ ,
जाती है बदल 
विचारधारा भी ।
एवं बदल जाती है ,
स्पर्धा व प्रतिस्पर्धा की
परिभाषा भी ।।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच को
दिन :- सोमवार
दिनांक :- 29/04/2019
विषय :- स्पर्धा

नैतिकता की आँच पर...
पकती है स्पर्धा..
बदले की भावना से..
उपजती है प्रतिस्पर्धा..
ईमान के दम पे..
होती है स्पर्धा..
स्वार्थ की अग्नि..
उगलती प्रतिस्पर्धा..
किसी को हराना नहीं स्पर्धा..
किसी को जीतना है स्पर्धा..
निम्न सोच को प्रदर्शित करती प्रतिस्पर्धा..
निज बल प्रदर्शन से होती है स्पर्धा..
अहम् भाव को उत्सर्जित करती प्रतिस्पर्धा..
वहीं निज अंतस को जागृत करती स्पर्धा..
स्पर्धा होती आत्मिक भावना का प्रतीक..
वहीं प्रतिस्पर्धा में भावना होती क्षणिक..
आरोप प्रत्यारोप की जननी ये..
बनती कभी कुसंस्कार की परिचायक..
स्पर्धा हो संयमित आचरण से..
बनती यह सुसंस्कार की परिचायक..

स्वरचित :- मुकेश राठौड़
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

आगे बढ़ने की एक होड़  सी लगी हैं 
सबको बस सबसे आगे जाना हैं 
किसी को कुचलकर बस अपने सपने पुरे करने हैं 
कैसी ये आज की स्पर्धा हैं .

स्पर्धा ही बन गया जीने का मकसद  
सब बस इसी स्पर्धा में घुले हैं रात दिन 
जीवन की आपाधापी में स्पर्धा का आ गया हैं भूचाल 
जिसमें आज का बचपन हो गया हैं बेहाल .

सबको बस शिखर पर जाना हैं 
चाहे किसी भी हद से गुजरना हैं 
हर पल सभी हैं उधेड़बुन में 
कल फिर कैसे सबसे आगे निकलना हैं .
स्वरचित :-  रीता बिष्ट
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

"नमन-मंच"
"दिंनाक-२९/४/२०१९"
"शीर्षक-"स्पर्धा"
उठो,मनु!लक्ष्यहीन नही तुम
जड़ नही चेतन हो तुम
अद्वितीय हो ,तुम सा ना कोई जग में,
"स्पर्धा "करों"औरों"से,पहूँचो अपनी मंजिल तुम।

स्वस्थ स्पर्धा"अपनाओं तुम
एक एक कदम बढ़ाओ तुम
ब्यर्थ ना जाये तेरा पौरुष
समाधि अब तोड़ो तुम।

द्वेष, लोभ से दूर स्पर्धा
ऐसी स्पर्धा अपनाओं तुम
गर्व करो तुम अपने कर्म पर
उत्कृष्ट हो जाये तेरा जीवन।

करो बस ऐसी स्पर्धा
अनुपम बन जाये तुम्हारी कृति
आकर के इस जग मे मानव
स्थापित करो कीर्तिमान कुछ नया।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
स्पर्धा
🎻🎻🎻🎻

स्पर्धा जब धनात्मक होती
सामंजस्य के बीज बोती
स्पर्धा जब त्रणात्मक होती
वैमनस्यता ही केवल ढोती।

स्पर्धा का ऋणात्मक पहलू छाया है
ओछे शब्दों का बादल हर ओर मंडराया है
शालीनता का आँचल फट कर आया है
भाषाई प्रहारों में सब कुछ ही गर्माया है।

ऐसी स्पर्धा में सभ्यता होती तार तार
विषैली जिव्हाओं की चलती रहती है फुफकार
शाब्दिक बाणों से ऐसे ऐसे होते वार 
लगता नैतिक शिक्षा लम्बे समय से है बीमार।

क्या यह स्पर्धा देगी विकास
क्या यह स्पर्धा देगी प्रकाश
क्या यह स्पर्धा देगी स्वच्छ आकाश
क्या यह स्पर्धा कह सकेगी कभी शाबाश।

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

नमन"भावो के मोती"
29/04/2019
    "स्पर्धा"
################
स्नेह के हम हैं भूखे
स्पर्धा कब कहाँ देखे
प्यार पाने की खातिर
हर मुकाम को पीछे छोड़े
स्वार्थ से भरे हों जो लोग
स्पर्धा करते जैसे अंधी दौड़।

जब परिष्कृत हो प्रतिस्पर्धा
निखरती है चौगुनी प्रतिभा
बिखरती है तब जग में आभा
रोके न रुकती इसकी प्रभा
देश हित के लिए हो स्पर्धा
विस्तार हो नई तकनीकें
हो विज्ञान का नित् प्रयोग।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

