Friday, August 10

"धैर्य/संतोष "10अगस्त 2018



"संतोष"

ओढ़ आवरण संतोष का,
सुखी जीवन पाया है,
काश! ये हो जाए मेरा,
कभी ना ये मुझे भाया है,

जो खुशी दे संतोषी मन,
ना मिले वो धन -दौलत से,
हो जाऐ जीवन सुखमय,
दूर रहे हर नोबत से,

काम चोरी की आदत को,
संतोष का तुम नाम ना देना,
करना संतुष्टि थोड़े में,
हक किसी का ना लेना।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
10/8/18
शुक्रवार


हथेली पे फिर शौक से जान रख।
थोड़ा सा सब्र और इत्मीनान रख।


कोई शै नही दूर रहें पावं जमीं पे।
निगाहों में चाहे तो आसमान रख।

जन्नत कहां अगर जो नहीं है यहाँ।
तू बस एक ख्यालों में अमान रख।

नंगी है तो कभी भरोसा न करना। 
साथ में ही तलवार के मयान रख।

ना कुछ न छिपेगा लाख छिपा ले।
तू सच्चा करम सच्चा बयान रख।

दोस्त को ये दुश्मन बना सकती है। 
सोच ले फिर तोल कर जबान रख।

माना कि मुश्किल ठहरना हवा में। 
हैं शर्त इरादों के आगे उडान रख। 

किससे निभेगी छोड तुझे सोहल। 
ऐसे नामुराद का ना अरमान रख। 

विपिन सोहल




धैर्य को धर लीजिये , खुशबू कहे गुलाब की

धैर्य को धर ही मैंने बगिया मँहकाई आपकी ।।

देखते हो जिन्दगी मैंने काँटों में गुजारी है
छटपटाये न कभी रट रब की न विसारी है ।।

चेहरा रहा खिला , सजी आपकी फुलवारी है
शूल भी अब मित्र हैं , करें सदा रखवारी है ।।

क्या झगड़ना उलझना स्वभाव खुद पर भारी है
शूलों से कहा बदलने को वो बोले लाचारी ।।

उनकी छबि उनके साथ हमारी छबि न्यारी है
धैर्यता वो गुण ''शिवम" जिसने जिन्दगी सँवारी है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"



मन मेरे विश्राम कहाँ.....
भाग जाए कहाँ कहाँ......
मन मेरे विश्राम कहाँ.....

नयनन छवि सुहाई जो...
मन इक आस उपजाई...
ढूंढें उसको यहां वहां.....
मन मेरे विश्राम कहाँ....

डोर तोड़ भागा फिरता है.....
महल अटारी और जहां....
पंख कटे गिरे जहां वहाँ....
मन मेरे विश्राम कहाँ.....

धैर्य नहीं संतोष नहीं है....
दिल को मेरे होश नहीं है.....
भागे चैन को कहाँ कहाँ.....

उमड़ घुमड़ भावों ने लुटाया....
लौट बुद्धू घर को ही आया....
धैर्य सा विश्राम कहाँ.....

चन्दर भाग न भीतर झाँक ले...
थोड़ा ही खुद को पहचान ले....
बन गया तेरा तमाशा यहां....

मन मेरे विश्राम कहाँ.....
भाग जाए कहाँ कहाँ......

जो सुख भीतर वो न कहीं...
धैर्य संतोष सत्य धन यहीं....
भटके क्यूँ फिर यहां वहाँ....

मन तू ठहर न भाग जहां....
भीतर तेरे है सारा जहां....
पाये चिर विश्राम यहां......

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II


समृद्धि का वृहद् कोष
केवल केवल एक संतोष
खुशी यहाँ करती उदघोष
करुंगी सदा ही तेरा पोष।

चैन की दो रोटी का स्वाद
ईश्वर का मानों हो प्रसाद
वो पनीर भी क्या खाऊॅ
असली होने में जिसके हो विवाद।

सोना कर गया दूभर सोना
नकली निकला ख़रीदा सोना
अब संतोष किया यह सोच
होगया जो भी लिखा था होना।

यदि नहीं रखोगे अपने होश
ऊॅची हवेली भी नहीं देगी सन्तोष
दोगे फिर किस किस को दोष
आता रहेगा बस खुद पर रोष। 

संतोष ही बस परम धन है
इसके बिना धनी भी निर्धन है




संतोष ही जीवन है, 
धैर्य उसका दर्पण है, 
धैर्य कडवा होता है ,
फल मीठा देता है,
जो हैं धैर्यवान, 
होते हैं बलवान, 
श्री राम का धैर्य, 
वनवास कटाये,
पांडवो का धैर्य 
महाभारत जीताये !!

