क्या सच मे स्वतंत्र है हम,
हिन्दी बोलने मे आती शर्म,
तोड़ो अपना आज ये भ्रम,
गर्व से कहो हिंदुस्तानी है हम l
हिन्दी हमारी जान है l
सब देशों मे महान है,
इसकी लाज रखेंगे हम,
बढ़ाते जायेंगे अपने कदम l
हिन्दी गर होगी गुम,
कहाँ रहेंगे हम और तुम,
हिंद को बचाना होगा,
हिन्दी को अपनाना होगा l
कुसुम पंत
स्वरचित
जय हिंद जय भारत
आजादी है सबको प्यारी।
सदा आजादी रहे हमारी।
मातृभूमि को स्वतंत्र रखने के लिये।
ऐ माँ तुझपर कुर्बान हो जायेंगे।
हम अपनी जां भी दे देंगे।
दुश्मन को नहीं घुसने देंगे सीमा में।
चाहे अपनी शीश कटे।
इस धरती पर जन्म लिया।
यहीं कुर्बान हो जायेंगे।
चाहे हम मिटें।
अपनी स्वतंत्रता आन हमारी।
बान हमारी,शान हमारी।
देश को परतंत्र नहीं होने देंगे।
जाये भले हीं जान हमारी।
ये है मातृभूमि हमारी।।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
नाज करे भारत माँ ऐसी किसकी तकदीर है ......
नहीं मिली यूहीं ये आजादी,
इस दिन को पाने की खातिर,
दिया कितनो ने बलिदान है,
लाखों मर गये, फाँसी चढ गये,
छोडा नहीं स्वाभिमान है ,
जय हिंद देश जय भारत माता,
मिलकर गायें सब ये गीत रे,
नाज करेगी भारत माता,
बन जायेगी तकदीर रे !
जय हिंद 🇮🇳🇮🇳🇮🇳
"संगीता कुकरेती"
तब स्वतंत्रता दिवस का शुभ दिन हमने पाया था ।
परतंत्रता से स्वतंत्रता का झण्डा हमने लहराया था ।
तब से यह राष्ट्रीय त्योहार भारत भूमि पर आया था ।
हर एक भारतवासी का चेहरा खुशी से खिला था ।
आजादी का तोहफा बड़ी मुश्किल से मिला था ।
पूर्ण हुआ था वर्षों का ख्वाब जो मन में पला था ।
विपदा का छाया बादल भारत भूमि से टला था ।
चलो मनायें मिलकर हम सब खुशियों का त्यौहार ।
अर्पित करें माँ भारती के चरणों में फूलों का हार ।
नमन करें उन शहीदों की चिताओं में सो सो बार ।
डूबती नैया को ''शिवम" बने थे जो पतवार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
भारत माता आज हमे फिर से पुकार रही
मानसीकिता की सोच मे आज भी जंजीरों
मे जकड़ी खड़ी रही ,
हो रहा है बलत्कार चीर हरण हर रोज
कहते हो तुम भारत माता जिन्दाबाद,
माँ की ना लाज रखी ना किया उसका सम्मान
करते रहे तुम हमेशा ही उसका अपमान ,
भारत माता आज हमे फिर से पुकार रही
नन्ही नन्ही बच्ची को भी तुमने नही है छोड़ा
अपनी हवस का शिकार तुमने उसे बनाकर छोड़ा,
फिर भी करते माँ की जय जयकार
मुझको नही चाहिये ये जय जयकार
बस मुझ पर कर दो ये उपकार ,
कहती है आज रो रो कर भारत माता
हर नारी मे छिपी हूँ फिर क्यो करते हो
ये बलत्कार मुझ पर करते हो अत्याचार
पुरुष वासना की दल दल मे धसा पड़ा मेरा आकार
भारत माता कह रही है मै बिलख २ही हूँ
तड़प रही हूँ अग्नि मे मै जल रही ह्रूँ
