सावन अब तो बीत रहा
दे खुशियों की बारातें,
प्रीति पुरानी लौट आई है
होंगी सुखद क्षणों की बातें।
सौरभ के कण कण प्रसरित हैं
मिट्टी से कच्चे रिश्तों में,
खुशबू वसुधा पर बिखरा लो
हर मन के कोने कोने में।
अभी अभी तू आया है
रुक जा और ठहर जा।
मन के द्वारे बड़े सकारे
मेहमानों के जैसे आ रे!
उल्लास मेरा देकर जाना।
चले नहीं जल्दी से जाना।
उत्सव और महोत्सव बनकर
जीवन में खुशियां भर जाते।
विषम क्षणों में भी ठहरो जो
सही अर्थ उल्लास कहाए।
जब बेटी या बहना आए
घर आँगन में रंगत छाए।
मंगल मंडप में आरोपित
दो हृदयों के बंधन में
प्रीति प्रगाढ़ हो जाए यदि
तो जीवन उल्लासित है।
जो रिश्ता थोपा जाए
आँख एक फूटी न सुहाए
तन मन पर आघातें हों
व्यंग्यबाण से छलनी हो।
संकट वाले क्षण आ जाएं
मन उल्लास क्षीण हो जाए।
हत्या और छिनैती त्यागो
अपराधों से नागा मानो
प्रेम और सद्भाव बढ़ा लो।
नारी का सम्मान करो
संस्कृति की पहचान बनो
दुष्कर्मों से घृणा नितान्त
चिरस्थाई हो उल्लास।
---बृजेश पाण्डेय बृजकिशोर ‘विभात’
नही व्यग्रता न तनिक उदे्ग हो।।
क्षण प्रति क्षण हर्षोल्लासित हो।
नही व्यथित हो न व्यथित मनः।।
शुभ प्रभात की पावन किरणे।
सारे जग को उल्लास से भरदो।।
तन मन की सकल कलुषिता।
आज अभी तत्क्षण हें हरदो।।
बाल वृद्ध नर नारी युवाजन ।
उल्लास उल्लास उल्लासित करदो।
उल्लास भरो मन में या रचो अंतर्द्वंद ।।
दोनो ही हालात में कविता का उदय
उल्लास से बनाओ कुछ अटूट सा संबंध ।।
अंतर्द्वंद तो यहाँ स्वतः प्रकट होते
हंसना ढूंढ़ो रोने को तो सभी रोते ।।
उल्लास का अन्तस में अखण्ड स्रोत है
क्यों न ''शिवम्" उसके सपने सँजोंते ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
उल्लास से परिपूर्ण
ये त्यौहार हमारे ।
रक्षाबंधन , होली , दिवाली
एवं , न जानें , कितने सारे ।।
परस्पर मिलने का बहाना बनते ।
जीवन में खुशियों का बसेरा करते ।।
अपनों का साथ पाकर ,
यह हृदय उल्लासित हो जाता है ।
और खुशी से फिर ,
मन गीत गुनगुनाने लगता है ।।
हे ईश्वर , यह खुशी , यह उल्लास ,
बस यूँ ही बनाए रखना ।
एवं जीवन में खुशियों के ,
फूल खिलाए रखना ।।
उल्लासित पृथ्वी का जन जन हो।
सबजन रहें खुशहाल जगत मे ,
हर्षित प्रमुदित हर जन मन हो।
सब दिखें प्रफुल्लित चेहरे मुझको,
निष्ठा अटूट विश्वास मनमंदिर हो।
हो ईशभक्ति स्नेहासिक्त हृदय प्रभु,
यहां उल्लासपूर्ण हर घर मंदिर हो।
सभी रहें सुवासित प्रेमाश्रय में,
नहीं दीनहीन कोई प्रेमालय हो।
जो सुसुप्त आत्माऐं पडी हुई हैं,
सब जाग्रत हों सुउल्लासय हो।
घरघर मकरंद घुले हर हिय में,
परोपकार पूर्ण दिल मंदिर हो।
पुरूषार्थ परमार्थ करें आपस में
नहीं वैरभाव दिखे सुरमंदिर हो।
स्वरचितः ः
इंजी .शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
जय जय श्री राम राम जी
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चाहुं तुझे ऐसे
जैसे चकोर चंदा को चाहे।
खिलखिलाना, चहकना मेरा
मन का उल्लास हो तुम
प्रेम का स्पंदन ऐसे
जैसे श्याम को राधा चाहे।
चाहुं तुझे ऐसे
