ख्वाब झिलमिल सितारे बना कर
गीत अधरों पर मैं हूँ रचाती
श्याम,स्वप्नों में,मैं गुनगुनाती।
नभ-धरा का मिलन ख़ूब हो जब
प्रस्फुटित नव गीत हो तब
मुग्ध प्रकृति भी सौरभ फैलाए
कूक कोयल मधुर तब सुनाएं।
बहती लहरों का संगीत सुन लो
नव उमंग सँग नव गीत रच लो
झर-झर झरते झरने को देखो
मद लहरों का यौवन भी देखो।
उपवन में चहकते है पंछी
मानों सप्त लहरी यही पे बजी हो
फतिंगा भी फर-फर गुनगुनाता
ज्यों कोई,मधुर गीत गाता।
सावन की लहर अब है आई
मोहक पीहू ने सरगम सुनाई
मृदुल सा तन,कोमल गीत
धरा भी सुकुमारी बन छाई।
वीणा शर्मा
स्वरचित
जिन्दगी का साज तुम हो।
मै गीत हूँ एक मूक सूना।
गीत की आवाज तुम हो।
हमसफर हमराज़ तुम हो।
जिन्दगी का साज तुम हो।
प्यार की मीठी गज़ल तुम।
खुशियों का हरेक पल तुम।
कल तुम्ही से होगा रोशन।
और सुनहरा आज तुम हो।
हमसफर हमराज़ तुम हो।
जिन्दगी का साज तुम हो।
है वास्ता तुम को हमारा।
प्यार का तुम ही सहारा।
जीने की तुम ही तमन्ना।
जिन्दगी का नाज़ तुम हो।
हमसफर हमराज़ तुम हो।
जिन्दगी का साज तुम हो।
मै गीत हूँ एक मूक सूना।
गीत की आवाज तुम हो।
विपिन सोहल
ये किसने साज छेड़ा है ।
बज रही है मन की वीणा
लगता ज्यों हुआ सबेरा है ।
गीतों को सरगम मिल गई
गया जो था अँधेरा है ।
रोम रोम पुलकित है
तन में नई तान का डेरा है ।
कल तक था मन को
ये तेरा ये मेरा है ।
आज जिधर देखूँ उधर
खुशियों का बसेरा है ।
दाता तेरी कृपा हुई
या चुका कर्ज कोई मेरा है ।
गीत नही ये मोंतीं हैं
लगा गहरे सागर का फेरा है ।
यूँ न ''शिवम्" भाग्य सितारा
किसी ओर कभी हेरा है ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
24/08/2018
आलोकित हो उर का नीरु चिंतन
कल्पनाऐं कूद पडे़ हो मनसिज मनन
मुखरित हो मीत ,गीत हो गया सृजन
क्षण प्रति क्षण नवल और नूतन
लिए उर भाव मे मनन और चिंतन
सघन मृदुला युति इत उत विचरण
मुखरित हो मीत,गीत हो गया सृजन
समय गतिमान है लेकिन वो भी गहन
अवनि का आँगन ये व्यापित गगन
दसो दिशाऐं गूँजे और दो अयन
मुखरित हो मीत,गीत हो गया सृजन
बीज से अंकुर,कली,फूल से उपवन
महकी सुगंध तन मन महका आनन
दूर तलक लहराऐं सुरभित पवन
मुखरित हो मीत, गीत हो गया सृजन
धैवत,सप्तक,नीषाद सरगम गूँजन
आरोह अवरोहित स्वर का स्पंदन
राग दीपक ,मल्हार रागिनी संगम
मुखरित हो मीत, गीत हो गया सृजन,,,,,,,,,,,
रागिनी शास्त्री
मैं गीत गाँव से आया हूँ
मैं प्यार संदेसा लाया हूँ
जात पात और मज़हब के
सब धागे तोड़ आया हूँ
मैं गीत गाँव से आया हूँ
भोले भाले इन चेहरों पर
तकलीफों के क्यों पहरे हैं
आँख उनींदी सी हैं इनकी
क्यों अश्क़ यहाँ पे ठहरे हैं
मैं बन के कुछ अपना सा
मुस्कान सजाने आया हूँ
मैं गीत गाँव से आया हूँ
मैं प्यार संदेसा लाया हूँ
लोग बढे खामोश हुए हैं
जाने कैसी ये मजबूरी है
लोगों की लोगों से देखो
बढ़ती जाती क्यों दूरी है
मीलों की इस दूरी को मैं
दिलों से मिटाने आया हूँ
मैं गीत गाँव से आया हूँ
मैं प्यार संदेसा लाया हूँ
मेरा गाँव मुहब्बत का है
फ़र्ज़ वहाँ इबादत का है
हँसते गाते सब रहते हैं
इश्क़ जहाँ आदत सा है
ऐसे ही इक बस्ती के मैं
ख्वाब दिखाने आया हूँ
मैं गीत गाँव से आया हूँ
मैं प्यार संदेसा लाया हूँ
- हिमांशु श्रीवास्तव
ये किसने सरगम छेड दी,
वीणा की तान छेड दी,
तरंगित हो रहा है मन,
गीतों की लहर छेड दी!