कैसे पाँऊ इन घृणित सोच से आजादी
अब भी जंजीरो मे जकड़ी खड़ी हुँ ,
वचन आज मै तुमसे लेती हूँ ना करना
कुछ ऐसा काम जिससे हो मेरा नाम बदनाम
भारत माँ आज सभी से वचन माँग रही है
क्या आप वचन देते है की हर नारी की रक्षा हेतु आप तत्पर रहेगे ,
स्वरचित हेमा जोशी मोदीनगर गाजियाबाद
हम भारत को अपना समझ पाऐं
नहीं रहे कोई भूखा प्यासा यहाँ,
सभी सुशिक्षित हों स्वच्छता लाऐं।
क्या कर्तव्य है हमारे देश के प्रति,
हम समझें कैसे इन्हें निभा पाऐं।
छोडकर द्वेष भाव अपनोँ से सभी,
परस्पर प्रेम प्रीति सहयोग बढाऐं।
नहीं रहे कहीं कोई भी अशिक्षित,
छुआछूत रहित साक्षरता बढाऐं।
प्रगतिशील रहें दूसरों को साथ लें,
उनको भी उन्नति की राह बताऐं।
जबतक यह मानसी गंदगी रहेगी।
हमारी अस्मिता छलती ही रहेगी।
मानसिकता सबकी बदलना जरूरी,
अन्यथा दरिंदगी फलती फूलती रहेगी।
स्वरचितः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
दबा दबा सा स्वर है
कण्ठ है रूधा रूधां
फिर भी लव खोलता
एक गरीब बोलता
देखो में आजाद हूं
देखो में आजाद हूं।
उंच नीच की बेड़ियों से
कुरितियो की पेडियों से
जकड़े हुए समाज में
फिर नये अंदाज मे
खुद को ही वो तोलता
एक गरीब बोलता
देखो में आजाद हूं
अधिकारियों को देख डरता है
पुलिस को देख छिपता है।
नेताओं के साज बाज में
दादा गुण्डो के राज में
फिर किसको वो टटोलता।
एक गरीब बोलता
देखो मैं आजाद हूं।
अब भी छत सर पर नहीं
काम भी मय्यसर नहीं
बच्चों को भूख की दरकार है
जो देश का होना हार है।
वो कुंडे कचरे को खोलता।
एक गरीब बोलता
देखो मैं आजाद हूं।
मंहगाई सर चढ़ बोल रही
और अंतिम कपड़ा खोल रही।
भ्रष्टों की ही कमाई है
कांगो के मुंह में मलाई है।
हामिद आजादी की पोल खोलता
एक गरीब बोलता
देखो मैं आजाद हूं।
हामिद सन्दलपुरी की कलम से
सुनो तुम आजाद हिन्द के वासी....
करना कभी तुम न हमसे किनारा...
देकर लहू हमने सींचा वतन है....
रहे ऊंचा मस्तक वतन ओ हमारा...
धरम न जाती कुछ भी न देखा...
वतन राह में न कभी ऐसी रेखा...
सूली चढ़े हैं हंस हंस के सभी जो....
तिरंगा यह चमका है सबसे प्यारा....
कदम से कदम मिला तुम चलना...
हाथ पकड़ दूसरे का तुम चलना...
दुश्मन की चालों में तुम न आना...
रखना विश्वास तुम अपना हमारा...
मनाओ जो होली रंग देश मिलाना...
दिवाली में इक दीप हमारा जलाना...
नहीं भूल जाना हमें याद रखना...
सांसें तुम सबकी में जीवन हमारा....
दीप आजादी का हमने जलाया...
लौ तुम इसकी न कम होने देना...
पड़े भीड़ अपने वतन पे अगर जो...
लहू से दिए की लौ तुम भी बढ़ाना....
वतन इश्क़ से ऊंचा इश्क़ नहीं है...
नस नस में इसको बहने दो भाई...
गंवाओ न यूं नशों में ज़िंदगानी...
