Thursday, August 9

"मौन "9अगस्त 2018

मिट्टी भी ढहती है,
पत्थर भी ढहता है।


बातें तो कुछ कहती हैं,
पर मौन बहुत कुछ कहता है।।

वियोग तो दुख देता है,
पर संयोग भी खलता है।

सारी रात लौ जलती है,
पर पतंगा कुछ ही क्षण जलता है।।

मिट्टी भी ढहती है,
पत्थर भी ढहता है।

बातें तो कुछ कहती हैं,
पर मौन बहुत कुछ कहता है।।

सावन भी छलता है,
यौवन भी छलता है,।

जिसपर ज्यादा अकड़ रहे,
ओ दर्पण भी छलता है।।

मिट्टी भी ढहती है,
पत्थर भी ढहता है।

बातें तो कुछ कहती हैं,
पर मौन बहुत कुछ कहता है।।

सुख-दुख के गहरे सागर में,
जीवन ये चलता है।

उदित हुआ भानु प्रातः तो,
संध्या को ढलता है।।

मिट्टी भी ढहती है,
पत्थर भी ढहता है।

बातें तो कुछ कहती हैं,
पर मौन बहुत कुछ कहता है।।

क्यों? दुख देता जग को,
क्यों?दुख सहता है।

छोड़ दे सब माया,
तुमसे कवि ये कहता है।।
...
...
मिट्टी भी ढहती है,
पत्थर भी ढहता है।

बातें तो कुछ कहती हैं,
पर मौन बहुत कुछ कहता है।।

...राकेश



जब रखना था मुझे मौन तो क्यों आवाज दी
सब कुछ तेरे हाथ फिर क्यों सोच खास दी ।।

समझ में नही आता है तेरा यह कायदा 
आखिर क्या है तेरी मंशा क्या है वायदा ।।

क्यों करता रहता है किसी को गुमराह
फिर बहलाता भी है दिखाता है राह ।।

पल भर में ही किसी को ताज पहना दे 
पल भर में किसी को जमीं पर लिटा दे ।।

ये तेरे कानून कायदे समझ से परे हैं
कभी गम दिये हैं तो कभी गम हरे हैं ।।

आखिर मैं क्या हूँ आखिर मैं कौन हूँ 
''शिवम्" सब कुछ तूँ ही मैं तो मौन हूँ ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"

नदी का गहरा विस्तार 
और 
सन्नाटे को चीरती 
चपपू की आवाज.... 
बहुत कुछ रचता है 
फिजा में पसरा 
यह नि:शब्द मौन! 
दिखता है यहां 
कितना अदना सा 
अंतर का कोलाहल। 
परती थी कभी 
फागुनी ब्यार की चुहल 
जब कानों में 
बज उठते थे जैसे 
असंख्य घुँघरू.... 
या फिर जैसे 
कोई अल्हड़ पहाड़ी नदी 
खिलखिला पड़ी हो। 
बर्फीली चोटियों की धवलता 
और उसकी रूहानियत 
टकराती रूह से 
किसी गहरे सागर में 
होता हुआ विलीन सा 
यह सन्नाटा 
यह नि:शब्द मौन! 
उषा किरण



१.
राधा सा मौन
समाधिपाद कुञ्ज
कृष्णा मिलन 

२. 
मौन वरण
जग का विस्मरण 
चिंता से मुक्ति 

३. 
बाहय मौन
नाद गूंजे भीतर 
मन 'पागल' 

४.
ब्रह्म मुहूर्त 
मन मौन सागर 
सूर्य वरण 

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II


मौन क्यों बैठे , कन्हैया ,
कुछ तो बोल दो !
हुई क्यों ? किरपा नहीं अब तक , 
यह राज खोल दो !!
मौन क्यों.............
1)--बैठी हूँ दरस को तेरे ,
एक बार देख लो !
दृष्टि कृपा की , कान्हा , 
एक बार फेर दो !!
विनती सुनों , कन्हैया ,
ये पट खोल दो !
मौन क्यों.........
2)---भक्त तेरे कैसे भी हों , 
तू बड़ा दयालु !
करें वो भूलें कितनीं भी ,
तू बड़ा कृपालु !!
मेरी श्रद्धा को तुम , कान्हा ,
प्रेम-तुला में , तोल लो !
मौन क्यों..........
3)---जगत् में नाम है तेरा ,
तू सबका सहारा !
राजा हो , रंक हो कोई ,
तूने तो है सबको तारा !!
मेरे मन में भी , तुम कान्हा ,
मिश्री-सी घोल दो !
मौन क्यों..........


