हर जन्म में माता शहादत को चखना चाहता हु
नन्हा सिपाही बचपन मे बन नकली बंदूक चलाता था
दशहरे के दिन मांग मांग कर पैसे असली रावण को जलाता था
नकली बंदूक थी मेरे पर दिल मे असली देशभक्ति रहता था
फोड़ के रख दूंगा दुश्मन को चिल्लाकर बस यही कहता था
अब आकर जब बड़ा हुआ अपने पैरों पर खड़ा हुआ
सपने में अक्सर देखता हूं स्वार्थ का चश्मा चढ़ा हुआ
हर माँ बाप अपने लाल में सुखदेव भगतसिंह देखना चाहता है
नम्बर जब फाँसी पर चढ़ने का हो तो उसको गांधी की राह दिखाता है
मत भूलो ये आजादी लांखो भगतसिंह जैसे बेटो के बलिदान की गाथा गाती है
क्यों आज मेरी माँ बाप की जोड़ी बेटे बेटियो को भगतसिंह लक्ष्मीबाई जैसी नही बनाती है
नेहरू गांधी तो बापू चाचा बनकर रिस्तो में बंध थप्पड़ गालों पर खाते थे
वीर भगतसिंह जैसे शेर भारत माता के बेटे बन हँसकर फाँसी पर चढ़ जाते थे।
स्वरचित -विपिन प्रधान
माँ मुझे वर्दी सिलवादो
मुझे वो तमगा दिलवादो
दुश्मन को मार भगाऊँगा
देश के हमला वरों को
अच्छा सबक सिखाऊँगा
क्यों न उनको रहना आता
अमन चैन क्यों नही सुहाता
उनको ये सब समझाऊँगा
अगर न समझे बातों में तो
ताकत उन्हे दिखलाऊँगा
महाराणा और वीर शिवाजी
जिनके सीने थे फौलादी
खून उन्हीं का है रगों में
उनको यह बतलाऊँगा
माँ मैं सीमा पर जाऊँगा
जब शहीद सीमा पर होय
मेरी रूह बहुत ही रोय
फड़कने लगें भुजायें मेरीं
काटने लगें रातें अँधेरीं
सोचूँ सुबह ही जाऊँगा
अपनी मातृभूमि की खातिर
सर अपना कटवाऊँगा
झण्डा कभी न झुका ''शिवम"
न ही इसे झुकाऊँगा
माँ मैं सीमा पर जाऊँगा
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
अभी से ले लो मेरी वाहवाही
ओ मेरे प्यारे नन्हें सिपाही
तुम्हें सदा ही नमन मिलेंगे
जिस पथ के तुम बने हो राही।
भारत माता के लाड़ले सिपाही सारे
ये हैं तिरंगे के असली दुलारे
गगन भी गूंजता है इनकी वज़ह से
जब भी भरते ये अपने हूॅकारे।
एक बात बताऊँ तुम्हें नन्हें सिपाही
जीवन नहीं कुछ बस है आवाजाही
सिपाही को रोने की है मनाही
यहाॅ मौत होती है बहुत ही शाही।
सिपाही को सारा इतिहास नमन करता
सिपाही देश को अपने चमन करता
सिपाही रणभूमि में शत्रु के प्राण हरता
और अपना देश सुरक्षित सदा करता।
माँ मुझे बदूंक दिला दो
मैं भी सरहद जाऊँगी
भारत के दुश्मनों को मैं
छक्के खूब छूडा़ऊँगी
मैं नही अब छोटी बच्ची
दुश्मनों के छक्के छूड़ाऊँगी
अपने देश की झंडा की मैं
हरदम शान बढ़ाऊँगी
नही रही अब छोटी बच्ची
मैं भी सरहद जाऊँगी।
केसर का तुम तीलक लगा दो
अस्त्र शस्त्र दो मुझे पकड़ा
एड़ी चोटी एक कर मैं
दुश्मन को मार भगाऊँगी
आर्शीवाद दे विदा करो माँ
देश की अखंडता मैं बचाऊंगी
मैं लक्ष्मी तेरे घर की माँ
दुश्मनों के लिए काली बन जाऊँगी।
माँ,मुझे बदूंक दिला दो
मैं भी सरहद जाऊँगी
नही रही अब छोटी बच्ची
दुश्मनों के छक्के छूड़ाऊँगी।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।
चला मातृभूमि की रक्षा करने।
बंन्दूक हाथ में लेली जब मैने,
खडा रहूँ सीमा पै रक्षा करने।
कभी न समझना मुझे मैया तुम,
मै हूँ नन्हाँ छोटा एक सिपाही।
खट्टेदांत कर दूंगा दुश्मन के मै,
चला हूँ जब माता की रक्षा करने।
सब सीख लिया माँ के चरणों में,
कैसे गोली बंन्दूक चलाई जाती।
अगर वार खाली जाऐ तो कैसे,
ये संगीन सीने में घुसाई जाती।
जूडो कराटे सीख लिया मैने सब,
हाथपैर तोडकर रख दूंगा वैरी के।
नहीं बचने दूंगा दुश्मन को जिंदा,
ना लूँ चैन यदि फाड दूँ न छाती।
स्वरचितः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्र.
