विधा भजन
रचयिता पूनम गोयल
मैंनें मन के अन्दर झाँका ,
मिल गए मुझको राम वहाँ !
और नहीं कुछ चाहिए मुझको ,
दुनिया से भी काम है क्या ?
मैंनें मन के...........
1)--मन में बसा के , भगवन् राम !
सिमरन करूँ , मैं आठों याम !!
सिमरन करते , समय बीत जाए ,
फुर्सत फिर , मुझको है कहाँ ?
मैंनें मन के...........
2)--बदली जीवन की धारा !
सिमरन है इतना प्यारा !!
छूट गया सब मोह का बंधन ,
छूट गया ये सारा जहाँ !
मैंनें मन के......
3)--राम-नाम से तर जाए जीवन !
ऐसे खिल जाए , जैसे मधुबन !!
अपना-पराया , तेरा-मेरा ---
भाव ये मुझको नहीं रहा !
मैंनें मन के................
रचयिता पूनम गोयल
मैंनें मन के अन्दर झाँका ,
मिल गए मुझको राम वहाँ !
और नहीं कुछ चाहिए मुझको ,
दुनिया से भी काम है क्या ?
मैंनें मन के...........
1)--मन में बसा के , भगवन् राम !
सिमरन करूँ , मैं आठों याम !!
सिमरन करते , समय बीत जाए ,
फुर्सत फिर , मुझको है कहाँ ?
मैंनें मन के...........
2)--बदली जीवन की धारा !
सिमरन है इतना प्यारा !!
छूट गया सब मोह का बंधन ,
छूट गया ये सारा जहाँ !
मैंनें मन के......
3)--राम-नाम से तर जाए जीवन !
ऐसे खिल जाए , जैसे मधुबन !!
अपना-पराया , तेरा-मेरा ---
भाव ये मुझको नहीं रहा !
मैंनें मन के................
कान्हा मुरली मधुर सुनाय
मधुवन आ जइयो आली
मधुवन की छटा न्यारी
मधुवन में भीड़ हो भारी
शोभा कैसे तुम्हे बताऊँ
शोभा जाये नही उचारी
कान्हा मुरली मधुर सुनाय
मधुवन आ जइयो आली
फूले सकल फूल फुलवारी
अँगुआ और कदम की डारी
रास रचाये बिहारी रासबिहारी
सखि मोह लेय संसारी
कान्हा मुरली मधुर सुनाय
मधुवन आ जइयो आली
वन की शोभा बढ़ जावे
ग्वालन संग जब वो आवे
मीठे बोल वो ''शिवम" सुनाय
सुदबुद खो जाऊँ मैं सारी
कान्हा मुरली मधुर सुनाय
मधुवन आ जइयो आली
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
घनश्याम मेरे तुम आ जाओ,
मधुबन की लतायें बुला रही,
समय बीत चुका बहुत अब,
याद तुम्हारी बहुत सता रही!
जब से गये हो मथुरा तुम,
निर्जीव से हो गये हैं हम,
कुछ भी यहाँ अच्छा न लगे,
तुम बिन कोई सच्चा न लगे !
उद्धव भी कुछ सच न बताये,
रोज ही हमें बेवकूफ बनाये,
मधुबन में अब क्या रखा है,
तुम बिन कौन हमारा सखा हैं!
स्वरचित "संगीता कुकरेती"
कभी जम के बरसे
कभी यूँ ही गुजर गए,
बदरा ही तो थे
जाने किधर गए,
जगाए अरमान भी
दिलों में मगर
थोड़ी सी हवा क्या लगी
बिखर गए,
बीत रहा हैं सावन
सूख रहा हैं धरा का तन
अब लौट भी आओ ऐ बादल
सूखी धरा पर फिर से रच दो
मधुबन..
स्वरचित -मनोज नन्दवाना
राधा कृष्ण के प्रेम का
मस्तक तिलक सजा लूँ इस धूली का
आँचल में भर लूँ इस प्रेम को
मन में बसा लूँ ऐसे अनुराग को
सीख ले लूँ मधुबन की झूकी डालियों से
नयनों के गागर भर लूँ
यहाँ बहकते परागों से
स्वयं को अर्पण कर दूँ
मधुबन की रजधूली में
जीवन अपना न्योछावर कर दूँ
ऐसे पवित्र प्रेम बंधन में
स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला
मधुवन में छाई सारी.
