यहां मुसाफिर है हर कोई
क्या होगा अब आगे साथी
न कोई चिंता न डर कोई।
काँटों में ही खिलते हैं फूल
मत घबरा तू देखके शूल
धैर्य अगर रखेगा तू फिर
मंजिल मिल जाये हर कोई।
जितने थे शुभ कर्म के सिक्के लगा रोज भुनाने में ।।
कल के लिये भी सोच शाम को जाये तूँ मयखाने में
दिशा दशा कुछ ठीक नही नयन मूँद लगा कमाने में ।।
मुँह पर मीठा बोलने वाले मिलते बहुत जमाने में
जोड़ रखी उनकी भीड़ हर कर्म को लगा छुपाने में ।।
दो पैसे कर दान कभी कमी नही हैं खजाने में
मगर सदा रहे मन तेरा मस्ती के ताने बाने में ।।
कभी प्रायश्चित भी किया कर जो भूल हुई अन्जाने में
प्रभु से मेल मिला ''शिवम" जुट जा अन्तिम लक्ष्य पाने में ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
मुसाफिर बढ़ चलो दुनिया सफर है।
कदम दर कदम चलो दुनिया सफर है।
अरे हैरां हूँ जिन्दगी कितनी मुख्तसर है।
तुम चलो फिर भी कि दुनिया सफर है।
हजारों मुश्किलें होंगी ठोकर लगेगी।
मिलेगी मंजिलें चलो दुनिया सफर है।
मौसम कभी रस्ते रोकर कभी हंस के।
कट जायेंगे दिन चलो दुनिया सफर है।
दुखेगा दिल कभी पांव थकने लगेंगे।
बना के होैसला चलो दुनिया सफर है।
वक्त सब का मुकर्रर है इस जमाने में।
हैं जो बची सांसे चलो दुनिया सफर है।
विपिन सोहल
****""***
जीवन यात्रा
जाग रे मुसाफिर
ध्येय समझ
***
ओ मुसाफिर
जब जाग सबेरा
ये रैना बीती
***
है मृगतृष्णा
चकमक जगत
तू मुसाफिर
***
सफर आगे
जागरे मुसाफिर
ईश्वर इश्क
*""**"
रंजना सिन्हा सैराहा..
चंद दिनों के मेहमान,फिर चले जाना।।
क्यों दम्भ,द्वेष,बैर -भाव लेकर बैठे हो
सभी को आज नही तो कल चले जाना।।
मुसाफिर हो यारों ,हँसी ,खुशी टहल लो
कब किसका बुलावा आए,फिर चले जाना।।
ये मुसाफिर खाना ,बेहद अनमोल है
जिसका आज मोल है,कल उसका न कोई रोल है।।
अहंकार किस बात का मुसाफिर तुझे
चलती रेलगाड़ी,कभी तो रूक जानी है।।
वीणा शर्मा
मै दुनिया का एक मुसाफिर,
नहीं मेरा कोई है अता पता।
कहाँ आया क्यों आया हूँ मै,
कल का नहीं कुछ मेरा पता।
नित काया मै बदल रहा हूँ।
रोजाना ही मैं टहल रहा हूँ।
कहाँ मिलूँ नहीं है मेरा पता,
मै रोज रास्ते बदल रहा हूँ।
कठपुतली उसके हाथों की,
जैसे ईश नाच नचाऐ नाचूँ।
आज कुरान यहाँ मै पढता,
कल किसी शहर रामायण बांचूँ।
यहाँ अभी तलक बैठा हूँ मै,
कल कहीं हो जाऊ लापता।
जगत मुसाफिर हूँ मै यारो,
क्या कैसे बताऊँ मै मेरा पता।
क्षणभंगुर ये जीवन है सबका,
जग है एक मुसाफिरखाना।
मेरा पता नहीं कुछ निश्चित,
नहीं नियत कोई ठौर ठिकाना।
स्वरचितः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना,म.प्र
1)
मुसाफिरखाना
आना जाना लगे है
दृश्य जगत्
2)..
मैं मुसाफिर
सारा जग सराय
जीवन मेला
3)...
आत्मा मन की
शरीर सराय में
मुसाफिर है।
4)...
