बेईमान फल फूल रहे
ईमान दुबला पतला हुआ
ऑफिस में देखो अधिकारी
बेईमान हो गये चापलूसी
ताकतवर हो गई
घर परिवार में नौकर
चोरी कर सामान बेच रहे
माॅ बाप से बच्चा बेईमानी कर रहा
ईमान दुबला पतला हुआ
ऑफिस में देखो अधिकारी
बेईमान हो गये चापलूसी
ताकतवर हो गई
घर परिवार में नौकर
चोरी कर सामान बेच रहे
माॅ बाप से बच्चा बेईमानी कर रहा
अपने ही घर में
चोरी कर मौज मस्ती कर रहे हैं
बेईमानों के हौसले
सरेआम हो रहे
सरेआम हो रहे
अपनी पत्नी से पति बेईमानी कर रहा
पत्नी पति से बेईमानी कर रही है
ईमान फर्ज को बेईमानी कर बेच रहे है
ईमान फर्ज को बेईमानी कर बेच रहे है
ना मर्यादा की फिकर ना देश की
अपने स्वार्थ में अपने
आप को भी बेईमानी के
हिस्से बनाकर बेच रहे हैं
सुधरना सीख लो तो
सब ठीक होगा
अपने स्वार्थ में अपने
आप को भी बेईमानी के
हिस्से बनाकर बेच रहे हैं
सुधरना सीख लो तो
सब ठीक होगा
नहीं तो....
ईमान की दुनियाॅ को
ईमान की दुनियाॅ को
किसी खाई में डाल देगी
ये बेईमानी की सोच
ये बेईमानी की सोच
स्वरचित एस जी शर्मा
स्वरचित एस जी शर्मा
ईमान एक गहना है
इसे सदा पहने रहना है ।।
बेईमानी है बुरी बला
एक दिन मिले उलहना है ।।
आत्मा भी साथ है
कहती सच बात है ।।
सलाह ये दे बेईमानी से
बचाओ अपना हाथ है
नर तन बड़ा अमोल है
यहाँ झोल ही झोल है ।।
बेईमानी ''शिवम" खुद ठगी
ईमान का न तोल है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम"
कही झुठ कही फरेब बस यही एक मेला
झुठ फरेब ने सबको घेरा है
सत्य बेचरा अकेला है
बेईमानी आज चरम सीमा पर है
और सत्य धीरे धीरे पग धरता है
झूठ फरेब कर देता है अन्त सबका
तब सत्य निकलकर आता है
बेईमानी तो रेला धेला
कही झुठ कही फरेब बस यही एक मेला
स्वरचित हेमा जोशी
दिन मंगलवार
विषय बेईमान
रचयिता पूनम गोयल
सीने की गहराई में
छुपा रक्खा था , दर्द कहीं ,
आंसू बेईमान निकले
और एक झटके में ,
सब राज़ कह दिया ।
फिर तो बन गया समन्दर ,
जिसमें हर जख्म बह गया ।।
चाहा था कि उम्र-भर ,
पर्दे में रहेंगे हम ,
मगर इन आंसुओं ने तो ,
सब रूबरू कर दिया।
और छेड़कर , गम के फसाने ,
मेरे संग-संग , हर किसी को ,
गमगीन कर दिया ।।
वैसे भी , गम तो बहुत हैं जमाने में ,
और ग़मज़दा लोग भी ।
तो क्यों न , खुशियाँ बाँटी जाएं ।
ताकि खुश रह सकें हम सभी ।।
मिलकर हम सब ,
ज़िन्दगी का ढर्रा ही बदल दें ।
और खुशियों की सौगात देकर ,
ज़िन्दगी खुशनुमा बना लें।।
एक परिभाषा....
"सर सुना आप बेईमान हैं"
'जी हाँ, कोई शक!'
"नहीं शक तो कोई नहीं...पर आपको कुछ फील नहीं होता जब लोग बईमान कहते हैं आपको"
'फील क्या होना इसमें....हम बेईमान हैं ...नालायक थोड़ी'
"मतलब?"