नमन भावों के मोती , 
आज का विषय , स्पर्धा ,
सोमवार , २९ ,४,२०१९ ,

घर   बाहर  नजर घुमायें हम कहीं भी  ,

दिखाई नहीं देती जगह कोई भी खाली ।

हो  चाहे  वो  भाई  चाहे  हो  वो  पड़ोसी ,

चलती  है  स्पर्धा  रहती  छाई   खामोशी ।

कार्यस्थल की स्पर्धा  होती  अजब अनोखी ,

हर  पल  रस्म  टाँग  खिचाई   होती   रहती ।

हो   विद्यालय या  कोई  सामूहिक कार्यक्रम ,

दिख  जाते  स्पर्धा के  कितने  दृश्य अनुपम ।

सकारात्मक  स्पर्धा  मन  में  उत्साह जगाती ,

स्पर्धा नकारात्मक पैदा कुंठा को कर जाती ।

स्पर्धा  जारी  रहे  निरंतर  होती है ये हितकारी ,

भेदभाव पक्षपात कोई भ्रष्टाचार न पड़े दिखाई  । 

स्वरचित , मीना शर्मा ,मध्यप्रदेश ,
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
"भावों के मोती"
दिनाँक-28/4/2019
विषय-स्पर्धा

है इंसा के मन
में अब रंजिश
हो गया खेलों
में सबसे बड़ा
खेल शतरंज
मन मे बिछी
द्विरंगो की चौसठ
खानों की बिसात
बत्तीस मोहरों से
सजी सोलह काले
तो हैं सोलह श्वेत
अपने अनुरूप चाल चलता ,खुद से खुद को ही छलता 
है जिससे स्पर्धा
उसके प्रति पाल
द्वेष शह मात का
खेल खेलता
न कर स्वस्थ स्पर्धा उससे
प्रतिस्पर्धा करता
है हाल जिंदगी का
ये अब तो इंसान
रिश्तों को भी न
बखस्ता ।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर (म.प्र.)

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

नमन मंच
विषय  स्पर्धा
29-4-2019
पिरामिड

यूँ
स्पर्धा
संघर्ष
आपाधापी
प्रतियोगिता
चढ़ाये सोपान
सफलता आह्वान

ये 
स्पर्धा
हो स्वस्थ
कभी रचे 
मन संग्यान
बने पहचान
मिले मान सम्मान

मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
दि- 29-4-19
विषय - स्पर्धा
सादर मंच को समर्पित -

          🌺☀️   दोहावली   ☀️🌺
     ****************************
      🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

विपदा  क्षमता को  गढ़े , हो  स्पर्धा  की  चाह ।
धन्यवाद  प्रभु को करें , दुख से सुख की राह ।।

            🏵🌻🏵🌻🏵🌻🏵

असफलता   सोपान  है , साहस  हो  भरपूर ।
दृढ़  विश्वास प्रयास से , नहीं  स्पर्धा   सुदूर ।।

             🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴

रहे   सदा  वाणी   मधुर ,  उत्तम   शिष्टाचार ।
स्पर्धा की सीढ़ी  चढ़ें , शील, नेक व्यवहार ।।

              🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

करें   जल्दबाजी  नहीं ,  प्रथम  कार्य   संज्ञान ।
सोच  समझ स्पर्धा  बढ़ें , लक्ष्य  बने  आसान ।।

              ☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️

बीते  दिन भूलें  नहीं , विपदा , अभाव, हर्ष ।
स्पर्धा  में  मद  हो  नहीं , याद  रखें  संघर्ष ।।

              🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

आशा    है   संजीवनी ,  करें    निराशा   दूर ।
पग-पग  स्पर्धा  है खुशी , हो प्रयास  भरपूर ।।

             🌺🌴🌹🍀☀️🌲🏵
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
🍒🌾**....रवीन्द्र वर्मा आगरा 
                 मो0- 8532852618

नमन "भावों के मोती"
विषय- स्पर्धा 
29/04/19
सोमवार 
मुक्तक 

स्पर्धा  के  सघन  जंगलों  में अब  मानव  भटक रहा  है।
ईर्ष्या, द्वेष  और हिंसा के कठिन जाल में अटक  रहा है।
उन्नति के  प्रत्येक  क्षेत्र में प्रथम नाम पर उसका हक हो-
इसीलिए मानव-मूल्यों का सत्य नज़र  में  खटक रहा है।

स्वरचित 
डॉ ललिता सेंगर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

सादर नमन
विषय- स्पर्धा
          "स्पर्धा"
आज का ये युग है कैसा,
चारों ओर है स्पर्धा की आग,
खो रहा है बचपन यहाँ,
हो रही है बस भागमभाग,
 लिया जन्म बच्चे ने जबसे,
घूम रहा पिता का दिमाग,
शिक्षा संस्थानों की ढूँढ़ पड़ी,
सबके हैं अपने अपने राग,
विद्यालय के जा आँगन में,
माँ का आँचल छूँट गया,
रट्टू तोता बना बेचारा,
स्पर्धा का रस जो चख लिया,
सफलता की सीढ़ी चढ़ने को,
माना स्पर्धा भी है जरूरी,
बनकर किताबी कीड़ा,
भावनाओं से बनती दूरी है,
स्पर्धा के मैदान में,
नैतिकता भी जरूरी है,
सफलता के सागर में,
तैरना आना भी जरूरी है।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
29/4/19
सोमवार
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

