बन जाती बात है ।।
सदा न रहती यहाँ
अमावस की रात है ।।
तूफान भी आते हैं
पर कहाँ ठहर पाते हैं ।।
झुकना भी सीखिये
दरख्त ये सिखाते हैं ।।
झुके थे दरख्त जो
काम आये अब वो ।।
थकेहारे उनके तले
जाते हैं कितने सो ।।
हौसलों ने मान दिलाये
हौसलों ने काम बनाये ।।
हौंसला न खोओ कभी
उड़ते पंछी बतलाये ।।
मंजिलों से मेल कराये
दुखों को दूर भगाये ।।
हौसला वालों के चेहरे
''शिवम्" मुस्कुराते पाये ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
ग़ैरों में भी अपने मिला करते हैं कभी,कभी।
गम ना कर, अँधेरा छँट हीं जायेगा।
हौसला गर है बुंलद, तो किस्मत भी पलटती है कभी,कभी।।
हौसला हो दिल में तो डूबते, डूबते बच हीं जाते हैं लोग।
भटकने वाले सही रास्ते पे आ हीं जाते हैं।
हौसला हो बुलन्द,तो जंग जीत लोगे जिंदगी की।
पर हौसला बनाये रखना दिल में।
इंसान घबराना नहीं कभी।।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
सिक्का इस तरह जमा लो,
"तेन्दुलकर" की तरह यहाँ,
शतक पे शतक बना लो,
कर लो बुलंद तुम हौसला,
जिगर अपना मजबूत बना लो !
क्रिकेट की उस गेंद का जरा,
हौंसला तो देखो तुम प्यारे,
बल्ले पर जोरों की चोट खाकर,
उडान कुछ ऐसी भरती है कि,
सीधे आसमान को छू लेती है,
और हौंसला कायम रखती है!
क्रिकेट रूपी इस जीवन के ,
तुम भी मजबूत कप्तान बन जाओ,
आत्मविश्वास रूपी बल्ले को ऐसा घुमाओ,
हौंसला अपना बुलंद करके,
रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड बनाओ,
दुनियां में अपना नाम कर जाओ !
स्वरचित -*संगीता कुकरेती*
जीवन मार्ग
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छूने का हौसला गर है
तो छू लो आसमां को
मेहनतकश बन तोड़ दो
हर उस पत्थर पहाड़ को
जो तेरे कर्म के रास्ते आए,
हिम्मत की पराकाष्ठा से
पाट दो उस खाई को
जो तुझे नीचे धकेलने का
कोई साजिश करे।
जीवन का मजा तभी है
जिसमें सुख-दुख का संगम हो,
जो सुख पाने पर
अपने सारे उसूल भूला दे
अहंकारिता के बस में हो जाए,
या जो दुख से घबराकर
जीवन जीना छोड़ दे,
ये तो बुजदिली होगी उसकी
जीवन का मजा क्या यारों
जो कष्ट सहे नही
जीवन को जीने में।
----रेणु रंजन
( स्वरचित )
"हौसला"
हो गर हौसला
तो मंजिले आसान हो
कर न याचना
मन को एकाग्र कर
भरे उड़ान हम
राहे हो गर दुश्कर
पर कम न हो हौसला
इतिहास है गवाह सदा
उड़ान होती हौसला से
न कि सिर्फ पंखों से
चक्षु रखे चौक्कना
भ्रम न पाले मन मे हम
समझ जाये मर्म हम
धूमिल न हो हौसला
उड़ान जब भरे हम
हर्ष विषाद से न हो पस्त
राग द्वेष न अपनाये हम
हौसला अफजाई कर
दुर्भाग्य बदले
सौभाग्य मे हम
दीर्घसुत्री हट जाये तो
चक्षु खुल जाये स्वयं
हौसला गर बुलंद हो तो
मंजिल स्वयं चल कर आये
हम तक।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।
हौंसले बुलंद हों अगर
साथ देगी कायनात,
पाँव जमीं पर ही रहें
हो आसमां से मुलाकात।
नदियों से गतिशील रहें,
रुकावटों की क्या औकात
सागर से मिलकर दम लेंगे
गहराइयों से होगी बात।
-- नीता अग्रवाल
( स्वरचित )
२९/८/२०१८/
देवेन्द्र नारायण दास बसना।
तांका,
दुर्गम पथ,
आगे बढ़ते रहो,
समय बलवान,
हौसला रख,
वक़्त बदलता है,
मंजिल भी मिलेगी।।१।।
