Tuesday, August 28

"चाँद"28अगस्त 2018


ये सुनहला चांद होगा, 

ईद करवा गीत का।
बंधुता की रुपहली,
रश्मियों की प्रीत का,
पूर्ण यौवन ऊर्जाऔ
विश्वास को संग ले,
जाति धर्म घटा को चीर
रूप है ये मीत का ।

रंजना सिन्हा...


पूनम की रात थी
पहली मुलाकात थी ।।
एक साथ दो चाँद 
दाता की सौगात थी ।।

ये चाँद तो रहा ताजिन्दगी
उस चाँद की रह गई बन्दिगी ।।
आज तक न दिखा वो 
तड़फती रह गई जिन्दगी ।।

झलक ही दिखाना थी
ये जिन्दगी रूलाना थी ।।
मेरी कोशिशें भी शायद
उसको आजमाना थी ।।

अगले जन्म तक ये कोशिश जारी 
उतरेगी न अब कभी भी ये खुमारी ।।
उन कोशिशों की हकीकत जो देखी
चाँद भी शरमाया जो तस्वीर उतारी ।।

निहारता रहा वो उसे अपलक
देखी जो उसने उसकी झलक ।।
सूरत ही ऐसी वो पाये ''शिवम"
पहली नजर में दिल गया था बिक ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"


हाय चाँद सा मुखड़ा तेरा।
नीदं लूटी चैन लूटे हैं मेरा
हाय चाँद सा मुखड़ा तेरा।

नैन कजरारे है चपल कारे।
गाल के आगे है फूल हारे।
कैसे बैरी बना घुंघटा तेरा।
हाय चाँद सा मुखड़ा तेरा।
मोय मुस्कान है तेरी मोहे। 
माथे बिन्दिया है बडी सोहे। 
मै कहां जाऊँ ये बता दें तू। 
या सुन ले तू दुखड़ा मेरा।
हाय चाँद सा मुखड़ा तेरा।
होठ जैसे हैं गुलाबी पत्तियाँ। 
नज़रे हैं गिराती बिजलियाँ। 
कातिल है हर जलवा तेरा। 
हाय चाँद सा मुखड़ा तेरा।
बाहों में तू जो आ जाए मेरी। 
किस्मत ही बदल जाए मेरी। 
सोच कर ही मरा जाऊँ मैं।
सच हो कब ये सपना मेरा। 
हाय चाँद सा मुखड़ा तेरा।

विपिन सोहल

चाँद तेरे जैसे क्यूँ न होते इंसान सब ,
जिसका न कोई धर्म है न कोई मजहब ,

कभी ईद तो कभी करवाचौथ तो कभी 
तीज का तू है प्रतीक ,
चाँद ही तो है नव युवाओ का मनप्रीत ,
जिन्हे घेरा हुआ है अवसाद 
जरा वो भी देखे चाँद ,
चाँद में भी बता देते लोग दाग,
पर नित -2 घटना और पुन :
मन्द -2बड़ना 
चाँद का काम है 
चांदनी को महफूज रखना 
तुम भी पुन:उत्साह से 
अपना जीवन चमकाओ अब ,
चाँद ............
क्या कभी चाँद को देखा है एक जैसा ,
निशदिन लगता वो नूतन ,
क्यों न हीं करते चाँद सम स्वयं में परिवर्तंन ,
चाँद पर भी तो ग्रहण लगता है ,
पर क्या वो मानुष की तरह 
हार मानता है ,
अपितु पूर्णिमा को सम्पूर्ण आभा 
के साथ चांदनी से लबरेज होकर 
कितना सुंदर दमकता है ,
तुम इंसान दमकोगे कब ,
चाँद .......