'चन्दर' नशा देश सबसे है प्यारा...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
हमें हैं स्वतंत्रता अति प्यारी
आज स्वतंत्रता दिवस हमारी
इसे पाने के लिए अपनो ने
लगा दी थी जान की बाजी।
आर्शीवाद मिला है हमें ईश का
आयावर्त रहे सदा शक्तिशाली
शक्ति और युक्ति मे माहिर हम
पदचिन्हों पर चले सदा वीरों का
क्षमा, दया तो है मन मे हमारे
पर अनिष्ट न होने दे देश का
कश्मीर जब है हमारी
क्यों सुने हम बात तुम्हारी
झंडा सदैव उँचा हैं और रहेगा
हमें हैं आजादी प्यारी।
हम देश के नर ओ नारी
स्वतंत्रता दिवस मनाते रहे सदा।
.स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
लहू बहा कर इस धरती पर,
जो गोद में मेरी सोया है।
मत पूछो ऐ दुनिया वालों,
मैंने कितने बेटों को खोया है।
हँसते-हँसते सर कटाया,
ताकि झुके न मेरा माथा।
मेरे अश्रु में डूबी हुई है,
मेरे उन वीरों की गाथा।
विपदा आई थी भारी,
हो रही नीलाम थी मेरी लाज।
शत्रु दल पर टूट पड़े थे,
बेटे मेरे बन कर बाज।
सहस्र माँओं की गोदी उजरी,
ललनाओं ने सिंदूर दिया।
बहनों की राखी रही धरी,
वंदेमातरम् का जय घोष किया।
बेटियों ने भी बाँध कफन जब,
कूद पड़ी क्रान्ति की आग।
शत्रु दल पर पड़ी भारी,
न लगने दी तीरंगे में दाग।
सम्मुख सिंहों के आगे जब,
शत्रु देते थे घुटने टेक।
याद करो तुम अमर कहानी,
ध्रुव तारा जो बने अनेक।
उषा किरण
गृह छोड़कर आगे आई पुरूषों का साथ किया
किसी ने तलवार उठाई किसी ने कलम को धार किया
यहाँ वहाँ गुफा में छुप गोरों के जुल्मों पर वार किया
मोह माया से माताओं ने बेटों को आजाद किया
बेटों ने भी क्रांति छेड़ अंग्रेजों का विनाश किया
बहनों ने भाई को तिलक लगा जंग का बिगुल बजाया
भाईयों ने भी देश प्रेम में जयहिंद नारा खूब लगाया
नई नवेली दुल्हन ने भी शृंगार को गर्व से उतारा था
शहिद पति के शव के उपर मंगलसूत्र को वारा था
बहना ने शहिद भाई की सूनी कलाई सजाई थी
माता ने मस्तक चूम बेटे की करी बिदाई थी
बेटी ने भी रूंधे कंठ से पापा को गले लगाया था
पिता की अंतिम बिदाई जीत का हार पहनाया था
कोई नारी रही न बाकी सबने हाथ बटाया था
आजादी में योगदान का स्वर्ण अक्षरों में नाम लिखया था
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
खुल गया था दास बनाने वाला अंग्रेजों का पाश।।
बढ़े चलो भारत के वीरों हमको आगे बढना है।
सारे देशों की पंक्ति में सबसे आगे पहुँचना है।।
उत्तर में हिमालय तो ताज की भाँति शोभित है।
दक्षिण में अरब सागर भी, चरणों को धोता है।।
याद होगा कभी हम दुनिया का ताज कहाते थे।
बड़े से बड़े देश भी हमारे समक्ष शीश नवाते थे।।
बर्मा लंका अफगानिस्तान तक भारत होता था।
सारा विश्व भारत के समक्ष नतमस्तक रहता था।।
भारत की सम्पन्नता से हर कोई ईर्ष्या करता था।
परन्तु भारत की शक्ति से सारा विश्व थर्राता था।।
अब हमको फिर से वैसा ही शक्तिशाली बनना है।
देखे जो वक्र दृष्टि से, उसे मिट्टी में मिलाना है।।