हार न मान,
अंधेरे जीवन से,
हौसला रख,
जीवन का दर्शन,
हंसेगी ये ज़िन्दगी।।२।।
वक़्त के हाथों,
बिखरीहै उदासी,
हौसला रख,
फिर हंस उठेंगे,
कांटों भरी जिंदगी।।३।।
६२६६२७८७९१/।।
उन्नति के शिखरों पर चढने का।
धूल धूसरित करूँ मंसूबे उनके,
जो साहस करें देशद्रोही बनने का।
रहूँ सदा बुलंद होंसलों से प्रभु जी,
अपनी मातृभूमि की सेवा करने।
झुकूं नहीं कभी किसी के सामने,
रखूं होंसला इस वतन पर मरने।
अपने मन की सही बात कहूँ मै,
नहीं डरूँ सद्साहित्य सृजन से।
मनोभाव जनजन तक पहुंचाऊं,
लडूं साहस रखअसत्य कथन से।
पर्दाफाश कर पाऊँ झूठे लोगों का,
रहूँ प्रगतिशील देशहित जनसेवा में।
संग साथ मिले होंसला अपनों का,
जीवन हो सुविकसित जनसेवा में।
कटुसत्य कहने का दम रख पाऊँ।
मुँह से नहीं लेखनी से कह पाऊँ ।
सदा होंसले हों दृढसंकल्पित रहूँ,
कुछ अच्छा अचंम्भित रच पाऊँ।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
हँसती खेलती मासूम सी इक लडकी की ये है बात ,
दिन दहाड़े बन गई उसकी जिन्दगी काली अमावस की रात ,
कुछ पल की हवस ले आई दुख: दर्द की बरात ,
रोती सिसकती रह गई मिली तन्हाई की सौगात ..
कैसे कहे किस से कहे वो अपनी बर्बादी की बात ,
भूल के अनहोनी के क़िस्से बदलने थे उसे खुद के हालात ....
परिवार की बदनामी के भय ने छीना सुकून के दिन रात ...
ख़ामोशी से जोड़ के रिश्ता लिखने लगी वो अपने जज़्बात ...
बचपन की यादों का ले कर सहारा बरसो रो रो गुज़ारी रात ,
पर हौसला न छोड़ा मेहनत से पढ़ी वकालत और की सजा की मालुमात ...
आज सर उठा कर जी रही भेज कर दरिंदे को हवालात ,
मासूम लड़की ने सशक्त महिला बन खुद की पीड़ा से पाई निजात...
कुन्ना ......
फिर पीछे होगा पूरा काफिला ,
कौन कहता है प्यासा कुआं
के पास आये ,
अगर मजबूत है तेरा हौसला
तो कुआं खुद आकर तेरी
प्यास बुझाय,
हौसला में अपार शक्ति है ,
हौसले से चट्टान भी सरकती है ,
हाँ मित्रो हौसला है ये
जिसके दम पर खग उडान भरते है ,
आम जन भी खास बनते है,
अटल और कलाम जी जैसे
महारथीयों का सब गुणगान करते है ,
हर दिन भारत जीत रहा
'स्वर्ण पदक '
ये सब है खिलाडियों के
हौसले की ताकत .....
हौंसलो मे गर उड़ान है मेरे
मै नभ को चीरती जाऊगी
सागर मे जाकर के मै
मोती खींच के लाऊंगी
सियाचीन मे पहरा देकर
मे चैन से तुम्हे सुलाउंगी
तपते थार मे कदम चलाकर
देश का मान बढ़ाऊंगी
खेल जगत मे पदक जीतकर
अपना परचम फेहराऊँगी
नासा की परिधि मे जाकर
नई खोज कर जाउंगी
जो विधा है मेरे अन्दर की
मे उसमें तपती जाऊँगी
नये कीर्तिमान बना
मै दीप्यमान हो जाऊँगी
यदि छलने मुझे तुम आओगे
मै नाम तुम्हारा मिटा दूंगी
हुँकार भरु माँ काली की
यहरूप तुम्हे दिखलाडूंगी
अशक्त नहीं सशक्त हु मै
ये बात तुम्हे समझा दूँगी
उड़ान है मेरे जज्बे मै तो
जीकर फिर दिखला दूंगी
हौंसले के पँख मेरे
नहीं कभी कटने देना
नन्ही सी कलम से भाव पिरो
मै विजयी पताका फेहराऊँगी
स्वरचित सीमा गुप्ता
अजमेर
29 . 8. 18
सारा राज्य डूब रहा है फिर भी पानी मे खड़ा इंसान पानी को तरस रहा है
हर कोई लाचार बदहवास हताश परिवार को खोकर रो रहा है
ऐसे में हर कोई किसी ऐसे की जो ऐसे में हौसला दे होश ला दे को टोह रहा है...