मेरे मन मे उमडा एक गीत,
सांसों में खुशबू महक गयी,
चिडिया जैसी मैं चहक गयी,
आज मिलेंगे मेरे मनमीत!
आनंदित हो रहा है मन,
पुलकित हो रहा अंग-अंग,
गीत सुनाऊँ आज किसे मैं,
बस में नहीं आज मेरा मन!
गीत प्यार के गाऊँगी मैं,
खुशियाँ खूब मनाऊँगी मैं,
श्री हरि तुम्हारे चरणों में,
मन से जोत जलाऊँगी !
स्वरचित -*संगीता कुकरेती*
Rakesh Pandey
मैं जिसे रात -दिन सजाता हूँ,
मैं जिसे रात-दिन सजाता हूँ...
गीत ..ओ मैं तुम्हे सुनाता हूँ...
मैं जिसे.......
तेरी आंखों में एक समन्दर है,
तेरी...आंखों में एक समन्दर है....
तेरी आंखों में एक समंदर है..
...इनमे अक्सर मैं डूब जाता हूँ
इनमे अक्सर मैं डूब जाता हूँ..
मैं जिसे.....
...तू तो मिलती है मुझे लहरों की तरह,
तू तो मिलती है मुझे लहरों की तरह....
तू...तो मिलती है मुझे लहरों की तरह....
मैं रेत के घर सा बिखर जाता हूँ...
मैं रेत के घर सा विखर जाता हूँ.....
मैं जिसे......
कल मिलूं ना मैं तुझसे शायद,
कल मिलूं ना मैं तुझसे शायद,,
कल..मिलूं ना मैं तुझसे शायद..
हर दिन यह सोच के मिलजाता हूँ...
मैं जिसे.....
ये गीत मीत संगीत सभी ,
हमें तभी सुहाने लगते हैं।
जब हिय में हो चैन शांति,
वरना सब वेगाने लगते हैं।
.अपना तन है अपना मन है
हमें इसको सुखद बनाना है।
जीवन सुखमय जीना है तो,
हृदय प्रेम विकसित करना है।
कर्णप्रिय संगीत गीत हो।
मधुर तान ईश भजन हो।
संगीत वही मुझे सुहाता,
जो शुभ साहित्य सृजन हो।
जो मन में मकरंद घोल दे।
भक्ति राग के वंद बोल दे।
मातृभूमि भारतमाता के,
. कणकण में जो छंद खोल दे।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
II मिलन - विदाई II
छत पे कोआ कांव कांव कर रहा है....
कोई और तो अपना है नहीं...शायद...
तुम आ रही हो कहीं...
मिलोगी मुझसे तो बताऊंगा तुझे...
जीना कितना दुश्वार था तेरे बगैर...
दिन भी रात थी तेरे बगैर...
ज़ख्म रिस्ते दिल के दिखाऊंगा तुझे...
कपडे भी चुभते हैं उसपे बताऊंगा तुझे...
किस तरह से बना हूँ तमाशा सब के आगे...
ढूँढा किया हर गली हर चमन यूं बेतहाशा भागे...
गाऊंगा गीत वही जो तुम सुनती थी...
झूमते झूमते संग तेरे तेरी डोर से बंधा...
पर वो गीत आज मैं अकेला ही गाता हूँ.....
कट्टी पतंग की तरह झूलता...गिरता पड़ता...
जो कभी पस्त न हुआ था किसी के आगे...
वो हारा तो बस तेरे आगे...
बिना आहट के दस्तक सी हुई लगती है...
एक झोंके की तरह वो मेरे सामने आ जाती है...
बाल बिखरे से हैं उसके मेरे बालों की तरह....
पलकें सूजी हैं उसकी तो मेरी भी हैं...
सुर्ख आँखें दोनों की कुछ ब्यान किये जाती हैं..
लब उसके भी ज़र्द सफ़ेद मेरे जैसे हुए जाते हैं...
सांसें उसकी तेज हैं तो धड़कन मेरी रुक सी है रही...
ये आसमान इस कदर क्यूँ झुक सा है गया ....
आतुरता धरती में भी मिलन की प्रबल है हुई...
न लब उसके हिलते हैं न मैं ही बोलता हूँ कुछ...
आँखें उसकी मेरी आँखों में डूब सी हैं गयी...
विरह वेदना को जैसे विरक्ति मिल हो गयी...