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हम बच्चे हिंदुस्तान के,
हम बच्चे हिंदुस्तान के
भगत सिंह की आन के,
और ऊधम सिंह की शान के।
(1)
भारत माँ के आँचल को,
हम मिलकर आज सजायेंगे।
बाबू सुभाष, गाँधी और नेहरू,
बनकर के दिखलायेंगे।
सपने सब साकार करेंगे,
बापू के अरमान के।
हम बच्चे -------
(2)
हिन्दू ,मुस्लिम ,सिख, ईसाई
आपस में सब भाई भाई।
भाई को है भाई प्यारा,
हम सबका बस एक ही नारा।
काम करेंगे मिलकर हरदम,
भारत के कल्याण के।
हम बच्चे ------------
(3)
देश में फैली हुई समस्याएं,
मिलकर के निपटाएंगे।
बिखरे बालों वाली मां के,
फिर सिंदूर लगायेंगे।
मान रखेंगे हम सब मिलकर,
वीरों के बलिदान के।
हम बच्चे ---------
(4)
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
सब झंडों से है ये न्यारा।
निर्भय होकर इसके नीचे,
वन्देमातरम गायेंगे।
अपने स्वराज की लाज रखेंगे,
सत्य धर्म ईमान से।
हम बच्चे -------
(5)
अपने देश की आजादी के,
हम सच्चे रखवाले हैं।
भारत की रक्षा की खातिर,
शमशीर उठाने वाले हैं।
आँख उठायेगा जो दुश्मन,
निकलेंगे तीर कमान से।
हम बच्चे ----------
(6)
सबको मिलाकर एक करेंगे,
जातिवाद निपटाएंगे।
समाजवाद आज बढ़ाकर,
रामराज्य को लायेंगे।
सपने तब फिर पूरे होंगे,
शिवेन्द्र सिंह चौहान के।
हम बच्चे --------
स्वरचित
शिवेन्द्र सिंह चौहान(सरल)
ग्वालियर म. प्र.
हाल निवास दिल्ली
छोटा हुआ तो क्या हुआ,
इरादे हैं मेरे बहुत बुलंद,
भारत माँ की शान को,
पहले करता हूँ नमन!
खाकी वर्दी पहनुँगा मैं,
चलूँगा सीना तान कर,
नन्हा सिपाही बनकर मैं,
बढाऊँगा भारत का मान मैं!
आतंकवाद को मिटा दूँगा,
दुश्मन को झुका दूँगा,
तिरंगें के सम्मान में,
जान अपनी लगा दूँगा!!
स्वरचित "संगीता कुकरेती"
कल का वीर जवान हूँ
आजाद हिंद का सपूत हूँ
इस मिट्टी का कर्जदार हूँ
सीने में है शोंधी खुशबू भरी हुई
बालक हूँ आँचल है लिपटी हुई
सागर की एक बूँद हूँ
वीरता से नहाई हुई
नन्हा सा बच्चा हूँ मैं
पर मासूम खयालात नहीं
माँ के चरणों पर रखना
नजरें अपनी झुकाई हुई
देखोगे वरना
आँखें अपनी कटी हुई
स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला
"नन्हाँ सिपाही"
माँ मुझको बंदूक दिला दे,
मैं भी सरहद पर जाऊँगा,
मिलकर पापा के साथ,
दुश्मन को मार गिराऊँगा,
ना रोना दादू तुम,
पापा को लेकर आऊँगा,
कितना करते हैं याद हम,
जाकर उन्हें मैं बताऊँगा,
दुश्मन चाचा से करके बात,
उनको मैं समझाऊँगा,
देकर टॉफी चॉकलेट,
उनके बच्चों की याद दिलाऊँगा,
सेना जो न कर पाई सरहद पर,
वो काम मैं करके आऊँगा,
बोकर बीज दोस्ती का,
नन्हाँ सिपाही मैं कहलाऊँगा।
स्वरचित-रेखा रविदत्त
11/8/18
शनिवार
शीर्षक नन्हा सिपाही
11अगस्त 2018
माँ मुझको लेखनी दिला दो,
शब्दों के वाण चलाऊंगा,
नन्हा सिपाही बन कलम का,
शब्द घात कर जाऊंगा l
तड़प रही है बहने मेरी,
नहीं किसी को चिंता तेरी,
सेना लड़ती सीमा पर,
मै यहाँ लाज बचाऊंगा, l
बन कर मै कलम सिपाही,
करू समर्थन अच्छाई का,
करू खत्मा बुराई का,
चोट कलम से लगाऊंगा l
मातृ भूमि है जान मेरी,
आ न बान और शान मेरी,