जैसे चकोर चंदा को चाहे।
महकना, संवरना मेरा
तन पर बिंदास हो तुम
प्रेम की बरसात ऐसे
जैसे सूखी धरा सावन को चाहे।
चाहुं तुझे ऐसे
जैसे चकोर चंदा को चाहे।
हलचल, द्रुमदल मेरा
माथे की लाली हो तुम
मन की दशा ऐसे
जैसे पुष्प-पराग को भंवरा चाहे।
चाहुं तुझे ऐसे
जैसे चकोर चंदा को चाहे ।
इठलाना, इतराना मेरा
मन का विश्वास हो तुम
मिलन की तत्परता ऐसे
जैसे नद-धारा सागर को चाहे।
चाहुं तुझे ऐसे
जैसे चकोर चंदा को चाहे।
जब अपने मन को टटोलती
सर्वत्र तुझको ही पाती
बेचैनी बेसब्री ऐसे
जैसे निशा उजाला को चाहे।
चाहुं तुझे ऐसे
जैसे चकोर चंदा को चाहे।
--रेणु रंजन
(स्वरचित )
27/08/2018
मन में एक नई उमंग ,
एक नया उल्लास हैं
मिलने वाली है वो ख़ुशियाँ ,
जिसका मुझे इंतज़ार हैं।
ज़िंदगी में कुछ करना चाहती थीं
अपने हौसलों को उड़ान देना चाहती थी
पर फँसी थी उलझी हुई थी
सामाजिक रीतिरिवाजों में ।
पर मिला है मौक़ा अब
हाथ से ना जाने दूँगी
बनाऊँगी अपनी पहचान
कुछ नया कर दिखाऊँगी।
अपने इस उल्लास को ,
अपनी ताक़त बनाऊँगी
उमंग की डोर पकड़ कर
आसमान को छू जाऊँगी।
महिला घर बैठे भी ,
नया मुक़ाम पा सकती है
पर्दे में रह कर भी अपना
नसीब चमका सकती है।
स्वरचित
दीपिका मिश्रा
मिर्ज़ापुर
जीवन में उल्लास रहे
हर क्षण, हरपल प्रतिपल रहे
जीवन उल्लासित हो तो
जीवन सुन्दर लगता है।
मन मे तो है दोनों का वास
दुःख और उल्लास हैं साथ साथ
जिसपर हम ज्यादा ध्यान दे
वही बार बार आते हमारे पास
गमो का जब हो साया
न छोड़े हम धर्य का साथ
रात चाहे जितनी लंबी हो
सुबह तो। होनी है हर बार
जब मन खाली हो तो
आते रहते सौ विचार
सदा अच्छी बात सोच कर
उल्लासित रहे हम हर बार
उल्लास का हमारे जीवन में है खास स्थान
इससे हमारा जीवन रहता खुशहाल
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।
हूक उर की कहा सुनाऊँ
जो वेदना पीड़ित है कबसे
जन-जन का विस्तार बताऊँ
यह दबी उल्लास कहूं मैं किससे
धरा पर आक्रोश हुआ है
उड़ा है मानवता का प्राण कबसे
मानो सब जन द्रवित हुए है
हर्षित उर लुप्त हुआ है कबसे
एक स्वप्न सजे चक्षुओं में मेरे
प्रमुदित हो जन किन्तु लुप्त हुआ स्नेहिल उर कबसे
एक आस जगे अटूट विश्वास का हिय में
उल्लासयुक्त हो भवन मन्दिर मन सबके
स्वरचित
अंजली श्रीवास्तव
उल्लासमयी तब ही जीवन होता
जब सुंंन्दर सुखद वातावरण हो।
प्रकृति प्रक्रियाऐं हों सुखदायी,
नहीं कोई प्रदूषित पर्यावरण हो।
उल्लास हमें यहां लाना ही होगा।
वरना जीवन निश्चित नीरस होगा।
नहीं सुहाता कुम्हलाया मुखडा,
हमें सदा मुस्काते रहना ही होगा।
हम कैसे भी खुशियाँ घर लाऐं।
खुद प्रफुल्लित गैरों को मुस्काऐं।
ये जीवन जीना दूभर हो जाऐगा,
जैसे भी हो उल्लासित हो पाऐं।
अर्थप्रधान यह सारी ही दुनिया,
मानव उहापोह में फंसा हुआ है।
नहीं मिलता उल्लास इसे यहाँ,
ये भौतिकवाद में धंसा हुआ है।
स्वरचितः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
मन में कितना उल्लास छाया,
पूरा महीना मनायें तीज-त्योहार,
जीवन में भर गया हर्षोल्लास!
