त्योहारों की छटा निराली त्योहारों का ये देश है ।
नीरस रहना नही है अच्छा इसमें छुपा सन्देश है ।
हर पल हर दिन नया होता भूलो सारे क्लेश है ।
खुद नही तो औरों की खातिर उत्साह रखो शेष है ।
क्षणिक निरूत्साहित मन करे खुशियों से दूर है ।
हतोत्साहित मन से होती तरक्की चकनाचूर है ।
वक्त का हर लम्हा जियो वक्त बड़ा काफूर है ।
वैसे भी यह देश कितने संस्कारों से भरपूर है ।
कितने रश्मों रिवाज से जीना यहाँ सिखाया है।
जीवन को कितना सुन्दर संगीतमय बनाया है ।
उत्सव ही जीवन है त्योहारों को अहं बताया है
पुरातन संस्कृति का भी तगमा इसने पाया है ।
स्वभाविक हर दिन कोई विभूति का जन्म दिन कहाया है ।
समर्पण भी भारतियों में सबसे ज्यादा बतलाया है ।
गुरूपर्व होली ईद ने ''शिवम" भाई चारा दर्शाया है ।
गंगा जमुनी संस्कृति ने खुशी में चार चाँद लगाया है ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
नीरस रहना नही है अच्छा इसमें छुपा सन्देश है ।
हर पल हर दिन नया होता भूलो सारे क्लेश है ।
खुद नही तो औरों की खातिर उत्साह रखो शेष है ।
क्षणिक निरूत्साहित मन करे खुशियों से दूर है ।
हतोत्साहित मन से होती तरक्की चकनाचूर है ।
वक्त का हर लम्हा जियो वक्त बड़ा काफूर है ।
वैसे भी यह देश कितने संस्कारों से भरपूर है ।
कितने रश्मों रिवाज से जीना यहाँ सिखाया है।
जीवन को कितना सुन्दर संगीतमय बनाया है ।
उत्सव ही जीवन है त्योहारों को अहं बताया है
पुरातन संस्कृति का भी तगमा इसने पाया है ।
स्वभाविक हर दिन कोई विभूति का जन्म दिन कहाया है ।
समर्पण भी भारतियों में सबसे ज्यादा बतलाया है ।
गुरूपर्व होली ईद ने ''शिवम" भाई चारा दर्शाया है ।
गंगा जमुनी संस्कृति ने खुशी में चार चाँद लगाया है ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
तुमको कोई गीत गाना चाहिए,
राग दिल का गुनगुनाना चाहिए |
नासमझ नादान नाजुक,
इस ह्रदय की प्रीत है,
गीत का हर शब्द तेरा,
तुझपे मेरी जीत है,
जीत का त्यौहार आना चाहिए
तुमको कोई गीत गाना चाहिए,
राग दिल का गुनगुनाना चाहिए,|
चार पल पहलू में तेरे जी लिए,
हमने तेरी प्रीत प्याले पी लिए
अब तो बस सुरूर छाना चाहिए
तुमको कोई गीत गाना चाहिए,
राग दिल का गुनगुनाना चाहिए.|
अनुराग दीक्षित
राग दिल का गुनगुनाना चाहिए |
नासमझ नादान नाजुक,
इस ह्रदय की प्रीत है,
गीत का हर शब्द तेरा,
तुझपे मेरी जीत है,
जीत का त्यौहार आना चाहिए
तुमको कोई गीत गाना चाहिए,
राग दिल का गुनगुनाना चाहिए,|
चार पल पहलू में तेरे जी लिए,
हमने तेरी प्रीत प्याले पी लिए
अब तो बस सुरूर छाना चाहिए
तुमको कोई गीत गाना चाहिए,
राग दिल का गुनगुनाना चाहिए.|
अनुराग दीक्षित
आओ हे भद्र जन! सब मिलजुल ऐसा त्योहार मनाते हैं,
सुंदर, स्वच्छ मन जन-जन में हो,ऐसी जागृति फैलाते हैं।
लीक से हटकर कुछ कर दिखाने का जज्बा सबमें हो,
कुछ खास नही जीवों से स्नेह करने का गूर सिखाते हैं।
अज्ञानता रूपी अंधकार से खुद को मुक्त करके रखना
सवेरा के असल तात्पर्य से जीवन बगिया को महकाते हैं।
सभ्य आचरण को नित्य कर्म में हम सभी अपनाकर