मुखर नही
पर मौन भी नही हूँ मैं

एतराज है मुझे
अनर्थ होते देखूँ मैं
मुखर नही पर
मौन भी नही हूँ मैं
अत्याचार न सहूँ मैं
दया का पात्र नही हूँ मैं।
मौन तोड़ना जानती हूँ मैं

भीष्म पितामह का मौन
का परिणाम जानती हूँ मैं
मुखर नही हूँ
पर मौन भी नही हूँ मैं

दुःशासन का कुत्सित विचार
जानती हूँ मैं
कब और कहाँ मौन तोड़ना हैं
जानती हूँ मैं

कुर्माग पर चलने वाले को
सुर्माग पर चलाना जानती हूँ मैं
विद्यावती मिल जाये तो
कालिदास भी मौन तोड़ दे
जानती हूँ मैं।
मुखर नही पर 
मौन भी नही हूँ मैं।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।


मै,मौन रहकर भी भी मौन नहीं रहता।
आत्मा टोकती मगर मन कुछ कहता।

वासना,कामनाओं मे भटकता रहे मन,
इसीलिये चाहकर भी मौन कहां रहता।

मात्र निशब्द रहने से मौन नहीं होता।
मौन मन के प्रतिबिंब में प्रकट होता।
जुगत लगाई मौन रहने की बहुत यारो,
जिसे मै मौन समझूँ वो मौन नहीं होता।

मौन रहकर भी इशारों में बात मै करता।
आत्मा रोकती मगर मै मौन कहाँ रहता।
मौन हृदय से रह सकूँ मन वश में करलूँ,
ऐसे ही मौन की लालसाऐं बहुत करता।

लडाई झगड़े रोकने का यही कायदा होता।
कुछ नहीं बोलने से हमें यही फायदा होता।
हम चुपचाप रहें और बोलता रहे कोई भी,
निश्चित मानिए मौन से बहुत फायदा होता।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म.प्र.




विषय - मौन
कवि जसवंत लाल खटीक

क्या करूँ , 
मौन रहूं या बोल दूँ ।
नेताओं की ईमानदारी के ,
सारे राज खोल दूँ ।।
क्या करूँ ,
मौन रहूं या बोल दूँ ।।।।

वोट लेने तक ,
झुक जाते है पैरो में ।
जीत जाए , तो फिर कहते ,
कौन है , भाई ! बोल तू ।।
क्या करूँ ,
मौन रहूं या बोल दूँ ।।।।

नेता गुंडे बन जाते ,
अपना ये प्रकोप दिखाते ।
इस गन्दी राजनीति को , 
आँख बन्द कर तोल दूँ ।।
क्या करूँ ,
मौन रहूं या बोल दूँ ।।।।

गाड़ी , बंगला और दौलत ,
ऐशोआराम की जिंदगी जीते है ।।
जनता के खाने के लाले और ,
कहे , 10 पैसा सस्ता पेट्रोल दूँ ।।
क्या करूँ ,
मौन रहूं या बोल दूँ ।।।।

रिश्वतखोरी , गुण्डागर्दी ,
दिनदहाड़े करते है ।
चुटकियों में फैसले होते ,
जज को बोलते ,
तेरी कीमत बोल तू ।
क्या करूँ ,
मौन रहूं या बोल दूँ ।।।।

बलात्कारी खुलेआम घूम रहे ,
देशद्रोही नेता बन रहे ।
लाखों देशवासियों को कहते ,
भारत माँ की जय , मत बोल तू ।
क्या करूँ ,
मौन रहूं या बोल दूँ ।।।।

भेड़ चाल से सरकार बन रही ,
वोट हमारा अधिकार है ।
नेता कह रहे ,मुझे वोट देना ,
ले पहले , बोतल खोल तू ।।
क्या करूँ ,
मौन रहूं या बोल दूँ ।।।।

भ्रष्ट नेताओं ने ही बिगाड़ा ,
सोने की चिड़िया का रूप ।
आज सब अंधभक्त हो रहे ,
"जसवंत" खुल कर बोल तू ।।
क्या करूँ ,
मौन रहूं या बोल दूँ ।।।।
नेताओं की ईमानदारी के ,
सारे राज खोल दूँ ।।।।।।