स्वरचित "संगीता कुकरेती"

***************
तार - तार मानवता 

आज हुआ जाता है 
ऎसी वेला में क्यों मौन! 
तू बाँसुरी बजाता है ? 
रक्त रंजित हो गई है 
पन घट की डगर 
सिसकियों से गूँज रहा 
आज यह नगर। 
कितने दुःशासन चारों ओर 
चीर खींचता जाता है 
ऎसी वेला में क्यों मौन! 
तू बाँसुरी बजाता है? 
सारथी विहीन पार्थ भी 
बैठा है मन मार 
याद करो अपने वचन, 
लो घर - घर अवतार। 
कितनी विनती कितने मनुहार! 
अब धैर्य टूटा जाता है 
ऎसी वेला में क्यों मौन! 
तू बाँसुरी बजाता है ? 

स्वरचित उषा किरण


"संतोष"
जो प्राप्त करे पुरुषार्थ से
वह है सुधा समान

उलझने बढ़ जाये
गर संतोष नही हो पास

रुखा सुखा खाकर 
सोये चैन की नींद
पास है संतोष-धन
नही सतावे पीड़

उत्थान पतन तो आये
जीवन में बार बार
पर धर्य का साथ न छोड़े
रहे ईश पर बिश्वास

दिन गुजारे मेहनत से
सोये टूटी खाट
रात गुजारे चैन से
नही अधिक की चाह

प्रकृति भी तो यही सिखावे
पतझड़ आवे तो मत हो उदास
पतझड़ के बाद ही तो बसंत 
आवे हर बार।

संतोष है दैवीय गुण
ले हम इसे अपनाये
चैन की नींद सोये हम
जीवन हो जाये आसान
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।



विषय - धैर्य / सन्तोष / धीरज
कवि जसवंत लाल खटीक

पल में बदलती जिंदगी में ,
धीरज तो रखना पड़ेगा ।
मेहनत निरंतर करते रहो ,
फल के लिए रुकना पड़ेगा ।।

जिंदगी का सफर प्यारे ,
धीरज से काटना पड़ता है ।
अरे ! जीने के लिए नहीं ,
मरने के लिये जीना पड़ता है ।।

किसी भी काम का फल ,
हाथों हाथ नही मिलता है ।
थोड़ा सा सन्तोष रखो तो ,
मीठा फल जरूर मिलता है ।।

एक छोटा सा बीज भी ,
विकराल रूप धर लेता है ।
धैर्य रखने वाले को मालिक ,
छप्पर फाड़ कर देता है ।।

"जसवंत" कहे धीरज रखो ,
जीवन सफल हो जाएगा ।
आनन-फानन करने वाला ,
जिंदगी से मात जाएगा ।।

 धैर्य 
------
1


कुछ नहीं है झोली में 
सिर्फ धैर्य का बसेरा है 
एक संयासी की गुदड़ी में 
सिर्फ प्रेम का बसेरा है।

2

ना दाव पर कुछ लगा सकता है
ना विधाता को जवाब दे सकता है 
एक संयासी की लंगोटी में 
धैर्य की कस्तूरी है ।

3

उसके पास अनंत प्रतीक्षा की क्षमता है 
माँ कभी अधीर होती नहीं 
माँ का आँचल में अनंत जीवन की क्षमता है। 
@शाको 
स्वरचित


10/8/2018
धैर्य/संतोष
1

***
मैं लुहार
धैर्य धारण धर
अग्नि की तपन से तपता
संतोष की फुहार
मन मे समा
लोह रूपी मन से
लोह रूपी तन पर प्रहार कर
नव नित सृजन करता हूँ।
धैर्य,संतोष की ओढनी ओढ़
सुई को बारीकी से तपाता
और
बारीक तन में
नन्हा सा छिद्र कर
धैर्य की परीक्षा दे कर
उसके रूप को 
स्वर्णिम बनाता हूँ।
फटे,चीथड़े
आह!!भरते वस्त्र,मन को
धैर्य की मजबूती से सिल
पुराने वस्त्र,मन को 
नव रूप देता हूँ।
मैं लुहार,
धैर्य की अनगिनत परिक्षाएँ देता
किले,बुर्ज,महलों का निर्माण करता
सदा सफलता का नव अध्याय लिखता हूँ,
धैर्य,संतोष की
जोश भरी नई कहानियाँ गढ़ता हूँ।