शिल्पी पचौरी



देख अकेले चाँद गगन में,
मन मेरा कुछ खोया है।
जैसे यादों की बदली में,
मन तुझको ही पाया है।

सूनी यादों की गलियों में,
खुशियां दस्तक देती सी।
खिल उठा अंतर्मन,
अधरें जैसे स्मित सी।

आँचल में भर लूँ तारे,
तन-मन पर शबनम झरने दूँ।
तेरे नेह की शीतलता को,
अपने ऊर में भरने दूँ।

रात्री प्रहर की नीरवता में,
मैं बैठी ठगी अकेली सी।
कैसे बांधू मैं नैनों में,
तेरी छवि जैसे पहेली सी।

स्वरचित
उषा किरण




वो और मैं

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वो गीत मेरे 
मैं उसकी कविता 
वो शब्दों की श्रृंखला 
मैं उसकी वाणी 
वो जलधि का विस्तार 
मैं उसकी लहरें
वो गहराई में
मैं उसके समतल में
वो आकाश-सा असीमित 
मैं धरती की सहनशीलता 
वो बादल की घनघोर घटा
मैं उसकी बारिश की बूंदें
मैं उसकी कलकल ध्वनि
वो दिनकर -सा आभासित
मैं चांद की चांदनी 
वो मुझमें प्रतिबिंबित 
मैं उसमें प्रतिबिंबित 
बस वो और मैं
जगत सृष्टि की सुंदर कृति।
--रेणु रंजन 
(स्वरचित )



II चाँद II 
अमावस का ....

पुछा एक बच्चे ने मुझसे 
ये अमावस का चाँद क्या होता है....
जैसे जीवन में सुख दुःख आता जाता है....
चाँद भी सुख में बढ़ता और दुःख में घटता जाता है...
एक दिन दुःख जब ज्यादा होता है और वो छुप्प सा जाता है...
तब अमावस का चाँद होता है...यूं उसको जवाब दिया.....

बच्चा तो चुप्प हो गया मुस्कुरा के चल दिया....
हलचल मेरे दिल में मचा गया.....
कि अमावस का चाँद क्या होता है.....

मन का पंछी उड़ने लगा...
ख्यालों के बादलों में यूं गुम होने लगा...
एक बादल मस्त मुझ से टकराया....
उससे पुछा मैंने अमावस का चाँद क्या होता है....
मस्ती अपनी में उसको अमावस तो सुना ही नहीं....
चाँद में अटक के रह गया...
महबूब का चेहरा कहके वो गया और वो गया....

फिर जब एक बुझते तारे से पुछा यही सवाल…
उसने मुश्किल से ही मुंह खोला...फिर दिया जवाब.....
महबूब के रूठ जाने से दिल जब बुझ जाता है...
वो चाँद अमावस का होता है.....
अपनी अपनी सोच है...अपना अपना नजरिया है....
किसी को चाँद महबूब दिखे है....किसी का बुझता दिल सा है...
ये तो निज स्वार्थ है जो चाँद अलग अलग सा दीखता है....

मन मेरा भी उद्वेलित था के आखिर चाँद अमावस का क्या होता है....
मैं यूं ही जवाब से नदारद अपने पे गुस्सा हो रहा था....
कानों में मेरे मद्धम सी एक आवाज़ टकरा गयी....
एक बच्चा माँ की गोद में लेटा हुआ था...
माँ उसको लोरी सुना रही थी...
सो जा लाल मेरे आज तू ऐसे ही....
कल चन्दा मामा आएंगे.... कचोरी पकोड़े लाएंगे....
साथ में ढेर से खिलोने होंगे....जो सब तेरे लिए होंगे....
हम सब मिल के खाएंगे....खूब धूम मचाएंगे...
अब तू सो जा लाल मेरे...कल चन्दा मामा आएंगे...
कचोरी पकोड़े लाएंगे....
साथ में झर् झर् आँखें उसकी बहे जा रही थी....
मुझको जवाब बता रही थी.....
जब माँ का बच्चा भूखा सोता है.....
माँ के दिल पे क्या होता है....
ये चाँद ही समझता है....
इसी लिए वह एक दिन...
जब छुप छुप के बहुत ही रोता है....
वो अमावस का चाँद होता है....