हमें न केवल बाहरी शत्रुओं से ही सतर्क रहना है।
वरना मीरजाफरों व जयचन्दों को धूल चटाना है।।
सारे विश्व को सत्य अहिन्सा का पाठ पढ़ाना है ।
हमें न तो किसी से भी डरना व न ही डराना है।।
हमें न केवल बाहरी शत्रुओं से ही सतर्क रहना है।
वरना मीरजाफरों व जयचन्दों को धूल चटाना है।।
सारे विश्व को सत्य अहिन्सा का पाठ पढ़ाना है ।
हमें न तो किसी से भी डरना व न ही डराना है।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव“
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
तिरंगे से श्रृंगार,
बच्चे -बच्चे को है यहाँ,
देश से अपने प्यार,
होकर शहीद जवानों ने,
दिया हमें आजादी का दान,
सिर नतमस्तक हो जाता है,
सुन वीरों का बलिदान,
समझा देश को प्राणों से बढ़कर,
तभी तो जंग वो जीते थे,
तोड़ दो सौ सालों की गुलामी,
तिरंगे की शान की खातिर जीते थे,
आजादी की इस वर्षगाँठ पर,
आओ कसम हम ये खाएँ,
प्रगति के रथ के बनकर पहिए,
कामयाबी हम पाते जाएँ।
स्वरचित-रेखा रविदत्त
15/8/18
बुधवार
बहत्तर साल पुरानी आजादी हो गई
कुछ कुरीतियों,अनीतियों,भ्रष्टता
की झुर्रियां जिस्म पर छा गई
आजादी के दिवानों की दिवानगी चौराहों पर दिख रही
एक गिलास शराब ,या चुटकी भर हेरोईन में मदमस्त हो रही
इंकलाब के नारों के बदले
आरक्षण के नारे हैं
देश बूढ़ा नहीं हुआ ,पर युवा
पस्त हो गया
नारी का सम्मान सरे बाजार लुट रहा
बालक बालक हवस में डूब रहा
घर में श्वान -कक्ष सजा कर
उसे गरिष्ठ भोजन परोस रहे
वृद्ध माँ- बाप सर पर बोझ रहे
निकाल घर से बाहर वृद्ध- आश्रम में छोड़ दिया
आजादी का कितना मजाक धनवान उड़ाता है
खुलेआम पेज थ्री का किरदार बनकर सर घमंड से
ऊँचा कर रहा
आजादी का खुला प्रचार नारी का बदन भी कर रहा
कम से कम कपड़ो में जिस्म नुमाया कर रहा
किस तरह आजादी का बखान हम करें
बहत्तर वर्ष के आजाद भारत
में आतंक का साया मंडरा रहा
स्वतंत्रता का असल मकसद मानवता वाद था
सर्वधर्म सहिष्णुता का भाव
धमनियों में रक्त बन बह रहा था
आज मगर धर्म के नाम पर
लड़ने लगे नेता देश के
सरदार पटेल के प्रयास को
तोड़ने लगे
देश से सर्वोपरि उनके खींसे*
हो गये
बदन नोचते नोचते कफन बेचने लगे ।
डा.नीलम.अजमेर
स्वरचित.
🌸आजादी 🌸
आजादी मिली मगर
सोच में गुलामी ही रही,
लिखे भी गए,
पढ़ें भी गए,
बोले भी गए,
कई देशभक्ति के
गीत,गज़ल,कविता
और सुविचार भी
नहीं उतरे दिलों में
किताबों में ही रहे,
झकड़ा है आज भी इंसान
रूढ़िवादी विचारों में,
ऊँच-नीच,जात-पात
या दुराचारों में,
सोच बदलने की तमाम
कोशिशें बेकार रहीं,
जरूरत हैं आज इंसां को
खुद को बदलने की,
वतन के लिए कुछ
कर गुजरने की,
जरूरी नहीं सरहद पर ही
शोर्य दिखाया जाए,
बदलेंगे खुद ही को
ऐसा प्रण लिया जाए,
देशप्रेम हो धर्म,
देशहित हो कर्म,
देशसेवा हो वचन,
ऐसा संकल्प लिया जाए,
फिर मिलेगी
सही मायनों में आजादी,
झुकेंगी सियासत और
रुकेगी आवाम की बर्बादी,
कब बदलेंगी सोच,
अब तक यह उम्मीद
तो सपना ही रही..