स्वच्छ, स्वस्थ और सफल जीवन का बुनियाद बनाते हैं।
आधुनिकता का नंगापन हमारी संस्कृति नही है बंधुओं
आधुनिक स्वच्छ विकास का अपना ध्येय विकसाते हैं।
सबसे सबका भला हो ऐसी जागृति का आगाज करें हम
सुख-दुख मिलकर झेलें, ऐसा स्वभाव विश्वास जगाते हैं।
कमजोर, लाचार, बेसहारों, बुजुर्गों का सहारा बनकर
सुंदर, सहज, मानवता का अपना व्यवहार अपनाते हैं।
होली, दिवाली, ईद, गुरुपर्व, क्रिसमस त्योहार संग मना,
हम सब एक ही धर्म भाईचारा का जन-जन में फैलाते हैं।
आओ हे भद्र जन! सब मिलजुल ऐसा त्योहार मनाते हैं,
सुंदर, स्वच्छ मन जन-जन में हो,ऐसी जागृति फैलाते हैं।
----रेणु रंजन'
सुंदर, स्वच्छ मन जन-जन में हो,ऐसी जागृति फैलाते हैं।
लीक से हटकर कुछ कर दिखाने का जज्बा सबमें हो,
कुछ खास नही जीवों से स्नेह करने का गूर सिखाते हैं।
अज्ञानता रूपी अंधकार से खुद को मुक्त करके रखना
सवेरा के असल तात्पर्य से जीवन बगिया को महकाते हैं।
सभ्य आचरण को नित्य कर्म में हम सभी अपनाकर
स्वच्छ, स्वस्थ और सफल जीवन का बुनियाद बनाते हैं।
आधुनिकता का नंगापन हमारी संस्कृति नही है बंधुओं
आधुनिक स्वच्छ विकास का अपना ध्येय विकसाते हैं।
सबसे सबका भला हो ऐसी जागृति का आगाज करें हम
सुख-दुख मिलकर झेलें, ऐसा स्वभाव विश्वास जगाते हैं।
कमजोर, लाचार, बेसहारों, बुजुर्गों का सहारा बनकर
सुंदर, सहज, मानवता का अपना व्यवहार अपनाते हैं।
होली, दिवाली, ईद, गुरुपर्व, क्रिसमस त्योहार संग मना,
हम सब एक ही धर्म भाईचारा का जन-जन में फैलाते हैं।
आओ हे भद्र जन! सब मिलजुल ऐसा त्योहार मनाते हैं,
सुंदर, स्वच्छ मन जन-जन में हो,ऐसी जागृति फैलाते हैं।
----रेणु रंजन'
त्योहार का है हमारे जीवन
मे खाश स्थान
यह भरता है हमारे जीवन
मे उल्लास।
जीवन में नही है सिर्फ
काम का स्थान
क्लांत तन और मन को
चाहिए थोड़ा विश्राम।
सुख दुख के दो पाटो के बीच
पीस कर न रह जाये हम इंसान
आरोह अवरोह तो आये जीवन में
पर उल्लास कम न हो जीवन से
हर्ष भर दे ये जीवन में
हटा दे विषाद के द्वार
शत्रु को भी मित्र बना ले
सिखाते हैं ये त्योहार।
अमीर तो जब चाहे
खा सकते है पूरी पकवान
गरीब के जीवन में है
त्योहार का खाश स्थान।
त्योहार हम जरूर मनाये
पर रखें दूसरो का ध्यान
होली, दीवाली हो या तीज त्योहार
मिलजुलकर हम मनाये तभी
होगा असली त्योहार।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।
मे खाश स्थान
यह भरता है हमारे जीवन
मे उल्लास।
जीवन में नही है सिर्फ
काम का स्थान
क्लांत तन और मन को
चाहिए थोड़ा विश्राम।
सुख दुख के दो पाटो के बीच
पीस कर न रह जाये हम इंसान
आरोह अवरोह तो आये जीवन में
पर उल्लास कम न हो जीवन से
हर्ष भर दे ये जीवन में
हटा दे विषाद के द्वार
शत्रु को भी मित्र बना ले
सिखाते हैं ये त्योहार।
अमीर तो जब चाहे
खा सकते है पूरी पकवान
गरीब के जीवन में है
त्योहार का खाश स्थान।
त्योहार हम जरूर मनाये
पर रखें दूसरो का ध्यान
होली, दीवाली हो या तीज त्योहार
मिलजुलकर हम मनाये तभी
होगा असली त्योहार।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।
यह हमारा भारतवर्ष !