'सीधा है मतलब कि काम करने के पैसे लेते हैं...ऐसे भी नालायक भर्ती हैं यहां पर तो जो काम करते नहीं पैसे ले लेते हैं....उनको शर्म लिहाज है ही नहीं कि लोग क्या कहेंगे...किस बात के पैसे ले रहे हैं...हद्द ही हो गयी...'
"सर काम की तनख्वाह तो सरकार आपको देती है फिर .....?"
'अजी तनख्वाह से घर का गुजारा ही बड़ी मुश्किल होता...गाडी में पेट्रोल...मोबाइल...रेस्टोरेंट...इनका खर्चा भी तो है कि नहीं भाई...वो कौन देगा...'
"पर यह खर्चे तो कम हो सकते हैं न...रिश्वत ले कर क्यूँ करने फिर ?"
'अब सुनो...हम कौन सा अपने पास रखते यह ... आप से लिया... पेट्रोल डलवाया... पेट्रोल वाले को दे दिए... अब हम पेट्रोल नहीं डलवाएंगे तो पेट्रोल वाले की नौकरी गयी...गयी कि नहीं... इस लिए भाई हम तो मोबिलाइज करते हैं पैसे को...और बुरा क्या इसमें ?'
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
ईमानदारी से कमाई एक रोटी,
लगती है अमृत समान,
बेईमानी से कमाई रोटियाँ,
बन जाती हैं विष समान !
जब ये अमृत मिले रक्त में,
बना दे हमको ईमानदार,
और जब ये विष मिले रक्त में,
बना दे हमको बेईमान!
चंद दिनों की है जिन्दगानी,
ईमानदारी संग जीलो जी भर,
बेईमानी क्या देगी किसी को,
मन का डर और लोगों की धिक्कार!
स्वरचित -"संगीता कुकरेती"
मेरे फले-फूले बाग की
सभी तो ' वे ' ईमान हैं
हर जमाने में।
सोचा-
यही बेहतर होंगे
हर हाल में
एक-देख नहीं सकता
दूजा-चढ़ नहीं सकता पेड़ों पर ।
सुबह हुई-
तो पेड़ नंगा था
कौन करेगा विश्वास
मेरी बात पर
कि-
अंधे के कंधे पे चढ़ कर
लंगडा सारे फल तोड़ ले गया
सभी तो बेईमान है
इस जमाने में ।
(मेरे कविता संग्रह की कविता " विश्वास घात " से )
टीप:- परिजनों द्वारा किये जाने बाले यौन उत्पीड़न पर केंद्रित एक कटाक्ष है।
बेईमानःःः
मुझे ईमान की रोटी पचती नहीं है।
हमें ये मान की बात जंचती नहीं है।
बेईमानी का दामन जबसे थामा है,
सम्मान की भावना जमती नहीं है।
बेईमान को जो सम्मान मिलता है।
वह ईमानदार को कहाँ मिलता है।
बेईमानों की ही तूती बोलती यहाँ,
जहाँ देखूँ मुझे बेईमान मिलता है।
मैं ईमानदारी छोडूं किसके सहारे।
भगवान हैं बस अब तुम्हारे सहारे।
बेईमानों के चक्रव्यूह में फंसा हूँ,
हमें बचाऐं प्रभु हम तुम्हारे दुलारे।
स्वरचितः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
बेईमान
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ईमान बचा नहीं अब दुनिया में
ईमान बेचकर करते बेईमानी
अपने भी हो जाते पराये
करके रिश्तों संग बेईमानी
ओहदेवालों की मनमानी
कर्तव्यों संग करते बेईमानी
अफसर करते तानाशाही
पद से अपने करते बेईमानी
पदों की होती हेराफेरी
प्रतिभा के संग करते बेईमानी
अरबों खरबों की लूट मची है
नौ दो ग्यारह हुए मिट्टी संग करके बेईमानी
ईमान को मिले हैं जेल
निराली खेल दिखाती बेईमानी
सांसें भी एक दिन देगी चकमा
करके बेईमानो संग बेईमानी
स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला
बेईमानों का बोल बाला जग में
ईमानदार खड़े घबराये