-मनोज नन्दवाना
गुलामी की जंजीरों को काटकर
तिरंगे का कफन पहनकर
आजाद वतन को कर गये
जान की बाजी वो खेल गये
गोलियाँ सीने पर वो झेल गये
आजादी की खातिर सर अपना
कटा दिये
देश के वीर सपूत थे
अपने वतन के लिये
फर्ज अपना निभा गये
देशवासियों कुर्बानीयों की लाज रखना
वतन की मिट्टी को मत मैला करना
इस मिट्टी की तिलक माथे पर वो लगा
🇮🇳 गये🇮🇳
स्वरचित🇮🇳पूर्णिमा साह🇮🇳बांग्ला
जश्न ए आजादी को मिलकर मनाइए
नापाक निगाहों को सदा धूल चटाइये
करिए सभी एकता की पुरजोर कोशिश
भारत भू पर सदा मस्तक नवाइये।।
स्वतंत्रता मिली थी अनगिनत बलिदानों से
बलिदानों को याद कर चंद अश्क झलकाइये
एकता सूत्र ही भारतीयता का ताज है
इस सूत्र बंधन को सदा मजबूत बनाइये।।
लाख पुरजोर कोशिश कर ले कोई
आपसी स्नेह में न मतभेद घुलाइये
शांति का अग्रदूत भारत है सदा
भारत भू पर सदा अमन के पुष्प खिलाइए।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳वीणा शर्मा
नापाक निगाहों को सदा धूल चटाइये
करिए सभी एकता की पुरजोर कोशिश
भारत भू पर सदा मस्तक नवाइये।।
स्वतंत्रता मिली थी अनगिनत बलिदानों से
बलिदानों को याद कर चंद अश्क झलकाइये
एकता सूत्र ही भारतीयता का ताज है
इस सूत्र बंधन को सदा मजबूत बनाइये।।
लाख पुरजोर कोशिश कर ले कोई
आपसी स्नेह में न मतभेद घुलाइये
शांति का अग्रदूत भारत है सदा
भारत भू पर सदा अमन के पुष्प खिलाइए।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳वीणा शर्मा
इस तरह अपनी आजादी का जश्न मनाता हूं
अपनी पत्नी को उसके मैके छोड़ आता हूं
बस एक दिन ही आजादी के गीत गा लेते हैं हम
ऐ शहीदों तुम्हारे याद में सर झुका लेते हैं हम
कल फिर तुम्हें भूल जायेंगे कुछ महीनों तक
एक रस्म की तरह ये दिन भी मना लेते हैं हम
शहीद भी मजबूर हैं आज ये सोचने के लिए
अच्छा है कि ज़िन्दा नहीं है देखने के लिए
हमने किन हाथों में दे दी आजादी तुम्हारी
ये जो तैयार बैठे हैं तुम्हें नोचने के लिए
गूंज रहा है सारा भारत,आज आजादी के नारों से
पर क्या सच में मिली आज़ादी, देश के गद्दारों से?
लूट रहे है जो अपनो को, अपने छलऔर कपटों से
निर्धन का घर फूंक रहे,अपने धन की
लपटों से
निर्धन आज भी, दर -दर भूखा भटक रहा
फिरंगी बनकर धनी ,निर्धन का खून चूस रहा
विदेशी चीज़ों को अपनाकर,खुद पर गर्व करता है
हिंदी बोलने में हिंदवासी ,आज शर्म महसूस करता है
न नारी का सम्मान हुआ, न निर्धन का दुख- दर्द मिटा
न पापियों का नाश हुआ, न भ्रष्टाचार ज़रा मिटा
फिर कैसे ये आज़ादी के नारे लग रहे
क्यों तिरंगे फहराआज़ादी के डंके बज रहे
सुनो कभी तो, इस भारत माँ की करुण पुकार
आज भी गुलामी से निकलने की लगा रही वो गुहार
तूफान से निकाल लाये थे कश्ती वो तो थे अमर जवान
फिर भी डूबा रहा है कश्ती,इतना भी क्यों तू बना नादान
गोरो से आजाद हुए तो क्या उनका सब तो अपना रखा
फिर कैसे मेरे वतन के लोगो, देश तुम्हे आज़ाद दिखा।
स्वरचित
गीता लकवाल
पर क्या सच में मिली आज़ादी, देश के गद्दारों से?