मेला-सा लगा रहता है ,
लगभग समस्त वर्ष !!
एक के बाद , दूसरा ,
फिर तीसरा , होते हैं अनेक त्यौहार !
जो दे जाते हैं हमें ,
न जानें , कितनीं खुशियाँ अपार !!
क्योंकि खुशी का प्रतीक है ,
ये सभी त्यौहार !
इनके आ जाने से ,
जीवन मेँ , आ जाती है बहार !!
कभी-कभी कुछ पल भी ,
ऐसे आते यकायक !
कि जिनसे जीवन हो जाए ,
बिल्कुल चकाचक !!
मन झूम जाता है ,
कोई खुशी पाकर अचानक !
और वह पल लगता है
जैसे किसी त्यौहार की छम-छम !!
स्व योगदान से लंगर लगाए जाते है
'सांझा चूल्हा' साथ लिए वर्तमान में भी
सुमधुर गीत-संगीत सँग
शांत हृदय से लंगर चखे जाते है।
रेहड़ी,फटे हाल,निम्न वर्ग का मानो
त्योहार रोज होता है,जब जब
हर गली-मोहल्ले में
'डोनो' में प्रभु प्रसाद का भोग होता है।
नवरात्रे,होली,दिवाली
निर्जला एकादशी या गुरु पर्व हो
गरीब चेहरे पर ये सदा
मुस्कान लाते है।
आज जो त्योहार बीत गया,
अगले त्योहार के स्वप्न सजोते है।
मलिन तन बदन हो बेशक
भोजन,वस्त्र की सुविधाएं पा
त्योहारों की स्वर्णिम लड़ियाँ
गरीब चेहरे पर मुस्कुराती है।
ईश्वर,मेरे हाथों में
सदा दान का भाग लिखना
तीज-त्योहार सदा गरीब के बने
ऐसा समर्पण भाव सदा मुझमे जागृत रखना।🙏
वीणा शर्मा
सबमें ही उमड़ता रहता प्यार
ये हमारे रिश्तों की संजीवनी है
त्योहारों की सबकी अपनी जीवनी है।
भैय्या दूज संक्रान्त रक्षाबंधन
इनमें सम्बन्धों का अनुपम वन्दन
ये त्योहार हैं सारे महकते चन्दन
इनमें मानवता का है अभिनन्दन।
दिवाली होली की अलग बात है
पटाखे हैं तो रंगों की बरसात है
ईद है तो क्रिसमस की भी रात है
कितनी सुन्दर होती सबकी मुलाकात है।
पन्द्रह अगस्त छब्बीस जनवरी राष्ट्रीय पर्व हैं
इनमें हम सब करते खूब गर्व हैं
हमारी सेना के हमें करतब दिखते
जिन्हें देख सब हतप्रभ दिखते।
अनेक भाषायें अनेक वेश .
अटूट दाग़ों का मिलन
भाई बहन का रक्षा बंधन .
आस्था भक्ति और विश्वाश का पर्व
मेरा देश हैं त्यौहारों का महापर्व.
कभी खुदा की ईदी हैं
कभी राम की लीला हैं .