कितनी प्यारी जोड़ी हैं मनोहारी
कान्हा संग राधिका लगती हैं प्यारी .
छाई हैं भक्ति और मिलन की खुमारी
हर तरफ छाई हैं राधिका और कान्हा की कथा सारी.
कैसा हैं ये मधुवन का नजारा
एक तरफ हैं नटखट गोकुल का ग्वाला
दूसरी और बरसाने की राधिका प्यारी .
कहीं कोयल की कूक हैं कहीं मोर संग नाचे मोरनी
मन को लुभाने वाली हैं ये प्रेम जोड़ी .
मधुवन का देखकर ये नजारा
मन मेरा हो जाये बावरा .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
Rekha Ravi Dutt
रंग- बिरंगे खिलकर फूल,
महके जैसे मधुबन में,
ऐसी ही लेकर खुशियाँ,
आ जाओ तुम जीवन में,
गुँजन करते भँवरे भी,
मधुबन की ओर आते हैं,
हृदय स्पर्शी राग सुना,
सुमन संग प्रीत लगा जाते हैं,
कोयल कूहके मधुबन में,
गा रही है जैसे प्रीत के गीत,
कूहके ऐसे जैसे मधुरस टपके,
बोली मीठी मन को लेती जीत
स्वरचित-रेखा रविदत्त
6/8/18
सोमवार
प्रिय,परिजन और प्रकृति
इनसे बनता मधुबन है
हँसी ,खुशी और मुस्कानों से
अनुराग मेरे जीवन मे है।।
संस्कारों की खाद डाल कर
मधुबन मैंने सींचा है
मावस और पूनों में भी
भ्रमर राग यहां गूँजा है।।
अंतर्मन हुआ शुष्क पात तो
हँसी,फुहारों ने इसे भिगोया है
मलमल रूप बना फिर ये भी
खाद बना मुस्काया है।।
चुलबुली और गुडलहनियाँ तेरी
हलचल सी कर देती है
मुरझाए पुष्पों में भी
लहर नई भर देती है।।
मधुबन मेरा खिला चाँद सा
शीतल किरणें बिछाता है
प्रेम-फुहारें भर कर इसमें
मन मानस खिल जाता है।।
वीणा शर्मा
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तुझ बिन सुनी पड़ी है मधुवन की गलियां,
कान्हा की नित राह देखें,राधा संग सहेलियां।
क्यों छोड़ गए मधुवन हमारा वो सांवरिया,
विकल हो ढूंढ रही कान्हा, राधा बावरिया।
विह्वल नर-नारी ढूंढे मधुवन कुंज गली में,
यमुना तट भी सूने पड़े कान्हा प्रेम गली में।
हो गए दिन बहुत यहां गुंजी नहीं बांसुरिया,
सुना दे फिर से बंसी के धुन ओ सांवरिया।
गुलजार कर दे गली-गली फिर मधुवन की,
बिहंसे संग रास रचाई गोपियां वृंदावन की।
-रेणु रंजन
मधुबन महके बारम्बार
दिल की है ये मेरे पुकार
आजा साजन अँखियाँ में
लेकर पहला पहला प्यार,
मोरनी सी पंख फैलाऊँ
ता थैया ता थैया नाच नाचाऊ,
सावन की बरखा सी,
रिमझिंम-रिमझिम बरसती जाऊ
मधुबन को हरियाली से भर आऊ।
मधुबन के फूलो ,पत्तो से ,
बाते मै चन्द कर आऊ
कोयल जैसी मीठे कूँक सी
मल्हार में गाती जाऊ
मीठे शब्दो से सब क़े दिल में घर बनाऊ।
कान्हा की बंसी की धुन,
राधा का नृत्य में साक्षात
महसूस करती जाऊ
हर कण में कान्हा मेरा
ये ही सन्देश जग में फैलाऊँ।
राधे कृष्णा की प्रेम कहानी
तो सारा जग ही दोहराये
अपने प्रेम की खुशबू से
हम इस मधुबन को महकाये ।
छवि ।
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