मैं माटी,मौन हूँ 
कदमों तले रौंदी,पिसी जाती
कुम्हार हाथों तले निखर
आंच में तप कर 
भिन्न आकृतियों में
नव रूप में ढल जाती।
मौन होकर जीना 
मुझे सुकूँ देता है
स्वयं तप कर
असंख्य जन को
घड़े रूप में,शीतल जल देना
मुझे सुकूँ देता है।
मैं माटी,
सागर किनारे
उफ़नती लहरों के
थपेड़े खा कर भी
मौन हूँ।
नियति से लड़कर
उखाड़ कर किनारे
सागर की तबाही
नामंजूर करती हूँ।
मैं माटी,मौन होकर
निश्छल ,शांत भाव से
वृक्षों को सीने में दबाए रखती हूँ
विशालकाय जड़ों को
हृदय से आर-पार कर
उफ्फ तक न करती हूँ।
मेरा मौन,
मेरी सहनशीलता,आत्मशक्ति बयां करता है
तपकर,सहकर,बांधकर
मेरा मौन
नव सृजन का निर्माण करता है।

वीणा शर्मा
स्वरचित



विधा-हाइकु
1

मौन सागर
तूफान का संदेश
आती आपदा
2
शांत अधर
है आंतरिक मौन
सुखी जीवन
3
मौन की शक्ति
करती प्रभावित
है वरदान
4
मौन है ध्यान
मन ऊर्जा का स्त्रोत
सत्य का द्वार
5
मौन अर्जित
व्यर्थ बातें नकार
दूर कलह

स्वरचित-रेखा रविदत्त
9/8/18
वीरवार


मौनी के आगे मैं होता नत
यह होता क्यों कि कठोर व्रत
हमारे स्वभाव में नहीं है चुप रहना
छोटी सी बात पर देते हम अपना मत। 

इसलिये शोर बहुत करता है मौन
इस शोर को लेकिन समझता कौन
यहां तो बस दिल ही डूबा रहता है
सारी भाषायें ही हो जाती गौण।

प्रतीक्षारत बूढ़ी आॅखों में समझो मौन
चूड़ी बिन सूनी बाहों में समझो मौन
नाबालिगा की अस्मत क्या लुटी
परिवारिक प्रश्नों का समझो मौन। 

मौन बिगाड़ता भी है
मौन उजाड़ता भी है
मौन संवारता भी है
मौन निखारता भी है। 

यदि मौन के अच्छे नहीं परिवेष
तो मिलेंगे फिर निश्चित ही अवशेष।



**मौन **
बाबाओं की हरकते ---भक्ति मौन 

घृणित वासना ---प्रेम मौन
हवस के शिकार मासूम---बचपन मौन 
दरिंदो की हैवानियत ---गरिमा मौन 
ईर्ष्या द्वेष के कारण ---सरलता मौन
झूठी गवाही ---न्याय की देवी मौन 
दिखावे की जिन्दगी---इंसानियत मौन 
स्वार्थान्धता से कलह --- रिश्ते मौन 
धोखाधड़ी --- विश्वास मौन
कराहता बुढ़ापा --- दया मौन
शिक्षा की अवनती --- प्रतिभा मौन 
रंगों की राजनीति --- धर्म मौन

स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला



तिथि-9जुलाई18

मौन
कुछ न कहकर भी
सब कुछ कह देता
न ही किसी भाषा से बंधा
न कोई परिभाषा से
न करता तर्क 
न रखता शर्त
न इकरार 
न ही इंकार
फिर भी तेज इसकी धार
कभी प्यार भरी
कभी तकरार भरी
जीत ले जंग बिन तलवार
मौन बहुत समझदार
इसमें शक्ति अपार

स्वरचित
गीता लकवाल





मौन है,फिर भी
वो सब देखता हैं, 
वो सब सुनता हैं, 
वो सब समझता हैं, 
कभी सह लेता हैं,
तो कभी बिन कहे,
सबकुछ कह देता हैं,
वो अंतस का शोर है, 
वो आत्मविभोर है,
वो मेरा नंदकिशोर है।
-मनोज नन्दवाना