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 


*******
चाँद जोहरी

बिखेर दिए मोती 
नभ चमका

रात बिछाए
तारों वाली कालीन
चाँद मेहमां

निशा जलाती 
चाँद का लालटेन 
धरा मुस्काती 

चाँद भी जाता 
रोज ब्यूटी पार्लर 
तारों के साथ

निशा लगाती 
रोज बालों में खुद 
चाँद का फूल 


संध्या परोसे
गगन की थाली में 
चाँद सी रोटी 

मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश 
मो.9826732879 

28/8/2018
*
************
1
करवाचौथ
मदहोश सा चाँद
प्रीत के साथ।
************
2
दोस्ती का हाथ
मन जगमगाता
चाँद सा साथ।
************
3
चाँद सजा
तारों की बारात ले
अम्बर चला।
************
विषय से अलग
4
रजनी सजी
ओढनी सितारों की
दुल्हन लगी।
***********
वीणा शर्मा
स्वरचित



हम चाँद निहारते रहे कहीं
चाँद रो रहा चाँदनी लुट रही।

जिंदगी क्यों वेवफा हो गई,
छोटी बच्चियाँ तक घुट रही।

पता चला ये चाँद दागी हो गया।
शराफत का गला कहीं घुट गया।
सुहागनें छोडिये नादान रो रहीं,
चाँद दिखा नहीं कहीं खो गया।

तेजाब फेंक रहे दरिंदे चाँद पर,
अब चाँद निकलने से डर रहा
शैतानियत निष्ठुर निर्लज्ज हुई,
इन्सान इनसानियत से डर रहा।

प्रेमचंद दिखे नहीं रामचंद्र ढूँढ रहे।
रूपचंद रो रहे सांड चाँद घूम रहे।
आवारा हुए हमारे तुम्हारे लालचंद,
चहुंओर स्वछन्द चाँदराम झूम रहे।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.



विषय-चाँद
विधा-हाइकु

1
बादामी रात
पिया का इंतजार
चाँद के साथ
2
निकला चाँद
चमकीले उजास
पिया का साथ
3
सर्दी की रात
प्रियतम का साथ
चाँद से बात
4
नीली हैं आँखें
चाँद सी सुन्दरता
मन को भाए
5
चाँद बेबस
तुम्हारी बेवफाई
नैनों में अश्क
6
तुम्हारी याद
मचलती चाँदनी
निहारूँ चाँद

स्वरचित-रेखा रविदत्त
28/8/18
मंगलवार



ए चाँद तू क्यू इतराता है, 
क्यू अपनी चांदनी पर इठलाता है, 
पता है...... जल रहा... कौन, 
इस चांदनी के लिए...., 

वो सौर मंडल का राजा है, 
जो रात दिन दहकता है, 
पूरे ब्रह्माण्ड की जिम्मेदारी उस पर 
जिसके बिना पत्ता भी नहीं 
पनपता हैl

क्या अहसान है तेरा ए चाँद, 
जो तू चांदनी को चमकाता है
कभी आता कभी जाता है, 
कभी कभी तो बिल्कुल गायब होजाता है l

कभी चौथ का बनकर, 
कभी चौदवीं का बनकर, 
कभी पूनम का बनकर, 
ए चाँद तू सिर्फ इंतज़ार करवाता है l

चकोर तेरे लिए हर वक़्तरोता है, 
तेरे लिए तेरी राह तकता है, 
रोज ताकता रहता है, 
पर निर्मोही तो उसे गले नहीं लगाता हैl 
ए चाँद...... 
कुसुम पंत 
स्वरचित