कभी कृष्ण की भक्ति में समाई
जन्मआष्ट्मी हैं
कभी होली कभी दिवाली
मेरे देश की हर बात मतवाली हैं .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
जीवन में पिया तेरा साथ हो,
हर दिन मेरा त्यौहार हो,
ना चाहूँ मैं हार कोई,
हर त्यौहार पर प्यार तेरा,
सबसे बड़ा उपहार हो,
दया दृष्टि रहे ईश्वर की,
हर त्यौहार तेरे साथ हो,
बिन कहे समझे तू,
दिल में मेरे जो जज्बात हों,
दिल में हो रिश्तों की सौगात,
ऐसा हर साल त्यौहार हो।
स्वरचित-रेखा रविदत्त
करते हैं शुद्ध भाव एवं विचार
घर ही नहीं अंतर्मन भी संवारते हैं।
स्वच्छता अभियान
ये चलाते हैं आने के कुछ दिवस
पूर्व ही अपनी पहचान कराते हैं।
प्रेम और सौहार्द
का ले सागर अपार
उत्प्लावन की तरह छलकाते हैं।
गिले शिकवे भूलने की
परम्परा से जुड़ने की
संस्कार हम सभी को दे जाते हैं।
कुछ नयी परंपराएं गढ़ने
हर किसी से गले मिलने
छाप अपनी अमिट छोड़ जाते हैं।
ना कोई वंचित रहे
ना कोई भूखा रहे
सबके ध्यान की बात कह जाते हैं।
तभी तो पूर्ण रूप से
हर्षमय त्यौहार होगा
जब गरीब भी पटाखे फोड़ते हैं।
झुग्गी झोपड़ियों में
दीन - दुखियों में
साथ मिलकर धनवान जश्न मनाते हैं।
जब कोई बेटी कहीं
होती है निर्वस्त्र हीन
तब त्यौहारों के अर्थ नहीं रह जाते हैं।
जब कोई लाचार माँ
या कोई असहाय पिता
पुत्र से कष्ट पाते त्यौहार कहाँ रह जाते हैं।
---बृजेश पाण्डेय बृजकिशोर 'विभात'
पल-पल जीवन में है त्योहार
मन की व्यथाएँ भूलकर
आज विरहिणी भी
मंगल गीत गायी है
2
हुआ सवेरा नूतन विभा
अपना आँचल लहराई है
घर-घर पूजा मंदिर-मंदिर हो रहे भजन
कुसुम-कलियाँ नाचने को आकुल
त्योहारों से तरंगित यौवन में मधुरास आयी है
3
अंग-अंग पुलकित धरा के
नई-नई तरुणाई आयी है
तू भी प्रेम गीत गा ले सजनी
सारे जग में नूतन शोभा छायी है
4
शीतल हरियाली नई दीप्ति देखकर
विपिन की कली-कली मुस्कुरायी है
हर घर की नारी
आज सावित्री बन आयी है
अपने तप से अपने सुहाग के लिए अमरता का वरदान ले आयी है
5
वसुधा से व्योम तक
प्रणय की ज्योति प्रज्वलित है
महक रही है उर की बगिया
अलका की मधुबन सी
दीन-हीन दुखियो के होंठो पे मुस्कान देखकर
झूमती हवा मंजरी सी
खुश्बू लायी है।
@शाको
स्वरचित
पेट भी नही भर रहा इस कमाई मे
कभी p.k. ठंडा पानी भी सो लिए
सो रहे है चार जने एक रजाई मे
हड़तालों के चक्कर मे मंहगाई बढ़ती जाती है
दिन दूनी रात चौगुनी गति से जेब कटती जाती है
अलग से बढ़ने वाला पैसा ओर कहाँ से लाए
सोच सोच के दिल की धड़कन घटती जाती है
अमीरों के घरों मे चिराग रौशन रहते है
गरीबों के बच्चे रोटी को तरसते है
त्योहारों का मजा तो अमीर लेते है
गरीबों के नैनों से तो आँसू बरसते है
स्वरचित
प्रकाश (p.k )
No comments:
Post a Comment