नमन मंच:भावों के मोती
  सोमवार,दि.29.4.19
        विषयः स्पर्धा
*
सहज-स्पर्धा उच्च-शिखर पर , चढ़ने का आधार।
किंतु अन्य की टाँग खींचकर,बढ़ना खल व्यापार।
स्वस्थ-स्पर्धा प्रतिभा बल पर,अकड़ खड़ी होती है।
अध्यवसाय - सीप में फलता , विजय-श्री मोती है।।
        -स्वरचितःडा.'शितिकंठ'

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
🌼भावों के मोती🌼 
 🌻शुभ संध्या 🌻
   द्वितीय प्रस्तुति 
   विषय = स्पर्धा 

स्पर्धा में जो आज बना हैं 
जीवंत होने का  प्रमाण हैं  
आएं हम भी कदम बढ़ाएं
स्पर्धा में आकर दिखाना है 

स्पर्धा में धोखा नहीं करना
नज़रों में खुद गिरोगे वरना
इमानदारी से करिएं स्पर्धा  
जीत नाम रोशन करे अपना

स्पर्धा अपनों से कभी ना करना
अपनों को साथ में लेकर चलना
हौसला बढ़ाने को हमेशा उनका
अपने बड़ो से  कभी हार जाना

स्पर्धा में धोखे से लाया गया पदक
अपनी हीं नज़रों में है कृत- निंदक
जीवन भर सर उठा गर्वित रहें हम
ऐसी स्पर्धा करे की मिले हमें मोदक

===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश 
29/04/2019

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
२९/०४/२०१९
विषय-स्पर्धा

स्पर्धा मेरी मुझ ही से है
नहीं इसमें कोई बैर भाव।
कर पाऊं कुछ मैं देश हित में
अभिलाषा बस इतनी सी है।
रहे न दिल में बैर भाव 
भाईचारे का भाव पले।
स्पर्धा मेरी मुझ ही से है।
स्पर्धा जब तक अच्छाई से है
यह मार्ग विकास का लाती है।
जब होने लगती है बुराई से
मन को आहत कर देती है।
अपनों से बैर कराती है,
कर देती है सपनों को चूर।
बस इतना सा कारण है,
स्पर्धा मेरी मुझ ही से है।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
जयपुर

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
प्रस्तुति 01
^^^^^^^^^

29 अप्रैल 2019

" स्पर्धा "

स्पर्धा जीवन की जीवंतता के लिये ज़रूरी है

जीत के सघन प्रयास और दिल से चाहत ज़रूरी है

स्पर्धा से मिलते जीवन को नये नये आयाम और ताज़गी

अतः जिंदा रखने के लिये स्पर्धा और जीतने के कठिन प्रयास ज़रूरी है

(स्वरचित)

अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन "भावों के मोती"🙏
29/04/2019
हाइकु (5/7/5)   
विषय:-"स्पर्धा" 
(1)
नाजुक मोड़ 
जीवन बना स्पर्धा 
अंधी है दौड़
(2)
व्यक्तित्व गढ़े 
सकारात्मक स्पर्धा 
गगन चढ़े 
(3)
ईर्ष्या पोसती 
हिय सुकूँ छीनती 
अस्वस्थ स्पर्धा  
(4)
स्पर्धा का युग
छल, बल व मति 
केकड़ा वृत्ति 
(5)
मन की गति 
सुख-दुःख की स्पर्धा 
चलती रही 

स्वरचित 
ऋतुराज दवे
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹
20-4-2019
विषय/-स्पर्धा
विधा :-पद्य

अपने आप से करो स्पर्धा 
होगा जीवन बहुत आसान ।
चंदन सदृश मस्तक लगाओ
मिलता  तुम्हें कोई अनजान ।

 स्पर्धा  में निज  की उन्नति है ,
अन्य  की न  उन्नति में बाधा ।
अपने  लक्ष्य  संधान के  हेतु ,
परिश्रम  करे अथक अगाधा ।

ईर्ष्या  सदा पथ भ्रष्ट कर देती ,
अपना  मार्ग अवरुद्ध करती है ।
नागफनी   के    शूलों    जैसी ,
धँस  के  भीतरी  युद्ध करती है ।

स्पर्धा   ऊपर  तक  ले  जाती ,
बना  देती   है   ऊँचा  किरदार ।
स्वस्थ  दौड़   में सभी   भागते ,
होते  नहीं कभी लोग   बीमार ।

चौराहे   पर   खड़ी  रहे स्पर्धा , 
साथ भागने का निमंत्रण  देती ।
जिसमें  जितना  साहस  होता ,
उसको   उतना आगे  कर देती ।

स्वरचित :- 
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@






No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...