"दुनिया के हर रिश्ते पर चांद सटीक लगता है
अब तो जल्दी जल्दी ग्रहण इसकी चांदनी को ठगता है
एक चांद सी महबूबा मांगता है कोई प्यार करने वाला
कोई चाँद सा दूल्हा ढूंढता है बेटी की शादी करने वाला
माँ बाप का बच्चा जो है पालने में लेटा
उनके लिए चांद से कम नही बेटी हो या बेटा
ईद का चांद मेरा जिगरी यार हो गया
इतने दिन बाद आज देखा तुझे तो त्योहार हो गया
नारे भी कहते है कि "जब तक सूरज चांद रहेगा"
नेता अभिनेता अन्य महान हस्ती तेरा नाम रहेगा
अब तो बड़ा ही कमाल धमाल हो गया
सूरज से भी ज्यादा तो चांद लाल हो गया
लाली क्या हर काम मे चांद सूरज से भी आगे बढ गया
हद तो तब हुई जब एक माह में ही तीन तीन बार चन्द्र ग्रहण पड़ गया
भावो के मोती को चांद करने के। सपने अब टूटने लगे
जबसे चांद से महबूब चांद से बेटे चांद से भाई आबरू लूटने लगे
अब तो चांद रंग बदलकर नाम बदलने की सोच रहा है
क्योंकि आज हर चांद ही चांदनी को नोच रहा है
......स्वरचित--विपिन प्रधान......



"चाँद टकटकी देख रहा"

चाँद टकटकी देख रहा मैं, इंतजार कराया करती हूं!
आंख मिचौली सी करती, हर रात सजाया करती हूं।

तिरछी चितवन से तारों की,तङपन निहारा करती हूं
तन्हाई का इक इक क्षण ,चितचोर सजाया करती हूं
मेरी आरोही सांसो में , यादों का गीत सजा कर के,
मुखरीत मन से ही अंतर्तम, संगीत सजाया करती हूं।
चाँद टकटकी देख रहा मैं, इंतजार कराया करती हूं!

थाम उजाले का दामन, सुख स्वप्न सजाया करती हूं,
हंसी ठिठोली सुख की हो, कुछ स्वांग रचाया करती हूं,
अमृत के फीके प्याले जब, जीवन में सांसे ना भरे
आशाओ की मदिरा का, रसपान कराया करती हूं।
चाँद टकटकी देख रहा मैं, इंतजार कराया करती हूं!

स्पन्दीत धङकन पे बारिश का ,मोर नचाया करती हूं
बंधी अधूरी परिभाषा ,खिलती भोर सजाया करती हूं
धूप संग मेरी परछाई, यूं चलते चलते कभी ना थके
तुझ संग मेरे मीत, प्रीत की ये, डोर बंधाया करती हूं
चाँद टकटकी देख रहा मैं, इंतजार कराया करती हूं!

------ डा. निशा माथुर/जयपुर/राजस्थान ( स्वरचित) 
8952874359 (whatsapp)



मित्रों , मेरे इस गीत में कुछ विशेषता है और वह यह है कि इसमें एक ही शब्द को , एक वाक्य में , 5 बार , वह भी अलग-अलग धुन के साथ प्रयुक्त किया गया है ! आशा है कि मेरा यह अंदाज आपको पसंद आएगा !

चाँद जैसे , चाँद जैसे , चाँद जैसे हो तुम ! चाँद जैसे हो तुम ! चाँद जैसे हो तुम !
मेरे हमदम , मेरे हमदम , मेरे हमदम हो तुम ! मेरे हमदम हो तुम ! मेरे हमदम हो तुम !!
चाँद जैसे.................................!
१--आए हो , जानम , जबसे , ज़िन्दगानी में तुम !
नूर बनके , चमके हम , कसम से , अ'हमदम !!
तुम हो मेरे , तुम हो मेरे , तुम हो मेरे सनम ! तुम हो मेरे सनम तुम हो मेरे सनम !
चाँद जैसे...................................!
२--जीते हैं , तेरे लिए , तेरे लिए मर जाएंगें !
जान ये तुझपे , सनम , हम फिदा कर जाएंगें !!
चाहें तुमको , चाहें तुमको , चाहें तुमको ही सनम ! चाहें तुमको ही सनम !
चाँद जैसे....................................!
३--चाह है , तू ही मिले , हर जनम में सनम ! 
प्यार तेरा मिले , हर जनम में सनम !!
तुमसे बिछुड़े , तुमसे बिछुड़े , तुमसे बिछुड़े ना हम ! तुम से बिछुड़े ना हम ! तुमसे बिछुड़े ना हम !
चाँद जैसे.....................................!