कभी शिव की महिमा गायें,
कभी सखियों संग तीज मनाये,
फिर रक्षा-बन्धन आ जाये,
ये स्नेह -बंधन मन को भाये!!
अब जन्माष्टमी है आने वाली,
कान्हा की महिमा बडी न्यारी,
त्यौहारों की हो रही खूब बौछार,
मन में हमारे खूब भरा उल्लास!!!
स्वरचित -*संगीता कुकरेती*
जल मिट्टी वायु दूषण
प्रकृति पर हो रहे अत्याचार हैं
'''"""फिर भी"""""
दयावान है उदारवान है
कैसा उल्लास है !!!!!!
चढ़ रही दहेज़ की बलि
बहु बेटियाँ देती प्राण है
""""फिर भी""""
सात फेरे हैं अग्नि साक्ष्य है
कैसा उल्लास है!!!!!
टूटते सपने रूठते अपने
जिंदगी है अकेली है
""""फिर भी"""
प्रीत है रीत है
कैसा उल्लास है!!!!
कुप्रथाओं से जकड़ा समाज
कुरीतियाँ हैं बेड़ियां है
""""फिर भी"""
संस्कार हैं अभिमान है
कैसा उल्लास है !!!!!!
तड़पता माँ का आँचल
मासूमो का चित्कार है
"""""फिर भी""""
बचपन है सरलता है
कैसा उल्लास है!!!!
सूखी टहनी झड़ते पत्ते
पतझड़ है सुनसान है
""""फिर भी"""
किसलय है वसंती बयार है
कैसा उल्लास है!!!!
सरहदों की सीमा पर
वीर जवान शहीद हैं
""""फिर भी""""
साहस है ललकार है
कैसा उल्लास है!!!
स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला
27/08/2018
जीवन है कर्म
कर्म उजास है
कर्मण्य के वास्ते
स्वर्ग पास है
कर्म है उजास है
हर पल उल्लास है
हाँ,उल्लास ही उल्लास है
तू क्यों उदास है
कर्म कर आगे बढ़
फिर देख
न प्यास न त्रास है
हाँ,जीवन बस उल्लास है।
सुरेश मंडल
पूर्णियाँ(बिहार)
विषय-उल्लास
1
पूर्ण उल्लास
करे भीतर वास
खिले कपास
2
चाँद की आस
हो प्रियतम पास
मिले उल्लास
3
पौत्र का रूप
हो उल्लास की स्मृति
थामे अँगुली
4
राधा का प्यार
कृष्ण का है उल्लास
जीवन सार
5
हर्ष उल्लास
हो मन उत्साहित
अमृत तुल्य
स्वरचित-रेखा रविदत्त
27/8/18
सोमवार
विधा-देवहरण घनाक्षरी
जीते जब रण वीर
मिटी शत्रु शमशीर
नयन खुशी के नीर
उल्लास अंनत छाया है।
वंशी की मधुर तान
गीता का पवित्र ज्ञान
कोयल का मीठा गान
विधि की अजब माया है।
होते जब नेता भ्रष्ट
पाती है जनता कष्ट
सद्विचार होते नष्ट
होती तब रूग्ण काया है।
पावन पुण्य विचार
भरते नव संस्कार
जग करता सत्कार
सम्मान जग में पाया है।
✍🏻नाम-दीपासंजय*दीप*
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