पर जब बेईमानी की पोल खुल जाये
बेईमान सर छुपायें पर छूपा न पाये
बेईमान रसमलाई खाकर
मनमन मुस्काये,पर चैन न आये
ईमानदार सुखी रोटी खाकर
चैन की नींद सो जाये
बेईमानी की चमक दमक
दूर से बहुत लुभाये
पर जब पोल खुले
पानी उतर जाये
दूर से लगे बेईमानों की दुनिया बहुत सुनहरी
पर हम मनुज तो जाने हैं, ईमानदारी है सोना खडी़
ईमानदारी से जीवन जीये
और चैन की नींद हम सोये
स्वरचित आरती श्रीवास्तव
ईमान कहाँ बचा है
झूठे का बोलबाला है
सच्चा होना गुनाह है
कुछ जयचंदों के हाथों
मुल्क का सौदा होता है
उसूलों की बोली लगती है
ईमान आहत होता है
ईमानदारी कमज़ोरी है
सच का मज़ाक उड़ाते है
बेईमानी की राह पे चल के
गधे च्यवनप्राश खाते है
आँखों पे पट्टी बाँध के
ज़मीर गिराते जाते हैं
क्षुद्र स्वार्थों के खातिर
हम बेईमान बने जाते है
बेईमानी को तज कर
जिस दिन ईमान जग जायेगा
पुरुषार्थ के हाथों से फिर
ये मुल्क महान बन जायेगा
हर तरफ बेईमानो का राज है
शायद यही आज का समाज है
शायद बेईमानी के भी कही स्कूल होते है
बेईमान लोगो के भी अपने उसूल होते है
हर तरफ लोग रिश्वत लेकर अपनी जेब भरते है
बड़ी ईमानदारी से काम कराने का वादा करते है
उस वक़्त दिमाग चक्कर खा जाता है
जब हर तरफ का नजारा याद आता है
ऑफिस में हर नोकरी वाला तनख्वा पाता है
नोकरी पाते वक़्त ईमानदारी की कसम खाता है
रिस्वत देकर ही काम चलते है
वरना चपरासी भी उबलते है
काम के लिए रिश्वत मांगने को हजार बात बताते है
पैसे दो काम होगा आपका जबान दी है हम निभाते है
बिना रिश्वत के तो आपके ऑरिजनल कागज भी फर्जी होते है
रिस्वत देने वाले फर्जी भी ओरिजनल बन आराम से सोते है
समझ नही आता वो अधिकारी चपरासी जबान और उसूल कैसे बताते है
जो नोकरी पाते समय खाई ईमानदारी कसम को दिन में हजार बार रौंद जाते है
दूसरे.....
बिना जुर्म के बिना पते के तुमको अपराधी बनवा देते है
अगर वो अपनी पर आए तो तुमसे भी यही उगलवा देते है
कुछ देर पहले तक वो कहता है" मजदूरी से लोटा हु"
डंडे के नीचे आ वो वो ही लिख रहा है "मजदूरों से लूटा हु"
सबके सामने वो बोला कि ""मैं यारो के साथ वहां पर पहुँचा"
पर कैसे जज को सुना कि" मैं हथियारों के साथ वहां पहुँचा"
तो बताओ हर तरफ भ्र्रष्टाचार और बेईमान है
फिर भी मेरा प्यारा भारत महान है।।
नमन
स्वरचित---विपिन प्रधान
नब्बे प्रतिशत इसमें बेईमान,
देखो इनकी करतुते,
बाँट रहे ज्ञान बेईमान l
जनता की जेब काटते,
रिश्वत लेकर काम बांटते,
खाक मे मिला यहाँ ईमान,
मौज कर रहे है बेईमान l
इन्हे न कोई कुछ कहसकता,
कहे तो जिन्दा न रहसकता
कोई खाये चाराकरे गुजारा,
कोई 2g का करे घोटाला l
सब के सब बेईमानयहाँ पर
बिक रहा ईमान यहाँ पर,
मौन रहो करो घोटाला,
हिंद के मुँह पर लगाओताला
विप्र गर न कर्ज चुकाए,
हथ कड़िया उसे लग जाये,
करोड़ो जो हजम कर जाये,
भगा उसे विदेश ले जाये l
सेना सीमा पर मर रही है डूब रहा कर्ज मे किसान,
झूल रहा है वो फांसी पर,
फिर भी मेरा देश महान l
देखो ... देखो.....
कुसुम पंत
स्वरचित
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