जीवन पथ
मुसाफिर रुह है
नश्वर जिस्म।
. डा.नीलम..अजमेर।
स्वरचित
Nisha Mishra
चलता चल मुसाफिर अभी मंजिल दूर है।
पगडंडी पर गिरकर उठना
यही तो दुनिया का दस्तूर है।
मार्ग में हो काटे बिछे
जीवन की डगर बंधु न आसा यहाँ
अभी तो नजरे भी उसकी पहुंच से दूर है।
चलता चल मुसाफिर मंजिल अभी दूर है।
चाहे अंबर में घिरे घोर घटाएँ
चाहे डराए बिजली जोर से
चांद भी है बादल में छिपकर बैठा
इसलिए तो भोर भी उसकी पहुंच से दूर है।
चलता चल मुसाफिर अभी मंजिल दूर है।
ना निराशा भर हृदय में बंधु
नया मोड़ ढूंढ तु अब बस
मुसाफिर नया कारवां भी तुझसे न दूर है।
चलता चल मुसाफिर अभी मंजिल दूर है।
.........निशा सतीश मिश्रा
लक्ष्य साधे, अनवरत तू
चलता चल,चलता चल
ए मुसाफिर चलता चल।।
हौसले खुद के बुलंद कर
नेत्र में दिव्य चमक भर
बढ़ता चल ,बढ़ता चल
ए मुसाफिर बढ़ता चल।।
राहें कंटीली हो भली
हो भले तूफान भी
चलता चल,चलता चल
ए मुसाफिर चलता चल।।
कायरी खुद की भुला कर
जोश को तू,थाम लेकर
बढ़ता चल, बढ़ता चल
ए मुसाफिर बढ़ता चल।।
चंद्र की सी चाँदनी
यूँ नही मिलती कभी
चलता चल ,चलता चल
ए मुसाफिर चलता चल।।
मीनाक्षी कमल
विधा: ग़ज़ल
शमअ क्यूँ डर गयी अँधेरे से....
रौशनी जल रही सवेरे से....
जो मेरा था नहीं है अब मेरा...
था मुसाफिर वो और डेरे से....
जल बुझा रात को ही वो तारा....
भभकता लड़ने को सवेरे से....
पाप करता रहा अँधेरे में....
वो दुआ में झुका सवेरे से.....
है मुसाफिर जहां में हर कोई...
गा रहा 'बब्बु, मुँह अँधेरे से....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
अपनी धुन में जोगिया, कहता बस ये जाय
सभी मुसाफिर है यहां, दुनिया एक सराय
कितने मंजिल तय किये,थका न मेरा पांव
बन मुसाफिर भटक रहा, जबसे छूटा गांव
रस्मे ज़िन्दगी निभाना होगा
तेरा दर छोड़ के भी, जाना होगा
मुसाफ़िर हूं,मेरा मुकद्दर सफ़र है
मत रोक, मुझे अब जाना होगा
रास्ते मुश्किल, मंजिल दूर है बहुत
जाने कब लौट के, आना होगा
तुझसे बिछड़ने का यूं तो, दर्द बहुत है
चेहरे पर मगर मुस्कान, तो लाना होगा
मालूम है के मेरी मंजिल कब्र है लेकिन
कहीं न कहीं तो सफरे थकन मिटाना होगा
कुछ अपनी कुछ दूसरों का भला कीजिए
कौन अपना है कौन पराया
ये सोचने मे न वक्त जाया कीजिए
यहाँ हर शख्स हैं एक मुसाफिर
बस यही जान लीजिये
गर सफर लंबा लगे,बस मंजिल याद कीजिए
चल चला चल बस एक राह पकड़
बस हमसफर से दोस्ती कीजिए
सब जानते है यहाँ जीवन एक सराय
मुसाफिर हैं हम यहाँ, बस चलते जाइये
मनु तू तो है एक मुसाफिर
थक न तुम,हार न तुम
कर्म ऐसा कर सदा तु,पुलकित हो मन सदा।
हर्षित रहे तन सदा,दृढ़ निश्चय कर मुसाफिर
जिस राह पर तुम चले
पदचिह्न रहे सदा,सदा।
आर्दश राह बने सदा ।
मुसाफिर होने का फर्ज अदा कीजिए।
.स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।
कभी यहाँ ख़ुशी हैं तो कभी गम .
हर दिन जिंदगी की राह में एक नई कहानी हैं
कुछ समझदारी कुछ नादानी हैं .
चल मुसाफिर बेफिक्र होकर मंजिल की राह पर
मत सोच विचार क्या होने वाला कल .
जिंदगी जीने का का नाम
यहाँ बस हर दिन एक नया मुकाम हैं कभी सुबह कभी शाम.