पर तलवार नहीं चलाऊंगा,
इन नन्हे हाथो से तिरंगे को लहराऊंगा l
कुसुम पंत
स्व रचित
जय हिंद जय भारत
हाथ में थामकर तिरंगा
एक नन्हा सिपाही
मस्तक पर अजब तेज
पराक्रम की प्रखर ज्योति
अपने वतन की हिफाजत करने चला है
हँसते हुए अपनी कुर्बानी देने चला है
एक नन्हा सिपाही
बचपन की इबादत-सी निश्छल
भर रहा पल-पल हुंकार
सरहद पर अपना शीश कटाने चला है
वतन के लिए अपना लहू बहाने चला है
एक नन्हा सिपाही
भरकर सीने में जोश
वीरता का चोला धारण कर
दुश्मनो के बंकरो को ध्वस्त करने चला है
अपने दुश्मनो के काँरवा में आग लगाने चला है
एक नन्हा सिपाही
उसे मालूम है
कितना फर्क है वसन और कफन में
तिरंगे का कफन हो अपना
वतन के लिए अपनी आहुति देने चला है
रहे वतन सलामत सदा अपनी कुर्बानी देने चला है
एक नन्हा सिपाही
@शाको
स्वरचित
तुझसे ही हिन्दुस्तान है।
हरदम लडना है तुझै
सरहद पर और देश मे।
सरहद पर तो दुश्मन है
और वतन मे बे ईमान है।
तू नन्हा सिपाही नही, ,,,,
देश का भविष्य तू
कर्म और रहस्य तू।
जन्म हिन्द मे हुआ
जो स्वर्ग से महान है
तू नन्हा सिपाही नही जवान है
तुझसे ही मेरा देश महान है।
हामिद सन्दलपुरी की कलम से
माँ मुझे सिपाही बना दो
मुझे भी गन दिला दो
मैं भी सीमा पर जाऊँगा
दुश्मन को मार गिराऊंगा
गुस आते है दुश्मन देश में
लेकर बंदूकें और बम,
रहते हैं अपने ही देश में
डर-डर कर हम,
सुना था आज स्कूल में
कोई डर न था मेरे देश में
पर अब संभल कर रहना
विश्वास किसी का न करना
दुश्मन भी हो सकता है
दोस्त के वेश में..
माँ मुझे नहीं रहना डर-कर
नहीं जीना मुझे मर-मर कर
एक बार जाने दो सीमा पर
गिरूंगा उन पर कहर बन कर
स्वरचित -मनोज नन्दवाना
नन्हा मुन्ना देश का बच्चा
कहता है मैं बनूँगा सच्चा
मम्मी मुझको आशीष देदो
सिपाही बन जाऊँ मैं अच्छा
आतंकवादी मार भगाऊँ
बहनों की मैं लाज बचाऊँ
दरिंदो को सबक सिखाकर
फाँसी के तख्ते पे चढ़ाऊँ
कुर्सी के मोह बंधन छोड़ू
स्वयं समाज सेवा में दोड़ू
ना किसीको रिश्वत लेने दूँ
ना खूद को रिश्वत से जोड़ू
सरहद पर जा दुश्मन मारूँ
भारत माँ का कर्ज उतारूँ
शहिदो में नाम लिखा कर
जय हिंद मैं तो अंत पुकारूँ
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
दिल का हूं बिलकुल सच्चा
तिरंगे की करना चाहू रक्षा
दो आशीष मुझे तुम माँ
देश के लिए कर पाऊ कुछ अच्छा
ठान लिया है मन मे
खा ली है कसम
देश की सुरक्षा में
उठाऊंगा हर कदम
मात्र भूमि की रक्षा
अब मेरा सर्वोपार है
ये जिंदगी मेरी,
मेरे देश पर कुर्बान है
ले तिरंगा हाथो में
कदम में उठाऊंगा
नन्हा सिपाही मै
देश के लिए अपने
कुर्बान जिंदगी कर जाऊंगा।
छवि ।
माँ
मैं भी
वीर सिपाही बनूँगा..
देश की आन बान की खातिर
चाहे दुश्मन कितना हो शातिर,
मैं भी दो दो हाथ करूँगा
माँ
मैं भी
वीर सिपाही बनूँगा..
माँ तेरे दूध का कर्ज चुकाकर
मातृभूमि का फर्ज निभाकर
देश का गौरव लहू से लिखूँगा
माँ
मैं भी
वीर सिपाही बनूँगा..
देशप्रेम की ज्योत जलाकर
भारत माँ को हृदय बैठाकर
रात या दिन बस सेवा करूँगा
माँ
मैं भी
वीर सिपाही बनूँगा..
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