वीणा शर्मा
स्वरचित



संतोष ःकविताःः
धैर्य बलवान धैर्य पहलवान।
धैर्य श्री रामजी धैर्य हनुमान।

बनते सबने देखे धीर महामना,
धैर्य धरते रहे हैं श्री भगवान।
संतोषी जीव ही रहे सदा सुखी।
विघ्नतोषी दिखे हमें सदा दुखी।
करते रहे निरंंन्तर जो परोपकार,
जहां भी रहेंगे वे रहेंगे सदासुखी।
धैर्य की पताका चहुंओर छाऐ।
धैर्यवान लोग कभी ना घबराऐ।
धैर्यशील सदा सुरक्षित रहते,
ऐसे धीरधारी सबको सुहाऐ।
जनक खोऐ धीर बडे वलवीर।
छोडे धीर लक्ष्मण नहीं रंन्धीर।
धैर्य धरे बने धर्मराज युधिष्ठिर ,
धैर्य पूर्वक रहे हमारे कपिवीर।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी "अजेय"
मगराना गुना म.प्र.
9425762471

कदम कदम बढ़ते जाओ 
धैर्य और संतोष से जीवन को ख़ुशी से सजाओ .


हिम्मत और हौसलों से आगे बढ़ते जाओ 
पर चहेरे पर धैर्य और मुस्कान सजाओ .

राह में हर कठिन डगर को पार कर जाओ 
पर धैर्य और जज्बे के संग चलते जाओ .

मंजिल को पाने की कामना मन में ठानों
पर धैर्य रूपी ज्ञान को अपनी ताकत बनाओ .

हैं इतिहास साक्षी जिन्होंने धैर्य की नाव पर पग रखा 
उन्होंने हर कठिन डगर को पार कर मंजिल को पाया .

धैर्य को बना लो अपना साया 
फिर देखो कैसे मिलती हैं मंजिल की डगर .
स्वरचित:- रीता बिष्ट

विषय - संतोष / धैर्य

जीवन के संघर्ष में संतोष ही काम आएगा।
धारा जो धैर्य तू जग जीत जीत जाएगा।

जरा सी अधीरता से बनता काम बिगड़ाएगा।
जीवन मे सफलता न कभी तू पाएगा।

धर मन संतोष ध्यान जो कर्म पर लगाएगा।
तो मेहनत का रंग तेरा निखर सामने आएगा।

माना मतलबी जमाने मे धैर्य मुँह ताकत दिखेगा।
पर जीत का जश्न यारा "संतोष" ही मना कर जाएगा।
©सारिका विजयवर्गीय"वीणा"
नागपुर (महाराष्ट्र)



शीर्षक--संतोष/धैर्य
"धैर्य को धारण करो और धारण करो सदाचार

उस पल धैर्य छोड़ दो जब होने लगे अत्याचार
बेखोफ बेटिया पैदा करो नही होंगें बलात्कार
बेटियो को भी सिखलाओ हर एक हथियार
लाठी डंडा बंदूक कराटे और सिखाओ तलवार
दुर्गा रूप धारण करेगी जब होंने लगेंगे अत्याचार
कम बोलना आंखे नीची सहन करना सिखलाते हो
खुद कायर बनकर बेटियो को भी कायर बतलाते हो
दुर्गा काली चण्डी मनसा देवी तुम ही हो मेरी
दरिंदो के टुकड़े करने में बहना करना ना देरी
बेटी को कोख में मारने पर फांसी की सजा मिल जाएगी
शायद 20-30 के झूले सजते ही हर घर मे बेटी खिल जाएगी
स्वरचित--विपिन प्रधान


धैर्य जिसने सीख लिया 
आकाश को भी जीत लिया 
विष को भी अमृत सा पी लिया 
दुःखों को भी सुख से जी लिया 
**************************
संतोष संग जब हो अभिलाषा 
आनंद देती जीवन की हर भाषा 
सुप्त ना हो जगत तम से
लाती सुबह नई आशा

स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला




चंद हाइकु, विषय -"धैर्य/संतोष"
(1)
समय गुरु 
जीवन की कक्षा में
"धैर्य" परीक्षा
(2)
मन की गाडी
धैर्य करे सवारी
मंज़िल पाई
(3)
अमूल्य धन
मन के खजाने में
संतोष रत्न
(4)
संतोषी सुखी
मन के दो हैं भाई
लालची दुःखी
(5)
गरीब घर
सपनों को सुला के
जागे संतोष
(6)
आवेश उड़ा
वक़्त के तूफ़ान में 
धीरज टिका
ऋतुराज दवे




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