एक बहुत पुराना गीतःः
ये मौन प्रेम कुछ कह न सके फिर कैसे प्यार जताऐ।

लिए हृदय में प्यार ये कितना कैसे तुम्हें बताऐ।
सांसो की डोरी को कैसे,मुश्किल से मैं खींचूं।
बिना तुम्हारे प्रेमलता को किस जल से सींचू।
भोलीसूरत रात तुम्हारी सपनों में जब आऐ।
मीठी मीठी बातें करके मुझको रोज जगाऐं।
ये मौन प्रेम........
दिल मेरा चाहे मै तुमको मनकी बात बतादूँ।
सीने से लिपटाकर सजनी सारी रात बिता दूँ।
पर नहीं मिलेगा प्यार तुम्हारा मेरा मन समझाऐ।
यादों की बारात सजी जो तन में आग लगाऐ।
ये मौन प्रेम..........
मकरंद तुम्हारे अधरों का मै भंवरा बन के पीलू्ं
नाम तुम्हारा लेलेकर मैं दुनिया में अब जी लूँ।
कौन बसा है उनके दिल में मुझको कौन बताऐ।
मेरे दिल की धडकन तो अब उनके गीत सुनाऐ।
ये मौन प्रेम.............
क्या ये सच्ची बात नहीं कि उनको भी कुछ होता।
धीरे धीरे प्यार सिसक कर अपनी बर्बादी पर रोता।
मेरी बात सुने न कोई बस उनकी बात सुनाऐ।
धैर्य शब्द कानों भर कर मेरा मन बहलाऐ।
येमौन प्रेम.............।
कजरारी अँखियों ने लगता नेह निमंत्रण मुझे 
दिया है।
शब्द न निकले मुँह से फिर भी मैने सबकुछ जान लिया है।
सिर्फ तुम्हारी अंगडाई से सारा बाग भहक जाऐ।
एक कली की बात नहीं ये सारा चमन ही खिल जाऐ।
ये मौन प्रेम........।...
मुस्काती तो लगती जैसे खिलते रंगबिरंगे फूल
जिन्हें समेटने लाना चाहूँ रत्नों जडा दुकूल।
मेरे प्यार की कशम तुम्हें तुम कभी खफा मत होना।
मुझे मिलेगा प्यार तुम्हारा मेरा मन बतलाऐ।
ये मौन प्रेम.......
प्यार एक पूजा होती है प्रियतम उसका भगवन होता।
नहीं जानता इससे ज्यादा दुनिया में कुछ भी होता।
जीवन की अभिलाषा तब तक प्रियतम साथ निभाऐं।
उनके बिना तो मेरा जीवन दूभर हो हो जाऐ।
ये मौन प्रेम.........।।।

स्वरचितः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.



मौन 
महाभारत क्यूँ छिड़ा था, 
क्योंकि वहाँ थी मौन नारी, 
द्रोपदी का चीर हुआ हरण क्यूँ..... 
क्युकि रह गयी मौन गांधारी,l

पुरुष क्या छलता नारी, 
नारी की शत्रु है नारी, 
सीता धूं धूं जली जा रही, 
क्यूँ थी सब मौनमहतारीl

टूट जाती उनकी चुप्पी तो, 
दोनों को तड़पाता कौन, 
क्यूँ अग्नि परीक्षा होती जानकी की, 
क्यूँ उतरती द्रोपदी की साड़ी l
कुसुम पंत स्वरचित 
व्यथित मन से



मौन सुख है तो दुख भी 
मौन, मौन नही है 
सुख-दुख का संगम भी है।

मौन सुलह है तो युद्ध भी 
मौन, मौन नही है 
बीच-बचाव का रास्ता भी है।

मौन सत्य है तो गलत भी
मौन, मौन नही है 
सही-गलत का प्रसार भी है।

मौन त्याग है तो लाग भी
मौन, मौन नही है 
त्याग-लाग का साधन भी है।

मौन उत्कर्ष है तो अपकर्ष भी 
मौन, मौन नही है 
उत्कर्ष-अपकर्ष का कारण भी है। 

मौन उत्थान तो पतन भी
मौन, मौन नही है 
उत्थान-पतन के परिणाम भी है।

मौन हंसी है तो गम भी
मौन, मौन नही है 
हंसी- गम का संगम भी है।

मौन तप है तो क्रांति भी 
मौन, मौन नही है 
नई क्रांति का वाहक भी है। 

---रेणु रंजन



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