लूट रहे है जो अपनो को, अपने छलऔर कपटों से
निर्धन का घर फूंक रहे,अपने धन की
लपटों से
निर्धन आज भी, दर -दर भूखा भटक रहा
फिरंगी बनकर धनी ,निर्धन का खून चूस रहा
विदेशी चीज़ों को अपनाकर,खुद पर गर्व करता है
हिंदी बोलने में हिंदवासी ,आज शर्म महसूस करता है
न नारी का सम्मान हुआ, न निर्धन का दुख- दर्द मिटा
न पापियों का नाश हुआ, न भ्रष्टाचार ज़रा मिटा
फिर कैसे ये आज़ादी के नारे लग रहे
क्यों तिरंगे फहराआज़ादी के डंके बज रहे
सुनो कभी तो, इस भारत माँ की करुण पुकार
आज भी गुलामी से निकलने की लगा रही वो गुहार
तूफान से निकाल लाये थे कश्ती वो तो थे अमर जवान
फिर भी डूबा रहा है कश्ती,इतना भी क्यों तू बना नादान
गोरो से आजाद हुए तो क्या उनका सब तो अपना रखा
फिर कैसे मेरे वतन के लोगो, देश तुम्हे आज़ाद दिखा।
स्वरचित
गीता लकवाल
प्राची की स्वर्णिम आभा से नूतन ज्योत जगाए जा।
देश प्रेम की अविरल धारा जन जन में बहाए जा।
तुंग हिमालय की चोटी पर ध्वज अपना लहराए जा।
वीर शहीदों की गाथा को नत वंदन दोहराए जा।
राष्ट्र भक्ति की सुमनमाल भारत माँ को पहनाए जा।
हिंद भक्त जो हुए पुरातन संदेश उन्हीं के गाए जा।
भारत भू की चंदन माटी से अपना भाल सजाए जा।
देश की आन बान शान को अंतर से बिरदाए जा।
स्व तंत्र से स्वतंत्रता की गूँज सदा चहकाए जा।
विश्व फलक पर वीर जवानों अपना परचम फहराए जा।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
***
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित, अप्रसारित ******
🙏🏻🇮🇳🙏🏻रागिनी शास्त्री 🙏🏻🇮🇳🙏🏻
देश प्रेम की अविरल धारा जन जन में बहाए जा।
तुंग हिमालय की चोटी पर ध्वज अपना लहराए जा।
वीर शहीदों की गाथा को नत वंदन दोहराए जा।
राष्ट्र भक्ति की सुमनमाल भारत माँ को पहनाए जा।
हिंद भक्त जो हुए पुरातन संदेश उन्हीं के गाए जा।
भारत भू की चंदन माटी से अपना भाल सजाए जा।
देश की आन बान शान को अंतर से बिरदाए जा।
स्व तंत्र से स्वतंत्रता की गूँज सदा चहकाए जा।
विश्व फलक पर वीर जवानों अपना परचम फहराए जा।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
***
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित, अप्रसारित ******
🙏🏻🇮🇳🙏🏻रागिनी शास्त्री 🙏🏻🇮🇳🙏🏻
चंद हाइकु
(1)
झूठा आकाश
आज़ादी है अधूरी
कैद विचार
(2)
ये स्वच्छन्दता
आजादी को चिढ़ाए
देश लजाए
(3)
अबला गौण
आजादी के शोर में
"भारत"मौन
(4)
भ्रष्टों की चली
आजादी को पाकर
मुक्ति ना मिली
(5)
आजादी अर्थ
स्वार्थ ने तोड़कर
किया अनर्थ
(6)
आपसी फूट
संकीर्णता की राह
आजादी दूर
(1)
झूठा आकाश
आज़ादी है अधूरी
कैद विचार
(2)
ये स्वच्छन्दता
आजादी को चिढ़ाए
देश लजाए
(3)
अबला गौण
आजादी के शोर में
"भारत"मौन
(4)
भ्रष्टों की चली
आजादी को पाकर
मुक्ति ना मिली
(5)
आजादी अर्थ
स्वार्थ ने तोड़कर
किया अनर्थ
(6)
आपसी फूट
संकीर्णता की राह
आजादी दूर
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