गिले शिकवे..सवाल ..जवाब...दिल दिमाग के...
सब विलुप्त से हो गए...
दिलों ने जैसे एक दूसरे का दर्द पी हो लिया...
उसके साँसों के समंदर में...
मेरी धड़कने डूब सी गयी.....
दोनों ही एक दूसरे से पस्त हो गए....
अजीब सी शान्ति हर और छा सी गयी ...
हर मौज अब सुहानी सी हो गयी....
भोर की छटा बिखर सी रही है...
विदा होता चाँद भी मुस्कुरा रहा है...
दूर कहीं कोयल मीठे गीत गा रही है...
मंदिर में शंख धवनि हो रही है....
घंटे घड़ियाल बज उठे हैं....
तारों की छाँव में मिलन हमारा हो रहा है...
मंद मंद पवन गीत हमारे मिलन के....
विदाई दुनिया से गा रही है...
यूं तारों कि छाँव में डोली हमारी जा रही है.....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२४.०८.२०१८
गीत
सुर,लय,ताल जब मिलते हैं।
तब सरस,मधुर गीत बनते हैं।
गीत सुनकर चहके पंक्षी।
फूलों पे भी बहार आता है।
झूम,झमकर नाचे मयूरा।
जब राग मल्हार कोई गता है।
जब छेड़े कोई गीत,संगीत।
तो मन की उदास गाँठें खुल जाती है।
जब कोई छेड़े सरगम।
मन सबका नाच उठता है।
गीतों में है अपार शक्ति।
मन की सब पीड़ा हर लेता है।।
स्वरचित
बोकारो स्टील सिटी
वीणा झा
हुई जो खताएं मुझसे, उसे तू बिसार दे
मेरे मन के गीत बन जा जिंदगी संवार दे।
दिल में बसाकर तू जीवन विस्तार दे
मेरे मन के मीत बन जा जिंदगी संवार दे।
खुशबू हरपल तेरी ही रहती है सांसों में
मेरे मन के प्रीत बन जा जिंदगी संवार दे।
उलझ-उलझ जाती हूं तेरी बातों-बातों में
मेरे मन के जीत बन जा जिंदगी संवार दे।
तुझसे है गुलशन-सा बहार मेरे जीवन में
मेरे मन के शीत बन जा जिंदगी संवार दे।
जीवन की खुशियां है तुझसे इस जग में
मेरे मन के रीत बन जा जिंदगी संवार दे।
- *रेणु रंजन*
24/08/2018
जबसे तुम जिंदगी में आये हो .
कभी गुनगुनाने लगी हूँ गजल
कभी गीत कभी कोई काफिया .
मन हो रही हैं उथल पुथल
कैसी हैं ये अजब हलचल .
मन मेरा बावरा हुआ जाये
कभी गीतों के राग गुनगुनाये .
कभी गीत संगीत की
दुनियाँ में खो जाये
हर पल एक नई कहानी सुनाये .
कर्णप्रिय गीत का मेरा
एक जहाँ बन गया हैं
जहाँ मैं और मेरे गीतों की
अपनी ही यादें और बातें हैं .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
हे माँ,
रणभूमि से वापस आऊं जब
बचपन की लोरी सुना देना।
हे ह्रदय संगिनी,
रणभूमि में वीरगति गर पा जाऊं
तू गीत वही सुना देना।
पर ध्यान रहे न आँखे नम हो
गर्व से माथा चमका देना
तुम गीत वही सुना देना।
माँ रणभूमि से वापस आऊं जब
बचपन की लोरी सुना देना।
स्वरचित आशा घिल्डियाल
सबका मीत बन जाता है।
अहं में डूबते हैं जब रिश्ते,
आपस में रार ठन जाता है।
घटा छाते हैं जब गगन में,
पांवों में थिरकन आता है।
सामने देख रूप का मंज़र,
हाथ से दिल व मन जाता है।
ऊब कर निकले जब घर से,
हरेक मन को चमन भाता है।
------सुरेश----
24अगस्त 2018
सप्त स्वरों से बनती सरगम,
सरगम से बने संगीत,
संगीत से बन जाए गीत,
गीत मिलाये मन का मीत l
सुख मे गीत दुःख मे गीत
प्रकृति का सौंदर्य प्रतीक
इस सृष्टि के रंग अनोखे,
कोयल गाये दिव्य गीत l
वीणा के तारों मे गीत,
तबले की तालो मे गीत,
स्वर बसा है तृण तृण मे,
हर प्राणी की वाणी गीत l
गीत है यमुना, गीत है गंगा,
सरस्वती की धारा गीत,
स्वर बिना सृष्टि नहीं,