1*
श्वेत चाँदनी 
पूर्णिमा का चन्द्रमा 
सुहानी रात
2*
पहुँचा चाँद 
कठिन इम्तिहान 
सुफल ज्ञान 
3*
चाँद का दाग
है नजर का टीका
कुदृष्टि रक्षा 
4*
छूपता चाँद 
बादलों की ओट में 
घनेरी रात
5*
विलुप्त चाँद 
अमावस की रात 
तारे चमके
6*
राहू का ग्रास 
अपहरण चाँद 
त्रस्त जीवन 
7*
दूज का चाँद 
शरमाकर भागा
खेल अनोखा
8*
कलंकित चाँद 
यूँ नजर चुराता
दामन दाग
9*
चाँद चकोर
अधूरी है कहानी 
अद्भुत प्रेम 
10*
नीला आकाश 
सितारों संग बात
हँसता चाँद 

स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला




ढूंढने लगा चांद, फिर बादलों की ओट
कितना शर्मिन्दा है, तुझे देखने के बाद

मेरी आंखें जगेंगे रातभर, चांद की तरह
ये देख पलकों ने, अश्कों के सितारे सजा लिए

हम भी तन्हा है यहां हजारों की भीड़ में
हो चांद जैसे सितारों की भीड़ में

हमने भी उस चांद से, जोड़ लिए है नात
तारे गिन-गिन कटे अब,हम दोनों के रात

चांद चलें संग-संग मेरे, पकड़े मेरा हाथ
रात की इस तन्हाई में, दोनों रहते साथ

जुर्म मोहब्बत है मेरी,बस इतना गुनाह है
मेरी बेचैनी, तड़प, इंतजार सब तेरी पनाह है
उसे मेरी उन वीरान रातों का हिसाब दे ऐ चांद
मेरी तन्हाइयो का तू ही इकलौता गवाह है


विधा - काव्य..

चाँद जब चांदनी को देख कर इतराए..
सितारे भी खुद की चमक मे इठलाए..

मै निहारू यार को अपने दिलदार को..
जिसे देख चाँद, सितारे, चांदनी भी शर्माये...

होगा बहुत नाज़ उस चाँद को चमक पर..
मेरा तो प्यार मेरा चाँद है इस फलक पर..

चाँद ने दाग भी समेट रखे है छुपाकर..
मेरा तो यार बेदाग है इश्क़ निभाकर..

बहुत गुरूर भी चांदनी का गवारा नहीं..
दिन निकलते ही चमक छुप जाएगी...

किया है इश्क़ मेरे चाँद ने मुजसे इस कदर..
हर एक पल मे मोहब्बत की छटा बिखरती जाएगी..
हर एक पल मे मोहब्बत की छटा बिखरती जाएगी..

विनय
स्वरचित.. 🙏






चंद हाइकु 
विषय -"चाँद "
(1)
तारे चिंदिया
रजनी का श्रृंगार
चाँद बिंदिया
(2)
पूनो के हाथ
बिखरी कलानिधि
रजत रश्मि
(3)
करवा चौथ
सुहागन श्रृंगार
चाँद गुलाब
(4)
ताके आकाश
गरीब की खुशियाँ
ईद का चाँद
(5)
चाँद यूँ हर्षा
पूनम के हाथों से
रजत वर्षा
(6)
सुख व दुःख
जीवन समझाएँ
चन्द्र कलाएँ
(7)
खिले धवल
रजनी के अंक में 
चाँद कमल
ऋतुराज दवे












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