जो आँचल हमेशा अपनी औलाद को धूल धूप और नजर से बनाने को ढकता रहा
आज वही आँचल औलाद की लाश को आ चल आ चल कहकर तड़पता रहा
इस हाल में ना कोई परिवार ना रिश्तेदार ना हथियार काम आ रहा
आज जल ही जीवन आज जीवन को मौत कर मुर्दा बहा रहा है
आज ना कोई आस आशा अभिलाषा पूजा प्रार्थना ही असर कर रही है
हर तरफ सैलाब है पानी का फिर भी जाने ये बारिश कोन सी कसर पूरी कर रही है
ख़ौफ़नाक पानी का ये मंजर बनकर खंजर घरबार खेत खलियान को फाड़ रहा है
जिंदगी देने वाला ये पानी आज तो हमारी पूरी कायनात ही उजाड़ रहा है।
ना घर ना छप्पर ना टीन की चादर ना टप्पर ही बचा रह गया है।
क्या करेगे वो जीकर जिनका लाल सुहाग माँ बाप ही भ गया है।।
नजर आया 5 दिन का एक नवजात जो करके ऊपर हाथ रो रहा है
ऊपर वाले नहलाने को मेरी माँ ही नही छोड़ी तूने फिर मुझको क्यों धो रहा है
टोह(देहाती शब्द)--ढूंढना
स्वरचित--विपिन प्रधान
¤हौसला ¤
वो साधारण इंसान ही थे
एक दिन बन गए महान्
दे गए जग को नई सीख
आज याद करे उन्हें जहाँ
आज भी हैं ऐसे इंसान
बनाते हैं नित कीर्तीमान
शायद हो हम संग भी..वो
जिसका हो कभी गुणगान
क्यों नहीं होते सब महान्
जबकि योग्यता दी समान
ईश्वर ने तो दिये..संसाधन
कि उपयोग करे ...इंसान
होंसलों का अंतर ही था जो
डर का ना कर पाया निदान
किसी ने पाई गुमनामी और
किसी ने बनाई......पहचान
-मनोज नन्दवाना
देखो आँखें नम नहीं हैं
ऐ जहां ! छोड़ दे आजमाना
तुझ में अब दम नहीं हैं ।
बुतपरस्ती छोड़ दी हमने
हर ताबीर तोड़ दी हमने
हौसला बुलंद हैं
बात इतनी कम नहीं हैं।
उम्मीद-ए-चिराग कम नहीं हैं
देखो आँखें नम नहीं है
ऐ जहां!छोड़ दे आजमाना
तुझ में अब दम नही हैं।
-रश्मि की कलम से...
# रश्मि अग्निहोत्री
जिला कोंडागांव
मात्रा भार 12
छत्तीसगढी रचना
हिम्मत अपन हार झन,
कोनो ला पुकार झन।
पथरा ला धुर्रा कर,
माटी ला पहार झन।।
हौसला तै हार झन,
कोशिश कर टार झन।
गिरके जेन ह उठथे,
पौधा समझ नार झन।।
आगी म घी डार झन,
चिनगारी म बयार भन।
बुडत नइया पार कर,
साहस ल "यश"मार झन।।
शब्दार्थ कोनो ला =कोई, पथरा=पत्थर, धुर्रा =धूल,पहार =पहाङ,टार=हटाना,डार =डाल,बयार=हवा,बुडत=डुबना,
यशवंत"यश"सूर्यवंशी
भिलाई दुर्ग छग
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