कण कण मे है इसके गीत l
जीवन की बगिया है गीत
संग मे होता ज़ब मनमीत,
इंद्रधनुष के रंगों वाली,
ये पूरी दुनिया है गीत
कुसुम पंत
स्व रचित
"गीत "
बहते अश्रु धार जब टूटा आसमान
फिर बादल गाये कैसे गीत
धरा के सीने को चीर जख्म हैं मिले
फिर मिट्टी की खुशबू गाये कैसे गीत
उजड़ा है चमन पतझड़ सा मौसम
फिर बावरा भँवरा गाये कैसे गीत
कटती गई अम्बुआ की डाली
फिर कोयल पपिहा गाये कैसे गीत
भोर को छाया घना कोहरा बना आवरन
फिर उषा की लाली गाये कैसे गीत
धूप की तपिशपेड़ों की नहीं ठंडी छाँव
फिर राहों में राही गाये कैसे गीत
साँझ की बेला लुप्त हुई शंख ध्वनि
फिर संध्या आरती गाये कैसे गीत
सितारों की महफ़िल को घेरे काले मेघ
फिर ज्योत्सना रात गाये कैसे गीत
वहशीपन का शिकार है मासूम
फिर बाल मन गाये कैसे गीत
बढ़ती आबादी भरते रहे तालाब
फिर हंसो का जोड़ा गाये कैसे गीत
जीवन के पथ में चुभते रहे काँटे
फिर सीधा साधा सा दिल गाये कैसे
#गीत#
स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला
24/08/2018
अलग अलग विधाओं से
बनता है सुन्दर गीत
जैसे सप्त सुरों से मिलकर
बनता है अद्भुत संगीत।
जीवन भी एक गीत ही तो है
जिसमे होते पात्र अनेक
हास्य,करुण,वीर रस इनमें
बनते रिश्ते इनमें देख।
अगर हौंसला रख ले कोई
होती हार बन जाये जीत
भावों के मोती सब मिलकर
रचते है फिर नया गीत।
स्वप्न नया फिर कोई सजाऊंगा!
धुन नया फिर कोई बजाऊंगा!
करें कोशिश उलझाने की लाखों,
तुम संग हो तो,
#गीत नया फिर कोई बनाऊंगा!!
बादलों की ओट छुप जाएगा कोई!
रात भर यादों में सताएगा कोई!
दिल को भले ही तड्पाएगा कोई,
तुम संग हो तो,
#गीत_ नया फिर कोई बनाऊंगा!!
भीड़ में भले ही गुम हो जाऊं मै!
बढ़ते-बढ़ते भले बेदम हो जाऊं मैं!_
भटक जाऊँ भले ही कुंद राहों में,
तुम संग हो तो,
#गीत__ नया फिर कोई बनाऊंगा!!
#गिरीश
#स्वरचित
मन भावन गीतो का संगीत
हर लम्हे उन गीतो का ताल है
कभी कहे कभी आनकहे क़िस्सों का अहेसास है
इन गीतो के रंगो में खो जाओ
किसी को पा लो या किसी का हो जाओ
गीतो की नई धुन जीवन सजाती है
जैसे ज़िंदगी हर रोज़ नए संघर्षों को गुनगुनाती है
महक उठता है जीवन ख़ुशियों की बहार से
जब जी जाती है ज़िंदगी गीतो के हिसाब से
रंगो और तारंगो की बौछार होती है
जब जीवन में गीतो की तरह मनभावन ख़ुशियों की क़तार होती है
जी लो इन पलो को जी भर के क्योंकि
ये ज़िंदगी सरगम की तरह बेमिसाल होती है ....
डॉक्टर प्रियंका अजित कुमार
स्वरचित
मेरे मन की वीणा के तार जो छेड़े तुने,
गीत बन मेरे लब पर तू छा गई।
जीवन में मेरे तू बन के आई बहार,
धीरे-धीरे संगीत बन समा गई।
देखी जो तेरी सुंदर - सलोनी छबि तो,
शायर बन गीत गुनगुनाने लगा,
जुबां से निकले ऐसे प्रेम गीत,
बिन साज के दिल का संगीत बजने लगा।
©-सारिका विजयवर्गीय "वीणा"
सोई मानवता को जगा दे
अहसास बनाना बाकी है
हाँ गीत अधूरा बाकी है
समरसता की ताल ठोक दे
सद्भावों के सुरों को स्वर दे
वो प्रेम साधना बाकी है
हाँ गीत अधूरा बाकी है
राष्ट्रभक्ति की सरगम पर
बाहर के हो या भीतर घर
नाच नचाना बाकी है
हाँ गीत अधूरा बाकी है
स्त्री अस्मिता की खातिर
सब धुनें हो जाएं शामिल
कानून थिरकना बाकी है
हाँ गीत अधूरा बाकी है
ऋतुराज दवे
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