मुसाफिर बनकर जीना कहाँ आसान हैं
जिंदगी में हर पल जिंदगी में एक नया इम्तिहान हैं .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
ये दुनिया एक रैन बसेरा,
यहाँ कोई अपना ना पराया
चल पड़ेंगे अपनी-अपनी राह
मुसाफिर,
जब हो जाएगा सवेरा,
हाँ,अब बहुत भीड़ है जद्दोजहद भी हैं
रात गुजारना भी कहां आसान यहाँ,
ऊँच-नीच,जात-पात और
धर्म का अब कारोबार यहाँ,
जगह मिलना भी नहीं आसान
कुछ को मिला मखमली बिस्तर
कईयों ने जाग कर रात गुजारी यहाँ,
अब आ ही गए हो तो
ए मुसाफिर कुछ ऐसा कर जाओ
फिर कोई राही भूखा ना सोए यहाँ,
सोचो,कल तुम तो चले जाओगे
मगर तुम्हारी याद से महकेगा जहाँ...
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स्वरचित -मनोज नन्दवाना
मुसाफिर हैं चलते रहना है
समय के साथ बहते रहना है
समय का नहीं कहीं ठहराव है
हमारा तो लेकिन निश्चित पड़ाव है।
इस पड़ाव में पूर्ण विराम होगा
जीवन का बन्द काम होगा
कन्धे पर ले जायेंगे लोग
सत्य का नाम राम होगा।
कब जायेंगे नहीं पता
कहाॅ जायेंगे नहीं पता
कैसे जायेंगे नहीं पता
दिन होगी या रात नहीं पता।
हम अनजान बटोही हैं
अलग तरह के मोही हैं
नश्वर होकर भी नश्वर से प्रेम
इसमें ही हमने मानव योनि खोयी हैं
और दुनिया है सराय !
जो इस धरती पर आए ,
वह एक दिन अवश्य चला जाए !!
यही जीवन कहलाए ,
यही जीवन कहलाए !
जीवन के इस चक्र मेँ ,
मानव बार-बार फंसता जाए !!
कर्मो के बन्धन ,
उसे जकड़ते ही जाएं !
वह चाहकर भी ,
इनसे बाहर न निकल पाए !!
यदि सौभाग्य से कोई ,
सद्गुरु मिल जाए !
तो व्यक्ति मुसाफिर न बनकर ,
जन्म-मरण के बन्धन से छूट जाए !!
जीवन पथ पर चलता चल
धीरे-धीरे कदम बढ़ा दृश्य
जगत की झाँकी देखता चल
वह मुसाफिर क्या जो झूठा
आवरण ओढ़कर चलता है ?
वह शानो-शौकत क्या
जो झूठा दंभ हरपल भरता है ?
वह आत्म-सुकून भी क्या
जिसमें कुत्सित भावनाएं
पल पल झूठी लालसाएं
जीवन को जला दें?
जीवन का सफर उसका ही
सफल है
आत्मसंतुष्टि हो जिस मुसाफिर
के पास।
अंतर्मन --------
धीरे-धीरे --------
कुछ भी हो ईमानदारी की राह पर चलना पड़ेगा
छोड़कर लोभ-लालच,ईष्या-द्वेष तुझे आगे बढ़ना पड़ेगा
जब हो वतन की हित की बात तब ऐ मुसाफिर
तुझे धर्म, कर्म,नैतिक पथ पर ही चलना पड़ेगा
मिले सब को प्रतिष्ठा सौहार्द का चमन सजाना पड़ेगा
अंतर्मन------
धीरे-धीरे ------
याद रख जो विभा की बाँहें थामते हैं
वो एक दिन जग का दीपक बनते हैं
वो दीपक जिसे ना आँधियां ना तूफाँ
बुझा सकते हैं
पर जो अँधेरों को देखकर राह से लौट आते हैं
जिन्दगी उनकी धुँधली हो जाती है
अंतर्मन --------
धीरे-धीरे -------
पत्थरीले रास्तें भी हो जाएंगे एक दिन चमन
अगर पाँव में मुसाफिर बिवाई ले ले
राह काँटोंभरी हो तो क्या अगर चेतना में मुसाफिर स्फूर्ति भर ले
राह को ही प्रेरक बनाकर मुसाफिर तुझे आगे बढ़ना पड़ेगा
मत बैठ मुसाफिर विवश, व्याकुल होकर
अभी तुझे कंटकों को रौंदना पड़ेगा
अंतर्मन ------
धीरे-धीरे -----
है कठिन पथ तो क्या मनुज? तेरे हौसले भी कम नहीं
अथाह शक्ति तुझ में बनकर सूरज चलता चल
तम ने बिछाया है चादर चारो ओर अँधेरा है
किन्तु राहों में जुगनू जगमगा रहे हैं
पर तू अँधेरों के डर से क्यों लौट रहा मुसाफिर?
खड़ा ना हो विस्मय सा
साहस अपने ह्रदय में भर मुसाफिर चलता चल।
अंतर्मन ------
धीरे-धीरे -----
@शाको
स्वरचित
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